सोमवार, 5 दिसंबर 2022

साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से चार दिसम्बर 2022 को मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ल की चार काव्य कृतियों का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर उन्हें श्रेष्ठ साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित किया गया

  मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से रविवार चार दिसंबर 2022 को आयोजित समारोह में अंग्रेजी एवं हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ल की चार काव्य कृतियों दिव्या, अनुबोध, जिंदगी एक गड्डी है ताश की तथा मृत्यु के ही सत्य का बस अर्थ है, का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर उन्हें श्रेष्ठ साहित्य साधक सम्मान 2022 से सम्मानित भी किया गया। संस्था की ओर से उन्हें मानपत्र एवं अंग वस्त्र भेंट किए गए। मान पत्र का वाचन डॉ मनोज रस्तोगी ने किया।

  रामगंगा विहार स्थित एमआईटी के सभागार में हुए इस समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा - डॉ. आर. सी.  शुक्ल के व्यक्तित्व व कृतित्व में समाहित एक अद्भुत द्विभाषी रचनाकार से मेरा परिचय नया नहीं है। 1977 में मुरादाबाद आने से पूर्व उनके हिंदी कवि से मेरा परिचय स्थापित हो चुका था। डॉ. शुक्ल की रचनाओं के केन्द्र में मुख्यत: दर्शन है। उनकी कविताओं में एक कथात्मक विन्यास मिलता है। वे एक समर्थ कवि हैं।"

   मुख्य अभ्यागत के रूप में बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विशेष गुप्ता का कहना था -  "उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति और दर्शन का समावेश देखने को मिलता है।" 

   विशिष्ट अभ्यागत के रूप में अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच के अध्यक्ष डॉ. महेश दिवाकर ने कहा - 

"बातचीत व्यवहार में, अपनेपन की गंध।

 मिलने पर ऐसा लगे, जन्मों का संबंध। 

 अंदर है हलचल बहुत, बाहर है ठहराव। 

 जितनी हल्की चोट है, उतना गहरा घाव।। 

   ये पंक्तियाॅं डॉ. आर.सी  शुक्ल के व्यक्तित्व पर सटीक उतरती हैं। वह हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं के अद्भुत रचनाकार हैं।" 

   विशिष्ट अभ्यागत प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कहा - "उनकी रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों तथा मानवीय जीवन का मनोवैज्ञानिक यथार्थ है।" 

   विशिष्ट अभ्यागत एमएच डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुधीर अरोरा ने कहा - "उनकी कविताएं भावुकता, वैचारिकता और जीवन के अनुभवों का शानदार दस्तावेज़ हैं।" 

   इस अवसर पर डॉ. आर. सी. शुक्ल ने अपने कई गीत प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा... 

   हम कैसे यात्रा करें हमारे जीवन में संत्रास न हो

   चिंता होना कोई भारी बात नहीं विषाद न हो । 

कवयित्री निवेदिता सक्सेना ने उनका गीत प्रस्तुत करते हुए कहा.…

    पहुॅंच गया आरंभ अंत तक जब तुमने चाहा

    सूने घर में दीप जल गया जब तुमने चाहा। 

संस्थापक डॉ. मनोज रस्तोगी ने संस्था की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला जबकि राजीव प्रखर ने डॉ. शुक्ल का जीवन परिचय प्रस्तुत किया।

     डॉ. शुक्ल के कृतित्व पर आलेख वाचन करते हुए चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - "उनकी कविताएं दर्शन की पगडंडियों पर दैहिक प्रेम अनुभूतियों और परालौकिक आस्था के बीच की उस  दिव्य यात्रा की साक्षी हैं जिसे कवि ने अपने कल्पना लोक में वैराग्य के क्षितिज तक जाकर जिया है।"     

    साहित्यकार अम्बरीष गर्ग ने कहा - "वैचारिक स्तर पर डॉ. शुक्ल की कविताएं विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर, जयशंकर प्रसाद और कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं।"  

     कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट के आलेख का वाचन दुष्यंत बाबा द्वारा किया गया जिसमें उनका कहना था - "उनकी रचनाएं कठोर यथार्थ और कोमल कल्पना, योग और वियोग, श्रृंगार और वैराग्य के मानसिक  द्वन्द्व को उजागर करती हैं। 

     डॉ. मनोज रस्तोगी एवं योगेन्द्र वर्मा व्योम के संयुक्त संचालन में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रूप से योगेन्द्र पाल विश्नोई, डॉ. राकेश चक्र, मोहन राम मोहन, डॉ संतोष कुमार सक्सेना, डॉ रीना मित्तल, सुमन कुमार अग्रवाल, रविंद्र कुमार, पूजा राणा,राम सिंह निशंक, रामवीर सिंह, श्रीकृष्ण शुक्ल, शिशुपाल 'मधुकर', शिखा रस्तोगी, धवल दीक्षित, डॉ. मधु सक्सेना, उमाकांत गुप्ता, आर. के. शर्मा, डॉ. मुकेश गुप्ता, रूपचंद मित्तल, ओंकार सिंह ओंकार, राहुल सिंघल, रघुराज सिंह निश्चल, विवेक निर्मल, मोनिका सदफ चन्द्रहास, अनुराग शुक्ला, अमर सक्सेना, राघव गुप्ता, डॉ कृष्ण कुमार नाज़, मनोज मनु, डॉ. मीरा कश्यप, अभिव्यक्ति सिन्हा आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। आभार-अभिव्यक्ति डॉ. मनोज रस्तोगी द्वारा की गयी।

























































रविवार, 4 दिसंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से कवि मनोज मनु को राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य सम्मान से किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 दिसंबर 2022 को मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु को "राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की स्मृति साहित्य सम्मान" से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कालेज के सभागार में हुआ। 

     हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद के संस्थापक कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग जी की स्मृति में आयोजित इस कार्यक्रम में सम्मानित रचनाकार मनोज 'मनु' को सम्मान स्वरूप अंग-वस्त्र, मान-पत्र स्मृति चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। संस्था की सक्रियता एवं इसके संस्थापक कीर्तिशेष श्रृंग जी के रचनाकर्म  पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने विस्तार से प्रकाश डाला। 

      सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सम्मानित रचनाकार मनोज मनु के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में अपने विचार रखते हुए कहा कि मनोज मनु मूलतः शायर हैं और गूढ़ शायर हैं जिनकी ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए होती हैं लेकिन जब वह हिन्दी कविता के नगर में चहलक़दमी करते हैं तो उस समय वह कविता का विविधरंगी इंद्रधनुष गढ़ते हुए नज़र आते हैं। 

इस अवसर पर सम्मानित मनोज मनु ने काव्य पाठ करते हुए अपने गीत प्रस्तुत किए- 

मैं समय हूँ चल रहा हूँ क्या करूँ

भूत को रचना था जो सो रच गया 

और भविष्य कल्पना में बस गया

मैं कहाँ ठहरूँ मेरा आधार क्या

हिम सदृश बस गल रहा हूँ क्या करूँ

इसके बाद उन्होंने एक ग़ज़ल भी सुनाई- 

ज़िन्दगी की पहेली सहल हो गई

आपसे जब मुखातिब ग़ज़ल हो गई

इसमें जबसे तुम्हारा ठिकाना हुआ

दिल की कुटिया में मेरी महल हो गई

     कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का कहना था कि कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की स्मृति में मनोज मनु को सम्मानित किया जाना उनकी रचनाओं का सम्मान है। मनोज मनु एक प्रतिभाशाली रचनाकार हैं, उन्हें बहुत बहुत बधाई।          मुख्य अभ्यागत राजीव सक्सेना ने कहा कि संस्था के संस्थापक राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग हिंदी को समर्पित एक जुनूनी रचनाकार थे जिन्होंने गीत मुक्तक दोहे तो प्रचुर मात्रा में लिखे ही हाइकु भी लिखे। उनका खंडकाव्य- शकुन्तला हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। 

   विशिष्ट अभ्यागत अंबरीश गर्ग ने कहा कि मनोज मनु उर्दू के साथ साथ हिंदी के भी महत्वपूर्ण रचनाकार हैं जिनमें अपार संभावनाएं तो हैं ही उनकी रचनाएं भी उल्लेखनीय हैं।

     विशिष्ट अभ्यागत सुप्रसिद्ध शायर अनवर कैफ़ी ने कहा कि मनोज मनु मुरादाबाद के बेहतरीन शायर हैं, उन्होंने अपनी शायरी से साहित्य को समृद्ध किया है।

अनंत मनु ने मनोज मनु का गीत प्रस्तुत किया ।

        इसके अतिरिक्त डॉ अजय अनुपम, विवेक निर्मल, रामसिंह निशंक, ओंकार सिंह ओंकार, के पी सरल, इंदु रानी, डॉ कृष्ण कुमार नाज़, अन्जना वर्मा, कादंबिनी वर्मा, अनंत मनु, संस्कृति मनु, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रामेश्वर वशिष्ठ, अमर सक्सेना, राघव गुप्ता आदि साहित्य साधकों ने भी इस अवसर पर उपस्थित होकर कीर्तिशेष श्रृंग जी को नमन करते हुए, सम्मानित रचनाकार मनोज मनु को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कीं। संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी आभार-अभिव्यक्त किया।






















:::::::::::::प्रस्तुति:::::::

राजीव 'प्रखर'

कार्यकारी महासचिव

हिंदी साहित्य संगम मुरादाबाद

मोबाइल -9368011960

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु के कृतित्व पर केंद्रित योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख - मैं समय हूँ चल रहा हूँ क्या करूँ..

 


मुरादाबाद पीतल की नगरी के रूप में भले ही विश्वविख्यात हो लेकिन यहाँ की धरती कला की बेहद उर्वरा धरती है जहाँ अनेक स्वनामधन्य हस्ताक्षर उगे और उन्होंने कला के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अपने कृतित्व से अपने नाम की प्रतिष्ठा के सँग-सँग मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को भी समृद्ध किया। रंगकर्म के क्षेत्र में मास्टर फिदा हुसैन नरसी और संगीत में व्यास परिवार व गोस्वामी परिवार के साथ-साथ उर्दू शायरी में जिगर मुरादाबादी, कमर मुरादाबादी और हिन्दी कविता में दुर्गादत्त त्रिपाठी, सुरेन्द्र मोहन मिश्र, हुल्लड़ मुरादाबादी जैसे अनेक नाम हैं जिनका अवदान आज भी एक मानक स्तम्भ के रूप में स्थापित है। वर्तमान में भी कला के विविध क्षेत्रों में अनेक लोग अपने-अपने कृतित्व से मुरादाबाद की कला-परंपरा को आगे ले जा रहे हैं जिनमें मनोज मनु का नाम विशेष रूप से एक उल्लेखनीय नाम है।

   टांडा बादली जिला-रामपुर के प्रतिष्ठित स्वर्णकार परिवार में 2 सितम्बर, 1974 को जन्मे मनोज मनु ने उर्दू शायरी व हिन्दी कविता के क्षेत्र में समान रूप से स्वस्थ- सृजन किया है। हालांकि मनोज मनु मूलतः शायर हैं और गूढ़ शायर हैं जिनकी गज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए होती हैं लेकिन जब वह हिन्दी कविता के नगर में चहलकदमी करते हैं तो उस समय वह कविता का विविध रंगी इंद्रधनुष गढ़ते हुए नज़र आते हैं। मातृभूमि के प्रति श्रद्धा से नत मस्तक हो वह अपनी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत रचना में अपने भाव व्यक्त करते हैं

स्वर्ग से महान स्वर्ण-सी प्रभा लिए हुए

वो भावना प्रशस्त कर रही है स्वर पगे हुए 

कि तृप्त सप्तस्वर हों इस वसुंधरा पे शास्वत 

धरा तुझे नमन सतत् धरा तुझे नमन सतत

        लखनऊ की सुप्रसिद्ध कवयित्री संध्या सिंह ने कविता को बिल्कुल अनूठे ढंग से व्याख्यायित करते हुए कहा है कि 'कविता/ अपनी नर्म उँगलियों से सहला कर / आहिस्ता आहिस्ता / करती है मालिश / बेतरतीब विचारों की/कविता/करती है बड़े प्यार से कंघी /सुलझाते हुए एक-एक गुच्छा / झड़ने देती है कमजोर शब्दों को/ और बना देती है/पंक्तियों को लपेट कर एक गुंथा हुआ जूड़ा / अनुभूतियों के कंधे पर/कविता/लगाती है/ संवेदना के चारों तरफ शब्दों का महकता गजरा/और खोंस देती हैं/शिल्प की नुकीली पिनें भी / उसे टिकाऊ और सुडौल बनाने के लिए / यद्यपि / शब्दों की अशर्फियों से भरा है। कविता का बटुआ / मगर खरचती है/ एक-एक गिन्नी तोलमोल कर/ कंजूस नहीं है मगर किफायती है कविता।' 

        मनोज मनु की हिन्दी कविताओं से गुजरते हुए भी उनकी अनुभूतियों के वैविध्य और संवेदनाओं के कोमल व्याख्यानों के दर्शन होते हैं, चाहे गीत हों, दोहे हों, मुक्तक हों या मुक्तछंद की कविताएं हों। समय को केन्द्र में रखकर रचा गया उनका यह गीत अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ बहुत कुछ अनकहा भी छोड़ जाता है पाठक को मंथन के लिए-

मैं समय हूँ चल रहा हूँ क्या करूँ 

भूत को रचना था जो सो रच गया 

और भविष्य कल्पना में बस गया 

मैं कहाँ ठहरूँ मेरा आधार क्या 

हिम सदृश बस गल रहा हूँ क्या करूँ

        मनोज मनु वैसे तो स्वान्तः सुखाय रचनाकर्म करने वाले रचनाकार हैं किन्तु उनका सृजन- लोक समसामयिक संदर्भों से विरत नहीं रहा है। गजलों की ही भाँति उनके गीतों में, दोहों में अपने समय की विसंगतियों, कुंठाओं, चिन्ताओं, उपेक्षाओं, विवशताओं और आशंकाओं सभी की उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। आज के विद्रूपताओं भरे अंधकूप समय में मानवीय मूल्यों के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्य भी कहीं खो से गए हैं, रिश्तों से अपनत्व की भावना और संवेदनाएं कहीं अंतर्ध्यान होती जा रही हैं और संयुक्त परिवार की परंपरा लगभग टूट चुकी है लिहाजा आँगन की सौंधी सुगंध अब कहीं महसूस नहीं होती। ऐसे असहज समय में एक सच्चा रचनाकार मौन नहीं रह सकता, मनोज मनु भी अपनी रचनात्मक जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए बड़ी बेबाकी के साथ आज की कड़वी सच्चाई को बयान करते हैं-

जंगल जैसा राज यहाँ 

आपस में सन्नाटा

घर के अन्दर कमरों के

दरवाज़ों पर परदा 

कफ़न पहन कर खड़ा 

आपसी रिश्तों का मुरदा 

कुछ बातों ने तन के भीतर 

मन को भी बाँटा

प्रेम यानी कि एक शब्द ! एक अनुभूति एक राग ! एक त्याग! एक जिज्ञासा! एक मिलन! एक जीवन ! एक धुन ! एक विरह! एक सुबह ! एक यात्रा ! एक लोक!... कितना क्षितिजहीन विस्तार है प्रेम की अनगिन अनुभूतियों का। इसी तरह एक आयुविशेष में भीतर पुष्पित पल्लवित होने वाले और पानी के किसी बुलबुले की पर्त की तरह सुकोमल प्रेम की नितांत पवित्रानुभूति कराता है मनु जी का यह प्रेमगीत-

कसमसाती कल्पना में 

वास्तविक आधार भर दो 

यह मेरा प्रणय निवेदित 

स्वप्न अब साकार कर दो 

भावना विह्वल हृदय की 

जान भी जाओ प्रिय तुम 

है वही सावन सहज 

मल्हार फिर गाओ प्रिय तुम 

प्रणय कम्पित चेतना के 

तार में झंकार भर दो

     जीवन के लगभग हर पहलू पर अपनी सशक्त रचनात्मक अभिव्यक्ति करने वाले मनोज मनु एक प्रतिभा सम्पन्न बहुआयामी रचनाकार हैं जिनकी लेखनी से जहाँ एक ओर देवनदी गंगा की स्तुति में

 'त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे 

हर हर गंगे... हर हर गंगे...

पाप विनाशिनी शुभ्र विहंगे...

हर हर गंगे... हर हर गंगे...' 

जैसा कालजयी गीत सृजित हुआ, वहीं दूसरी ओर जगजननी माँ दुर्गा की स्तुति पुस्तक 'दुर्गा सप्तशती' का काव्यानुवाद का भी महत्वपूर्ण सृजन हुआ है। नारी सशक्तीकरण पर केन्द्रित लघु फिल्म 'आई एम नॉट ए मैटीरियल' के लिए गीत लिखने वाले और अनेकानेक सम्मानों से सम्मानित मनोज मनु की रचना - यात्रा इसी तरह उत्तरोत्तर समृद्धि और प्रतिष्ठा पाती रहे, यही कामना है।



✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 8 । यह कृति वर्ष 2022 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में उनकी पूर्व प्रकाशित यात्रा वृत्त कृतियां संभावना के देश में ( दुबई– आबूधाबी), तीन कदम और (फ्रांस, स्विटजरलैंड, इटली), कैप्टन जेम्स कुक के देश में( आस्ट्रेलिया), मुस्कानों के देश में (थाईलैंड कंबोडिया वियतनाम), के देश में(नेपाल), पर्यावरण के देश में(ऑस्ट्रेलिया जर्मनी बेल्जियम नीदरलैंड) और सुमनों के देश में(भूटान) समाहित हैं...



 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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https://acrobat.adobe.com/id/urn:aaid:sc:AP:5b0a4105-1afc-444a-a61f-dfca06d53e42 

::::::::प्रस्तुति::::;::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन  नंबर 9456687822

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का नवगीत ..... पुते चुनावी रंगों में फिर, गिरगिटिया अय्यार


पुते चुनावी रंगों में फिर

गिरगिटिया अय्यार


उल्लू और गधे आपस में 

जमकर हिस्सेदार बने 

दीन धर्म के ही सौदे को 

जगह- जगह बाज़ार तने 

लेकर लच्छे वाले भाषण 

दल -बदलू तैयार


चमकीले रैपर में लिपटे 

वादों के दिन झूम रहे

हर वोटर को शीश नवाते 

हाथ जोड़ते घूम रहे 

घुटनों के बल बैठ रहे हैं 

बड़े- बड़े किरदार


मंदिर - मस्जिद पर मुद्दों के 

काले बादल छाये हैं 

राजनीति का चोला पहने 

भेड़ - भेड़िये आये हैं 

लोकतंत्र है जन के हित में 

भली करें करतार

✍️ मीनाक्षी ठाकुर 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 7 । यह कृति वर्ष 2022 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में उनकी पूर्व प्रकाशित यात्रा वृत्त कृतियां सौन्दर्य के देश में ( नार्वे– स्वीडन), कर्मवीरों के देश में (ट्रिनिडाड–टुबैगो), श्रमजीवी के देश में( ताशकंद–समरकंद), संवेदना के देश में (मॉरिशस), सदाचार के देश में(नेपाल), दशानन के देश में(श्री लंका) और अनुशासन के देश में(सिंगापुर) समाहित हैं...



 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शनिवार, 26 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष गगन भारती पर केंद्रित ए टी ज़ाकिर का संस्मरणात्मक आलेख ....कहां तुम चले गए.......


बात 1969 की है । गगन साहब से मेरा तार्रूफ़ जनाब साहिर लुधियानवी साहब के साथ एक मीटिंग के दौरान बम्बई के एक कौफ़ी हाउस में हुआ था। इस मीटिंग में अदबी दुनिया की मशहूर -ओ-मारुफ़ हस्तियां मौजूद थीं । अदब में ये एक अजीब इन्कलाबी दौर था, जिसमें हिन्दुस्तान के राइटर्स को जदीदियत की एक नई दुनिया दिखाई देने लगी थी।

ये क़लमकार थे, जनाब साहिर साहब, जनाब के.ए.अब्बास साहब, जनाब कृशन चन्दर साहब, जनाब रामलाल साहब, जनाब कैफ़ी आज़मी साहब, जनाब जां निसार अख़्तर साहब, जनाब राजेन्द्र सिंह बेदी साहब, जनाब हसरत जयपुरी साहब, जनाब तलत महमूद साहब, जनाब जोश मलीहाबादी साहब , उनके साथ थे गगन भारती और मेरे जैसे नन्हे पौधे जो इन बड़े- बड़े आलीशान दरख़्तों के साये में पल रहे थे। जिस गुलशन या अंजुमन का मैं ज़िक्र कर रहा हूं, उसका नाम था,"प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन"इस ग्रुप का मिम्बर होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी। बडा फ़ख्र महसूस करते थे इसकी मिम्बरशिप पाकर लोग।

तरक्की पसंद ख्याल और जदीद सोच के नारों को बुलन्द करने वाली ऐसी ही उस मीटिंग में पहले -पहल गगन भारती साहब को देखा। गगन साहब आग उगलती हुई नज़्मों के शायर थे और मैं इक्कीस  साल का वो अनजाना अफसाना निगार था,जो इन अज़ीम अदबी सितारों से उस हद तक मुत्तासिर हो चुका था कि एक अजीब से मकनातीसी अंदाज़ में इन सितारों के गिर्द गर्दिश कर अपना वजूद टटोल रहा था। ये मेरी ख़ुशकिस्मती थी कि अपने चन्द अशआर से जनाब साहिर साहब की नज़र की ज़द में आ चुका था।

     

मैं साहिर साहब और जनाब फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की कला का शैदाई था, तो उसी अंदाज़ में गगन साहब का कहा क़लाम मेरे दिल में उतर गया। मुझे बताया गया किसी यूनानी देवता जैसा दिखने वाला ये बेहद हैंडसम नौजवान गगन भारती भी मुरादाबाद से ताल्लुक रखता है, तो मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने दोस्ती का हाथ गगन साहब के आगे बढ़ा दिया। हम अच्छे दोस्त बनकर मुरादाबाद लौटे पर जिस मीटिंग का ज़िक्र मैनें ऊपर किया, उसमें गगन साहब ने न सिर्फ अपने कलाम से  वाहवाही लूटी वरन अपनी ज़हनियत और तरक्की पसंद सोच के झंडे गाड़ दिए।

गगन साहब ने जनाब के ए अब्बास साहब और कृशन चंदर साहब के सामने एक मशवरा रखा कि हमारी इस अंजुमन में सिर्फ जदीद खयाल राइटर्स ही क्यों मेंबर हैं ? कोई भी फनकार जो हुनरमंद और तरक्की पसंद है, वह क्यों नहीं मेंबर हो सकता। उसे भी मेंबर होना चाहिए। खासी तवील बहस के बाद गगन साहब का मशवरा मान लिया गया और एक नई अंजुमन बन गई जिसमें कोई भी जदीद खयाल हुनरमंद फनकार मेंबर हो सकता था। गगन साहब ने नाम सुझाया "अंजुमन तरक्की पसंद मुफक् रीन" और उसी रात ये अंजुमन अपने वजूद में आ गई।

   

मैं गगन साहब की फिलासफी और ज़हनियत का और ज्यादा कायल हो गया। मुरादाबाद लौट कर हम दोनों एक दूसरे से मिलने लगे । गगन साहब को मेरे अफ़साने पसंद आते तो मैं उनकी नज़्मों पर फिदा था। कहना गलत ना होगा कि मैं न सिर्फ उनसे नज़्म कहने का सलीका बल्कि उनकी अजीम शख्सियत से एक सच्चा इंसान बनने की तालीम लेने लगा । आज जो तहजीब और इंसानियत का जज्बा मेरे अंदर आप पाते हैं। वह गगन साहब का मुझे दिया ईनाम है और जो बदतमीजी या अक्खड़पन आपको मुझ में नजर आता है वह मेरा ओरिजिनल किरदार है । गगन साहब बहुत अजीम और कामयाब शायर थे। हिंदुस्तान का कोई मुशायरा ऐसा नहीं था जो उन्होंने पढ़ा ना हो। वह मुशायरे के बादशाह थे, कितनी ही बार मैंने वह दिल फरेब मंजर देखा जब लोग उन्हें मुशायरे का माइक छोड़ने नहीं देते थे । बाहैसियत एक इंसान, गगन साहब का किरदार इतना आलीशान था कि अपनी 74 साल की जिंदगी में मैंने उन जैसा सच्चा और उम्दा इंसान दूसरा नहीं देखा।

एक वाकया याद आ रहा है : मुरादाबाद में हमारे एक और प्यारे दोस्त रहते थे जिनके गगन साहब से अच्छे ताल्लुकात थे। हमारे वह साथी मुरादाबाद से कहीं बाहर चले गए और गुरबत के शिकार हो गए। 43 साल के बड़े अर्से में उनकी कोई खैर खबर नहीं मिली गो कि वो बात और थी कि वह गगन साहब की तलाश सोशल साइट्स पर करते रहे और मुरादाबाद की महफिलों में गगन साहब उनका जिक्र खासे ऐहतराम से करते रहे । 2018 में उन्होंने फेसबुक के जरिए गगन साहब को ढूंढ निकाला और दोस्ती की ठहरी हुई किश्ती एक बार फिर खुशियों के दरिया में आगे चल पड़ी । पर वक्त को दोस्तों की यह छोटी सी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई और एकाएक उन दोस्त की कुंवारी नौजवान बेटी की दोनों आंखों की रोशनी एक हादसे में जाती रही। इन आंखों के कामयाब ऑपरेशन  के लिए 2 लाख रुपए  की दरकार  थी । एक गरीब फनकार इतनी बड़ी रकम कहां से जुटा सकता था पर किसी दोस्त के जरिए गगन  साहब को ये बात पता चली,उन्होंने उसी दिन बीस हजार रुपए अपने उसी दोस्त  को भिजवा दिये। अल्लाह की मेहर से बाकी रकम का भी वक्त रहते बन्दोबस्त  हो  गया और उस बेटी की आंखो का कामयाब ऑपरेशन  दिल्ली में हुआ। आंखो की रौशनी वापिस आ गई। बाद में जब उस दोस्त ने गगन साहब को इस मदद का शुक्रिया अदा करना चाहा तो इन्सान  की शक्ल मे जीने वाले उस फरिश्ते ने कहा,"कैसा "शुक्रिया ?, कैसी मदद? मैंने सिर्फ वो किया जो एक दोस्त को करना चाहिए था और जहां तक उस छोटी सी रकम की बात है,क्या वह मेरी बेटी नहीं है ?"और गगन साहब ने इस टाॅपिक पर फ़ुुलस्टाप लगा दिया। तो इतनी शानदार शख्सियत और आला किरदार  के मालिक थे गगन साहब !

 

मुझे याद है, 1970-71 के वो दिन जब के.जी.के.कालेज के इंग्लिश डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मोयत्रा साहब के दौलतखाने पर एक माहनामी नशिस्त बज़्मे मसीह हुआ करती थी,जिसकी डायस सैक्रैटरीशिप गगन साहब सम्भालते थे ।इस हिन्दी,उर्दु की गंगा_जमुनी नशिस्त में मुरादाबाद और आसपास  के शहरों के कवि और शायर शिरकत किया करते थे. ये वो स्टेज था जिस  पर जनाब कमर मुरादाबादी साहब और अल्लामा कैफ मुरादाबादी को मैने एक साथ  पढते देखा । इस नशिस्त का आगाज  रात करीबन नौ बजे होता धा और  तड़के मुर्गे की बांग के साथ यह नशिस्त अपने अंजाम पर पहुंचती थी। इस नशिस्त में जनाब शाहाब मुरादाबादी,जनाब अख्तर आजिम साहब ,जनाब हिलाल रामपुरी, जनाब गौहर उस्मानी साहब, जनाब हुल्लड़ मुरादाबादी, जनाब मक्खन मुरादाबादी, जनाब प्रोफेसर महेंद्र प्रताप,जनाब ललित मोहन भारद्वाज साहब और इस मयार के और जाने कितने शोरा हाजरात अपने कलाम  सुनाया करते थे।गगन साहब इंकलाबी नज़्में कहते थे,हम सब सांस रोक कर उनका क़लाम सुनते थे। शायरी गगन साहब को अपनी अम्मी से विरासत में मिली थी। वो बहुत आलादरजे का क़लाम कहती थीं । उन्होंने ही शायरी की ए.बी.सी.डी.गगन साहब को समझायी थी।

मेरी जिन्दगी की इतनी सारी यादें गगन साहब  से वाबस्ता है कि अगर मैं उनको लिखने -समेटने बैठूं तो एक मुकम्मल दीवान बन सकता है। अब  मैं उस मनहूस दिन का जिक्र कर रहा हूं, जिस दिन गगन  से आया ये फरिश्ता हम सब को तन्हा छोड़कर चला गया। गगन साहब की तबीयत पिछले 6-7 माह से ख़राब थी और बिगड़ती जा रही थी मगर  उस शेरदिल इंसान ने हम दोस्तों को अपनी इस बीमारी और तकलीफ़ से कभी रुबरु होने ही न दिया जब ज़िन्दगी की लौ टिमटिमाने लगीं तो हमें मनोज रस्तोगी साहब से उनकी बीमारी की ख़बर मिली। मैं उन दिनों रोज रात को 8.30 बजे फ़ोन करके उनका हाल लेता था । कभी कभी भाभी साहिबा से भी बात हो जाती थी। मैं उनकी खैरियत रोज़ रात को नौ बजे मनोज रस्तोगी साहब, जनाब मक्खन मुरादाबादी  और बम्बई के जनाब विनोद गुप्ता साहब को बतलाता था। 

 न चाहते हुए भी आ गया, वो मनहूस दिन जब गगन  साहब अपना हाथ हमसे छुड़ा के जिस गगन से आए थे, वहीं लौट गए। मैंने जब ये मनहूस खबर मक्खन मुरादाबादी और उसके बाद जनाब विऩोद गुप्ता साहब को बतलाई तो ये दोनों साहेबान फ़ोन पर ही फ़ूट फूटकर रोने लगे। अपनी कैफि़यत को इस हादसे के इतने दिनों बाद भी बतलाने की हालत में मैं नहीं हूं । मेरी दुनिया 21 अक्टूबर 2022 को जहां थी, वहीं उसी लम्हे में ठहर गयी है।

  गगन साहब क्या गए, मेरी आधी ज़िन्दगी और मेरी रूह भी उनके साथ ही चली गई । मैं हूं यहीं,इसी दुनिया में टूटा हुआ और अधूरा। मेरे सिर के ऊपर बहुत ऊंचाई तक ख़ला है पर गगन नहीं।  


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ए.टी.ज़ाकिर

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