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गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....क्रांतिवीर हेडगेवार । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में तृतीय स्थान पर रहा ।



 पात्र परिचय 

डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार

अंग्रेज न्यायाधीश श्री स्मेली 

डा० हेडगेवार के वकील श्री बोबड़े

पुलिस इन्स्पेक्टर श्री गंगाधर राव आबा जी ,

कुछ अन्य वकील, 

दर्शक,

पुलिसकर्मी 

 काल: 1921 ईसवी

 स्थान : न्यायालय, नागपुर।

 दृश्य 1

[ न्यायाधीश के आसन पर श्री स्मैली बैठे हुए हैं। वह काफी परेशान दीख रहे हैं। माथे पर त्यौरियाँ हैं। वह अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियाँ भौहों के मध्य रखकर चिंता में डूब जाते हैं। अदालत में काफी शोर हो रहा है। स्मैली हथौड़ा खटखटाते हैं। ] 


 स्मैली: आर्डर-आर्डर ! केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राजद्रोह का अपराध किया है। उसका भाषण हिन्दुस्तान के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ भड़काने का था।

 बोबड़े: योर ऑनर ! यह अभी साबित नहीं हो सका है कि डॉक्टर हेडगेवार राजद्रोह के दोषी हैं। अपने देश की आजादी की इच्छा राजद्रोह नहीं कही जा सकती।

 स्मेली : जो कानून और गवाह कहेंगे, अदालत तो उसी पर चलेगी (व्यंगात्मक शैली में हाथ और सिर हिलाते हुए आँखें मटकाता हुआ वह कहता है।) 

 बोबडे:: मैं पुलिस इन्स्पेक्टर आबाजी से कुछ जिरह करना चाहता हूँ। कृपया इजाजत दें ।

 स्मैली: इजाजत है।

[पुलिस इन्स्पेक्टर आबा जी गवाह के कटघरे में आते हैं।] 

बोबड़े : इंस्पैक्टर ! क्या आप समझते हैं कि डॉक्टर हेडगेवार अंग्रेजों के खिलाफ व्यक्तिगत द्वेष और हिंसा के लिए जनता को उकसा रहे थे ?

 स्मैली : (तेजी से): यह प्रश्न अभियोग से मेल नहीं खाता ।

 बोबड़े : (इन्स्पैक्टर से ) खैर ! यह बताइये ,डॉक्टर हेडगेवार ने कोई ऐसी बात की जिससे लूटमार, आगजनी होने या संविधान और न्याय व्यवस्था समाप्त होने का खतरा हो ? 

 स्मैलो: यह प्रश्न असंबद्ध है।

 बोबड़े: इन्स्पेक्टर ! हेडगेवार ने इसके अलावा तो अपने भाषणों में कुछ नहीं कहा कि उन्हें देश की आजादी चाहिए।

 स्मैली : आप नही पूछ सकते ।

 बोबड़े : ( गुस्से में ) इन्स्पेक्टर साहब ! डॉक्टर हेडगेवार सिर्फ इतना ही तो जनता से कह रहे थे कि हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान के लोगों का है ?

 स्मैली: मैं आपको यह सवाल नहीं पूछने दे सकता। आप गवाह से बेकार के सवाल पूछे जा रहे हैं। 

 बोबड़े : (गुस्से में भरे हुए) न्यायाधीश मुझे गवाह से जिरह ही नहीं करने दे रहे हैं। यह अदालत ही नहीं, कानून का मजाक है । [पैर पटकते हुए बोबड़े कचहरी से बाहर चले जाते हैं

दृश्य 2

[ डा० हेडगेवार और श्री बोबड़े एक निजी कक्ष में बैठे हुए बातें कर रहे हैं। बोबड़े वकीलों का-सा काला चोगा पहने हैं। हेडगेवार सफेद धोती-कुर्ता पहने हैं। उनकी बड़ी काली मूँछें हैं तथा बलिष्ठ शरीर है। आयु लगभग 32 वर्ष है।]

 बोबड़े : जैसी भाषा में आपने यह मुकदमा दूसरी अदालत में भेजे जाने का आवेदन-पत्र दिया है, उससे लगता नहीं कि काम बनेगा । 

डॉक्टर हेडगेवार : अंग्रेजों से हम भारतीयों को न्याय की आशा करना व्यर्थ है।

 बोबड़े : तो फिर आप अपना बचाव क्यों कर रहे हैं ? 

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं बचाव नहीं कर रहा। स्वराज्य-संघर्ष में जेल जाना मेरे लिए गौरव की बात होगी । 

 बोबड़े : फिर ?

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं तो अदालत को एक जनसभा में बदलना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि अदालत के मंच से हम अंग्रेज सरकार की अपवित्रता और असहयोग आंदोलन के उद्देश्य धूमधाम से गुंजित कर दें। 

 बोबड़े : बड़े धन्य है आप डाक्टर जी ! (हाथ जोड़ते हुए) राष्ट्र आपकी तेजस्वी प्रवृत्ति और त्यागमय जीवन-साधना को सदा स्मरण करेगा । आप सचमुच क्रांतिवीर हैं। 

 डॉक्टर हेडगेवार : यह प्रताप भारत की धरती का है। हम सब उसी भारत माता को प्रणाम करते हैं। (वह दोनों हाथ जोड़कर धरती को प्रणाम करते हैं।)

 दृश्य 3

[ अदालत में स्मैली न्यायाधीश के आसन पर उपस्थित है। ]

 स्मैली: मिस्टर हेडगेवार ! आपके मुकदमे को मैं ही सुनुँगा । दूसरी अदालत में मुकदमा भेजने की आपकी अर्जी कलेक्टर साहब के यहाँ से खारिज हो गयी है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं पहले से जानता था कि अंग्रेजों के राज में नियम और न्याय के अनुसार भारतीयों से बर्ताव कभी नहीं हो सकता। 

 स्मैली (दाँतों को पीसता हुआ) : अंग्रेजों के न्याय पर शक करते हो ?

 डॉक्टर हेडगेवार(व्यंग्यात्मक लहजे में) जो पराये देश में मनमाने ढंग से कब्जा करके बैठ जायें, उनके न्याय कर सकने पर भला कौन शक कर सकता है ? 

[ हेडगेवार के कहने का तात्पर्य था कि अंग्रेज न्याय कर ही नहीं सकते। मगर स्मैली को समझ में स्पष्ट नहीं हो पाया, सो वह उलझा-सा रह गया और अपने बाल सहलाने लगा।]

 स्मैली : (थोडी देर बाद) आपका वकील क्या अब कोई नहीं होगा ? मिस्टर बोबड़े भी नहीं दीख रहे हैं।

 डॉक्टर हेडगेवार: सही बात कहने के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ। भारत में अंग्रेजी राज से जूझने के लिए मेरी भुजाओं में अभी काफी दम है। 

 स्मैली: मुकदमे के बारे में आप कुछ कहना या पूछना चाहेंगे ?

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ ! मैं इन्स्पेक्टर गंगाधर राव आबाजी से जिरह करना चाहूँगा।

[ इन्स्पेक्टर आबाजी गवाहों के कठघरे में लाये जाते हैं ]

 डॉक्टर हेडगेवार : क्यों जी ! बिना टार्च के अंधेरे में आपने मेरे भाषण की रिपोर्ट कैसे लिख ली ? 

 आबाजी : मेरे पास टॉर्च थी !

 डॉक्टर हेडगेवारः (कड़ककर, आँखों में आँखें डाल कर ) जरा फिर से तो कहो!

 आबाजी : (मुँह लटकाकर)  आप एक मिनट में करीब बीस-पच्चीस शब्द बोलते थे, मैं वह आधे-अधूरे लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार: (स्मैली की ओर मुड़कर) मेरे भाषण में प्रति मिनट औसतन दो सौ शब्द रहते हैं। ऐसे नौसिखिए रिपोर्टर केवल कल्पना से ही मेरे भाषण को लिख सकते हैं।

 आबा जी : (हड़बड़ाकर) जो मेरी समझ में नहीं आया, दूसरों से पूछ कर लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार : (स्मैली से) मेरे भाषण की रिपोर्ट लिख सकने में इन्स्पेक्टर साहब की परीक्षा की अनुमति दी जाए । ताकि जाना जा सके कि यह कितने शब्द लिख सकते हैं। 

 स्मैली: (घबराकर) नहीं-नहीं-नहीं। यह जरूरी नहीं है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने तो अपने भाषणों में सारे हिन्दुस्तान को यही बताया कि जागो देशवासियों ! मातृभूमि को दासता के बंधनों से मुक्त कराओ ।

 स्मैली : आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं ?

 डॉक्टर हेडगेवार: मैंने यही कहा कि हिन्दुस्तान हम हिन्दुस्तानवासियों का है और स्वराज्य हमारा ध्येय है।

 स्मैली : आप जो कुछ कह रहे हैं, उसके मुकदमे पर नतीजे बुरे होंगे ।

 डॉक्टर हेडगेवार: जज साहब ! एक भारतीय के किए की जाँच के लिए एक विदेशी सरकार न्याय के आसन पर बैठे, इसे मैं अपना और अपने महान देश का अपमान समझता हूँ ।

 स्मैली : मिस्टर हेडगेवार ! आप न्याय का मजाक उड़ा रहे हैं । 

 डॉक्टर हेडगेवार; हिन्दुस्तान में कोई न्याय पर टिका शासन है, ऐसा मुझे नहीं लगता ।

 स्मैली : (आँखें फाड़कर) क्या ?

 डॉक्टर हेडगेवार : शासन वही होता है जो जनता का हो, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो। बाकी सारे शासन धूर्त लोगों द्वारा दूसरे देशों को लूटने के लिए चलाए गए धोखेबाजों के नमूने हैं।

 स्मैली : (हथौड़ा बजाकर गुस्से में चीखकर) मिस्टर हेडगेवार !

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ जज साहब ! मैंने हिन्दुस्तान में यही अलख जगाई कि भारत, भारतवासियों का है और अगर यह कहना राजद्रोह है, तो हाँ ! मैंने राजद्रोह किया है । गर्व से राजद्रोह किया है।

 स्मैली: बस - बस ! और कुछ न कहना !

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने इतना और कहा था जज साहब ! कि अब अंग्रेजों को सम्मान सहित भारत छोड़कर घर वापस लौट जाना चाहिए।

(दर्शक-वर्ग की ओर से तालियों की आवाज आती है) 

 स्मैली : (चीखकर) आर्डर - आर्डर । अदालत में दिया जा रहा  हेडगेवार का यह बचाव-भाषण तो इनके मूल-भाषण से भी ज्यादा राजद्रोहपूर्ण है।

 डॉक्टर हेडगेवार : (केवल हँस देते हैं । )

 स्मैली : (जल-भुनकर) हेडगेवार के भाषण राजद्रोहपूर्ण रहे है। इसलिए अदालत के हुक्म से इन्हें एक साल तक भाषण करने से मना किया जाता है और एक-एक हजार की दो जमानतें और एक हजार रुपये का मुचलका माँगा जा रहा है।

 डॉक्टर हेडगेवार : आपके फैसले कुछ भी हों, मेरी आत्मा मुझे बता रही है कि मैं निर्दोष हूँ । विदेशी राजसत्ता हिन्दुस्तान को ज्यादा दिन गुलाम नहीं रख पाएगी। पूर्ण स्वतंत्रता का आन्दोलन शुरू हो गया है। हम स्वराज्य लेकर रहेंगे। आपकी माँगी जमानत देना मुझे स्वीकार नहीं है ।

 स्मैली: अच्छा ! अगर ऐसा है, तो अदालत  हेडगेवार को एक वर्ष का परिश्रम सहित कारावास का दण्ड देती है।

 डॉक्टर हेडगेवार : ( हाथ उठाकर नारा लगाते हैं) वन्दे मातरम ! वन्दे मातरम !

(अदालत में उपस्थित दर्शक-वर्ग भी वंदे-मातरम कहना आरम्भ कर देता है। डॉक्टर हेडगेवार दो पुलिस वालों के साथ हँसते हुए कारावास जाने के लिए अदालत से बाहर आते हैं। अपार भीड़ उन्हें फूलमालाओं से लाद देती है ]

 डॉक्टर हेडगेवार : (भीड़ को संबोधित करते हुए) पूर्ण स्वातंत्र्य हमारा परम ध्येय है। देशकार्य करते हुए जेल तो क्या कालेपानी जाने अथवा फाँसी के तख्त पर लटकने को भी हमें तैयार रहना चाहिए। हम अब गुलाम नहीं रहेंगे । भारत माता जंजीरों में जकड़ी नहीं रहेगी। आजादी मिलेगी, जरूर मिलेगी, हम उसे लेकर रहेंगे।

 [नारे गूँज उठते हैं : भारत माता की जय !

 डॉक्टर हेडगेवार की जय ! ]


✍️ रवि प्रकाश  

बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) 

रामपुर  244901

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451 

 

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा -नया ट्रैफिक प्लान

 


अशर्फी देवी धीरे धीरे लगभग लड़खड़ाते हुए अपने घर से निकलीं और मौहल्ले की पतली सड़क को पार करके मुख्य बाजार में आकर ई रिक्शा का इंतजार करने लगीं। जब काफी देर तक कोई ई रिक्शा उन्हें आती-जाती नहीं दिखी तो उनका माथा ठनका। उन्होंने पास ही खड़े हुए एक स्कूटर वाले से पूछा "क्यों बेटा ! आज कोई ई रिक्शा आती जाती नहीं दिख रही ? क्या बात है?"

    स्कूटर वाला मुस्कुराया बोला "अम्मा ! आपको नहीं पता , शहर में नया ट्रैफिक प्लान चालू हो गया है । अब यहां कोई ई रिक्शा नहीं चलेगी ।"

        "क्या कह रहे हो ? "सुनकर अशर्फी देवी माथे पर हाथ रख कर रह गईं। हम तो सिवाय इसके और कैसे जाएं ? हमारे पास तो यही साधन है।"

    स्कूटर वाला बोला "अम्मा ! हमारे पास भी सिवाय स्कूटर के कोई दूसरा साधन नहीं था ।रोक तो प्रशासन ने इस पर भी लगा दी थी। वह तो यह कहिए कि हम लोग धरना प्रदर्शन नारेबाजी करके इस रोक को हटा दिए , वरना हमारा स्कूटर भी आज इस रोड पर नहीं चल रहा होता ।"

      अशर्फी देवी के घुटनों में दर्द रहता था। घर में अकेली रहती थीं। बच्चे सब बाहर थे। सुनकर बस यही कह पाईं "बेटा ! हम बूढ़े और बीमार लोगों की आवाज प्रशासन तक कौन पहुंचाएगा? हमारे लिए नारे लगाने वाला कौन है ?"

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा, रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 999 7615 451

बुधवार, 22 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ....नेतावीर


"नेतावीर" योजना अगर शुरू की जाए तो कैसा रहेगा ? योजना का उद्देश्य जैसा कि नाम से प्रकट हो रहा है, देश को अच्छे नेता प्रदान करना है । आजकल जिसे देखो विधायक और सांसद बनने के लिए खड़ा हो जाता है । चुनाव भी जीत जाता है और जनता से झूठे वायदे करके अथवा उसकी भावनाओं को भड़का कर पद प्राप्ति के बाद तिकड़म बाजी में जुट जाता है । नेतावीर योजना में ऐसा नहीं हो पाएगा ।

             सर्वप्रथम जिन लोगों को नेता बनना है अर्थात सांसद और विधायक आदि का चुनाव लड़ना है, उन्हें पॉंच वर्ष तक नेतावीर के कठिन प्रशिक्षण से गुजरना होगा। नेतावीर बनने के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त किए जाएंगे । यह केवल 25 वर्ष से 60 वर्ष आयु के व्यक्तियों के लिए होंगे अर्थात बूढ़े और ढल चुके व्यक्तियों का नेताओं के रूप में कोई भविष्य नहीं होगा । इन्हें जबरन राजनीति से रिटायर कर दिया जाएगा । 

       नेतावीर के लिए उन युवकों को प्रशिक्षण हेतु चुना जाएगा जो किसी गुंडा-बदमाशी के चलते जेल में सजा काटकर नहीं आए होंगे अर्थात अच्छे चाल-चलन वाले लोगों को राजनीति में प्रश्रय मिलेगा ।

     नेतावीर बनना कोई मामूली बात नहीं होगी । इसके लिए 5 वर्षों तक किसी प्रकार का कोई भत्ता या वेतन नहीं मिलेगा बल्कि उल्टे अपनी आमदनी का 10% देश को दान के रूप में देना पड़ेगा। जब आप देश की सेवा करने के इच्छुक हैं तो अपनी आमदनी का 10% देश को पहले दिन से देना शुरू कर दें ।  फिर उसके बाद 5 साल तक जनता के सुख और दुख में निरंतर भागीदारी निभानी होगी । 

        अंतिम संस्कार में कंधा देना पड़ेगा और विवाह आदि के कार्यों में आपकी सहभागिता नोट की जाएगी । सुबह से शाम तक आप कितने लोगों के सुख-दुख में हिस्सेदार बने, उनका हालचाल पूछने के लिए अस्पताल अथवा घर पर गए, यह भी देखा जाएगा। गली-मोहल्लों के चक्कर आपको प्रतिदिन लगाने होंगे तथा उसका विवरण भेजना पड़ेगा । इन सब को देखते हुए कुछ लोगों को नेतावीर का सर्टिफिकेट दिया जाएगा तथा बाकी लोगों को नेता बनने के लिए चुनाव में खड़े होने का अवसर मिलेगा । चुनाव में खड़े होने के बाद भी तथा चुनाव जीतकर सांसद और विधायक बनने के बाद भी यह पद देश की सेवा के लिए ही सुरक्षित रहेगा अर्थात नेतावीर बनने की प्रक्रिया के दौरान जो 10% अपनी आमदनी देश को देते थे, वह आपको सारी जिंदगी देनी पड़ेगी।  विधायक और सांसद बनने के बाद कोई वेतन भत्ता तो दूर की बात रही, आपको अपने पास से अपनी आमदनी का 10% देना पड़ेगा । 

      इतनी कठिन प्रक्रिया के बाद सांसद और विधायक बनने के लिए केवल अच्छे, भले और ईमानदार लोग ही आएंगे।  जिनका उद्देश्य राजनीति में पैसा कमाना है, वह तो दूर से ही राजनीति को प्रणाम करेंगे । वह लोग नेता तो दूर की बात रही नेतावीर भी नहीं बन पाएंगे । एक बार जो सांसद और विधायक बन गया, वह कभी भूल कर भी इस्तीफा देने की नहीं सोचेगा।  इतने पापड़ बेलकर जब पद मिलेगा, तो कौन उसे गॅंवाने की सोच सकता है ?

✍️रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत --- दिनभर दौड़ लगाती माँ और दस दोहे ----



कहाँ साँस लेने की फुर्सत ,दिनभर दौड़ लगाती माँ                           

सुबह हुई तो जैसे-तैसे ,बिटिया रानी जग पाई

जब जागी तो रोती-हँसती ,बस्ते को लेकर आई

छूट गई पानी की बोतल ,लेकर भागी जाती माँ


खुद दफ्तर जाने से पहले ,खाना और खिलाना है 

दफ्तर जाकर देर शाम तक ,अपना मगज खपाना है 

थक कर जब भी घर आती है ,दो कप चाय बनाती माँ

                   

होमवर्क की कॉपी पकड़े ,कुकर ध्यान में रहता है 

दिनभर भूख लगी है ,कोई चिल्लाकर ही कहता है

एक सीरियल मनपसंद पर ,वह भी देख न पाती माँ

कहाँ साँस लेने की फुर्सत दिनभर दौड़ लगाती माँ

----------------------------------            

                       (1)

बेटे-बहुओं को दिया , अपने  था जो पास

फिर जाने क्या सोचकर ,अम्मा हुई उदास

                        (2)

बेटे-बहुएँ चल  दिए , पकड़े  अपने हाथ 

बूढ़ा तन माँ का रहे ,बोलो किसके साथ

                       (3)

जिनके  पोछे मूत्र-मल , जागी  भर-भर रात

उनको फुर्सत अब कहाँ ,सुन लें माँ की बात

                         (4)

पोते - पोती   देखते , भरते   मन   में  राज

कल माँ का भी आएगा ,दादी का जो आज

                         (5)

फोटो पर माला चढ़ी ,हुआ मरण का भोज

माँ  को  अब  देना  नहीं , होगा  रोटी  रोज

                          (6)

कर्कश स्वर घर में बसे ,पैसों की तकरार 

माँ  बेचारी  सुन  रही ,जिंदा क्यों भू-भार 

                         (7)

अंत समय जब चाहिए , मन के मीठे बोल

बेटे - बहुएँ  आँकते , चूड़ी  की  बस  तोल

                          (8)

किससे अपना दुख कहे ,किसको दे-दे शाप

आँसू पीती माँ  पड़ी , खटिया  पर  चुपचाप 

                        (9)

बूढ़ी माँ को कौन अब ,रखता अपने साथ

ईश्वर   से   है   प्रार्थना , जाए  चलते  हाथ 

                         (10)

पुनरावृत्ति वही हुई ,फिर से वह परिणाम 

"बूढ़ी काकी" हो गया , वृद्धा माँ का नाम 


✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

शनिवार, 7 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---आवारा कुत्तों की समस्या


 आपने कभी आवारा कुत्तों को ध्यान से देखा है ? यह बिना मतलब के इधर-उधर घूमते रहते हैं । न मंजिल का पता ,न रास्तों का ज्ञान । जिधर भाग्य ले गया ,उधर चल दिए । न चलने का सलीका है ,न बैठने की सभ्यता है । इनके पास कोई जीवन दर्शन है, इसकी तो आशा ही नहीं की जा सकती । इसके विपरीत पालतू कुत्तों को देखिए ! घर से निकलते हैं तो नहा-धोकर बाल काढ़ कर कितने सलीके से सड़क पर उतरते हैं ! देखो तो दूर से पता चल जाता है कि कोई पालतू कुत्ता आ रहा है । ऐसा नहीं कि केवल गले में पट्टा और हाथ में पकड़ी हुई चेन ही इनकी पहचान है । वास्तव में अगर सभ्यता है ,तो केवल पालतू कुत्तों में ही है । वरना आवारा कुत्तों ने तो सभ्यता का नाम-निशान मिटा देने का ही मानो संकल्प ले रखा है ।

         आवारा कुत्ते एक समस्या के रूप में सभी जगह हैं। क्या गाँव ,क्या शहर ,क्या गली-मोहल्ले और क्या सड़क ! जिधर से गुजर जाओ ,यह  दिखाई पड़ जाते हैं । अच्छा-भला आदमी प्रसन्नचित्त होकर कहीं जा रहा है और देखते ही देखते उदासी और भय से ग्रस्त हो जाता है ।

             आमतौर पर आवारा कुत्ते झुंड में मिलते हैं । इकट्ठे होकर चार-पाँच आवारा कुत्ते टहलना शुरू करते हैं । इन्हें कोई फिक्र नहीं होती । दुनिया में सबसे ज्यादा मस्ती इनको ही छाती है । चाहे जिधर को मुड़ गए।  जिसको देखा ,मुँह फैला लिया। दाँत दिखाने लगे और वह बेचारा इस सोच में पड़ जाता है कि इन से अपनी जान कैसे बचाई जाए ?

            कुछ आवारा कुत्ते जरूरत से ज्यादा आवारा होते हैं । यह जब देखो तब मनचले स्वभाव के साथ विचरण करते नजर आते हैं। इनको देखकर आदमी की हालत पतली हो जाती है । कई बार यह लोगों को दौड़ा देते हैं लेकिन आदमी की रफ्तार से आवारा कुत्ते की रफ्तार ज्यादा तेज होती है । यह छलांग लगाकर उसे पकड़ लेते हैं। कई बार काट खाते हैं । 

       आवारा कुत्ते हमेशा कटखने नहीं होते । कुछ बेचारे इतने सीधे-साधे होते हैं कि बच्चे तक उन्हें कंकड़-पत्थर मार देते हैं और वह रोते हुए चले जाते हैं । कुछ आवारा कुत्तों को लोग प्रेमवश भोजन भी कराते हैं । कुछ लोग बिस्कुट खिलाते हैं। अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग आवारा कुत्तों से प्रेम करते हैं लेकिन किसी के अंदर यह हिम्मत नहीं आती है कि वह आवारा कुत्ते को गोद में उठाकर अपने घर पर ले जाकर पाल ले । वह पंद्रह मिनट के लिए आवारा कुत्ते से प्रेम करेंगे और बाकी पौने चौबीस घंटे आम जनता को परेशान करने के लिए आवारा छोड़ देंगे ।

        यह तो मानना पड़ेगा कि पालतू कुत्ता शरीफ होता है हालांकि जिन घरों में कुत्ता पाला जाता है ,उसके गेट के भीतर कोई आदमी घुसना पसंद नहीं पड़ता क्योंकि मालिक से पहले कुत्ता अतिथि की आवभगत के लिए आकर खड़ा हो जाता है। यद्यपि मालिक का कहना यही रहता है कि हमारा कुत्ता काटेगा नहीं । लेकिन कुत्ता तो कुत्ता है । अगर काट ले तो कोई क्या कर सकता है ? मालिक को नहीं काटेगा , इसके मायने यह नहीं है कि वह किसी को नहीं काटेगा । जब पालतू कुत्ता किसी मेहमान को काट लेता है ,तब भी मालिकों के पास बड़ा सुंदर-सा जवाब रहता है कि हमारे कुत्ते के काटने से घबराने की कोई बात नहीं है । इससे कोई खतरा नहीं है । 

            मगर समस्या यह है कि पालतू कुत्तों से तो बचा जा सकता है मगर आवारा कुत्तों से कैसे बचा जाए ? क्या आदमी सड़कों पर निकलना बंद कर दे या गलियों-मोहल्लों में न जाए ?

                   कई बार लोग दो-चार का झुंड बनाकर उन गलियों से जाते हैं जहां आवारा कुत्तों के पाए जाने की संभावना अधिक होती है । लेकिन यह भी समस्या का कोई समाधान नहीं है । कई बार आवारा कुत्ता जब दो-तीन लोगों को एक साथ देखता है तो और भी ज्यादा खुश हो जाता है तथा सोचता है कि आज थोक में काटने के लिए लोग मिल गए । वह इकट्ठा दो-तीन को काट लेता है ।

         नगरपालिका वाले अगर चाहें तो कुत्तों को पकड़कर एक "कुत्ता जेल" नामक स्थान पर ले जाकर बंद कर सकते हैं । कुत्ता-जेल में कुत्तों को खाना मुफ्त दिया जाता रहेगा लेकिन फिर वह किसी मनुष्य को नहीं काट पाएंगे । इस तरह आवारा कुत्तों की समस्या पूरी तरह हल हो जाएगी । दुर्भाग्य से न कुत्ता-जेल बन पाती है और न आवारा कुत्तों को पकड़ने की योजना क्रियान्वित हो पाती है । आवारा कुत्ते गलियों में आवारागर्दी करते हुए टहलते रहते हैं और शरीफ आदमी अपने घरों में बंद रहने के लिए मजबूर हो जाता है ।

✍️  रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा 

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी --नेत्रदान महादान


काल
: आधुनिक काल 

स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर 

पात्र 

वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष

पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष 

दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष 

राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष

कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है


              【 दृश्य एक 】


दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?


एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।

(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?

दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।

वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !

एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।

वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?

(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )

वृद्धा  अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।

पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !

वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो। 

पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।

एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।

वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?

दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।

पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?

पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है । 

पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?

एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।

पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?

दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।

वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो ! 

(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)


                     【दृश्य दो】


(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)

वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?

एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...

वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?

एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।

वृद्धा : (रोकर)  हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं। 

राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।

पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?

राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।

वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?

राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।

पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ? 

वृद्धा : (पड़ोसन से)  हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।

राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..

वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।

पड़ोसन : (कान पकड़कर)  मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।

वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।

(पर्दा गिर जाता है।) 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की बाल कहानी ----- कच्चा हाउस


बंद मोहल्ले में पतली गलियाँ थीं। सैकड़ों साल पुराना मोहल्ले का ढाँचा था । पुराने तरह के मकान बने हुए थे। रास्ता बस इतना था कि रिक्शा मजे से आ जाती थी । जब से कार का चलन हुआ ,वह बड़ी मुश्किल से मोहल्ले के अंदर आ पाती थी । आने के बाद फिर और कुछ निकलने के लिए जगह नहीं बचती थी ।

      वैसे तो मोहल्ले में पच्चीस-तीस घर होंगे। सभी घरों में एक-दो बच्चे जरूर हैं। लेकिन उनका आपस में मिलना सिवाय गली से निकलते समय हाय-हेलो करके हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। एक दूसरे के घरों में जाकर बैठने का रिवाज कम ही था । खेलने के लिए जगह भला अब किसके घर में बची थी ? पुराने समय के बड़े-बड़े आँगन अब लिंटर पड़ने के बाद छोटे-छोटे कमरों में बदल चुके थे ।

                  इसी बीच एक घटना हुई । एक सज्जन मोहल्ला छोड़कर महानगर में शिफ्ट हो गए । उनका मकान गिराऊ हालत में था। वह जिसको बेच कर गए ,उसने तुड़वा कर बनवाने का विचार बनाया । लेकिन मकान टूटने के बाद जब मलवा उठा तो उसके बाद न जाने क्या परिस्थितियाँ आ गईं कि आगे का काम रुक गया । वह जगह पूरे मोहल्ले में एकमात्र खाली मैदान बनकर बच्चों को उपलब्ध हो गयी । उसी का नामकरण बच्चों ने "कच्चा-हाउस" कर दिया । 

           कच्चे-हाउस में अब रोजाना सुबह से देर रात तक बैडमिंटन और क्रिकेट खेला जाने लगा । जिस समय भी कच्चे-हाउस के पास चले जाओ ,दस-बारह बच्चे खेलते हुए नजर आ जाएँगे । बच्चों में एक दूसरे से आत्मीयता बढ़ने लगी । रोजाना मुलाकात से उनमें अंतरंगता उत्पन्न हो गई । चार तरह की बातें भी बच्चे आपस में करने लगे । बस यूँ कहिए कि कच्चे-हाउस के कारण महफिल जुड़ने का एक बहाना मिल गया । दोस्ती पक्की होने लगी । पहले शायद ही कभी कोई बच्चा किसी दूसरे बच्चे से बात करता हो ,लेकिन अब तो सब एक दूसरे के गले में बाहें डाल कर कच्चे-हाउस के आसपास घूमते नजर आने लगे । 

            बच्चों में बैडमिंटन और क्रिकेट का शौक शुरू हुआ ,तो हर घर में रैकेट खरीदा जाने लगा । मोहल्ले की स्त्रियाँ जिनको कभी किसी ने बैडमिंटन खेलते नहीं देखा था ,वह अब नियमित रूप से बैडमिंटन का अभ्यास करने लगीं। यूँ समझिए कि कच्चा-हाउस महिलाओं की "किटी-पार्टी" का भी केंद्र बन गया । सारी गपशप इसी कच्चे-हाउस में आकर होती थी । 

             अकस्मात एक दिन खुशी के इस मौसम में एक व्यवधान आ गया । कुछ लोग बाहर से कच्चे-हाउस का निरीक्षण करने आए थे । उनकी बातचीत से पता चला कि वह कच्चा-हाउस खरीदने में रुचि ले रहे हैं। बच्चों ने उनकी बात सुन ली थी और उसके बाद से पूरे मोहल्ले में एक उदासी छाई हुई थी। सब बच्चे यह सोच कर परेशान थे कि अगर कच्चा-हाउस बिक गया और यहाँ पर नए खरीदार ने अपना भवन बना लिया तो फिर यह जो खेल और दोस्ती का केंद्र पहली बार मोहल्ले को नसीब हुआ है ,वह हाथ से निकल जाएगा ।

           बच्चों की उदासी देखकर उनके घरों के बड़े लोग भी चिंतित हो उठे । बच्चों के मम्मी-पापा विशेष रूप से इस बारे में चर्चा करने लगे । सब को लग रहा था कि सचमुच कच्चे-हाउस ने मोहल्ले में जो सक्रिय उत्साह उत्पन्न किया है ,वह कहीं समाप्त न हो जाए ! 

       फिर क्या था ,सब बच्चों के मम्मी-पापा एक जगह बैठे और सबने एक निर्णय लिया।  उसके बाद सारे मम्मी-पापा मिलकर कच्चे-हाउस के मालिक के पास गए । बातचीत की और लौटकर साथ में मिठाई का डिब्बा लेकर मोहल्ले में प्रविष्ट हुए । 

       बच्चों ने पूछा "पापा ! क्या समाचार लाए हैं ,जो मिठाई का डिब्बा भी हाथ में है ?"

           सब बच्चों के पापा ने सामूहिक स्वर में कहा "हमने कच्चा-हाउस मोहल्ले के बच्चों के लिए खरीद लिया है । अब यहाँ पर पार्क बनेगा और उसकी देखभाल सब परिवारों की एक सोसाइटी बनाकर की जाएगी ।"

       सुनते ही बच्चे खुशी से झूम उठे । कच्चे-हाउस में उस दिन खूब जमकर होली खेली गई । नृत्य हुए तथा तबले-बाजे और ढोलक के स्वर देर रात तक गूँजते रहे ।

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर

 उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल 99976 15451

गुरुवार, 17 मार्च 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का मुक्तक , कुंडलियां और चुनावी दोहे


हर तरफ मस्ती भरा हर वृद्ध हो हर बाल हो

रंग से पीला-गुलाबी हर स्वजन का गाल हो

रह न जाए कोई भी माधुर्य के मधु - भाव से

हाथ में पिचकारियाँ हों , रंग और गुलाल हो

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(1)

पिचकारी  जितनी  भरी ,उतनी छोड़े रंग

धार किसी की दूर तक ,रह जाते सब दंग

रह जाते  सब  दंग , किसी  ने गाढ़ा पोता

रहता  रंग अनूप , न हल्का किंचित होता

कहते रवि कविराय ,खेल लो होली प्यारी

दो दिन का त्यौहार ,रंग दो दिन पिचकारी

(2)

राधा  जी   हैं   खेलतीं ,  होली  कान्हा  संग 

दिव्य अलौकिक दृश्य यह ,यह परिदृश्य अनंग

यह  परिदृश्य  अनंग , रंग पिचकारी वाला

दिखता पीत गुलाल ,न जाने किसने डाला

कहते रवि कविराय, हटी युग-युग की बाधा

मिले  प्राण  से प्राण , श्याम से मिलतीं राधा 

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(1)

योगी-मोदी का जमा ,ऐसा बढ़िया रंग

सभी विपक्षी रह गए ,देख-देख कर दंग

(2)

बुलडोजर बाबा हुए ,बाइस के अवतार

अगले अब सौ साल तक ,इनकी ही सरकार

 (3)

राहुल बाबा हो गए ,पूरे अंतर्ध्यान 

कांग्रेस का ढूँढ़ते ,सब जन नाम-निशान 

 (4)

हुई प्रियंका वाड्रा ,ऐसे बंटाधार 

दो की संख्या रह गई ,छोटा शुभ परिवार

 (5)

मायावती प्रसन्न हैं ,आया तो है एक 

यूपी में अच्छी मिली ,यह भी मुश्किल टेक 

  (6)

ठुकराया तुष्टीकरण ,समझो श्री अखिलेश

समझ अपर्णा ने लिया ,सही-सही परिवेश

(7)

झाड़ू है पंजाब में , नायक हैं श्री मान 

दिल्ली में अब क्या लिखा ,किसे भाग्य का ज्ञान 

(8)

जीते यूपी चल दिए , मोदी जी गुजरात

इनकी किस्मत में लिखा ,भाषण बस दिन-रात 


✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 *मोबाइल 99976 15451*

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का हास्य-व्यंग्य -- अपमान समारोह


महोदय

होली के उपलक्ष्य में एक अपमान – समारोह का आयोजन किया जा रहा है , जिसमें आप अपमान सहित आमंत्रित हैं । समारोह निर्धारित समय के कम से कम दो घंटे बाद शुरू होगा । लेकिन आपको अगर अपमानित होना है ,तो समय से कम से कम पंद्रह मिनट पहले आकर स्टूल पर बैठना पड़ेगा । जब आपका नंबर आएगा ,तब आप लाइन में लगिए और मंच पर जाकर अपना अपमान – पत्र ग्रहण कर लीजिए । अगर आने में आपने देर की या लाइन में ढंग से नहीं लगे ,तो फिर उसी समय आपका नाम अपमानित होने वाले व्यक्तियों की सूची से काट दिया जाएगा ।

फूलों की माला कम बजट के कारण छोटी रखी गई है । अगर आपके गले में आ जाए तो पहन लेना वरना ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है । हाथ में लेकर काम चला लेना ।

शाल मँहगा है। चालीस रुपए में आजकल नहीं मिल रहा है। वैसे भी आपने अपमानित होने के लिए जो सुविधा- शुल्क दिया है ,वह इतना कम है कि उसमें शाल तो छोड़िए, रुमाल भी कहाँ से खरीद कर लाया जा सकता है !

आपका कोई प्रशस्ति पत्र पढ़कर नहीं सुनाया जाएगा ,क्योंकि आपके जीवन में ऐसा कुछ है ही नहीं, जिसे समाज के सामने प्रेरणा के तौर पर रखा जा सके या आपकी तारीफ की जा सके।आपको भी यह बात पता ही है तथा आप जानते हैं कि आपको अपमानित केवल जुगाड़बाजी के आधार पर किया जा रहा है ।अपमान- पत्र के साथ आपको चार सौ बीस रुपए का चेक भेंट किया जाएगा । यह चेक उसी दशा में दिया जाएगा ,जब आप आयोजकों को पहले से रुपए नगद पेमेंट कर देंगे ।

नोट : अगर मोटी धनराशि का सुविधा शुल्क देने के लिए कोई तैयार हो और पहले से पेमेंट करे तो हाथों-हाथ उसका भी अपमान- समारोह में अपमान कर दिया जाएगा।

निवेदक : अपमान समारोह समिति 

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत

*मोबाइल 999 7615 451*


मंगलवार, 8 मार्च 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष कल्याण कुमार जैन शशि की कृति कलम शतक की रवि प्रकाश द्वारा की गई समीक्षा-----देश के इतिहास की गरिमा का गान करती है 'कलम शतक'

कई साल पहले कल्याण कुमार जैन शशि जी ने 'कलम' नामक पुस्तक लिखी थी । उसमें 69 पद थे। 'कलम शतक'  में 31 पद बढ़ गए हैं यानि नाम के अनुरूप 100 पद हो गए हैं। यह सभी पद गेय हैं और इनका सस्वर पाठ जिन लोगों को शशि जी के मुख से कवि सम्मेलनों-गोष्ठियों आदि में सुनने का शुभ अवसर मिला होगा ,वह भली भांति जानते हैं कि अपने प्रवाह से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने की इनमें अपार शक्ति है । 80 वर्ष की आयु में भी जब शशि जी साहित्य-संसार को कुछ नया देते हैं ,तो पुस्तक के 99 वें पद में प्राण आ जाते हैं :-

थाम-थाम कर कलम चला हूँ,किंतु अभी न थकान है 

 हाथ नहीं काँपेंगे मेरे ,जब तक कलम जवान है

किंतु वहीं मन में उदासी छा जाती है जब अत्यंत विरोधाभास उत्पन्न करता हुआ यह अंतिम एक सौ वाँ पद पढ़ता हूँ:-

यह कोरे कागद हैं ,मैं तो भूलों का चिर दास हूँ 

अपने उत्तरदायित्वों से ,अब लेता अवकाश हूँ

शायद कोई आँके क्षमता ,मेरी मूक उड़ान की 

अंतिम पद में निराशा है ,पलायन है , नितांत व्यक्तिगत-सा बन गया है यह । पर व्यक्तिगत क्यों ? जो कलम कभी नहीं रुकती ,जिसके शब्दकोश में अवकाश नामक शब्द नहीं है, वही तो शशि जी की कलम का नाम है । कलम पर सबसे बड़ा अत्याचार है उससे रुक जाने को कहना ।

     'कलम शतक' मूलतः लेखनी की शक्ति को आधार मानकर लिखा गया है। पर इसकी दृष्टि विराट है। इसकी कलम किसान का हल भी है :-

हल में भूमि चीरती कीली ,सच्ची कलम किसान की

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की 

वस्तुतः कवि सत्य और न्याय की पक्षधरता का विराट मूल्य कलम के माध्यम से पाठकों को देना चाहता है । उसकी कामना है कि कलम असत्य ,अन्याय और अनाचार के विरुद्ध संघर्ष करे । भारत के गौरव और संस्कृति के श्रेष्ठ मूल्यों की वंदना करे , राष्ट्रभक्ति का जयघोष करे और विश्व शांति के पक्ष में अपना मत दे। कलम महज तुकबंदी नहीं है । इसमें कवि का वह आदर्श गूँजता है ,जो किसी भी कवि का होना चाहिए । कलम में एक समग्र जीवन दर्शन है। कलम में चिंतन का बाहुल्य है । कलम में कलम का धर्म है । कलम में कलमकार का आदर्श है । कलम मानवता का महामंत्र है। कलम राष्ट्र की ओजस्वी वाणी है । कलम इस देश के इतिहास की गरिमा का गान करती है । कलम विचार की श्रेष्ठतम ऊँचाई को हमारे सामने रखती है । 

            शशि जी की कलम सूर और तुलसी की कलम को नमन करती है ( पद 10 )

रघुवंश ,महाभारत और चंद्रगुप्त युग के महान भारतीय वैभव का स्मरण करती है ।

वेदव्यास की प्रतिभा का स्मरण करती है( पद 18 )

कालिदास की ज्ञान-रश्मि का बोध कराती है (पद 19)

तुलसी को बारंबार प्रणाम करती है (पद 20)

मीरा के कृष्ण-प्रेम की गाथा गाती है( पद 21)

कबीर की निर्भयता की प्रशंसा करती है (पद 32)

सावित्री के पतिव्रत-धर्म के कौशल की कथा कहती है (पद 24)

नालंदा आदि के वैभव को याद करती है (पद 25)

नेत्रहीन कलमकार मिल्टन की लिखी कृति _पैराडाइज लास्ट_ के कमाल को सराहती है( पद 26)

जार-सरकार की क्रूरता की निंदा करती है और उसके विरुद्ध लड़ने वाले कलाकारों की वंदना करती है (पद 27)

कम्युनिस्ट माओ की व्यक्ति पूजा को अस्वीकार करती है (पद 28)

कविवर भूषण द्वारा औरंगजेब को निर्भीकता पूर्वक दी गई चुनौती की ओजपूर्ण चर्चा करती है (पद 29)

गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों के महान बलिदान के प्रति अपना शीश झुकाती है (पद 30)

स्वतंत्रता संग्राम के नायक बहादुर शाह जफर के क्रांति कर्म को नमन करती है( पद 31) 

लक्ष्मीबाई के स्वातंत्र्य संघर्ष की महानता की यशोगाथा कहती है( पद 32 )

ईसा की करुणा मुक्त कंठ से कहती है (पद 34) 

प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान को सराहती है (पद 37)

स्मरणीय कृतियों के अंतर्गत गीतांजलि, साकेत

उर्वशी ,प्रियप्रवास ,कामायनी ,हल्दीघाटी और मधुशाला की श्रेष्ठता 

की चर्चा करती है( पद 38 )

रसखान के कृष्ण-भक्ति काव्य की मधुरता पर मोहित होती है (पद 41) 

ट्राटस्की और खलील जिब्रान की ओजस्वी पुस्तकों की चर्चा करती है (पद 45)

 कविवर चंद और चौहान के स्वर्ण युग का स्मरण कराती है ,जब लेखनी ने युग बदला था ।(पद 61)

ऊदल और मलखान के आल्हा  के आह्लाद में डूब जाती है (पद 62)

राजस्थान के जौहर ,जो वस्तुतः सती प्रथा का समर्थन नहीं करती ,की अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में स्मृति दिलाती है (पद 63)

वीर महाराणा प्रताप की देशभक्ति की गाथा गाती है (पद 64)

पंडित नेहरु की जनप्रियता का बोध कराती है (पद 66)

कवि फिरदौस की सत्य-प्रियता का यश गाती है( पद 67 )

गालिब को एक कवि के रूप में श्रद्धा से स्मरण करती है (पद 68)

खजुराहो की कामुक कृति की अशिष्टता को मानव-गरिमा और मर्यादा के विरुद्ध मानती है (पद 72)

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने को ऐतिहासिक रूप से असभ्य एवं अमानुषिक घटना के रूप में याद करती है (पद 73)

शीरी-फरहाद के प्यार को भी याद करती है (पद 81)

 गाँधी के नमक-सत्याग्रह का स्मरण (पद 88) 

लुकमान हकीम की विद्वत्ता (पद 95)

वाल्मीकि ,अरविंद ,दयानंद ,विवेकानंद की दार्शनिक ज्ञान वृष्टि का पवित्रता पूर्वक स्मरण करती है(पद 96)

और कह रही है कि अहिंसावादी बुद्ध-महावीर के अनुयाई होने के बावजूद पाकिस्तान की चुनौती हम स्वीकारेंगे (पद 97)

            पाठक महसूस करेंगे कि उपरोक्त पदों में कलम अथवा कलम की सीधी-सीधी महत्ता कम ही कही गई है । वस्तुतः कलम को माध्यम मानकर कवि ने चिंतन पक्ष को प्रस्तुत किया है और इतिहास ,धर्म ,संस्कृति, प्रखर राष्ट्रीयता और विश्व प्रेम आदि विषयों पर हमें हमारी विरासत के मूल्यवान तत्वों से परिचित कराया है । कलम भारतीय इतिहास के यशस्वी महापुरुषों के चित्र पाठक के सामने रख पाई है, यह एक बड़ी उपलब्धि है।

             'कलम' में कलम का धर्म कवि की कलम से कागज पर कितने सुंदर रूप से उतारा गया है:-

कलम व्यष्टि है ,कलम सृष्टि है ,निर्गुण है, निष्काम है 

जिसमें सत्यम शिवम सुंदरम ,कलम उसी का नाम है  ( पद 5 )

कलम की निर्भयता और प्रखरता को प्रकट करने वाली कवि की यह पंक्तियाँ कितनी प्रेरणादाई हैं :-

 यों तो जिसके पास कलम है कुछ लिखता ही दिखता है

 लिखना उसका है जो सिर से कफन बाँध कर लिखता है

 हुई कहाँ परवाह कलम को तख्त-ताज-सुल्तान की 

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की (पद 16)

        वास्तव में देखा जाए तो हर पद में दोहराई जाने वाली अंतिम पंक्ति अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की जिन पदों में बहुत प्राणवान हो उठी है ,पद 16 उसमें से एक है। यद्यपि यह सच है कि हर जगह अंतिम पंक्ति जो कि आक्रोश पूर्ण और संघर्ष की मुद्रा में है , अनेक कोमल अभिव्यक्तियों के साथ तालमेल भी बिठा पाती है । बहरहाल आगे चलते हैं और पाते हैं कि कितनी सादगी से कवि सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के लेखकीय आदर्श को कह देता है । इसका एक अच्छा नमूना देखिए :-

 समदर्शी है कलम ,कलम का अंदर-बाहर एक है 

 कोई मजहब नहीं कलम का, मंदिर-मस्जिद एक है

 इसके लिए बराबर ही है बात राम-रहमान की 

 अत्याचार कलम मत सहना तुझे कसम ईमान की

           कुल मिलाकर कलम शशि जी की कलम से जन्मी वह रचना है जिसे पढ़कर मन को काव्य का आनंद ही नहीं मिलता अपितु विचार जगत को भी पर्याप्त खुराक मिलती है । अतीत से कटे ,संस्कृति को विस्मृत किए हुए और सांप्रदायिकता के विष में डूबे देश को शशि जी की कलम पढ़ना जरूरी लगता है । कलम में कलमकार का धर्म और रचनाकार का जो आदर्श प्रस्तुत किया गया है ,वह विशेष रूप से अभिनंदनीय है । कलम का चलना, जोरदार चलना, जहाँ चाहिए वैसे चलना ,परिणामों के प्रति बेपरवाह हुए चलना , निर्भय-निर्भीक और निष्पक्ष होकर कलम का चलना , यही कलम शतक का संदेश है।



कृति : कलम शतक (काव्य)

कवि : कल्याण कुमार जैन शशि 

 संस्करण : प्रथम 1987

 प्रकाशक : जय तोष प्रकाशन, गुइन रोड, अमीनाबाद, लखनऊ

 मूल्य : ₹5 , पृष्ठ : 46

समीक्षक : रवि प्रकाश, 

बाजार सर्राफा

 रामपुर ( उत्तर प्रदेश), भारत

 मोबाइल 99976 15451



मंगलवार, 18 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य -- चुनाव के मौसम में नाराज फूफा


इधर चुनाव का मौसम आया ,उधर फूफा नाराज होने लगे । एक शादी में दूल्हे के मुश्किल से दो-चार फूफा होते हैं । उनको मनाने में जो पसीने छूटते हैं ,वह तो दूल्हे का बाप ही जानता है । फूफा भी समझते हैं कि इस समय नाराज हो गए तो मनाने के लिए ससुराल से चार जनों का प्रतिनिधिमंडल जरूर आएगा । फिर उसके सामने मांगपत्र रखा जाएगा । फूफा नाक चौड़ी करके कहेंगे कि हमारा कोई मान-सम्मान ही नहीं रहा । हमारा भी तो एक एजेंडा है । हमें भी तो समुचित आदर मिलना चाहिए । यह क्या कि शादी हो रही है और हमारे लिए न नया सूट सिलवाया गया ,न हमें मफलर दिया गया और न जूते खरीदवाए गए । कुछ फूफा गले में सोने की चेन की मांग करते हैं । कहते हैं, हम शादी में तब तक भाग नहीं लेंगे, जब तक हमारे गले में सोने की मोटी चेन ससुर जी नहीं पहना देंगे !

         कुछ ऐसा ही हाल चुनाव के समय हो जाता है । सबसे ज्यादा बड़े वाले फूफा जी नाराज हैं । बड़े वाले फूफा अर्थात वह महारथी जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट मांगा था, मगर नहीं मिला । अब फूफा बिखरे पड़े हैं । किसी की आँख से आँसू बह रहे हैं, किसी की आँखें अंगारे बरसा रही हैं। कोई अपने समर्थकों के साथ घिरा हुआ षड्यंत्र रच रहा है ,तो कोई अकेले में आत्ममंथन करने में व्यस्त है । कुछ लोग माइक के सामने हैं । कुछ माइक को देखकर  छह फीट पीछे हट जाते हैं । मगर मुंह खुले हुए हैं । यह तो जरूर कहते हैं कि हमारी ससुराल का मसला है , हम आपस में निपटा लेंगे। मगर कैसे निपटेगा, यह नहीं बताते।

         उधर बुआ सबसे ज्यादा दुखी दिखती हैं । उन्हें डर है कि कहीं रूठे हुए फूफा अपना गुस्सा उनके ऊपर न उतार दें अर्थात चालीस साल पुरानी शादी का समझौता टूट न जाए । बारात चलने को है । बैंड बाजे वाले आ चुके हैं लेकिन फूफा टस से मस नहीं हो रहे । कहते हैं ,हमारा मान-सम्मान दो कौड़ी का हो गया । ससुराल पक्ष उनकी आवभगत में लगा हुआ है । भैया ! मान जाओ । शादी के समय इतना नखरा नहीं करते । बहुत कर चुके ! अब रस्म पूरी हो गई ! तुम्हें रूठना था ,थोड़ी देर रूठे। अब ढंग के कपड़े पहनो ,दाढ़ी बनाओ ,बालों में तेल-कंघी करो और सज-संवर कर दूल्हे के बराबर में खड़े हो । नकली मुस्कान ही सही लेकिन फोटो में मुस्कुराते हुए नजर आओ !

                    कई लोग फूफा की समस्या से जूझने के लिए कुछ अलग क्रांतिकारी प्रकार के विचार रखने लगे हैं । उनका कहना है कि फूफाओं को चुनाव के समय मनाने की कोई जरूरत नहीं है । इन्हें इनके हाल पर छोड़ देना चाहिए । जब देखो तब कोई न कोई समस्या लेकर खड़े हो जाते हैं । जैसे कि दूसरी पार्टी वालों की सरकार बन जाएगी तो धरती पर स्वर्ग उतर आएगा ? तुम्हारा सांसद या विधायक अगर किसी दूसरी पार्टी का बन भी गया तो कौन से आसमान से तारे तोड़ कर ले आएगा ? अब तक किसी ने क्या कर लिया जो अब कर लेगा ? 

       लेकिन फूफा को तो सारा गुस्सा अपनी ससुराल पर ही उतारना है । हमारी पार्टी, हमारी सरकार ,हमारे नेता ,हमारा उम्मीदवार जब तक नाक न रगड़े ,तब तक हम वोट डालने नहीं जाएंगे । मतदाताओं में जो मठाधीश बैठे हुए हैं ,वह भी किसी फूफा से कम नहीं हैं। बहुत से मुद्दे हैं ,जिन पर आग जलाकर फूफागण खाना पका रहे हैं। कुछ फूफाओं को विरोधी पार्टी के लोग हवा दिए हुए हैं । इन्हें घर का विभीषण समझा जाता है । इन विभीषण-टाइप फूफाओं का संबंध अपनी ससुराल से ज्यादा दूसरों की ससुराल से है । विरोधी पक्ष की ससुराल वाले उनका भाव रोजाना बढ़ाते हैं । कहते हैं कि आपसे ज्यादा महान आदमी तो इस संसार में आज तक पैदा ही नहीं हुआ ! खेद का विषय है कि आपकी पार्टी ने आपके "फूफत्व" को कभी नहीं पहचाना ! 

          कुछ फूफाओं को सीधे-सीधे दूसरी शादी करने का निमंत्रण विरोधी पक्ष की ससुराल से मिल जाता है । कुछ फूफा नाराज होने के चक्कर में अपनी नाराजगी दिखाते-दिखाते जनता की निगाह में विदूषक की भूमिका निभाने लगते हैं । उनका खूब मजाक बनता है । लेकिन वह पहचान नहीं पाते । लोग कहते हैं कि फूफा ! अपने सिर पर दूल्हे की एक पगड़ी तुम भी पहन लो और फूफा सचमुच यह समझते हुए पड़ोसी द्वारा उपलब्ध कराई गई दूल्हे की पगड़ी पहनकर खड़े हो जाते हैं मानो वह पच्चीस साल के नवयुवक हों। पड़ोसी खूब मजे ले रहे हैं । कहते हैं वाह फूफा ! हाय फूफा ! डटे रहो फूफा ! कोई कहीं से एक मरियल सी घोड़ी ले आया है । फूफा उस पर बैठ जाते हैं । चार-छह लड़के ड्रम बजाते हुए उनका जुलूस निकाल देते हैं।

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत

 मोबाइल 99976 15451

सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य --मामूली आदमी और आम चुनाव

 


 हमारे मित्र ने एक सज्जन की ओर इशारा करके हमें बताया-" जानते हो इनके ब्रीफकेस में कितने रुपए हैं ? "

     हमने कहा "हम क्या जानें ! आप ही बताइए ?"

      उन्होंने कहा "पूरे चालीस लाख रुपए हैं । अब बताओ, किस काम के लिए यह लिए-लिए घूम रहे हैं ?"

      हमने फौरन अपनी बुद्धि दौड़ाई और जवाब दिया "विधानसभा के चुनाव में खर्च की अधिकतम सीमा चालीस लाख रुपए है। अतः जरूर यह सज्जन चालीस लाख रुपए लेकर घूम रहे होंगे । ताकि टिकट-प्रदाताओं को यह संतुष्ट किया जा सके कि उनकी जेब में चालीस लाख रुपए रहते हैं ।"

                  हमारे मित्र हमारा उत्तर सुनकर व्यंग्यात्मक दृष्टि से हँस पड़े । बोले "आप अभी तक चुनाव का गणित नहीं समझ पाए ?"

       हमने कहा "आप ही समझा दीजिए ।"

वह बोले "यह चालीस लाख रुपए तो टिकट-प्रदाताओं को टिकट देने के लिए प्रसन्न करने हेतु हैं । इन चालीस लाख रुपयों से जब टिकट-प्रदाता प्रसन्न हो जाएंगे ,तब खर्चे का काम आगे बढ़ेगा।"

      हमने चौंक कर कहा "अगर टिकट मांगने में ही चालीस लाख रुपए खर्च हो जाएंगे तब तो विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अस्सी लाख रुपए चाहिए ? क्या कोई व्यक्ति इतना मूर्ख है कि अस्सी लाख रुपए खर्च करके चुनाव लड़ने का जुआ खेले ? अगर हार गया ,तब तो बर्बाद हो जाएगा ! क्या बैंक से लोन मिल जाता है ?"

          अब हमारे मित्र बुरी तरह हमारे ऊपर क्रुद्ध होने लगे । बोले "जब राजनीति की चर्चा चले ,तब 40 और 80 लाख जैसी छोटी रकम पर अटकना नहीं चाहिए। यह तो इसी प्रकार से तुच्छ धनराशि है ,जैसे कोई व्यक्ति गुटखा खाता है और थूक देता है। थोड़ी देर का आनंद है । अगर दाँव लग गया तो पाँच साल तक सितारा बुलंद रहेगा और अगर हार गए तो कोई खास नुकसान नहीं होता ।"

      हमने पुनः प्रश्न किया "आप अस्सी लाख रुपए को तुच्छ धनराशि कह रहे हैं ?"

     वह कहने लगे " अस्सी लाख रुपए तो कुछ भी नहीं , एक-दो करोड़ रुपये कहिए। चुनाव में हमारे और आपके जैसे मामूली आदमी थोड़े ही खड़े होते हैं । न ही उनको पार्टियाँ टिकट देती है । यह तो धनपतियों का खेल है । हमें और आपको तो केवल वोट डालना है । जो अच्छा लगे ,उसे वोट डाल देना । "

     हमने कहा "यह भी आप सही कह रहे हैं। यह चुनाव भी बड़ी ऊँची चीज है । कहलाता आम चुनाव है ,लेकिन आम आदमी की पहुँच से बाहर है ।"

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----दूध की धुली चयन प्रक्रिया

 


मंत्री जी दूध के धुले थे।  सभी मंत्री दूध के धुले होते हैं लेकिन हम जिन मंत्री जी की बात कर रहे हैं वह एक बाल्टी के स्थान पर दो बाल्टी दूध से प्रतिदिन स्नान करते थे। अतः वह विशेष रूप से दूध के धुले हुए कहलाएंगे । जब मंत्री जी दूध के धुले हैं तो स्पष्ट है कि उनके उच्च अधिकारी भी दूध के धुले ही थे अर्थात वह भी एक बाल्टी दूध से प्रतिदिन स्नान करते थे । दूध से स्नान करने में समय ज्यादा लगता है । आम आदमी पानी की बाल्टी से नहा लेता है । इसमें दो - चार मिनट लगते हैं लेकिन दूध से स्नान करने में कम से कम तीन घंटे लगते हैं। इसीलिए जो लोग दूध के नहाए हुए होते हैं, उनको जब भी फोन करो अथवा उनके दरवाजे की कुंडी खटखटाओ तो उत्तर यही मिलता है कि साहब बाथरूम में हैं अर्थात दूध से स्नान कर रहे हैं ।

        खैर ,विषय सरकारी नौकरी में नियुक्ति की चयन प्रक्रिया का है । मंत्री जी की हार्दिक इच्छा थी कि चयन प्रक्रिया दूध की धुली हुई हो अर्थात पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी हो । अधिकारियों के सामने उन्होंने अपना विचार रखा कि सरकारी भर्ती में चयन प्रक्रिया पारदर्शी कैसे हो ?

          सर्वप्रथम मंत्री जी ने लिखित परीक्षा का विचार प्रस्तुत किया। तुरंत अधिकारियों ने आपत्ति लगा दी । कहने लगे "आजकल पेपर लीक होने का मौसम चल रहा है । ऐसे में लिखित परीक्षा आयोजित करने का जोखिम उठाना ठीक नहीं है । इसके अलावा लिखित परीक्षा में इस बात की भी संभावना रहती है कि अभ्यर्थी के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति आकर पेपर दे जाए और मामला गड़बड़ी युक्त हो जाए । सॉल्वर गैंग चारों तरफ घूम रहे हैं ।"

     अधिकारियों की बात मंत्री जी के समझ में आ गई । फिर पूछने लगे कि अब क्या किया जाए ?

     अधिकारियों ने कहा " साहब ! हम लोग साक्षात्कार के माध्यम से अगर सरकारी नौकरी में नियुक्तियां करें तो इसमें गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती । अभ्यर्थी हमारे अधिकारियों के सामने बैठा होगा और हमारे अधिकारी उस से सामने से प्रश्न करेंगे । इसमें धांधली नहीं हो सकती ।"

        मंत्री जी कुछ सोचने लगे तो अधिकारी समझ गए कि मंत्री जी के मन में क्या प्रश्न चल रहा है । तुरंत उन्होंने उत्तर दिया "सर ! घबराने की कोई बात नहीं है । आज हमारे पास दूध के धुले हुए अधिकारी प्रत्येक तहसील स्तर पर बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। दूध से नहाने की प्रवृत्ति चारों तरफ फैली हुई है । साक्षात्कार के द्वारा निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से चयन करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी । हमारे दूध से धुले हुए अधिकारी सारी स्थिति संभाल लेंगे ।"

       अब पुनः सोचने की बारी मंत्री जी की थी । कहने लगे "क्या सभी अधिकारी अब दो - दो बाल्टी दूध से नहाते हैं ?"

       "नहीं सर ! केवल एक बाल्टी दूध से नहाते हैं । दो बाल्टी दूध से तो केवल आप ही नहा सकते हैं ।"

       "लेकिन एक बाल्टी दूध भी तो बहुत महंगा है ! कहां से आता है ?"

       "वहीं से जहां से आपका दो बाल्टी दूध आता है ।"

      सुनकर मंत्री जी झेंप गए । उन्होंने फिर दूध के बारे में कोई सवाल नहीं किया । मंत्री जी का अगला प्रश्न था-" साक्षात्कार में क्या पूछोगे ?"

       अधिकारियों ने उन्हें समस्त योजना से अवगत कराया । कहा " साक्षात्कार बहुत उच्च कोटि का रहेगा । हम इसी में प्रैक्टिकल परीक्षा भी ले लेंगे।"

       " प्रैक्टिकल परीक्षा कैसी ? "-मंत्री जी का अगला सवाल था ।

         "सर ! प्रैक्टिकल परीक्षा बहुत जरूरी है । हम अभ्यर्थी के सामने सेब ,केला, अमरूद और अनार रखेंगे तथा उससे पूछेंगे कि चारों फलों के नाम बताओ । जो जितनी जल्दी जवाब  दे देगा वह उतना ही कार्यदक्ष माना जाएगा ।"

        मंत्री जी सुनकर खुश हो गए । कहने लगे "यह तो बहुत अच्छी प्रैक्टिकल परीक्षा होगी । साक्षात्कार में क्या पूछोगे ?"

        अधिकारियों ने कहा "प्रत्येक अभ्यर्थी से उसका नाम ,माता-पिता का नाम ,जिले, तहसील का नाम, घर का पता पूछा जाएगा । ऐसा करते समय हम अभ्यर्थी की बॉडी-लैंग्वेज को नोट करेंगे तथा उसके आधार पर साक्षात्कार के अंक दिए जाएंगे ।"

      मंत्री जी अधिकारियों की बात से खुश हुए। कहने लगे "ठीक है ! दूध के धुले अफसरों की तलाश करो और उन्हें इंटरव्यू कमेटी में शामिल करके साक्षात्कार तथा प्रैक्टिकल परीक्षा पर आधारित दूध की धुली चयन प्रक्रिया संपन्न की जाए ।"

✍️ रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश), भारत,

मोबाइल 99976 15451

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---- गृहस्वामी का सहायता प्राप्त घर


       "एतद् द्वारा आपको सूचित किया जाता है कि अनेक बार वाट्स एप द्वारा आप को नोटिस देने के बाद भी आपने समुचित उत्तर नहीं दिया । अतः आपके घर का प्रबंध अपने हाथ में लेते हुए नियंत्रक नियुक्त किया जाता है ।" अधिकारी का पत्र पढ़ने पर गृहस्वामी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ । यह बात तो सात-आठ साल से चल ही रही थी कि एक दिन सरकार हमारा घर हड़प लेगी । 

      "आपने तो हमें कोई वाट्स एप नहीं किया ? "-गृह स्वामी ने अधिकारी से पत्र लेते हुए प्रश्न किया ।

      "हमने आपके सहायताप्राप्त कर्मचारी को वाट्स एप  कर दिया था। क्या आप उस से सूचना प्राप्त नहीं करते ? यह आपका दोष है कि आप अच्छे संबंध नहीं रखते ।"-अधिकारी का दो टूक जवाब था । गृहस्वामी ने अधिकारी से न उलझने में ही खैरियत समझी ।

               वह कितनी सुहानी घड़ी थी जब सरकार ने योजना बनाई थी कि बेरोजगारी हटाने के लिए , श्रमिकों को उनके परिश्रम का उचित मूल्य देने के लिए तथा साथ ही साथ सभी के घरों के सुचारू संचालन के लिए हर घर में एक कर्मचारी का वेतन सरकार अपने खजाने से देगी । पूरी कॉलोनी सरकार की इस योजना के अंतर्गत देखते ही देखते सहायता प्राप्त घर वाली कॉलोनी बन गई । अब हर घर में एक सहायता प्राप्त कर्मचारी था । उस कर्मचारी को सरकार से वेतन मिलता था । वेतन भी ऐसा कि मकान मालिक ललचा उठे कि काश उसकी भी उतनी ही आमदनी होती ! वास्तव में सब मकान मालिक धनवान नहीं थे । कुछ की आर्थिक स्थिति खराब थी  लेकिन सबके घरों में एक-एक कर्मचारी पहले से था । अब उसका वेतन सरकार देती थी । इस निर्णय से मकान मालिक भी खुश थे और कर्मचारी तो खुश होना ही चाहिए थे ।आखिर वेतन वृद्धि उनकी ही हुई थी । उनकी ही नौकरी में स्थायित्व भी आया था । 

       बात यहाँ तक रहती तो ठीक थी लेकिन अधिकारियों की नजरें बदल गईं। अब उनकी नजर इस बात पर थी कि सहायता प्राप्त घरों की कालोनियों को किस प्रकार हड़पा जाए ?  व्यक्तिगत बातचीत में अधिकारी खुलकर कहने लगे कि जब हमारे द्वारा प्रदत्त वेतन से आपके कर्मचारी का खर्चा चल रहा है तो घर भी हमारा ही हुआ ? गृह स्वामी इस तर्क का विरोध करते थे और कहते थे कि वेतन देने का मतलब यह नहीं है कि घर सरकार का हो गया ? आप वेतन दे रहे हैं ,यह अच्छी बात है। हम विरोध नहीं करते , लेकिन हमारे घर को हड़पने की योजना अगर आप बनाते हैं तो यह अमानत में खयानत वाली बात होगी । यह विश्वासघात होगा । यह अधिकारों का दुरुपयोग होगा ..आदि आदि । अधिकारियों के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। वह चिकने घड़े थे । योजनाएं और षड्यंत्र रचते रहे । 

      प्रारंभ में कर्मचारी का वेतनबिल मकान मालिक को सरकार के पास भेजना होता था। इस कार्य के लिए सरकार ने हर जिले में एक "सहायता प्राप्त गृह-अधिकारी" नियुक्त किया हुआ था । गृह-अधिकारी वेतनबिल के अनुसार चेक काट कर गृह स्वामी को भेज देता था । गृहस्वामी उसे बैंक में कर्मचारी के खाते में जमा कर देते थे । उसके बाद गृह स्वामी का कार्य बढ़ने लगा । उसे कर्मचारी की वेतन-वृद्धि ,अवकाश-विवरण तथा योग्यता में वृद्धि संबंधी अनेकानेक सूचनाएं समय पर जिला गृह अधिकारी को भेजनी पड़ती थीं। अगर एक दिन की भी भेजने में देर हो जाए जो गृह-अधिकारी कुपित हो जाता था । गृह स्वामी के अधिकारों का बुरा हाल यह था कि अगर कर्मचारी को कोई छुट्टी लेनी होती थी तो वह अब तक गृह स्वामी से पूछता था लेकिन अब उसे गृह स्वामी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी । वह जब चाहे ,जितनी चाहे छुट्टियाँ ले सकता था ।उसके वेतन में कटौती करने का कोई अधिकार गृह स्वामी को नहीं रहा। कारण वही था कि वेतन सरकार द्वारा दिया जाता है । अब स्थिति यह थी कि कर्मचारी जब चाहे छुट्टी लेकर घर बैठ जाए और जब चाहे काम पर लौट आए । काम पर लौट आने के बाद भी घर का काम आधा-अधूरा पड़ा रहता था । 

            सरकार ने एक नियम बना दिया था कि गृहस्वामी कर्मचारी को डाँट नहीं सकता था। कार्य न करने के लिए उसके वेतन से कटौती भी नहीं कर सकता था। कर्मचारी का अधिकार था कि वह चाहे तो काम करे, चाहे तो न करे । 

           एक बार एक गृहस्वामी ने अपने सहायता-प्राप्त कर्मचारी से कहा कि मेरे लिए एक कप चाय बना दो । कर्मचारी ने साफ इंकार कर दिया। बोला "मैं इस समय उदास हूँ। चाय नहीं बनाऊंगा ।"

     गृह स्वामी ने पूछा " उदासी किस बात की है ?"

     कर्मचारी बोला "मेरी पत्नी हाई स्कूल में फेल हो गई हैं ।अतः मैं उदास हूँ। "

        "मगर यह तो दस दिन पुरानी बात हो चुकी है । अब उदासी छोड़ो और चाय बनाना शुरू कर दो ।"

      कर्मचारी बोला " इतना बड़ा झटका अगर आपको लगा होता तो दर्द होता ।लेकिन आप लोग तो निर्मम,शोषक और उत्पीड़क हो। आपको कर्मचारी की भावनाओं का कोई ख्याल ही नहीं है ।"

           बेचारा गृहस्वामी अपना सा मुँह लेकर रह गया । उसके बाद से उसने कर्मचारी से कभी भी चाय बनाना तो दूर की बात रही ,एक गिलास पानी भी लाने के लिए नहीं कहा। पता नहीं एक गिलास पानी को कहा जाए और कितनी बाल्टी पानी गृहस्वामी के ऊपर लाकर उड़ेल दी जाए। वह कुछ कर भी तो नहीं सकता था ।

        धीरे-धीरे गृहस्वामी के हाथ से घर का प्रशासन फिसलता जा रहा था । एक दिन सरकारी अधिकारी घर पर आया और कहने लगा " यह सुनने में आया है कि आप अपने कर्मचारी का शोषण और उत्पीड़न करते हैं ? "

    सुनकर गृहस्वामी दंग रह गया । बोला "हम तो इनसे कोई काम भी नहीं लेते ! इनके किसी कार्य पर दखलअंदाजी भी नहीं करते।"

      लेकिन अधिकारी नहीं माना । बोला "घर का प्रशासन सही प्रकार से चलाने के लिए हमने एक "सहायक मकान मालिक" नियुक्त किया है । अब आप घर अपने तथा "सहायक मकान मालिक" के साथ बैठकर आपसी सलाह-मशवरे के बाद चलाया करेंगे।"

       गृह स्वामी ने उदासीन होकर कहा "अब घर चलाने के लिए रह ही क्या गया है ? दीवारों पर धूल है । छतों पर मकड़ी के जाले हैं । न कोई आता है, न जाता है । हम भी अपने वित्तविहीन मकान में ही दिन काट रहे हैं ।"

     अधिकारी ने कहा " आपको मुझसे या मेरे आदेश से जो शिकायत हो ,अपील कर सकते हैं ।"-कहकर आदेश थमा कर चला गया । गृहस्वामी और सहायक-गृहस्वामी दोनों के लिए मकान में एक-एक कमरा अब रिजर्व था । सहायक गृहस्वामी क्योंकि सरकार के द्वारा मनोनीत था ,अतः वह अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने रिजर्व कमरे में रहता था । कर्मचारी क्योंकि सरकार से वेतन लेता था ,अतः उसे गृह स्वामी से ज्यादा सहायक गृहस्वामी के आदेश को मानने में रुचि थी। उसे मालूम था कि अब सहायक-गृहस्वामी ही घर का वास्तविक मालिक है । 

     समय बीतता गया । घर न रिश्तेदारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा और न मिलने -जुलने वाले घर में आना पसंद करते थे। सहायताप्राप्त घर को सबने आकर्षण विहीन घोषित कर दिया था । पूरी कॉलोनी में सहायता प्राप्त घरों के होने के कारण कॉलोनी  ही उदासीन नजर आने लगी थी।

        अधिकारी फिर भी कॉलोनी के घरों पर बुरी नजर रखे हुए था । वह किसी प्रकार से गृह स्वामी को उसके एकमात्र कमरे में से भी निकालने की कोशिश कर रहा था । एक दिन उसके हाथ में नियमावली की एक धारा आ गई । यह नियमावली सहायताप्राप्त घरों के सुचारू संचालन के लिए सरकार ने बनाई थी । नियमावली की एक धारा यह थी कि अगर अधिकारी को यह विश्वास हो जाए कि गृहस्वामी सही प्रकार से घर का संचालन नहीं कर पा रहा है तो वह नियंत्रक बैठा सकता है और गृहस्वामी को घर से बेदखल कर सकता है । अधिकारी ने वस्तुतः इसी धारा का उपयोग करते हुए आखिर गृहस्वामी के सहायताप्राप्त घर को हड़प ही लिया। 

      अब गृह स्वामी यह कह रहा है कि जिस कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है उसके क्रियाकलापों से मेरा कोई संबंध नहीं रहेगा। बस केवल मुझे मेरे घर में चैन से रहने का अधिकार दे दो। सरकार मानने को तैयार नहीं है । कहती है जब तुम्हारे घर के कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है तब तुम घर के अंदर चैन से कैसे बैठ सकते हो ? 

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा , रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत , मोबाइल 99976 15451

शनिवार, 28 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----अधिकारी की जय हो


बिना अधिकारी के मंत्री की क्या मजाल कि एक फाइल भी तैयार करके आगे बढ़ा दे ! जब मंत्री पदभार ग्रहण करता है तब अधिकारी उसे अपने कंधे का सहारा देकर मंत्रालय की कुर्सी  पर बिठाता है । झुक कर प्रणाम करता है और कहता है "माई बाप ! आप जो आदेश करेंगे ,हमारा काम उसका पालन सुनिश्चित करना है ।"

     मंत्री इतनी चमचामय भाषा को सुनकर अपने आप को डोंगा समझने लगता है और इस तरह अधिकारी चमचागिरी करके मंत्री रूपी डोंगे के भीतर तक अपनी पहुँच बना लेता है । 

           मंत्रियों की टोपी का रंग नीला , पीला ,हरा ,लाल बदलता रहता है लेकिन अधिकारी का पूरा शरीर गिरगिटिया रंग का होता है । जो मंत्री की टोपी का रंग होता है, वैसा ही अधिकारी के पूरे शरीर का रंग हो जाता है । पार्टी में दस-बीस साल तक धरना - प्रदर्शन - जिंदाबाद - मुर्दाबाद कहने वाला कार्यकर्ता भी अधिकारी के मुकाबले में नौटंकी नहीं कर सकता । कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा टोपी पहन लेगा लेकिन अधिकारी का तो पूरा शरीर ही टोपी के रंग में रँगा होता है । अधिकारी मंत्री को यह विश्वास दिला देता है कि हम आप की विचारधारा के सच्चे समर्थक हैं और हम आपकी पार्टी को अगले चुनाव में विजय अवश्य दिलाएंगे । 

             मंत्री को क्या पता कि कानून कैसे बनता है ? वह तो केवल फाइल के ऊपर लोक-लुभावने नारे का स्टिकर चिपकाने में रुचि रखता है । भीतर की सारी सामग्री अधिकारी बनाता है । मंत्री के सामने मंत्री के मनवांछित स्टिकर के साथ फाइल प्रस्तुत करता है । इसलिए फाइलों में स्टिकर बदल जाते हैं ,नारे नए गढ़े जाते हैं ,महापुरुषों के चित्रों में फेरबदल हो जाती है लेकिन सभी नियमों का प्रारूप अधिकारियों की मनमानी को पुष्ट करने वाला ही बनता है । अधिकारी अपने बुद्धि चातुर्य से कानून का ऐसा मकड़ी का जाल बनाते हैं कि जनता रूपी ग्राहक उनके पास शरण लेने के लिए आने पर मजबूर हो जाता है और फिर उनकी मनमानियों का शिकार बन ही जाता है। मंत्रियों को तो केवल उस झंडे से मतलब है जो अधिनियम की फाइल के ऊपर लहरा रहा होता है । अधिकारी घाट-घाट का पानी पिए हुए होता है । उसे मालूम है कि यह झंडे -नारे सब बेकार की चीजें हैं । इन में क्या रखा है ? 

      असली चीज है अधिनियम की ड्राफ्टिंग अर्थात प्रारूप को बनाना । उसमें ऐसे प्रावधानों को प्रविष्ट कर देना कि लोग अफसरशाही से तौबा-तौबा कर लें । अधिकारियों की तानाशाही और उनकी मनमानी के सम्मुख दंडवत प्रणाम करने में ही अपनी ख़ैरियत समझें । परिणाम यह होता है कि मंत्री जी समझते हैं कि रामराज्य आ गया ,समाजवाद आ गया ,सर्वहारा की तानाशाही स्थापित हो गई । लेकिन दरअसल राज तो अधिकारी का ही चलता है । अधिनियम में जो घुमावदार मोड़ उसने बना दिए हैं , वहाँ रुक कर अधिकारी को प्रसन्न किए बिना सर्वसाधारण आगे नहीं बढ़ सकता। अधिकारी इस देश का सत्य है । मंत्री अधिक से अधिक अर्ध-सत्य है । अर्धसत्य फाइल का कवर है । सत्य फाइल के भीतर की सामग्री है ,जो अंततः विजयी होती है । इसी को "सत्यमेव जयते" कहते हैं ।

✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) भारत, मोबाइल 99976 15451

रविवार, 1 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का आलेख ----डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियाँ : एक अध्ययन


 मुरादाबाद मंडल के जिन कवियों ने कुंडलिया छंद-विधान पर बहुत मनोयोग से कार्य किया है ,इनमें से एक नाम डॉ. भूपति शर्मा जोशी का भी है । (जन्म अमरोहा 13 दिसंबर 1920 - मृत्यु 15 जून 2009 मुरादाबाद )

            आपकी 21 कुंडलियाँ हस्तलिखित रूप में मुझे साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप समूह के एडमिन डॉ मनोज रस्तोगी के प्रयासों के फलस्वरूप पढ़ने को मिलीं। इससे पता चलता है कि कुंडलिया छंद शास्त्र में श्री जोशी की अच्छी पकड़ है । 

                  कुछ कुंडलियों में "कह मधुकर कविराय" टेक का प्रयोग किया गया है । कुछ बिना टेक के लिखी गई हैं। दोनों में माधुर्य है । इनमें  जमाने  की जो चाल चल रही है ,उसकी परख है । श्रेष्ठ समाज की रचना की एक बेचैनी है और कतिपय ऊंचे दर्जे के आदर्शों को समाज में प्रतिष्ठित होते देखने की गहरी लालसा है। कुंडलिया लेखन में जोशी जी ने ब्रजभाषा अथवा लोक भाषा के शब्द बहुतायत से प्रयोग में लाए हैं । इनसे छंद-रचना में सरलता और सरसता भी आई है तथा वह जन मन को छूते हैं । फिर भी मूलतः जोशी जी खड़ी बोली के कवि हैं । 

              कुंडलियों में कवि का वाक्-चातुर्य भली-भांति प्रकट हो रहा है । वह विचार को एक निर्धारित बिंदु से आरंभ करके उसे अनेक घुमावदार मोड़ों से ले जाते हुए निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल हुआ है। सामाजिक चेतना डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियों में भरपूर रूप से देखने को मिलती है ।

            "खैनी" के संबंध में आपने एक अत्यंत सुंदर कुंडलिया रची है ,जिसमें इस बुराई का वर्णन किया गया है । सार्वजनिक जीवन में हम लोगों को प्रायः बाएं हाथ की हथेली पर अंगूठे से खैनी रगड़ कर मुंह में रखते हुए देखते हैं और फिर बीच-बीच में स्थान-स्थान पर ऐसे लोग थूकते हुए पाए जाते हैं । गुटखा ,तंबाकू आदि खैनी का ही स्वरूप है । यह बुराई न केवल गंदगी पैदा करती है बल्कि देखने में भी बड़ी भद्दी मालूम पड़ती है । थूकने की आदत के खिलाफ स्वच्छताप्रिय समुदाय द्वारा यद्यपि अनेक आह्वान किए जाते रहे हैं ,आंदोलन चलाए गए हैं ,लोगों को जागरूक किया जाता है । कुछ लोगों ने अपने गली-मोहल्लों में पोस्टर लगाकर इस बुराई के प्रति जनता को सचेत भी किया है । लेकिन यह बुराई दुर्भाग्य से अभी तक समाप्त नहीं हो पाई है। थूकने को *थुक्कम-थुक्का* शब्द का बड़ा ही सुंदर प्रयोग करते हुए डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी ने खैनी की बुराई पर एक ऐसी कुंडलिया रच डाली है जो युगों तक स्मरणीय रहेगी । प्रेरक कुंडलिया आपके सामने प्रस्तुत है:-

खैनी  तू  बैरिन  भई ,  हमको   लागी  बान 

नरक निसैनी बन गई ,जानत सकल जहान

जानत सकल जहान,सदा ही थुक्कम-थुक्का

 याते  रहतो  नीक ,पियत  होते  जो  हुक्का

 छिन-छिन भई छिनाल ,बनी जीवन कहँ छैनी 

अस  औगुन  की  खान  ,हाय  तू  बैरिन खैनी

         अर्थात कवि कहता है कि हे खैनी ! तू तो बाण के समान हमारी शत्रु हो गई है ,नरक की निशानी बन गई है । तेरे कारण थुक्कम-थुक्का अर्थात चारों तरफ थूक ही थूक बिखरा रहता है । इससे तो ज्यादा अच्छा होता ,अगर हुक्का का प्रयोग कर लिया गया होता । तू सब प्रकार से अवगुण की खान है । 'खैनी' शब्द से कुंडलिया का आरंभ करके कवि ने अद्भुत चातुर्य का परिचय देते हुए कुंडलिया को 'खैनी' शब्द पर ही समाप्त किया है ।

      एक अन्य कुंडलिया देखिए । इसमें 'नेतागिरी' का खूब मजाक उड़ाया गया है। 'नेता' शब्द से कुंडलिया का आरंभ हो रहा है तथा नेता शब्द पर ही कुंडलिया समाप्त हो रही है । इसमें कह मधुकर कविराय टेक का प्रयोग हुआ है । दरअसल राजनीति का स्वरूप आजादी के बाद एक बार जो विकृत हुआ तो फिर नहीं सँभला । अशिक्षित, स्वार्थी ,लोभी और दुष्ट लोग राजनीति के अखाड़े में प्रवेश करते गए। दुर्भाग्य से उनको ही सफलता भी मिली । कवि ने कितना सुंदर चित्र नेतागिरी के माहौल का किया है ! आप पढ़ेंगे ,तो वाह- वाह कर उठेंगे । देखिए :-

नेता बनना सरल है ,कोई भी बन जाय

हल्दी लगै न फिटकरी ,चोखा रंग चढ़ाय

चोखा रंग चढ़ाय ,बिना डिग्री के यारो 

झूठे वादे करो ,मुफ्त की दावत मारो 

कह मधुकर कविराय ,नाव उल्टी ही खेता

लाज शर्म रख ताख ,बना जाता है नेता

सचमुच नेतागिरी के कार्य की कवि ने पोल खोल कर रख दी है । जितनी तारीफ की जाए ,कम है । 

        विशुद्ध हास्य रस की एक कुंडलिया पर भी हमारी नजर गई । पढ़ी तो हंसते हंसते पेट में बल पड़ गए । कल्पना में पात्र घूमने लगा और कवि के काव्य-कौशल पर वाह-वाह किए बिना नहीं रहा गया । आप भी कुंडलिया का आनंद लीजिए :-

पेंट सिलाने को गए ,लाला थुल-थुलदास 

दो घंटे में चल सके ,केवल कदम पचास

केवल कदम पचास ,हाँफते ढोकर काया

दीर्घ दानवी देह ,देख दर्जी चकराया 

बोला होती कमर ,नापता पेंट बनाने 

पर कमरे की नाप ,चले क्यों पेंट सिलाने

    मोटे थुल-थुल शरीर के लोग समाज में सरलता से हास्य का निशाना बन जाते हैं। काश ! वह अपने शरीर पर थोड़ा ध्यान दें और जीवन को सुखमय बना पाएँ !

       डॉ भूपति शर्मा जोशी ने सामयिक विषयों पर भी कुंडलियां लिखी हैं । कश्मीर के संदर्भ में रूबिया सईद को छुड़वाने के लिए जो वायुयान का अपहरण हुआ था और उग्रवादी छोड़े गए थे ,उस पर भी एक कुंडलिया लिखी है । चुनाव में सिर - फुटव्वल पर भी आपकी कुंडलिया-कलम चली है। अंग्रेजी के आधिपत्य को समाप्त करने आदि अनेक विषयों पर आपने सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है । 

   अनेक स्थानों पर यद्यपि त्रिकल  आदि  का प्रयोग करने में असावधानी हुई है  लेकिन कुंडलियों में विषय के प्रतिपादन और प्रवाह में अद्भुत छटा बिखेरने की सामर्थ्य में कहीं कोई कमी नहीं है ।

      डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियाँँ बेहतरीन कुंडलियों की श्रेणी में रखे जाने के योग्य हैं । उनकी संख्या कम है लेकिन , जिनका मैंने ऊपर उल्लेख किया है ,वह खरे सिक्के की तरह हमेशा चमकती रहेंगी। कुंडलियाकारों में डॉ भूपति शर्मा जोशी का नाम बहुत सम्मान के साथ सदैव लिया जाता रहेगा ।


✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश),भारत,  मोबाइल फोन नम्बर 99976 15451