मुरादाबाद मंडल के जिन कवियों ने कुंडलिया छंद-विधान पर बहुत मनोयोग से कार्य किया है ,इनमें से एक नाम डॉ. भूपति शर्मा जोशी का भी है । (जन्म अमरोहा 13 दिसंबर 1920 - मृत्यु 15 जून 2009 मुरादाबाद )
आपकी 21 कुंडलियाँ हस्तलिखित रूप में मुझे साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप समूह के एडमिन डॉ मनोज रस्तोगी के प्रयासों के फलस्वरूप पढ़ने को मिलीं। इससे पता चलता है कि कुंडलिया छंद शास्त्र में श्री जोशी की अच्छी पकड़ है ।
कुछ कुंडलियों में "कह मधुकर कविराय" टेक का प्रयोग किया गया है । कुछ बिना टेक के लिखी गई हैं। दोनों में माधुर्य है । इनमें जमाने की जो चाल चल रही है ,उसकी परख है । श्रेष्ठ समाज की रचना की एक बेचैनी है और कतिपय ऊंचे दर्जे के आदर्शों को समाज में प्रतिष्ठित होते देखने की गहरी लालसा है। कुंडलिया लेखन में जोशी जी ने ब्रजभाषा अथवा लोक भाषा के शब्द बहुतायत से प्रयोग में लाए हैं । इनसे छंद-रचना में सरलता और सरसता भी आई है तथा वह जन मन को छूते हैं । फिर भी मूलतः जोशी जी खड़ी बोली के कवि हैं ।
कुंडलियों में कवि का वाक्-चातुर्य भली-भांति प्रकट हो रहा है । वह विचार को एक निर्धारित बिंदु से आरंभ करके उसे अनेक घुमावदार मोड़ों से ले जाते हुए निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल हुआ है। सामाजिक चेतना डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियों में भरपूर रूप से देखने को मिलती है ।
"खैनी" के संबंध में आपने एक अत्यंत सुंदर कुंडलिया रची है ,जिसमें इस बुराई का वर्णन किया गया है । सार्वजनिक जीवन में हम लोगों को प्रायः बाएं हाथ की हथेली पर अंगूठे से खैनी रगड़ कर मुंह में रखते हुए देखते हैं और फिर बीच-बीच में स्थान-स्थान पर ऐसे लोग थूकते हुए पाए जाते हैं । गुटखा ,तंबाकू आदि खैनी का ही स्वरूप है । यह बुराई न केवल गंदगी पैदा करती है बल्कि देखने में भी बड़ी भद्दी मालूम पड़ती है । थूकने की आदत के खिलाफ स्वच्छताप्रिय समुदाय द्वारा यद्यपि अनेक आह्वान किए जाते रहे हैं ,आंदोलन चलाए गए हैं ,लोगों को जागरूक किया जाता है । कुछ लोगों ने अपने गली-मोहल्लों में पोस्टर लगाकर इस बुराई के प्रति जनता को सचेत भी किया है । लेकिन यह बुराई दुर्भाग्य से अभी तक समाप्त नहीं हो पाई है। थूकने को *थुक्कम-थुक्का* शब्द का बड़ा ही सुंदर प्रयोग करते हुए डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी ने खैनी की बुराई पर एक ऐसी कुंडलिया रच डाली है जो युगों तक स्मरणीय रहेगी । प्रेरक कुंडलिया आपके सामने प्रस्तुत है:-
खैनी तू बैरिन भई , हमको लागी बान
नरक निसैनी बन गई ,जानत सकल जहान
जानत सकल जहान,सदा ही थुक्कम-थुक्का
याते रहतो नीक ,पियत होते जो हुक्का
छिन-छिन भई छिनाल ,बनी जीवन कहँ छैनी
अस औगुन की खान ,हाय तू बैरिन खैनी
अर्थात कवि कहता है कि हे खैनी ! तू तो बाण के समान हमारी शत्रु हो गई है ,नरक की निशानी बन गई है । तेरे कारण थुक्कम-थुक्का अर्थात चारों तरफ थूक ही थूक बिखरा रहता है । इससे तो ज्यादा अच्छा होता ,अगर हुक्का का प्रयोग कर लिया गया होता । तू सब प्रकार से अवगुण की खान है । 'खैनी' शब्द से कुंडलिया का आरंभ करके कवि ने अद्भुत चातुर्य का परिचय देते हुए कुंडलिया को 'खैनी' शब्द पर ही समाप्त किया है ।
एक अन्य कुंडलिया देखिए । इसमें 'नेतागिरी' का खूब मजाक उड़ाया गया है। 'नेता' शब्द से कुंडलिया का आरंभ हो रहा है तथा नेता शब्द पर ही कुंडलिया समाप्त हो रही है । इसमें कह मधुकर कविराय टेक का प्रयोग हुआ है । दरअसल राजनीति का स्वरूप आजादी के बाद एक बार जो विकृत हुआ तो फिर नहीं सँभला । अशिक्षित, स्वार्थी ,लोभी और दुष्ट लोग राजनीति के अखाड़े में प्रवेश करते गए। दुर्भाग्य से उनको ही सफलता भी मिली । कवि ने कितना सुंदर चित्र नेतागिरी के माहौल का किया है ! आप पढ़ेंगे ,तो वाह- वाह कर उठेंगे । देखिए :-
नेता बनना सरल है ,कोई भी बन जाय
हल्दी लगै न फिटकरी ,चोखा रंग चढ़ाय
चोखा रंग चढ़ाय ,बिना डिग्री के यारो
झूठे वादे करो ,मुफ्त की दावत मारो
कह मधुकर कविराय ,नाव उल्टी ही खेता
लाज शर्म रख ताख ,बना जाता है नेता
सचमुच नेतागिरी के कार्य की कवि ने पोल खोल कर रख दी है । जितनी तारीफ की जाए ,कम है ।
विशुद्ध हास्य रस की एक कुंडलिया पर भी हमारी नजर गई । पढ़ी तो हंसते हंसते पेट में बल पड़ गए । कल्पना में पात्र घूमने लगा और कवि के काव्य-कौशल पर वाह-वाह किए बिना नहीं रहा गया । आप भी कुंडलिया का आनंद लीजिए :-
पेंट सिलाने को गए ,लाला थुल-थुलदास
दो घंटे में चल सके ,केवल कदम पचास
केवल कदम पचास ,हाँफते ढोकर काया
दीर्घ दानवी देह ,देख दर्जी चकराया
बोला होती कमर ,नापता पेंट बनाने
पर कमरे की नाप ,चले क्यों पेंट सिलाने
मोटे थुल-थुल शरीर के लोग समाज में सरलता से हास्य का निशाना बन जाते हैं। काश ! वह अपने शरीर पर थोड़ा ध्यान दें और जीवन को सुखमय बना पाएँ !
डॉ भूपति शर्मा जोशी ने सामयिक विषयों पर भी कुंडलियां लिखी हैं । कश्मीर के संदर्भ में रूबिया सईद को छुड़वाने के लिए जो वायुयान का अपहरण हुआ था और उग्रवादी छोड़े गए थे ,उस पर भी एक कुंडलिया लिखी है । चुनाव में सिर - फुटव्वल पर भी आपकी कुंडलिया-कलम चली है। अंग्रेजी के आधिपत्य को समाप्त करने आदि अनेक विषयों पर आपने सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है ।
अनेक स्थानों पर यद्यपि त्रिकल आदि का प्रयोग करने में असावधानी हुई है लेकिन कुंडलियों में विषय के प्रतिपादन और प्रवाह में अद्भुत छटा बिखेरने की सामर्थ्य में कहीं कोई कमी नहीं है ।
डॉक्टर भूपति शर्मा जोशी की कुंडलियाँँ बेहतरीन कुंडलियों की श्रेणी में रखे जाने के योग्य हैं । उनकी संख्या कम है लेकिन , जिनका मैंने ऊपर उल्लेख किया है ,वह खरे सिक्के की तरह हमेशा चमकती रहेंगी। कुंडलियाकारों में डॉ भूपति शर्मा जोशी का नाम बहुत सम्मान के साथ सदैव लिया जाता रहेगा ।
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश),भारत, मोबाइल फोन नम्बर 99976 15451
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