मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम द्वारा आकांक्षा इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। मनोज मनु द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ओंकार सिंह ओंकार ने कहा......
सुख रहता कभी धन के समन्दर में नहीं है।
बिन प्यार के सुख चैन किसी घर में नहीं है।
मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचा -
देख रही है जनता सारी।
एक अकेला सब पर भारी।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पदम सिंह बेचैन कर उद्गार थे -
तन की सुधि भूल हिय लरजे,
मन को कछु और सुहाता नहीं।
कार्यक्रम के संचालक राजीव प्रखर ने कहा -
बन जाये बन्धन ममता का, ऐसी मनभावन डोरी हो।
सद्भक्ति सुधारस से पूरित, निर्मल-निश्छल कर-जोरी हो।
जागो-जागो हे मनमोहन, विनती है कर दो आज कृपा।
पापातुर इस कलियुग में भी, माखन की पावन चोरी हो।
रामदत्त द्विवेदी की अभिव्यक्ति थी -
तुम अपने आप पर इतरा रहे हो।
कृपा प्रभु जी की क्यों बिसरा रहे हो।
के. पी. सिंह सरल ने रिश्तों की संवेदना को साकार किया -
समझ न पाये आज तक, बन्धन की यह गांठ।
किसी को दे दुशवारियां, किसी के घर में ठाठ।।
नकुल त्यागी ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचते हुए कहा -
भाग भाग कर भागता, भगने को मजबूर।
रोटी बस दो जून की फिर भी कितनी दूर।
योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था -
पिछला सब कुछ भूल जा, मत कर गीली कोर।
क़दम बढ़ा फिर जोश से, नई सुबह की ओर।।
आँखों से बहने लगी, मूक-बधिर सी धार।
जब यादों की चिट्ठियांँ, पहुँचीं मन के द्वार।।
कवि मनोज मनु ने माॅं गंगा के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की -
त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे, हर-हर गङ्गे.. हर हर गङ्गे..
पाप विनाशिनी शुभ्र विहंगे.. हर-हर गङ्गे -हर-हर गङ्गे।
बालकवि अनंत मनु ने रामचरितमानस की चौपाइयां प्रस्तुत कीं। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।
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