शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी --नेत्रदान महादान


काल
: आधुनिक काल 

स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर 

पात्र 

वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष

पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष 

दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष 

राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष

कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है


              【 दृश्य एक 】


दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?


एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।

(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?

दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।

वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !

एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।

वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?

(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )

वृद्धा  अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।

पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !

वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो। 

पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।

एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।

वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?

दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।

पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?

पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है । 

पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?

एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।

पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?

दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।

वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो ! 

(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)


                     【दृश्य दो】


(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)

वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?

एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...

वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?

एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।

वृद्धा : (रोकर)  हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं। 

राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।

पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?

राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।

वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?

राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।

पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ? 

वृद्धा : (पड़ोसन से)  हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।

राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..

वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।

पड़ोसन : (कान पकड़कर)  मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।

वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।

(पर्दा गिर जाता है।) 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

1 टिप्पणी:

  1. धन्यवाद साहित्यिक मुरादाबाद । नाटक / एकांकी का प्रकाशन बहुरंगी होने के कारण बहुत आकर्षक और प्रभावशाली हो गया है ।
    रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर( उत्तर प्रदेश )
    मोबाइल 99976 15451

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