1... नित्य नहाना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सुबह-सवेरे नित्य नहाओ, दादा जी मुझको समझाते।
जिस दिन नहीं नहाता हूँ मैं , मुझे बुलाकर डाँट लगाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
चुस्त-दुरुस्त सदा रहते वे, जो बच्चे नित सुबह नहाते।
क्या-क्या लाभ नहाने के नित, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नित्य नहाकर मानव तन-मन, फुर्ती और ताजगी पाता।
बदन फूल सा खिल जाता है, आलस दूर सभी हो जाता।
नित्य नहाने से मानव को, फंगस रोग नही लगता है,
बैक्टीरिया त्वचा को कोई, हानि कभी नहीं पहुंचाता।
सुबह समय पर नित्य नहाना, शास्त्रों ने भी श्रेष्ठ बताया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रोगों से लड़ने की क्षमता, बढ़ जाती है मानव तन की।
बदन निरोगी स्वयं हमारी, उम्र बढ़ा देता जीवन की।
बदबू दूर पसीने की हो, बदन महकता रहता दिन भर।
रहता निज मस्तिष्क स्वस्थ है, चमक बनी रहती आनन की।
नित्य नहाने की आदत से, रोगरहित रहती हैं काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया
2..... पौधारोपण
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
वर्षों से दादा जी सबका, जन्म-दिवस इस तरह मनाते।
जिसका जन्म-दिवस हो उससे , पौधारोपण एक कराते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
दादा को है प्रेम प्रकृति से, इसीलिए पौधे लगवाते।
पेड़ लगाना क्यों आवश्यक, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
केनवास पर पेड़ प्रकृति के, भव्य मनोरम रँग भरते हैं।
ध्यान प्रकृति के संरक्षण, संवर्धन का भी रखते हैं।
कार्बन-डाई-ऑक्साइड के, विष को पीकर पेड़ धरा पर,
प्राणवायु का उत्सर्जन कर , जीवन की रक्षा करते हैं।
वास और भोजन के सँग-सँग, देते हैं आँचल की छाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
कई तरह की जड़ी-बूटियां, पेड़ और पौधों से पाते।
तापमान बढ़ने से भू का , भू पर केवल पेड़ बचाते।
पेड़ों के बिन नहीं धरा की, सम्भव पर्यावरण सुरक्षा,
रहे सुरक्षित भू पर जीवन, इसीलिए हम पेड़ लगाते।
जिसने पेड़ लगाया उसने, धरती माँ का कर्ज चुकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
3..... धूप में बैठकर शरीर की मालिश
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
छुट्टी के दिन मुझे धूप में , दादा छत पर लेकर जाते।
गर्म तेल से मेरी मालिश , करते अपनी भी करवाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसे सूरज की किरणों से, मुफ्त विटामिन-डी हम पाते।
लाभ विटामिन-डी के क्या-क्या, पापा ने मुझको समझाया,
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
अल्ट्रा-वायलेट किरणें जब, सूरज की तन पर हैं पड़ती।
त्वचा हमारी स्वयं विटामिन, डी किरणों से निर्मित करती।
गर्म तेल की मालिश से सब, रन्ध्र त्वचा के खुल जाते हैं,
तब निर्माण विटामिन करने,की गति बहुत अधिक जा बढ़ती।
इसी विटामिन-डी से बनती, हम सबकी बलशाली काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
यही विटामिन-डी भोजन को, अच्छे से हैं नित्य पचाता।
तन में यही पचा कैल्शियम, हड्डी को मजबूत बनाता।
सँग में गर्म तेल तन के सब ,जोड़ों को देता नव ताकत,
भव्य निखार त्वचा को देकर , मानव तन का ओज बढाता।
जिसने भी इसको अपनाया, लाभ उसी ने इसका पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
4..... खाने से पहले हाथ धोना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
नित खाना खाने से पहले, मम्मी मेरे हाथ धुलाती।
बिना हाथ अच्छे से धोये , मेरा खाना नहीं लगाती।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
धुलवाकर वह हाथ तुम्हारे, बीमारी से तुम्हें बचाती।
धोने क्यों है हाथ जरूरी, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
गन्दे हाथों के कारण ही , होते तन में रोग अधिकतर।
छिपे हुए कीटाणु हजारों , रहते हैं गन्दे हाथों पर।
बिना हाथ धोये जब बच्चे,अपने भोजन को खाते हैं,
भोजन के ही साथ सभी ये, चले पेट में जाते अंदर।
जिसके अंदर चले गये ये, उसको ही बीमार बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पग-पग पर कीटाणु सक्रिय, वैज्ञानिक हमको बतलाते।
जब हम किसी सतह को छूते,तब ये चिपक हाथ पर जाते।
हम जब साबुन से हाथों को , अच्छे से धोते है तो ये,
हुए वार को सहन स्वयं पर , ज्यादा देर नहीं कर पाते।
धोकर हाथ करे जो भोजन , रहे निरोगी उसकी काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
5........ बड़ों के पैर छूना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
चरण स्पर्श करना दादा जी, उत्तम अभिवादन बतलाते।
घर पर आते सभी बड़े जब, मुझसे उनके पैर छुआते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
झुककर पैर बड़ों के छूकर, हम उनसे ऊर्जा है पाते।
झुककर पैरों को छूने का , वैज्ञानिक कारण समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छूते पैर बड़ों के जब हम, दादा , चाचा या हो ताया।
दाया हाथ पैर को बायें, बाया हाथ छुएगा दाया।
ऐसा जब होता है उस क्षण, चक्र एक विद्युतीय बनता,
जिससे सदा बड़ों की ऊर्जा , को छोटों ने उनसे पाया।
आशीर्वाद साथ में मिलता, जाता नहीं कभी जो जाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
ज्ञान बड़ों से कुछ पाने को, हमें उन्हें सुनना पड़ता है।
कुछ पाने के लिए सभी को, कुछ श्रम तो करना पड़ता है।
आशीर्वाद नाम की पूँजी , पाने को दुनिया मे बेटा,
ऊँचे से ऊँचे मस्तक को, नीचे तो झुकना पड़ता है।
बिना झुके इस सकल जगत में, आशीर्वाद कौन जन पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
6....... भोर में जगना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
दादा-दादी जल्दी सोते, और सुबह जल्दी जग जाते।
हम यदि सुबह देर से जगते , हमें बुलाकर डाँट लगाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
रोज सुबह जल्दी जग जाना, शास्त्र हमारे श्रेष्ठ बताते।
फिर पापा ने इससे होते, क्या-क्या लाभ मुझे समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नित्य भोर में जग जाने से, हमें अधिक ऊर्जा मिलती है।
दूर हमारा आलस कर जो, दिन भर चुस्त-दुरुस्त रखती है।
दिन भर बढ़ा प्रदूषण सारा , वृक्ष सोख लेते हैं मिलकर,
वातावरण शुद्ध होता है, प्राण वायु उत्तम बहती है।
इसीलिए तो समय भोर का , जगने को उत्तम कहलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
सुबह-सुबह धरती माता का, भरा खुशी से रहता आँचल।
नित्य भोर में ईश- वन्दना, का मिलता है श्रेष्ठ सदा फल
सुबह-सुबह पढ़ने से बेटा, पाठ याद अच्छे से होता,
किया सुबह व्यायाम बहुत ही, तन को देता है उत्तम बल।
जो जगता है नित्य भोर में, रोगमुक्त तन उसने पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
7...... सूर्य नमस्कार
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सुबह- सुबह नित मेरे दादा , अजब-गजब आसन करते हैं।
उठकर झुककर कमर धनुष कर, दण्डवत करते रहते हैं।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
नमस्कार कर नित सूरज को , स्वस्थ स्वयं को वे रखते हैं।
नमस्कार सूरज को कैसे, करते हैं मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पहले करे प्रणाम खड़े हो , फिर करते हस्त उत्तानासन।
उसके बाद पाद हस्तासन, करके करे अश्व संचालन।
अगली मुद्रा पर्वत आसन, बाद किया जाता दण्डासन।
फिर अष्टांग,भुजंगासन कर, आधा पूर्ण करे यह आसन।
फिर इन सबको उल्टे क्रम में, वापिस जाता हैं दोहराया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बारह मुद्रिक इस आसन से , पूरे तन को लाभ पहुंचता।
सदा निरोगी रहता है वह , जो नित इस आसन को करता।
योगशास्त्र अनुसार इसी को ,सर्वश्रेष्ठ आसन कहते हैं,
बना लचीला मानव का तन , तन के सब कष्टों को हरता।
अस्सी साल उम्र दादा की, फिर भी रोगमुक्त है काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
8...... गुरु जी ने मुर्गा बनाया
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
आज परीक्षा लेकर गुरु ने , बच्चों को यह दंड सुनाया।
जिनके उत्तर सही नहीं थे , उन सबको मुर्गा बनवाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
सजा रूप में भी गुरुवर ने , योगासन अभ्यास कराया।
कितने अधिक लाभ होते हैं, मुर्गा आसन के बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
योग-शास्त्र में मुर्गा आसन, समझो कैसे हम हैं करते।
झुककर टाँगों के नीचे से , हाथों से निज कान पकड़ते।
जितना ऊपर उठा सके फिर, ऊपर कमर उठा देते हैं,
साँस रोककर तनिक देर तक , इसी अवस्था में हैं रहते।
जिसने भी यह किया नियम से, उसने इसका लाभ उठाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
मुर्गा आसन को करने से , बढ़ संचार रक्त का जाता।
बढ़ा रोशनी ये आंखों की , लाभ सभी को है पहुंचाता।
पाठ याद करने की क्षमता , बहुत अधिक बढ़ जाती इससे,
इसीलिए तो सजा रूप में , सब गुरुओं को ये है भाता।
सबक शिष्य जो लिया सजा से, वही सफलता को छू पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
9......पक्षियों को दाना-पानी
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
दादा जी नित छत पर जाकर, दाना-पानी रखकर आते।
आस-पास के पक्षी सारे , कलरव कर छत पर आ जाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसा कर तेरे दादा जी , मानवता का फर्ज निभाते।
इसके पीछे छिपे भेद को, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बेटा ऐसा नित करने से, घर में क्लेश नहीं हो पाते।
शास्त्र हमारे कहते इससे , सब ग्रह दोष दूर हो जाते।
वैज्ञानिक भी यह कहते हैं, मित्र हमारे होते पक्षी,
चुन-चुन कीट पतंगे खाकर, बीमारी से हमें बचाते।
सारे सुख उस आँगन बसते, जिसे पक्षियों ने चहकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रंग-बिरंगे पक्षी बेटा, हर मानव के मन को भाते।
जितना हमसे पाते पक्षी, उससे अधिक हमें दे जाते।
फल खाने पर बीज फलों के,पक्षी पचा नहीं पाते हैं,
पक्षी की बीटों से भू पर , नये-नये पौधे उग आते।
जिसने दाना-पानी डाला, उस मानव ने पुण्य कमाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
10...... गाय और कुत्ते की रोटी
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी लगी सेंकने रोटी, पहली रोटी अलग निकाली।
उसके बाद लगायी माँ ने, दादा-दादी जी की थाली।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
पहली रोटी गौ माता की, अंतिम रोटी कुत्ते वाली।
दोनों जीवों की महिमा को, पापा ने मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
इस धरती पर मात्र गाय ही , पालनहार पूर्ण कहलाती।
दूध पूर्ण भोजन है इसका, इसीलिए कहलाती दाती।
वफादार कुत्ते के जितना, नहीं जीव कोई धरती पर,
कुत्ते को रोटी डाले जो,उसको अकाल मौत न आती।
नहीं फटकता इनके रहते, किसी दुष्ट आत्मा का साया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
ईश्वर इन पशुओं को भू पर, हम मानव के मित्र बनाये।
इन सबके पालन पोषण के , उर मानव के भाव जगाये।
मुफ्त नहीं लेते ये सेवा , उसका फल हमको देते हैं,
कदम-कदम पर साथ हमारे , नजर हमेशा ये सब आये।
इनकी सेवा की जिसने भी , वह सच्चा मानव कहलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
11...... बुजुर्गों के पैर दबाना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सभी काम निपटाकर मम्मी, नित दादी के पैर दबाती।
कभी एक तो कभी दूसरी, पकड़ पिंडली जोर लगाती।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
ऐसा करने से दादी को, नींद बहुत अच्छे से आती।
पैर दबाने का पाचन से, रिश्ता पापा ने समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
नसें पिंडली में जो होती, उनका आंतों से हैं नाता।
पैर दबाने से खाने का , पाचन अच्छे से हो जाता।
पैर दबाने से दादी की , दूर थकान सभी हो जाती।
दौर रक्त का बढ़ जाता है , जो तन-मन को बहुत लुभाता।
बड़े और बूढ़ों की सेवा, करना पापा ने सिखलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पापा बोले सुन लो बेटा, तुम भी अपना फर्ज निभाओ।
अच्छे से तुम दादा जी के, जाकर दोनों पैर दबाओ।
बड़े बुजर्गों की सेवा का, फल ईश्वर देता है सबको,
जब भी मौका मिले बुजुर्गों, का आशीष सदा तुम पाओ।
जीवन सफल उसी का जिसने, आशीर्वाद बड़ों का पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
12........ दूध बिलोना
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी दूध बिलोने बैठी, लगा बिलोनी हांडी ऊपर।
बारी-बारी उल्टे-सीधे, लगी घुमाने उसके चक्कर।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
इससे ही मक्खन निकलेगा, जो है छिपा दूध के अंदर।
बड़े प्यार से पापा ने फिर, मंथन का मतलब समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
द्रव्य स्वयं में अपने अंदर, रखता अवयव कई समाये।
मथने से अंदर के अवयव, निकल सतह पर ऊपर आये।
सतयुग में सागर के अंदर, रत्नों का भंडार छिपा था,
बृह्मा जी देवों से कहकर, सागर का मंथन करवाये।
सागर मंथन कर देवों ने, अपने लिए अमृत था पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
सुन बेटा ईश्वर धरती पर, दूध मनुज के लिये बनाये।
चतुराई से अमिय रूप में, उसमें मक्खन दिये छिपाये।
सागर मंथन से शिक्षा ले, मथने लगा दूध को मानव,
जिससे निकला मक्खन खाकर, बच्चे उन्नत ताकत पाये।
मक्खन खाने से बच्चों की, बनती हैं ताकतवर काया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
13.... आटा गूंथती माँ
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
मम्मी गूँथ रही थी आटा , मैंने थोड़ा ध्यान लगाया।
बार-बार माँ ने आटे में, थोड़ा-थोड़ा नीर मिलाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
नीर अधिक हो गया अगर तो, आटा हो जायेगा जाया।
और तभी अनुपात विषय के, बारे में मुझको समझाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पटक-पटक मम्मी ने आटा, उस पर गुस्सा खूब उतारा।
लगी मारने घूसे उसको, और कभी चांटा जा मारा।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
बोले बेटा तेरी माँ के, पास ज्ञान का भरा पिटारा।
ऐसा कर उसने आटे की, लोच बढा वह नरम बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
रिश्ते-नाते सुख देते जो, और कहाँ सुख मिलता वैसा।
रिश्तों में अनुपात चाहिए, आटे और नीर के जैसा।
जैसे सही लोच आने पर, रोटी अच्छी बनती वैसे,
मात्र लोच पर निर्भर नर का , नर से रिश्ता होगा कैसा।
सफल जिंदगी उसकी जो जन, पग-पग खुद में लोच बढाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
14... दाल पकाई मां ने
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
चूल्हें चढा दाल मम्मी ने, धीरे-धीरे ताप बढाया।
बड़ी समझदारी से उसमे ,आया सारा झाग हटाया।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
साथ गुणों के विष आ जाता, ऐसा कर विष मुक्त बनाया।पकते-पकते दाल पिता ने , इसका भेद मुझे बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
झाग मुक्त जब हुई दाल तो, रंग निखर कर उसका आया।
दाल सही से पक जाने पर, माँ ने उसमें छौंक लगाया।
इसका कारण जब पूछा तो , पापा ने समझाया मुझको,
छौंक लगाया उसने तब ही, जब तैयार दाल को पाया।
डले मसालों की खुशबू ने , दाने-दाने को महकाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
बापू बोले सुनो गुणों के, अवगुण साथ चला करते हैं।
ज्ञानी लोग तपस्या के बल, दूर जिन्हें करते रहते हैं।
अपने लिए श्रेष्ठ पोष्टिक, छाँट मसालों को जीवन में,
छौंक ज्ञान का लगा स्वयं में, जीवन में आगे बढ़ते हैं।
जीवन सफल उसी का जिसने, जीवन को विष-मुक्त बनाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
✍️ मनोज मानव
पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9837252598
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें