"एतद् द्वारा आपको सूचित किया जाता है कि अनेक बार वाट्स एप द्वारा आप को नोटिस देने के बाद भी आपने समुचित उत्तर नहीं दिया । अतः आपके घर का प्रबंध अपने हाथ में लेते हुए नियंत्रक नियुक्त किया जाता है ।" अधिकारी का पत्र पढ़ने पर गृहस्वामी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ । यह बात तो सात-आठ साल से चल ही रही थी कि एक दिन सरकार हमारा घर हड़प लेगी ।
"आपने तो हमें कोई वाट्स एप नहीं किया ? "-गृह स्वामी ने अधिकारी से पत्र लेते हुए प्रश्न किया ।
"हमने आपके सहायताप्राप्त कर्मचारी को वाट्स एप कर दिया था। क्या आप उस से सूचना प्राप्त नहीं करते ? यह आपका दोष है कि आप अच्छे संबंध नहीं रखते ।"-अधिकारी का दो टूक जवाब था । गृहस्वामी ने अधिकारी से न उलझने में ही खैरियत समझी ।
वह कितनी सुहानी घड़ी थी जब सरकार ने योजना बनाई थी कि बेरोजगारी हटाने के लिए , श्रमिकों को उनके परिश्रम का उचित मूल्य देने के लिए तथा साथ ही साथ सभी के घरों के सुचारू संचालन के लिए हर घर में एक कर्मचारी का वेतन सरकार अपने खजाने से देगी । पूरी कॉलोनी सरकार की इस योजना के अंतर्गत देखते ही देखते सहायता प्राप्त घर वाली कॉलोनी बन गई । अब हर घर में एक सहायता प्राप्त कर्मचारी था । उस कर्मचारी को सरकार से वेतन मिलता था । वेतन भी ऐसा कि मकान मालिक ललचा उठे कि काश उसकी भी उतनी ही आमदनी होती ! वास्तव में सब मकान मालिक धनवान नहीं थे । कुछ की आर्थिक स्थिति खराब थी लेकिन सबके घरों में एक-एक कर्मचारी पहले से था । अब उसका वेतन सरकार देती थी । इस निर्णय से मकान मालिक भी खुश थे और कर्मचारी तो खुश होना ही चाहिए थे ।आखिर वेतन वृद्धि उनकी ही हुई थी । उनकी ही नौकरी में स्थायित्व भी आया था ।
बात यहाँ तक रहती तो ठीक थी लेकिन अधिकारियों की नजरें बदल गईं। अब उनकी नजर इस बात पर थी कि सहायता प्राप्त घरों की कालोनियों को किस प्रकार हड़पा जाए ? व्यक्तिगत बातचीत में अधिकारी खुलकर कहने लगे कि जब हमारे द्वारा प्रदत्त वेतन से आपके कर्मचारी का खर्चा चल रहा है तो घर भी हमारा ही हुआ ? गृह स्वामी इस तर्क का विरोध करते थे और कहते थे कि वेतन देने का मतलब यह नहीं है कि घर सरकार का हो गया ? आप वेतन दे रहे हैं ,यह अच्छी बात है। हम विरोध नहीं करते , लेकिन हमारे घर को हड़पने की योजना अगर आप बनाते हैं तो यह अमानत में खयानत वाली बात होगी । यह विश्वासघात होगा । यह अधिकारों का दुरुपयोग होगा ..आदि आदि । अधिकारियों के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। वह चिकने घड़े थे । योजनाएं और षड्यंत्र रचते रहे ।
प्रारंभ में कर्मचारी का वेतनबिल मकान मालिक को सरकार के पास भेजना होता था। इस कार्य के लिए सरकार ने हर जिले में एक "सहायता प्राप्त गृह-अधिकारी" नियुक्त किया हुआ था । गृह-अधिकारी वेतनबिल के अनुसार चेक काट कर गृह स्वामी को भेज देता था । गृहस्वामी उसे बैंक में कर्मचारी के खाते में जमा कर देते थे । उसके बाद गृह स्वामी का कार्य बढ़ने लगा । उसे कर्मचारी की वेतन-वृद्धि ,अवकाश-विवरण तथा योग्यता में वृद्धि संबंधी अनेकानेक सूचनाएं समय पर जिला गृह अधिकारी को भेजनी पड़ती थीं। अगर एक दिन की भी भेजने में देर हो जाए जो गृह-अधिकारी कुपित हो जाता था । गृह स्वामी के अधिकारों का बुरा हाल यह था कि अगर कर्मचारी को कोई छुट्टी लेनी होती थी तो वह अब तक गृह स्वामी से पूछता था लेकिन अब उसे गृह स्वामी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी । वह जब चाहे ,जितनी चाहे छुट्टियाँ ले सकता था ।उसके वेतन में कटौती करने का कोई अधिकार गृह स्वामी को नहीं रहा। कारण वही था कि वेतन सरकार द्वारा दिया जाता है । अब स्थिति यह थी कि कर्मचारी जब चाहे छुट्टी लेकर घर बैठ जाए और जब चाहे काम पर लौट आए । काम पर लौट आने के बाद भी घर का काम आधा-अधूरा पड़ा रहता था ।
सरकार ने एक नियम बना दिया था कि गृहस्वामी कर्मचारी को डाँट नहीं सकता था। कार्य न करने के लिए उसके वेतन से कटौती भी नहीं कर सकता था। कर्मचारी का अधिकार था कि वह चाहे तो काम करे, चाहे तो न करे ।
एक बार एक गृहस्वामी ने अपने सहायता-प्राप्त कर्मचारी से कहा कि मेरे लिए एक कप चाय बना दो । कर्मचारी ने साफ इंकार कर दिया। बोला "मैं इस समय उदास हूँ। चाय नहीं बनाऊंगा ।"
गृह स्वामी ने पूछा " उदासी किस बात की है ?"
कर्मचारी बोला "मेरी पत्नी हाई स्कूल में फेल हो गई हैं ।अतः मैं उदास हूँ। "
"मगर यह तो दस दिन पुरानी बात हो चुकी है । अब उदासी छोड़ो और चाय बनाना शुरू कर दो ।"
कर्मचारी बोला " इतना बड़ा झटका अगर आपको लगा होता तो दर्द होता ।लेकिन आप लोग तो निर्मम,शोषक और उत्पीड़क हो। आपको कर्मचारी की भावनाओं का कोई ख्याल ही नहीं है ।"
बेचारा गृहस्वामी अपना सा मुँह लेकर रह गया । उसके बाद से उसने कर्मचारी से कभी भी चाय बनाना तो दूर की बात रही ,एक गिलास पानी भी लाने के लिए नहीं कहा। पता नहीं एक गिलास पानी को कहा जाए और कितनी बाल्टी पानी गृहस्वामी के ऊपर लाकर उड़ेल दी जाए। वह कुछ कर भी तो नहीं सकता था ।
धीरे-धीरे गृहस्वामी के हाथ से घर का प्रशासन फिसलता जा रहा था । एक दिन सरकारी अधिकारी घर पर आया और कहने लगा " यह सुनने में आया है कि आप अपने कर्मचारी का शोषण और उत्पीड़न करते हैं ? "
सुनकर गृहस्वामी दंग रह गया । बोला "हम तो इनसे कोई काम भी नहीं लेते ! इनके किसी कार्य पर दखलअंदाजी भी नहीं करते।"
लेकिन अधिकारी नहीं माना । बोला "घर का प्रशासन सही प्रकार से चलाने के लिए हमने एक "सहायक मकान मालिक" नियुक्त किया है । अब आप घर अपने तथा "सहायक मकान मालिक" के साथ बैठकर आपसी सलाह-मशवरे के बाद चलाया करेंगे।"
गृह स्वामी ने उदासीन होकर कहा "अब घर चलाने के लिए रह ही क्या गया है ? दीवारों पर धूल है । छतों पर मकड़ी के जाले हैं । न कोई आता है, न जाता है । हम भी अपने वित्तविहीन मकान में ही दिन काट रहे हैं ।"
अधिकारी ने कहा " आपको मुझसे या मेरे आदेश से जो शिकायत हो ,अपील कर सकते हैं ।"-कहकर आदेश थमा कर चला गया । गृहस्वामी और सहायक-गृहस्वामी दोनों के लिए मकान में एक-एक कमरा अब रिजर्व था । सहायक गृहस्वामी क्योंकि सरकार के द्वारा मनोनीत था ,अतः वह अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने रिजर्व कमरे में रहता था । कर्मचारी क्योंकि सरकार से वेतन लेता था ,अतः उसे गृह स्वामी से ज्यादा सहायक गृहस्वामी के आदेश को मानने में रुचि थी। उसे मालूम था कि अब सहायक-गृहस्वामी ही घर का वास्तविक मालिक है ।
समय बीतता गया । घर न रिश्तेदारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा और न मिलने -जुलने वाले घर में आना पसंद करते थे। सहायताप्राप्त घर को सबने आकर्षण विहीन घोषित कर दिया था । पूरी कॉलोनी में सहायता प्राप्त घरों के होने के कारण कॉलोनी ही उदासीन नजर आने लगी थी।
अधिकारी फिर भी कॉलोनी के घरों पर बुरी नजर रखे हुए था । वह किसी प्रकार से गृह स्वामी को उसके एकमात्र कमरे में से भी निकालने की कोशिश कर रहा था । एक दिन उसके हाथ में नियमावली की एक धारा आ गई । यह नियमावली सहायताप्राप्त घरों के सुचारू संचालन के लिए सरकार ने बनाई थी । नियमावली की एक धारा यह थी कि अगर अधिकारी को यह विश्वास हो जाए कि गृहस्वामी सही प्रकार से घर का संचालन नहीं कर पा रहा है तो वह नियंत्रक बैठा सकता है और गृहस्वामी को घर से बेदखल कर सकता है । अधिकारी ने वस्तुतः इसी धारा का उपयोग करते हुए आखिर गृहस्वामी के सहायताप्राप्त घर को हड़प ही लिया।
अब गृह स्वामी यह कह रहा है कि जिस कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है उसके क्रियाकलापों से मेरा कोई संबंध नहीं रहेगा। बस केवल मुझे मेरे घर में चैन से रहने का अधिकार दे दो। सरकार मानने को तैयार नहीं है । कहती है जब तुम्हारे घर के कर्मचारी को सरकार वेतन दे रही है तब तुम घर के अंदर चैन से कैसे बैठ सकते हो ?
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा , रामपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत , मोबाइल 99976 15451
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