बुधवार, 20 मार्च 2024

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से जनवादी साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14,15 और 16 मार्च 2024 को तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन








   प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 14,15 और 16 मार्च 2024 को तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया । साहित्यकारों ने कहा कि वे जनवादी कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सर्वहारा वर्ग की आवाज को बुलन्द किया।

    मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की 26 वीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के गांव लोदीपुर मिलक में 21 जनवरी 1950 को जन्में शिशुपाल मधुकर की रचनाएं सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों को न केवल उजागर करती हैं बल्कि असमानता और अव्यवस्थाओं के खिलाफ आक्रोश भी व्यक्त करती हैं। उनका पहला काव्य संग्रह अभिलाषा के पंख वर्ष 1994 में तथा दूसरा काव्य संग्रह अजनबी चेहरों के बीच वर्ष 2003 में प्रकाशित हुआ। उनका देहावसान 2 मार्च 2023 को हुआ।

   वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने उनके अनेक संस्मरण प्रस्तुत करते हुए कहा – सागर तरंग प्रकाशन से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका आकार के वह प्रबंध संपादक और संकेत संस्था के महासचिव थे। उन्होंने जन जागृति चैरेटेबिल ट्रस्ट की स्थापना कर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लघु फिल्म मेरा क्या कुसूर था का निर्माण किया। इस फिल्म की पटकथा और गीत भी उन्हीं ने लिखे थे।

    प्रख्यात बाल साहित्यकार व विज्ञानकथा लेखक राजीव सक्सेना ने कहा कि मधुकर जी की कविताओं में जहां मनुष्य और उसके समाज के प्रति चिन्ता दिखायी पड़ती है वहीं सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति भी वे खासे सचेत नज़र आते हैं। 

   ओंकार सिंह 'ओंकार' ने कहा सर्वहारा वर्ग के पक्षधर जनवादी कवि शिशुपाल मधुकर अपनी रचनाओं के माध्यम से शोषित-पीड़ितों और वंचितों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर संघर्ष करने की प्रेरणा उम्रभर देते रहे। 

वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी ने कहा कि उनकी रचनाएं चाटुकारिता से कोसों दूर रहकर निर्बल वर्ग के दुख-दर्द की वास्तविकता को मानस पटल पर उकेरती हैं। 

   डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि मधुकर जी ने सामाजिक राजनीतिक मूल्यों पर सशक्त लेखनी चलाई जो मानव मूल्यों के अवनति का मुखर आभास कराती हर ओर  उजियार करने में सक्षम है। 

श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा वह साम्यवादी दल में केवल राजनीति के लिए नहीं थे बल्कि धरातल पर शोषित पीड़ित और उपेक्षित वर्ग के हितार्थ कार्य भी करते थे।

     रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा– लेखन और जीवन से तादात्म्य स्थापित करते हुए वे एक लय में चलने वाले व्यक्ति थे। 

राजीव प्रखर ने कहा– उत्कृष्ट व्यक्तित्व के धनी, क्रांतिकारी एवं चिंतनशील साहित्यकार मधुकर ने सीधी, सरल एवं स्पष्ट भाषा में सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया।  

मीनाक्षी ठाकुर ने काव्यात्मक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा – 

लिखी जनवादी कविताएँ, लिखा सब जन के ही हितकर

सभी वर्गों का दुख हरने, रही थी लेखनी तत्पर

वे अपने गीत गजलों में, कहानी के कथानक में

रहेंगे मरके भी ज़िंदा, सृजन के गान थे मधुकर

  रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार ने कहा कि उनके काव्य सृजन में समाज के निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की ज़बरदस्त पैरवी देखने को मिलती है। 

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा वह एक अत्यंत संवेदनशील हृदय के स्वामी थे जो जनपीड़ाओं को देखकर न केवल आक्रोशित होता था बल्कि मुखरित भी होता था। 

दुष्यंत बाबा ने कहा वे जमीन से जुड़े संवेदनशील साहित्यकार थे।

फरहत अली खां ने कहा वे आम-जन के कवि तो थे ही, सच्चे समाजसेवी भी थे, फ़िल्में बनायीं तो वो भी सामाजिक मुद्दों पर, फिर उन में अदाकारी के जौहर भी दिखाए। 

राशिद हुसैन ने कहा उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए व्यवस्था पर तीखे प्रहार किए। धन सिंह धनेंद्र ने कहा–उनके सरल और मृदुल स्वभाव से सभी प्रभावित हो जाते थे। 

  कार्यक्रम में पल्लव काव्य मंच रामपुर के अध्यक्ष शिव कुमार चंदन, दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त, अनवर कैफ़ी, माया राजपूत, सूर्यकांत द्विवेदी, डॉ अनिल शर्मा अनिल जी, नकुल त्यागी जी, आमोद कुमार, अशोक विद्रोही,अभय सिंह,संजय सिंह, अविज्ञा धानी,मनोरमा शर्मा ने विचार व्यक्त किए। आभार डॉ उपासना राजपूत और डॉ अनुजा राजपूत ने व्यक्त किया। 













सोमवार, 18 मार्च 2024

श्री अरविंदो सोसाइटी के तत्वावधान में 17 मार्च 2024 को काव्यगोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की संस्था अरविंदो सोसाइटी के तत्वावधान में कम्पनी बाग स्थित स्वतंत्रता सेनानी भवन में राष्ट्र चेतना विषय पर केंद्रित काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। मनोज 'मनु' द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य भूषण डॉ महेश 'दिवाकर' ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में सरिता लाल, विशिष्ट अतिथि के रूप में धवल दीक्षित, फक्कड़ मुरादाबादी एवं वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई मंचासीन रहे। कार्यक्रम का संचालन विवेक 'निर्मल' के द्वारा किया गया। 

   डॉ प्रेमवती उपाध्याय के संयोजन में हुए इस कार्यक्रम के सह-संयोजक दुष्यन्त 'बाबा' ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा- 

'हरि-हरि में मतभेद कर, फँसे भक्त भव कूप।

 दृग माया का  मैल है, सब  ही  उसके  रूप'

राजीव प्रखर ने पढ़ा- 

'जलते-जलते आस के, देकर रंग अनेक। 

दीपक-माला कर गई, रजनी का अभिषेक' 

शुभम कश्यप ने अध्यात्म विषय पर अपनी अभिव्यक्ति कुछ इन पंक्तियों से की-

भक्ति से श्रद्धा बढ़ी, ऊंचा मिला मुक़ाम।

जब से कर दी ज़िंदगी, गोविंद तेरे नाम' 

डॉ मनोज रस्तोगी ने गीत प्रस्तुत किया -

'घर-घर में करना आह्वान है। 

मत का करना सही दान है।। 

परिवार सहित चलें बूथ पर। 

बाद में करना जलपान है'  ।।

 अचल दीक्षित ने सुनाया-

 'देखो-देखो बसंत आया है 

चंचल चितवन चित्त चकराया है'

 वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने अपने हास्य-व्यंग्य के माध्यम से सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। 

वरिष्ठ साहित्यकार योगेंद्र वर्मा 'व्योम' ने रचना प्रस्तुति से आनंदित करते हुए पढ़ा-

केवल अपनापन रहे, हर मन का सिरमौर। 

साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' ने सुनाया-

'साल पाँच सौ गुजर गए अब भाग्य बदलने वाले हैं, 

श्री रामचंद्र फिर से अपने मंदिर में आने वाले हैं' 

 अनन्त 'मनु' ने अपने पिता मनोज मनु का गीत प्रस्तुत किया तो श्री राघव ने 

'ऋतुएं भी कुछ ऐसे, करवट बदलने लगी हैं 

बसंत में भी पेड़ों से पत्तियां गिरने लगी हैं' 

सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

     इस अवसर पर मंचासीन साहित्य भूषण महेश 'दिवाकर', डॉ सरिता लाल, हास्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी, ओंकार सिंह 'ओंकार', रघुराज सिंह 'निश्छल', राम सिंह 'निशंक' एवं समाजसेवी धवल दीक्षित ने भी राष्ट्र चेतना विषयक विचार एवं रचनाएँ प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम संयोजिका डॉ प्रेमवती उपाध्याय के द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम पूर्णता को प्राप्त हुआ।
















































:::::प्रस्तुति:::::::

दुष्यंत 'बाबा'

9758000057