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रविवार, 25 जून 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी के दो बाल गीत । ये गीत प्रकाशित हुए हैं सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 1991 में अशोक विश्नोई के संपादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन उपासना में
गुरुवार, 15 जून 2023
मंगलवार, 13 जून 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के बाल कविता संग्रह "नन्ही परी चिया" की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा---बाल मन को साकार अभिव्यक्ति देती इक्यावन कविताएं
सरल व सुबोध भाषा-शैली एवं कहन में रची गई बाल कविताएं साहित्य जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इस क्षेत्र में इनकी हमेशा से मांग भी रही है। बड़े होकर बच्चों की बात तो सभी कर लेते हैं परन्तु, जब एक बड़े के भीतर छिपा बच्चा कविता के रूप में साकार होकर बाहर आ जाये तो यह स्वाभाविक ही है कि वह कृति बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी पर्याप्त लोकप्रियता पाती है। कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता की समर्थ व सशक्त लेखनी से निकला बाल कविता-संग्रह 'नन्ही परी चिया' ऐसी ही उत्कृष्ट श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में साहित्यिक समाज के सम्मुख है। चार-चार पंक्तियों की अति संक्षिप्त परन्तु बाल मन को साकार अभिव्यक्ति देती कुल इक्यावन उत्कृष्ट रचनाओं का यह संग्रह इस बात को स्पष्ट कर रहा है कि कवयित्री ने मन के भीतर छिपे बैठे इस बच्चे को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए बिल्कुल खुला छोड़ दिया है। यही कारण है कि इन सभी रचनाओं में, बड़ों के भीतर छिपा बच्चा मुखर होकर अपनी बात रख सका है। अध्यात्म, पर्यावरण, मानवीय मूल्य, बच्चों का स्वाभाविक नटखटपन, देश प्रेम इत्यादि जीवन से जुड़े सभी पक्षों को चार-चार पंक्तियों की सरल एवं सुबोध रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त कर देना, देखने व सुनने में जितना सरल प्रतीत होता है उतना है नहीं परन्तु कवयित्री ने ऐसा कर दिखाया है। कृति का प्रारंभ पृष्ठ 9 पर चार पंक्तियों की सुंदर "प्रार्थना" से होता है। सरल व संक्षिप्त होते हुए भी वंदना हृदय को सीधे-सीधे स्पर्श कर रही है, पंक्तियाॅं देखें -
"ईश्वर ऐसा ज्ञान हमें दो
बना भला इंसान हमें दो
कुछ ऐसा करके दिखलायें
जग में ऊंचा नाम कमायें"
इसी क्रम में पृष्ठ 10 पर उपलब्ध रचना "कोयल रानी" में बच्चा एक पक्षी से बहुत ही प्यारी भाषा में बतियाता है, पंक्तियाॅं पाठक को प्रफुल्लित कर रही हैं -
"ज़रा बताओ कोयल रानी
क्यों है इतनी मीठी बानी
कुहू-कुहू जब तुम गाती हो
हम सबके मन को भाती हो"
इसी क्रम में एक अन्य महत्वपूर्ण रचना "नन्ही परी चिया" शीर्षक से पृष्ठ 11 पर उपलब्ध है जो मात्र चार पंक्तियों में बेटियों के महत्व को सुंदरता से स्पष्ट कर रही है। मनोरंजन के साथ यह रचना समाज को एक संदेश भी दे जाती है -
"नन्ही एक परी घर आई
झोली भर कर ख़ुशियां लाई
चिया नाम से सभी बुलाते
नख़रे उसके खूब उठाते"
इसी सरल व सुबोध भाषा शैली के साथ बिल्ली मौसी (पृष्ठ 12), हाथी दादा (पृष्ठ 13), गधे राम जी (पृष्ठ 14), कबूतर (पृष्ठ 15), बकरी (पृष्ठ 16), बादल (पृष्ठ 17), इत्यादि रचनाएं आती हैं जो बाल-मन को अभिव्यक्ति देती हुई कहीं न कहीं एक सार्थक संदेश भी दे रही हैं। इक्यावन मनोरंजक परन्तु सार्थक बाल रचनाओं की यह मनभावन माला पृष्ठ 59 पर उपलब्ध "15 अगस्त" नामक एक और सुंदर बाल कविता के साथ समापन पर आती है। देश प्रेम व एकता से ओतप्रोत चार पंक्तियों की यह संक्षिप्त रचना भी पाठक-हृदय का गहराई से स्पर्श रही है -
"स्वतंत्रता का दिवस मनायें
आओ झंडे को फहरायें
राष्ट्रगान सब मिलकर गायें
भारत माॅं को शीश नवायें"
कुल मिलाकर एक ऐसा अनोखा एवं अत्यंत उपयोगी संग्रह, जिसकी रचनाओं को बच्चे सरलतापूर्वक कंठस्थ भी कर सकते हैं। यह भी निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कवयित्री ने इन हृदयस्पर्शी चतुष्पदियों को मात्र रचा ही नहीं अपितु, मन में छिपे उस भोले भाले परन्तु जिज्ञासु बच्चे से वार्तालाप भी किया है। मुझे यह कहने में भी कोई आपत्ति नहीं कि परिपक्व/अनुभवी पाठकगण भले ही इस सशक्त कृति का मूल्यांकन छंद/ विधान इत्यादि के पैमाने पर करें परन्तु, यह भी सत्य है कि बच्चों के कोमल मन अथवा मनोविज्ञान को समझना सरल बात बिल्कुल नहीं है। इसे तो बच्चा बनकर ही समझा जा सकता है। जब हम उनकी कोमल भावनाओं की बात करें, तो हमें अपना "बड़प्पन" एक तरफ उठाकर रखते हुए, बच्चों की दृष्टि से ही उन्हें देखना चाहिए। चूंकि कवयित्री ने इस संग्रह में स्वयं एक अबोध बच्चा बनते हुए अपनी सशक्त लेखनी चलाई है, यही कारण है कि यह संग्रह बिना किसी लाग-लपेट के, मनमोहक लय-ताल के साथ, बच्चों व बड़ों सभी के हृदय को भीतर तक स्पर्श करने में समर्थ सिद्ध हुआ है, ऐसा मैं मानता हूॅं।
कुल मिलाकर अत्यंत सरल व सुबोध भाषा-शैली सहित आकर्षक छपाई एवं साज-सज्जा के साथ, पेपरबैक संस्करण में उपलब्ध यह कृति अपने उद्देश्य में मेरे विचार से पूर्णतया सफल तथा स्तरीय बाल-विद्यालयों के कोर्स एवं स्तरीय पुस्तकालयों में स्थान पाने के सर्वथा योग्य है।
कवयित्री : डॉ. अर्चना गुप्ता
प्रकाशक: साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा
प्रकाशन वर्ष : 2022
मूल्य: 99₹
समीक्षक : राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
बुधवार, 29 मार्च 2023
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुत हैं 28 मार्च 2023 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की बाल कविताएं ....
सुंदर झरना जल बरसाता ।
कलकल करके बहता जाता।
सूरज के रंगों से मिलकर
बन जाता रंगों का संगम,
कभी न रुकता बाधाओं से
राहें हों कितनी भी दुर्गम,
हर पत्थर को भेद-भेदकर
आगे चलता , वेग बढ़ाता ।
कोमल जल है फिर भी देखो
दूर हटाता पत्थर को भी,
मृदुता का आदर करने का
पाठ पढ़ाता भूधर को भी,
जल की मृदुतामय दृढ़ता को
भूधर भी तो शीश झुकाता ।
हे नन्हे-प्यारे मानव तुम
दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,
कष्ट पड़ें चाहे कितने भी
मानवता से कभी न हटना ,
पक्का- नेक इरादा ही तो
हर मुश्किल को सरल बनाता ।
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
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जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सबको बैठाकर दादा जी , समय-समय पर यज्ञ कराते।
पढ़कर मन्त्र डालते वे घी, सबसे सामग्री डलवाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
यज्ञ कर्म है एक अनोखा, जिससे कई लाभ हम पाते।
हुए चिकित्सा में शोधों ने , इसे कर्म उत्तम बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
यज्ञ कर्म जब करता मानव, निकट प्रकृति के खुद को पाता।
हो जाते रोगाणु नष्ट सब, सभी वायरस मार गिराता।
जब-जब होता यज्ञ धरा पर , आक्सीजन की मात्रा बढ़ती,
घी- सामग्री के जलने से , वातावरण शुद्ध हो जाता।
वैज्ञानिक भी मान गये हैं, यज्ञ और मन्त्रों की माया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पावन कर्म यज्ञ का जो जन, करता है अपने जीवन में।
भाव जगाता पूर्ण विश्व की, रक्षा का वह अपने मन में।
ध्वनि तरंग को मन्त्रों की जब, बड़े-बड़े वैज्ञानिक मापे,
हुए बहुत आश्चर्यचकित वे, मिला गूँजता ओम गगन में।
सच्चे मन से यज्ञ किया जो, इसका फल वह निश्चित पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
✍️मनोज मानव
बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
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होली पर बरसात हो , बरसें ऐसे रंग
नीले पीले बैंजनी , रह जाएँ सब दंग
रह जाएँ सब दंग ,पेड़ पर गुँझियाँ आएँ
तोड़ें बच्चे ढेर ,पेट भर – भर कर खाएँ
कहते रवि कविराय ,कन्हैया करो ठिठोली
उड़ें हवा में लोग , मनाएँ नभ में होली
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9997615451
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माँ देखो-देखो बिल्ली आईं।
दे दो इसको दूध - मलाई।।
बोर्नबीटा का दूध पिला दो।
बिस्कुट-चाकलेट दिला दो।।
लंच-डिनर खूब खिला दो।
खिला-पिला इसे हिला लो।।
वरना ये उत्पात करेगी
खाकर चूहे पेट भरेगी
हो ना जाये यह मांसाहारी।।
बिल्ली मौसी लगती प्यारी।।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर, मुरादाबाद
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सबसे अच्छा पढ़ना पढ़ाना,
सबसे बुरा आपस में लड़ाना।
घर में जो भी आये अतिथि,
इज्ज़त से ही उसे बिठाना।
पहले उसको पानी पिलाना,
फिर मम्मी पापा को बुलाना।
मृदु भाषी बनकर बच्चों,
सबके दिल में जगह बनाना।
कटु वचन न कहना किसी से,
जो रूठा है उसे मनाना।
नानी के घर भी जाना तो,
साथ में बस्ता लेकर जाना।
खेल कूद भी बुरा नहीं है,
लेकिन पहले पढ़ना पढ़ाना।
✍️कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (संभल)
मोबाइल फोन 9456031926
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माना मैं नन्हीं बच्ची हूं,
किचिन है लेकिन मेरा बढ़िया
इसमें खाना शुद्ध मिलेगा,
फलाहार भी खूब मिलेगा ।
नवरात्रि के दिन है तो क्या
कूटू-मेवा खीर मिलेगी
किचिन में रखती साफ-सफाई
खूब मिलेगी दूध मलाई ।
दादी दादा ,मम्मी डैडी
या कोई हों अंकल आंटी
माता के है दिन ये सारे
गाएं भजन सभी मिल सारे
महिमा न्यारी जग माता की
बोलें सब मिल जय माता की ।
✍️ उमाकान्त गुप्त
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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मन करता है हम सब बच्चे मिलकर फौज बनाऐं!
सुबह सवेरे नगर नगर में, रोज प्रभाती गायें!
भेदभाव और ऊंच नीच का, मन से भेद मिटायें!
एक बने और नेक बने की, घर घर अलख जगाएं!
मां बाबू के संकट में हम, उनका हाथ बटाएं !
अगर देश के काम आ सकें, तो सीमा पर हम जाएं!
घायल सैनिक जो हों, उनकी सेवा में लग जाएं !
देश की खातिर लिए तिरंगा, आगे बढ़ते जाएं!
अवसर मिले हमें भी तो, हम हंस कर प्राण गवाएं!
लिपट तिरंगे में हम अपना, जीवन सफल बनाएं!!
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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चीं चीं चीं चीं गाए चिड़िया
दाना चुग-चुग खाए चिड़िया
मुनिया उसको पकड़ न पाए
फुर -फुर है उड़ जाए चिडिय़ा ।
चुन चुन तिनका लाए चिड़िया
सुंदर नीड़ बनाए चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
हिल-मिल प्यार बढ़ाए चिड़िया ।
सुबह सवेरे आए चिड़िया
मीठा गीत सुनाए चिड़िया
राजू जगो भोर है प्यारी
सबके मन को भाए चिड़िया ।
✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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जंगल में क्यों मची है धूम
हलवा पूरी बंटी है खूब
हाथी भालू चीता बंदर
नाच रहे सब मस्त कलंदर
चीं चीं चिड़िया तान लगाती
कोयल मधुर गीत सुनाती
भालू ढोलक खूब बजाता
बंदर उछल उछल मुस्काता
जैसे परीक्षाएं हो गई खत्म
नाच रहे सब मस्त मलंग
✍️ मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
वैसे इतना प्यारा देखो,
जब चाहे घर पर आ जाये।
अगर समय हो तो जी भर कर,
भेजा भी सबका खा जाये।
मगर व्यस्तता भी जीवन में,
क्या उसको समझाए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
खैर खबर लेने की सबकी,
जब-जब उसने फ़ोन घुमाया।
भागा उल्टे पैरों देखो,
मायूसी का दंभी साया।
बैठा भूखा गाल फुलाकर,
क्या अब खुद भी खाये दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
लो जी एक तरीका सुझा,
बैठक सबकी आज जमाएं।
सुनना और सुनाना भी हो,
नाचें कूदें खाएं-गाएं।
अगर न मुस्काया फिर भी वो,
सोच-सोच घबराए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।
✍️ राजीव प्रखर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का बाल गीत ....जंगल की होली
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
जंगल में होने लगी, रंगों की बौछार
भरी बाल्टी रंग से, लेकर बैठे शेर
छोडूंगा अब मैं नहीं,लगा रहे हैं टेर
हाथी दादा सूंड से, मारे जल की धार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
बंदर मामा कम नहीं, बहुत बड़े शैतान
बैठे ऊँचे पेड़ पर, ले पिचकारी तान
लाये थे बाज़ार से, वो कुछ रंग उधार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
छिपती छिपती फिर रहीं, बिल्ली मौसी आज
चूहों ने रँग डालकर, किया उन्हें नाराज़
पर कुछ कर सकती नहीं,बैठी खाये खार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
हिरनी ने गुझिया बना, सबको दी आवाज
सभी खा गयी लोमड़ी,ज़रा न आयी लाज़
और टपकती रह गयी, सबके मुँह से लार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
शनिवार, 4 फ़रवरी 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कविता .... गौरैया
आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।
दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।
छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।
छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।
आजा प्यारी गौरैया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।
हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।
या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।
एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।
दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।
आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।
चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।
जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।
एक बार तू वापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।
सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिर से नई बनाएंगे।
आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
उत्तर प्रदेश, भारत
बुधवार, 1 फ़रवरी 2023
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुत हैं 31 जनवरी 2023 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की बाल कविताएं ....
अम्मा जी ने छत पर कपड़े
जाकर ढेर सुखाए ,
तभी वहॉं पर छह- छह बंदर
खों – खों करते आए।
डर के मारे अम्मा जी ने
तब आवाज लगाई ,
सुनकर पोती रिया
दौड़कर लाठी लेकर आई।
लाठी जब देखी तो बंदर
उछल-उछल कर भागे,
पीछे-पीछे लाठीवाली
बंदर आगे-आगे ।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
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भरा हुआ जो शरबत से
मैं हूं ऐसा एक कुआं
एक बार जो खा लेता है
देता है बारंबार दुआ
छोटे बड़े,अमीर गरीब
सबके मन को भाता हूं
शोभा हूं हर उत्सव की
नाम है मेरा मालपुआ
✍️डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9837189600
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हम भारत के लाल,
कहाते हिन्दुस्तानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
नहीं किसी से बैर,
प्यार सबसे करते हैं!
किन्तु सभी लें जान,
नहीं किंचित डरते हैं!
न समझो मासूम,
हैं हम दरिया तूफानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
सिहों के संग खेल खेल,
कर युवा हुए हम!
माँ जीजा के चरण छुए,
तब शिवा हुए हम!
माँ पन्ना के अमर पुत्र,
से हम बलिदानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
शरणागत की लाज,
सदा ही हम रखते हैं!
किन्तु कपट की सजा,
धूर्त शत्रु चखते हैं!
अखिल विश्व में हार '
कभी न हमने मानी!
चलते सीना तान,
चाल अपनी मस्तानी!
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8218825541
..................................…....
एक बार की बात है बच्चों
गर्मी प्रचंड थी खूब
पानी ढूंढ रहा था कौवा
सिर पर पड़ रही थी धूप
उड़ता फिरता गांव गांव वह
नहीं दिखी जल की एक बूंद
उड़ता उड़ता दूर जा पहुंचा
दिखा घड़ा एक बहुत ही दूर
कौवा घट पर झट से पहुंचा
पर पीने को हुआ मजबूर
चौंच झट से डाली अंदर
पानी पर नीचे था दूर
इधर उधर नजर दौड़ाई
आयी युक्ति एक सूझ
कंकड़ पत्थर बीन बीन कर
डाले घड़े में कौवे ने खूब
पानी फिर जब ऊपर आया
कौवे ने बुझाई प्यास जरूर
ना वह हारा ना घबराया
विपत्ति में बुद्धि का लिया सहारा
प्यारे बच्चों, तुम भी समझो
विषम स्थिति में ना घबराओ
सूझ बूझ प्रज्ञा से निशदिन
आगे बढ़ते ही तुम जाओ
✍️मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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पानी पीकर उड़ा जो कौआ,
मन में अति हरषाया।
नील गगन में उड़-उड़ कर वह,
मस्त हुआ मुस्काया।।
बैठ पेड़ पर काॅंव-काॅंव वह,
जोरों से चिल्लाया।
अपने प्यारे बच्चों को फिर,
उसने पास बुलाया।।
प्यासे कौए ने प्यास का,
अनुभव उन्हें बताया।
पानी पीने के परिश्रम को,
विस्तार से समझाया।।
कठिन समय में धीरज धरकर,
काम करो यदि अपना।
सही मिलेगा परिणाम,
और सुखद बनेगा सपना।।
हम जो थककर बैठ गये,
तो होगी नहीं भलाई।
परिश्रम करना व्यर्थ न जाता,
मेहनत का फल है सुखदाई।।
✍️डाॅ सुधा सिरोही
बुद्धि विहार फेज-2
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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छुक छुक छुक छुक करती रेल
बड़ी तेज है चलती रेल
नदी पर्वत खेत चीर कर
इनके ऊपर चढ़ती रेल ।
नानी मामी बुआ मौसी
सबके घर पहुँचाती रेल
दादा दादी चाचा चाची
सबसे है मिलवाती रेल ।
सड़क सुरंग मैदानोंं में
सरपट दौड़ी जाती रेल
चिंटू - मिंटू - राजू- रामू
मन सभी के भाती रेल ।
✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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अगर बरसते रसगुल्ले तो
कितनी होती अपनी मौज
रसगुल्लों से भरी ही रहती
अपनी आंगन वाली हौज।
सुबह शाम जी भरकर फिर
रसगुल्ले ही हम खाते
मीठे मीठे रसगुल्ले खा
मीठा सा गाना गाते।
✍️डॉ अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर, बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
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एक सेठ जी थे कंजूस,
पीते थे लौकी का जूस I
लगी जोर से एक दिन प्यास,
जूस मंगाया चार गिलास I
फिर भी प्यास न बुझने पाई,
पानी की बोतल मंगवाई I
उसको पीकर मिला आराम,
मुंह से निकला जय जय राम!
हो गया उनको यह आभास,
पानी से ही बुझती प्यास I
✍️नकुल त्यागी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
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मुन्ना बोला मम्मी से मुझको तुम बहलाओ ना।
चंदा मामा दूर के , मुझको तुम दिखलाओ ना।
पूछे मम्मी मुन्ने से क्यूं इतना मुझे सताते हो।
चंदा मामा कल आयेंगे, अब मान नहीं क्यूं जाते हो।
मेरा वादा पक्का है,अब मुझको और सताओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से ........................।।
परियों वाले सपने देखो, और तारों की सैर करो।
सुबह सबेरे जल्दी उठना, ना सोने में देर करो।
लोरी सुनके सो जाओ, अब निदियां दूर भगाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से.....................।।
चंदा मामा जब आयेंगे,तुमको मैं मिलवाऊंगी।
खोल के खिडकी कमरे की, अंदर उन्हें बुलाऊंगी।
मन भर कर तुम बातें करना, अब सोने में देर लगाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से....................।।
चंदा मामा कितने सुंदर , मैं उनसे हाथ मिलाऊंगा।
चुन्नू मुन्नु और राजु को, उनकी बातें बतलाऊंगा।
मुझे सुलाकर प्यारी मम्मी, तुम भी तो सो जाओ ना।
मुन्ना बोला मम्मी से ..................।।
✍️डॉ पूनम चौहान
एस बी डी महिला महाविद्यालय
धामपुर बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत
...................................
रविवार, 22 जनवरी 2023
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बाल कविता --सर्दी में मत निकलो भाई
शीत लहर आई है भाई
सर्दी में मत निकलो भाई
कुहरा चारों ओर तना है
जाड़े से सबको बचना है
ठंडी-ठंडी हवा चल रही
कमरा गर्म हमें रखना है
बंद हुआ स्कूल हमारा
हीटर से तुम तप लो भाई
तालाबों में बर्फ जमी है
हलचल बाहर सभी थमी है
दुबके लोग घरों में सारे
सर्दी में बस यही कमी है
अंदर आकर बैठो, तुम सब
या बिस्तर में घुस लो भाई
मफलर गर्म गले में डालो
स्वेटर जर्सी सभी निकालो
फिर पहनेंगे ऐसा कहकर
बात नहीं तुम कल पर टालो
सर्दी से बचना है हमको
कमर आज तुम कस लो भाई
✍️ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
ए 402, पार्क व्यू सिटी 2
सोहना रोड, गुरुग्राम
78380 90732
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के साहित्यकार डॉ फहीम अहमद की बाल कविता ....घुमक्कड़ तितली
अपनी मर्ज़ी की मालिक है
तितली बड़ी घुमक्कड़।
नन्ही है पर घूम चुकी दुनिया
का चप्पा-चप्पा।
खुश होकर झूमी मस्ती में
गाती लारा-लप्पा।
थकती नहीं ज़रा भी पगली
वह है पूरी फक्कड़।
देख चुकी है वह दुनिया का
रंग बिरंगा मेला।
लगा उसे जग का हर मंज़र
फूलों सा अलबेला।
बूझे नई पहेली फूलों से
बन लाल बुझक्कड़।
हवा,रोशनी,मिट्टी,पानी,
खुशबू वाली बातें।
छिपी हुई नन्हे पंखों में
जाने क्या सौगातें।
कहां कहां से लाई क्या क्या
भूली, बड़ी भुलक्कड़।
✍️ डॉ फहीम अहमद
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ,हिंदी विभाग,
महात्मा गांधी मेमोरियल पी.जी.कालेज,
सम्भल 244302
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 8896340824,9450285248
Email hadi.faheem@yahoo.com
drfaheem807@gmail.com
शुक्रवार, 13 जनवरी 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस की बाल कविताओं पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख .....बच्चों से बतियाती कविताएं । उनका यह आलेख "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (श्री शिव अवतार सरस जी की जीवन यात्रा ) ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है ।
कुछ कवि केवल बच्चों के कवि होते हैं और कुछ बच्चों के साथ-साथ बड़ों के भी। शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' जी ऐसे ही बाल कवि हैं, जिनकी रचनाएं बच्चों के साथ ही बड़ों के लिए भी उपयोगी होती हैं। उनकी बाल-कविताएं बच्चों के अन्तर्मन को तो छूती ही हैं, बड़ों के भीतर किसी कोने में बैठे बालक को भी सहज ही गुदगुदाती रहती हैं। 'सरस' जी की कविताओं में बच्चों, बड़ों सभी को समान रूप से रसानुभूति होती है और यही उनकी बाल कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति है। सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का 'टोटल रिकॉल' हैं क्योंकि इनमें बचपन की वापसी होती दिखायी पड़ती है या फिर हम बार-बार बचपन की ओर लौटते हैं।
अपने काव्य-संग्रह में सरस जी ने ऐसी ढेरों कविताएं प्रस्तुत की हैं, जो बालकों के अन्तर्जगत की मन मोहक छवियों को तो निर्मित करती ही हैं, वह घरातल भी प्रदान करती हैं जिनमें बचपन पल्लवित होता है। सरस जी की बाल कविताओं का रचना आकाश भी बड़ा व्यापक है और बचपन, उनमें कल्पना की ऊँची उड़ानें भरता हुआ ही नहीं, बल्कि सतरंगे सपने बुनता हुआ भी दिखायी पड़ता है। सरस जी की बाल कविताओं में बचपन के लगभग सभी शेड उपस्थित हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो उनका सम्पूर्ण संकलन बचपन का एक सम्मोहक आभा दर्पण है ।
इस संकलन की ख़ास बात यह है कि इसमें कवि ने बच्चों के इर्द-गिर्द मौजूद सूरज, चन्दा, बादल, झरना, पेड़ जैसे प्राकृतिक उपादानों के ऊपर कई रोचक और मोहक कविताएं रची हैं। इन कविताओं में प्रकृति के प्रति एक सहज लगाव या जुड़ाव तो परिलक्षित होता ही है, प्रकृति के प्रति संवेदना और उसे बचाये रखने के लिए एक आग्रह भी स्पष्ट तौर पर लक्ष्य किया जा सकता है। प्रकृति के बिना बचपन बेमानी है, इस तथ्य को यदि मौजूदा दौर में किसी बाल-कवि ने सर्वाधिक प्रमाणिक ढंग से स्थापित किया है, तो वे बस सरस जी ही हैं। ऐसे समय में, जबकि प्रकृति बाल-काव्य तो क्या, स्वयं मुख्य धारा की हिन्दी कविता से भी लगातार बेदखल और काफी हद तक अदृश्य होती जा रही है, प्रकृति के प्रति सरस जी का यह रचनात्मक कदम सचमुच श्लाघनीय है। दरअसल, उनकी बाल कविताएं प्रकृति की बाल-काव्य की वापसी तो हैं ही, वे एक ऐसा प्रस्थान-बिन्दु भी उपस्थित करती हैं जिनमें भविष्य के बाल-कवि भी अपनी राह खोज सकते हैं।
अगर बाल कविताओं के बहाने प्रकृति सरस जी की चिन्ता का केन्द्र-बिन्दु है, तो बालकों के आस-पास मौजूद जीव-जगत भी उन्हें एक व्यापक चेतना से जोड़ता है। शायद यूँ ही बया और बन्दर, शेर और चूहा, कौआ, मुर्गा, खरगोश, बिल्ली और गौरैया सहित अनेक जीवों एवं प्राणियों को भी अपनी चिन्ता के केन्द्र में रखते हुए मौलिक कविताएं रचकर अपनी रचना-धर्मिता के संग बाल-कविता को भी नये आयाम प्रदान किए हैं। सरस जी की इन कविताओं की खूबी यह भी है कि ये बेहद रोचक शैली में और पय-कथाओं के रूप में रची गयी हैं और बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी खासा गुदगुदाती हैं। 'चूहे चाचा, चुहिया चाची', शीर्षक की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं -
"बिल्ली मौसी पानी लाने, को सरिता तक जब निकली ।
सरिता में काई ज्यादा थी काई में बिल्ली फिसली।
मौका पाकर चूहे चाचा, चाची को लेकर भागे ।
चाची दौड़ रही थीं पीछे - चाचा थे आगे-आगे”
सरस जी की बाल-कविताओं में यह हास्य अक्सर उपस्थित होता है, लेकिन उनकी बाल-कविताओं का हास्य शिष्ट है, उनमें भद्दापन बिल्कुल नहीं है और यही विशेषता उन्हें समकालीन हिन्दी बाल-कवियों के मध्य एक अभिजात्यता के साथ-साथ रचनात्मक वैशिष्ट्य भी प्रदान करती है। इन बाल कविताओं में ग़ज़ब की गेयता है, उन्हें किसी के द्वारा भी सहज ही गाया-गुनगुनाया जा सकता है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सरस जी की कविताएं छन्द, यति-गति की दृष्टि से 'परफेक्ट' हैं। उनका शब्द चयन भी विलक्षण है और प्रसिद्ध बालकवि 'दिग्गज मुरादाबादी' जैसा सटीक है। एक ऐसे दौर में, जबकि कविता, विशेषकर बाल-कविता, छन्द से दूर होती जा रही है और बाल-काव्य के नाम पर प्रभूत मात्रा में फूहड़ बाल-कविताओं का सृजन हो रहा है, सरस जी बाल-काव्य में 'छान्दसिकता के नये प्रतिमान' रच रहे हैं। सरस जी की बालोपयोगी कविताएं बालकाव्य में छन्द की वापसी का जीवंत प्रमाण हैं। उनकी बाल कविताओं के बारे में इस तथ्य का उल्लेख भी समीचीन होगा कि उनमें केवल गेयता ही नहीं, बल्कि अभिनेयता का तत्व भी विद्यमान है। इसके बरबस यह भी उल्लेखनीय है कि सरस जी की बाल कविताएं नाटक का कोई एकालाप (ब्रामेटिक नहीं हैं, बल्कि बच्चों से संवाद करती, बतियाती या खेल-खेल में कुछ सिखाती कविताएं हैं। सरस जी ने बाल काव्य के प्रतिमानों के अनुरूप और बाल साहित्य के अपरिहार्य तत्वों का समावेश करते हुए बालकों को कोई भी सीधा संदेश, उपदेश या प्रवचन देने से प्रायः परहेज किया है और वे शिक्षक की मुद्रा धारण करते हुए कभी बालकों पर तर्जनी उठाते दिखायी नहीं पड़ते, बल्कि स्वयं एक बच्चा बनकर बाल-मानस या बालकों की भीतरी दुनिया में प्रवेश कर उसके अनूठ बिम्ब प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास अवश्य करते हैं। शायद यूँ ही प्रस्तुत संग्रह की कविताएं बाल-मानस या बच्चों की दुनिया की एक सच्ची और काफी हद तक यथार्थ परक झाँकी प्रस्तुत करती हैं। वे अपनी बाल-कविताओं के ज़रिये बालकों के लिए आदर्श-परक किन्तु अव्यवहारिक किस्म की परिस्थितियाँ नहीं रचते हैं, न ही कोई 'यूटोपिया' प्रस्तुत करते हैं, बल्कि बच्चों की व्यावहारिक दुनिया को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिसमें बालक सामान्य तौर पर निवास करते हैं। अपनी इसी खूबी के कारण सरस जी की बाल-कविताएं बच्चों के ही नहीं, बल्कि स्वयं बचपन के भी काफी करीब हैं। इसके अतिरिक्त कवि सरस जी इन कविताओं में बचपन को आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों में भी रचने गढ़ने में सफल रहे हैं। लगातार लुप्त होते पक्षी गौरैया के प्रति कवि सरस जी की यह चिन्ता आधुनिक बाल-परिवेश और नये सन्दर्भों के प्रति उनकी रुचि और जुड़ाव को ही दर्शाती है
भारतीय समाज में यह उक्ति बहुत प्रचलित है कि बच्चे हमारा भविष्य हैं, किन्तु वे भविष्य से कहीं ज्यादा हमारा वर्तमान भी हैं। दरअसल, भविष्य भी वर्तमान की नींव पर ही टिका होता है। अगर हम बच्चों का वर्तमान सँवारेंगे, तभी भविष्य सँवरेगा। सरस जी की कविताओं में इसी वर्तमान के प्रति एक आग्रह स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है और वे बच्चों को बड़े सलीके या तरीके से संस्कारों की शिक्षा देते हुए उन्हें भविष्य के योग्य नागरिकों के रूप में रचना-गढ़ने की चेष्टा करते हैं। वे बाल काव्य के ज़रिये न तो स्वयं के लिए और न ही बच्चों के लिए कोई वायवी या बहुत दूर के लक्ष्य निर्धारित करते हैं। समग्र रूप में सरस जी की बाल कविताएं एक ऐसा सम्मोहक माया दर्पण हैं, जिसमें बच्चे तो अपना अक्स ढूँढ ही सकते हैं, स्वयं बचपन के भी ढेरों विम्ब पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं। बाल कविता के इस माया दर्पण के दुर्निवार आकर्षण से बच्चों का तो क्या, बड़ों का भी बच पाना मुश्किल है।
✍️ राजीव सक्सेना
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की काव्य कृति ' सरस संवादिकाएँ ' । इस कृति का प्रथम संस्करण वर्ष 2007 में पुनीत प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ । इस कृति को तीन खंडों "शिशु सौरभ", "बाल वीथिका" और "किशोर कुंज" में विभाजित किया गया है । तीनों खंडों में 22-22 कविताएं (कुल 66) हैं । इन खंडों की भूमिका क्रमशः डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा " अरुण", डॉ चक्रधर "नलिन",और डॉ विनोद चंद्र पांडेय "विनोद" ने लिखी है। अंत में कवि की पूर्व प्रकाशित काव्य कृति " नोक झोंक" के संदर्भ में देश के साहित्यकारों की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित हैं ।
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:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
रविवार, 25 दिसंबर 2022
मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार मनोज मानव के चौदह बाल गीत । विशिष्ट शैली में लिखे गए इन शिक्षाप्रद गीतों का मुखड़ा एक ही है....जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया। छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।।
1... नित्य नहाना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सुबह-सवेरे नित्य नहाओ, दादा जी मुझको समझाते।
जिस दिन नहीं नहाता हूँ मैं , मुझे बुलाकर डाँट लगाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
चुस्त-दुरुस्त सदा रहते वे, जो बच्चे नित सुबह नहाते।
क्या-क्या लाभ नहाने के नित, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नित्य नहाकर मानव तन-मन, फुर्ती और ताजगी पाता।
बदन फूल सा खिल जाता है, आलस दूर सभी हो जाता।
नित्य नहाने से मानव को, फंगस रोग नही लगता है,
बैक्टीरिया त्वचा को कोई, हानि कभी नहीं पहुंचाता।
सुबह समय पर नित्य नहाना, शास्त्रों ने भी श्रेष्ठ बताया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रोगों से लड़ने की क्षमता, बढ़ जाती है मानव तन की।
बदन निरोगी स्वयं हमारी, उम्र बढ़ा देता जीवन की।
बदबू दूर पसीने की हो, बदन महकता रहता दिन भर।
रहता निज मस्तिष्क स्वस्थ है, चमक बनी रहती आनन की।
नित्य नहाने की आदत से, रोगरहित रहती हैं काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया
2..... पौधारोपण
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
वर्षों से दादा जी सबका, जन्म-दिवस इस तरह मनाते।
जिसका जन्म-दिवस हो उससे , पौधारोपण एक कराते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
दादा को है प्रेम प्रकृति से, इसीलिए पौधे लगवाते।
पेड़ लगाना क्यों आवश्यक, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
केनवास पर पेड़ प्रकृति के, भव्य मनोरम रँग भरते हैं।
ध्यान प्रकृति के संरक्षण, संवर्धन का भी रखते हैं।
कार्बन-डाई-ऑक्साइड के, विष को पीकर पेड़ धरा पर,
प्राणवायु का उत्सर्जन कर , जीवन की रक्षा करते हैं।
वास और भोजन के सँग-सँग, देते हैं आँचल की छाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
कई तरह की जड़ी-बूटियां, पेड़ और पौधों से पाते।
तापमान बढ़ने से भू का , भू पर केवल पेड़ बचाते।
पेड़ों के बिन नहीं धरा की, सम्भव पर्यावरण सुरक्षा,
रहे सुरक्षित भू पर जीवन, इसीलिए हम पेड़ लगाते।
जिसने पेड़ लगाया उसने, धरती माँ का कर्ज चुकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
3..... धूप में बैठकर शरीर की मालिश
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
छुट्टी के दिन मुझे धूप में , दादा छत पर लेकर जाते।
गर्म तेल से मेरी मालिश , करते अपनी भी करवाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसे सूरज की किरणों से, मुफ्त विटामिन-डी हम पाते।
लाभ विटामिन-डी के क्या-क्या, पापा ने मुझको समझाया,
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
अल्ट्रा-वायलेट किरणें जब, सूरज की तन पर हैं पड़ती।
त्वचा हमारी स्वयं विटामिन, डी किरणों से निर्मित करती।
गर्म तेल की मालिश से सब, रन्ध्र त्वचा के खुल जाते हैं,
तब निर्माण विटामिन करने,की गति बहुत अधिक जा बढ़ती।
इसी विटामिन-डी से बनती, हम सबकी बलशाली काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
यही विटामिन-डी भोजन को, अच्छे से हैं नित्य पचाता।
तन में यही पचा कैल्शियम, हड्डी को मजबूत बनाता।
सँग में गर्म तेल तन के सब ,जोड़ों को देता नव ताकत,
भव्य निखार त्वचा को देकर , मानव तन का ओज बढाता।
जिसने भी इसको अपनाया, लाभ उसी ने इसका पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
4..... खाने से पहले हाथ धोना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
नित खाना खाने से पहले, मम्मी मेरे हाथ धुलाती।
बिना हाथ अच्छे से धोये , मेरा खाना नहीं लगाती।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
धुलवाकर वह हाथ तुम्हारे, बीमारी से तुम्हें बचाती।
धोने क्यों है हाथ जरूरी, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
गन्दे हाथों के कारण ही , होते तन में रोग अधिकतर।
छिपे हुए कीटाणु हजारों , रहते हैं गन्दे हाथों पर।
बिना हाथ धोये जब बच्चे,अपने भोजन को खाते हैं,
भोजन के ही साथ सभी ये, चले पेट में जाते अंदर।
जिसके अंदर चले गये ये, उसको ही बीमार बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पग-पग पर कीटाणु सक्रिय, वैज्ञानिक हमको बतलाते।
जब हम किसी सतह को छूते,तब ये चिपक हाथ पर जाते।
हम जब साबुन से हाथों को , अच्छे से धोते है तो ये,
हुए वार को सहन स्वयं पर , ज्यादा देर नहीं कर पाते।
धोकर हाथ करे जो भोजन , रहे निरोगी उसकी काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
5........ बड़ों के पैर छूना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
चरण स्पर्श करना दादा जी, उत्तम अभिवादन बतलाते।
घर पर आते सभी बड़े जब, मुझसे उनके पैर छुआते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
झुककर पैर बड़ों के छूकर, हम उनसे ऊर्जा है पाते।
झुककर पैरों को छूने का , वैज्ञानिक कारण समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छूते पैर बड़ों के जब हम, दादा , चाचा या हो ताया।
दाया हाथ पैर को बायें, बाया हाथ छुएगा दाया।
ऐसा जब होता है उस क्षण, चक्र एक विद्युतीय बनता,
जिससे सदा बड़ों की ऊर्जा , को छोटों ने उनसे पाया।
आशीर्वाद साथ में मिलता, जाता नहीं कभी जो जाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
ज्ञान बड़ों से कुछ पाने को, हमें उन्हें सुनना पड़ता है।
कुछ पाने के लिए सभी को, कुछ श्रम तो करना पड़ता है।
आशीर्वाद नाम की पूँजी , पाने को दुनिया मे बेटा,
ऊँचे से ऊँचे मस्तक को, नीचे तो झुकना पड़ता है।
बिना झुके इस सकल जगत में, आशीर्वाद कौन जन पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
6....... भोर में जगना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
दादा-दादी जल्दी सोते, और सुबह जल्दी जग जाते।
हम यदि सुबह देर से जगते , हमें बुलाकर डाँट लगाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
रोज सुबह जल्दी जग जाना, शास्त्र हमारे श्रेष्ठ बताते।
फिर पापा ने इससे होते, क्या-क्या लाभ मुझे समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नित्य भोर में जग जाने से, हमें अधिक ऊर्जा मिलती है।
दूर हमारा आलस कर जो, दिन भर चुस्त-दुरुस्त रखती है।
दिन भर बढ़ा प्रदूषण सारा , वृक्ष सोख लेते हैं मिलकर,
वातावरण शुद्ध होता है, प्राण वायु उत्तम बहती है।
इसीलिए तो समय भोर का , जगने को उत्तम कहलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
सुबह-सुबह धरती माता का, भरा खुशी से रहता आँचल।
नित्य भोर में ईश- वन्दना, का मिलता है श्रेष्ठ सदा फल
सुबह-सुबह पढ़ने से बेटा, पाठ याद अच्छे से होता,
किया सुबह व्यायाम बहुत ही, तन को देता है उत्तम बल।
जो जगता है नित्य भोर में, रोगमुक्त तन उसने पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
7...... सूर्य नमस्कार
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सुबह- सुबह नित मेरे दादा , अजब-गजब आसन करते हैं।
उठकर झुककर कमर धनुष कर, दण्डवत करते रहते हैं।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
नमस्कार कर नित सूरज को , स्वस्थ स्वयं को वे रखते हैं।
नमस्कार सूरज को कैसे, करते हैं मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पहले करे प्रणाम खड़े हो , फिर करते हस्त उत्तानासन।
उसके बाद पाद हस्तासन, करके करे अश्व संचालन।
अगली मुद्रा पर्वत आसन, बाद किया जाता दण्डासन।
फिर अष्टांग,भुजंगासन कर, आधा पूर्ण करे यह आसन।
फिर इन सबको उल्टे क्रम में, वापिस जाता हैं दोहराया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बारह मुद्रिक इस आसन से , पूरे तन को लाभ पहुंचता।
सदा निरोगी रहता है वह , जो नित इस आसन को करता।
योगशास्त्र अनुसार इसी को ,सर्वश्रेष्ठ आसन कहते हैं,
बना लचीला मानव का तन , तन के सब कष्टों को हरता।
अस्सी साल उम्र दादा की, फिर भी रोगमुक्त है काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
8...... गुरु जी ने मुर्गा बनाया
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
आज परीक्षा लेकर गुरु ने , बच्चों को यह दंड सुनाया।
जिनके उत्तर सही नहीं थे , उन सबको मुर्गा बनवाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
सजा रूप में भी गुरुवर ने , योगासन अभ्यास कराया।
कितने अधिक लाभ होते हैं, मुर्गा आसन के बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
योग-शास्त्र में मुर्गा आसन, समझो कैसे हम हैं करते।
झुककर टाँगों के नीचे से , हाथों से निज कान पकड़ते।
जितना ऊपर उठा सके फिर, ऊपर कमर उठा देते हैं,
साँस रोककर तनिक देर तक , इसी अवस्था में हैं रहते।
जिसने भी यह किया नियम से, उसने इसका लाभ उठाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
मुर्गा आसन को करने से , बढ़ संचार रक्त का जाता।
बढ़ा रोशनी ये आंखों की , लाभ सभी को है पहुंचाता।
पाठ याद करने की क्षमता , बहुत अधिक बढ़ जाती इससे,
इसीलिए तो सजा रूप में , सब गुरुओं को ये है भाता।
सबक शिष्य जो लिया सजा से, वही सफलता को छू पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
9......पक्षियों को दाना-पानी
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
दादा जी नित छत पर जाकर, दाना-पानी रखकर आते।
आस-पास के पक्षी सारे , कलरव कर छत पर आ जाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसा कर तेरे दादा जी , मानवता का फर्ज निभाते।
इसके पीछे छिपे भेद को, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बेटा ऐसा नित करने से, घर में क्लेश नहीं हो पाते।
शास्त्र हमारे कहते इससे , सब ग्रह दोष दूर हो जाते।
वैज्ञानिक भी यह कहते हैं, मित्र हमारे होते पक्षी,
चुन-चुन कीट पतंगे खाकर, बीमारी से हमें बचाते।
सारे सुख उस आँगन बसते, जिसे पक्षियों ने चहकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रंग-बिरंगे पक्षी बेटा, हर मानव के मन को भाते।
जितना हमसे पाते पक्षी, उससे अधिक हमें दे जाते।
फल खाने पर बीज फलों के,पक्षी पचा नहीं पाते हैं,
पक्षी की बीटों से भू पर , नये-नये पौधे उग आते।
जिसने दाना-पानी डाला, उस मानव ने पुण्य कमाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
10...... गाय और कुत्ते की रोटी
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी लगी सेंकने रोटी, पहली रोटी अलग निकाली।
उसके बाद लगायी माँ ने, दादा-दादी जी की थाली।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
पहली रोटी गौ माता की, अंतिम रोटी कुत्ते वाली।
दोनों जीवों की महिमा को, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
इस धरती पर मात्र गाय ही , पालनहार पूर्ण कहलाती।
दूध पूर्ण भोजन है इसका, इसीलिए कहलाती दाती।
वफादार कुत्ते के जितना, नहीं जीव कोई धरती पर,
कुत्ते को रोटी डाले जो,उसको अकाल मौत न आती।
नहीं फटकता इनके रहते, किसी दुष्ट आत्मा का साया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
ईश्वर इन पशुओं को भू पर, हम मानव के मित्र बनाये।
इन सबके पालन पोषण के , उर मानव के भाव जगाये।
मुफ्त नहीं लेते ये सेवा , उसका फल हमको देते हैं,
कदम-कदम पर साथ हमारे , नजर हमेशा ये सब आये।
इनकी सेवा की जिसने भी , वह सच्चा मानव कहलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
11...... बुजुर्गों के पैर दबाना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सभी काम निपटाकर मम्मी, नित दादी के पैर दबाती।
कभी एक तो कभी दूसरी, पकड़ पिंडली जोर लगाती।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसा करने से दादी को, नींद बहुत अच्छे से आती।
पैर दबाने का पाचन से, रिश्ता पापा ने समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नसें पिंडली में जो होती, उनका आंतों से हैं नाता।
पैर दबाने से खाने का , पाचन अच्छे से हो जाता।
पैर दबाने से दादी की , दूर थकान सभी हो जाती।
दौर रक्त का बढ़ जाता है , जो तन-मन को बहुत लुभाता।
बड़े और बूढ़ों की सेवा, करना पापा ने सिखलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पापा बोले सुन लो बेटा, तुम भी अपना फर्ज निभाओ।
अच्छे से तुम दादा जी के, जाकर दोनों पैर दबाओ।
बड़े बुजर्गों की सेवा का, फल ईश्वर देता है सबको,
जब भी मौका मिले बुजुर्गों, का आशीष सदा तुम पाओ।
जीवन सफल उसी का जिसने, आशीर्वाद बड़ों का पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
12........ दूध बिलोना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी दूध बिलोने बैठी, लगा बिलोनी हांडी ऊपर।
बारी-बारी उल्टे-सीधे, लगी घुमाने उसके चक्कर।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
इससे ही मक्खन निकलेगा, जो है छिपा दूध के अंदर।
बड़े प्यार से पापा ने फिर, मंथन का मतलब समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
द्रव्य स्वयं में अपने अंदर, रखता अवयव कई समाये।
मथने से अंदर के अवयव, निकल सतह पर ऊपर आये।
सतयुग में सागर के अंदर, रत्नों का भंडार छिपा था,
बृह्मा जी देवों से कहकर, सागर का मंथन करवाये।
सागर मंथन कर देवों ने, अपने लिए अमृत था पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
सुन बेटा ईश्वर धरती पर, दूध मनुज के लिये बनाये।
चतुराई से अमिय रूप में, उसमें मक्खन दिये छिपाये।
सागर मंथन से शिक्षा ले, मथने लगा दूध को मानव,
जिससे निकला मक्खन खाकर, बच्चे उन्नत ताकत पाये।
मक्खन खाने से बच्चों की, बनती हैं ताकतवर काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
13.... आटा गूंथती माँ
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी गूँथ रही थी आटा , मैंने थोड़ा ध्यान लगाया।
बार-बार माँ ने आटे में, थोड़ा-थोड़ा नीर मिलाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
नीर अधिक हो गया अगर तो, आटा हो जायेगा जाया।
और तभी अनुपात विषय के, बारे में मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पटक-पटक मम्मी ने आटा, उस पर गुस्सा खूब उतारा।
लगी मारने घूसे उसको, और कभी चांटा जा मारा।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
बोले बेटा तेरी माँ के, पास ज्ञान का भरा पिटारा।
ऐसा कर उसने आटे की, लोच बढा वह नरम बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रिश्ते-नाते सुख देते जो, और कहाँ सुख मिलता वैसा।
रिश्तों में अनुपात चाहिए, आटे और नीर के जैसा।
जैसे सही लोच आने पर, रोटी अच्छी बनती वैसे,
मात्र लोच पर निर्भर नर का , नर से रिश्ता होगा कैसा।
सफल जिंदगी उसकी जो जन, पग-पग खुद में लोच बढाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
14... दाल पकाई मां ने
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
चूल्हें चढा दाल मम्मी ने, धीरे-धीरे ताप बढाया।
बड़ी समझदारी से उसमे ,आया सारा झाग हटाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
साथ गुणों के विष आ जाता, ऐसा कर विष मुक्त बनाया।पकते-पकते दाल पिता ने , इसका भेद मुझे बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
झाग मुक्त जब हुई दाल तो, रंग निखर कर उसका आया।
दाल सही से पक जाने पर, माँ ने उसमें छौंक लगाया।
इसका कारण जब पूछा तो , पापा ने समझाया मुझको,
छौंक लगाया उसने तब ही, जब तैयार दाल को पाया।
डले मसालों की खुशबू ने , दाने-दाने को महकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बापू बोले सुनो गुणों के, अवगुण साथ चला करते हैं।
ज्ञानी लोग तपस्या के बल, दूर जिन्हें करते रहते हैं।
अपने लिए श्रेष्ठ पोष्टिक, छाँट मसालों को जीवन में,
छौंक ज्ञान का लगा स्वयं में, जीवन में आगे बढ़ते हैं।
जीवन सफल उसी का जिसने, जीवन को विष-मुक्त बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
✍️ मनोज मानव
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उत्तर प्रदेश, भारत
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