मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से साहित्यकार राजीव प्रखर के मुहल्ला डिप्टी गंज स्थित अवध निवास में बुधवार 5 जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय अनुपम की अभिव्यक्ति थी -
फल के पीछे कर्म हुआ करते हैं।
दिल के छाले नर्म हुआ करते हैं।
जलता दिया प्यार का भीतर जिससे,
सबके आंसू गर्म हुआ करते हैं।
मुख्य अतिथि उमाकांत गुप्ता एडवोकेट की ये पंक्तियां भी सभी के नेत्र नम कर गईं -
अरे मैं मुसाफिर बहुत दूर का हूॅं,
पल भर बैठा लो चला जाऊंगा।
रोकोगे गर मुझको रुक न सकूंगा,
चलना है नियति,चलता रहूंगा।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. संगीता महेश ने मातृ-प्रेम का सुंदर चित्र कुछ इस प्रकार खींचा -
माँ,आप मेरी प्रेरणा, आप ही आराधना।
आप ही वाणी मेरी आप ही हो भावना।
मैं आप की ही वाटिका की हूॅं पुष्पित प्रसून,
हो सुरभित यह सुमन सदा,दो यही शुभकामना।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर अपने मनभावन दोहों से सभी के हृदय जीतते हुए इस प्रकार मुखर हुए -
फाॅंसे बैठा है मुझे, यह माया का जाल।
चावल मुझसे छीन लो, आकर अब गोपाल।।
पावक-बाती-तेल का, पाकर रण में साथ।
झिलमिल दीपक कर रहा, तम से दो-दो हाथ।।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने बिगाड़े पर्यावरण के प्रति चिंता व्यक्त की -
इस उपवन में थे कभी, विविध रंग के फूल।
फूल हो गये गुमशुदा, शेष रह गयी धूल।।
डॉ. अर्चना गुप्ता ने अपनी इन पंक्तियों के साथ माॅं की महिमा को साकार किया -
आशीष के दीप है जलाती, दुखों के तम से बचाती है माँ।
नज़र का टीका लगा लगा कर, बुरी बलायें भगाती है माँ।
सृजन करे सृष्टि का जगत में नहीं कोई भी है माँ के जैसा,
बिना बताये ही बात दिल की हमारी सब जान जाती है माँ।।
डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपने व्यंग्य में समाज से कुछ प्रश्न किये -
बीत गए कितने ही वर्ष,
हाथों में लिए डिग्रियां
कितनी ही बार जलीं
आशाओं की अर्थियां
आवेदन पत्र अब लगते
तेज कटारों से।
योगेन्द्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति थी -
तब तक ही अपनत्व की, घुलती रही मिठास।
जब तक रिश्तों में रहा, स्वार्थ रहित विश्वास।।
हवा, धूप में भी हमें, जीने का अधिकार।
हरी दूब करती रही, वृक्षों से मनुहार।।
मनोज मनु ने सामाजिक व्यवस्था पर कड़ा व्यंग्य किया -
अभी रखेंगे ये राय अपनी, गरीब का जो सवाल साहिब,
नहीं है रोटी तो फ्रूट खाओ , बताएगें हल ये लाल साहिब,
कि तंग दस्ती में मुश्किलें हैं, हुआ है जीना मुहाल साहिब,
पुछेंगें कैसे हमारे आँसू, कहेंगे रख्खो रुमाल साहिब।
डॉ. ममता सिंह ने वेदना का सुंदर चित्र खींचा -
करते हमारे प्यार की वो कुछ क़दरू नहीं।
फिर भी हमारी आँख है अश्कों से तर नहीं।।
कैसे लगा दें हम कोई इल्ज़ाम आप पर,
मजबूरियों से आप की हम बेख़बर नहीं।।
मीनाक्षी ठाकुर ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को इस प्रकार प्रदर्शित किया -
कड़वी ककड़ियों सा योग का संदेशा लाये,
उद्वव ये बात कुछ ठीक न तुम्हारी है,
छलिया ने छल कर, रंगा हमें प्रीत रंग,
अब बना खुद बड़ा, ज्ञान का पुजारी है।
उनको सिखाओ ज्ञान, ज्ञान जिनको चाहिए,
अपने तो मन बसा, मुकुट बिहारी है।
मयंक शर्मा अपनी इन पंक्तियों से मुखर हुए -
चलो चलें घनघोर तमस को प्रात करेंगे हम दोनों,
अधरों पर मुस्कानों को आयात करेंगे हम दोनों।
जीवन की आपाधापी ने हमको हमसे छीन लिया,
छूट गई जो अपने मन की बात करेंगे हम दोनों।
राशिद हुसैन ने अपनी इन पंक्तियों से पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की -
वो इक दरख़्त जो चिड़ियों का आशियाना था।
हर एक सिम्त बहारें थीं क्या ज़माना था।।
हवाएं कैसे न करतीं मुख़ालिफ़त साहब।
दरख़्त काट के तुमको मकां बनाना था।।
रचना पाठ करते हुए कमल शर्मा ने कहा -
जब भी मिलता हूं किसी से खुल के मिलता हूं,
मै ज़माने की हवा के साथ चलता हूं।
वैसे मुझे पाबंदगी अच्छी नही लगती,
बस ढक के चेहरा आज कल घर से निकलता हूं।
अमर सक्सेना ने अपनी इन पंक्तियों से समाज को चेताने का प्रयास किया -
सत्ता का है लोभ यहाँ पर जनता कौन जाने है।
बैठकर देखो कुर्सी पर कोई किसी को ना पहचाने है।
शुभम कश्यप ने संदेश दिया -
आओ पग पग लगाएं पौधे हम,
लहलहाते चमन से उल्फत है।
कार्यक्रम में ऋतु सक्सेना, अंश सहाय, देव सक्सेना, वकुल आदि ने श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर सभी रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। मनोज मनु ने आभार-अभिव्यक्त किया।
स्वागतम्
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