रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत --- दिनभर दौड़ लगाती माँ और दस दोहे ----



कहाँ साँस लेने की फुर्सत ,दिनभर दौड़ लगाती माँ                           

सुबह हुई तो जैसे-तैसे ,बिटिया रानी जग पाई

जब जागी तो रोती-हँसती ,बस्ते को लेकर आई

छूट गई पानी की बोतल ,लेकर भागी जाती माँ


खुद दफ्तर जाने से पहले ,खाना और खिलाना है 

दफ्तर जाकर देर शाम तक ,अपना मगज खपाना है 

थक कर जब भी घर आती है ,दो कप चाय बनाती माँ

                   

होमवर्क की कॉपी पकड़े ,कुकर ध्यान में रहता है 

दिनभर भूख लगी है ,कोई चिल्लाकर ही कहता है

एक सीरियल मनपसंद पर ,वह भी देख न पाती माँ

कहाँ साँस लेने की फुर्सत दिनभर दौड़ लगाती माँ

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                       (1)

बेटे-बहुओं को दिया , अपने  था जो पास

फिर जाने क्या सोचकर ,अम्मा हुई उदास

                        (2)

बेटे-बहुएँ चल  दिए , पकड़े  अपने हाथ 

बूढ़ा तन माँ का रहे ,बोलो किसके साथ

                       (3)

जिनके  पोछे मूत्र-मल , जागी  भर-भर रात

उनको फुर्सत अब कहाँ ,सुन लें माँ की बात

                         (4)

पोते - पोती   देखते , भरते   मन   में  राज

कल माँ का भी आएगा ,दादी का जो आज

                         (5)

फोटो पर माला चढ़ी ,हुआ मरण का भोज

माँ  को  अब  देना  नहीं , होगा  रोटी  रोज

                          (6)

कर्कश स्वर घर में बसे ,पैसों की तकरार 

माँ  बेचारी  सुन  रही ,जिंदा क्यों भू-भार 

                         (7)

अंत समय जब चाहिए , मन के मीठे बोल

बेटे - बहुएँ  आँकते , चूड़ी  की  बस  तोल

                          (8)

किससे अपना दुख कहे ,किसको दे-दे शाप

आँसू पीती माँ  पड़ी , खटिया  पर  चुपचाप 

                        (9)

बूढ़ी माँ को कौन अब ,रखता अपने साथ

ईश्वर   से   है   प्रार्थना , जाए  चलते  हाथ 

                         (10)

पुनरावृत्ति वही हुई ,फिर से वह परिणाम 

"बूढ़ी काकी" हो गया , वृद्धा माँ का नाम 


✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

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