पात्र परिचयधरती माता
वन देवी
जल देवी
पर्वत राज
गंगा देवी
मानव
प्रथम अंक
(प्रथम दृश्य)
(खुले आसमान के नीचे, एक बड़ी सी पत्थर की शिला पर ,एक अति सुंदर स्त्री धरती माता, सर पर सुंदर मुकुट सजाए, सोच विचार की मुद्रा में बैठी है, उनके वस्त्र हरे व नीले रंग के हैं ।तभी एक मानव दौड़ता हुआ उस ओर आता है,और उनके चरणों में गिर पड़ता है।)
मानव ( रुंँआसा होकर) मुझे बचाओ!! मुझे बचाओ! हे धरती माता !मुझे बचा लो, मेरी रक्षा करो...!माँ रक्षा करो..!
धरती माता : (चौंक कर सर ऊपर उठाती हैं, और खड़े होकर उस मानव को उठाती हैं) उठो पुत्र! उठो! तुम क्यों रो रहे हो?
मानव : (हाथ जोड़कर बिलखते हुए) माँ . .!मेरा और मेरी समस्त प्रजाति का अस्तित्व बहुत बड़े संकट में है ,मुझे आपकी सहायता चाहिए (अपना गला दोनों हाथों से पकड़ते हुए) मेरा दम घुटा जा रहा है माता, मुझे बचा लो !!
धरती माता : ओह!! शांत हो जाओ पुत्र, सब ठीक होगा.
मानव: शीघ्रता करिये माता!! मैं मर रहा हूँ (खांसता है) न मेरे पास प्राणदायक आक्सीजन है और न ही शुद्ध जल बचा है.आपकी नदियाँ अपनी मर्यादा लांघकर मेरे घर में घुसकर तबाही ला रही हैं माता... और... और!! (खाँसता है)!!!
धरती माता : और... और क्या वत्स?? (उसे एक पत्थर की शिला पर बैठाती हैं ) संभालो खुद को!!
मानव : (तनिक संयत होते हुए, खड़ा हो जाता है, और हाथ जोड़कर कहता है ) और माता... आपके शक्तिशाली पुत्र महान पर्वतराज हमारे घरों को क्षति पहुँचा रहे हैं, हमारे रास्ते रोक लिए हैं माता, और.....चारों ओर विनाश लीला कर रहे हैं !
धरती माता : (तनिक क्रोध में भरकर) अच्छा, मैं अभी सबको बारी बारी से बुलाकर पूछती हूँ (तीन बार ताली बजाकर) वन देवी, जल देवी प्रकट हों!
(तभी हरे रंग के सुंदर वस्त्र व गले में फूलों का हार पहने, वन देवी और नीले रंग के वस्त्र पहने, गले में मोतियों का हार पहने, जल देवी प्रकट हो जाती हैं, दोनों देवियां शीश झुकाकर धरती माता को समवेत स्वर में प्रणाम करती हैं।)
जल देवी और वन देवी (समवेत स्वर में) : कहिए धरती माता , क्या आज्ञा है ? हमें आपने किसलिए याद किया है ?
धरती माता : (क्रोधित होकर मानव की ओर तर्जनी से संकेत करते हुए) हे वन देवी ! यह मानव प्राणशक्ति वायु न मिल पाने से अत्यधिक कष्ट में है. क्या तुमने इसे अपने वनों द्वारा प्रवाहित होने वाली शुद्ध वायु देना बंद कर दिया है?? यदि तुमने ऐसा किया है तो तुम्हे इसका दण्ड अवश्य मिलेगा!!
वन देवी : क्षमा करें धरती माता! परंतु मैंने ऐसा कदापि नहीं किया है । अपितु मेरे शरीर में जब तक एक भी हरा पत्ता जीवित है, मैं तब तक समस्त प्राणियों में शुद्ध वायु का संचार करती रहूँगी।
धरती माता : तब यह मानव कष्ट में क्यों है पुत्री? कारण स्पष्ट करो? इसका आरोप है कि तुमने इसे मरने के लिए छोड़ दिया है!
वन देवी : (क्रोध में भरकर,, मानव की ओर लाल- लाल नेत्रों से देखते हुए) इसका आरोप मिथ्या है माता!..(क्रोध में काँपती है) इस दुष्ट ने स्वयं मेरे वनों को उजाड़ कर तथाकथित विकास नाम के पर्यावरण भक्षी जीव को जन्म दिया है!!
धरती माता : (आश्चर्य से) अच्छा..!
वन देवी : इससे पूछिए माता... क्या इसने मेरी हरियाली को उजाड़ कर कंक्रीट का जंगल नहीं तैयार किया है ? क्या इसने वनों में रहने वाले लाखों जंगली जीवों को बेघर करके उन्हें मृत्यु के घाट नहीं उतारा है? क्या इसके द्वारा वनों के उजड़ने से वर्षा चक्र नहीं बिगड़ा!!! यह दुष्ट अपने दुष्कर्मों के कारण ही इस दुर्गति को प्राप्त हुआ है माता... !
धरती माता (क्रोध में भरकर मानव की ओर देखते हुए) ओहहह तो यह बात है..!
( कुछ सोचते हुए जल देवी की ओर उन्मुख होती हैं, जो अब तक हाथ जोड़े शांत मुद्रा में सब वार्तालाप ध्यान पूर्वक सुन रही थीं )
धरती माता : और तुम जल देवी !! क्या तुमने अपने कर्तव्य से विमुख होकर धरती के जीवों को शुद्ध जल देना बंद कर दिया है.. ..... ! और यह मैं क्या सुन रही हूँ !! तुम्हारी नदियाँ अपनी सीमा -रेखा लांँघकर मानवों के घरों में घुसकर विनाश लीला कर रही हैं... क्या यही व्यवस्था है तुम्हारी ? कदाचित तुम्हें हमारे दण्ड का भी भय नहीं..!(क्रोध से काँपती है)
जल देवी : नहीं ..नहीं माता ! ऐसा कदापि नहीं है मेरी नदियों ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है.. ! अपितु इस स्वार्थी मनुष्य ने ही मेरी नदियों के आंँगन में अपने अवैध घर बना लिए हैं और अब यह दुष्ट उन नदियों पर ही बाढ़ का आरोप लगाकर उन्हें कलंकित करने का प्रयास कर रहा है. अब आप ही बताइये माता, मेरी असंख्य नदियाँ कहाँ जाएँ?? उनके रास्ते और आंँगन इस मानव ने बंद कर दिए हैं....
धरती माता : ( बीच में ही रोककर ) अच्छा तो क्या तुम यह कहना चाहती हो जल देवी, कि मानव विकास न करे..... ! अपने घर न बनाये...!!!
जल देवी :जी नहीं, धरती माता ! मेरा ऐसा तात्पर्य कदापि नहीं है, परंतु विकास का अर्थ यह तो नहीं कि मानव उस पर्यावरण को ही क्षति पहुचाएँ, जिसके कारण वह जीवित है...!
धरती माता :अर्थात...!! स्पष्ट कहो पुत्री... ! क्या कहना चाहती हो..!
जल देवी : माता इस मानव की दुष्टता महान पर्वत राज से अधिक और कौन जान सकता है? और जहाँ तक शुद्ध जल की बात है माता ...,तो पर्वतराज की बड़ी पुत्री और हम सबकी लाडली पतित- पावनी ,गंगा देवी इस तथ्य पर और अधिक स्पष्टता से प्रकाश डाल सकती हैं . माता ! (दोनों हाथ जोड़कर, विनय पूर्वक)आप उन्हें बुलाकर स्वयं ही पूछ लीजिये!
धरती माता : उचित है जल देवी..!हम अभी पर्वतराज और गंगा देवी को भी यहाँ बुला लेते हैं (तीन बार ताली बजाकर) पर्वत राज और पावन गंगा देवी शीघ्र ही प्रकट हों ...!
(तभी पर्दे के पीछे से कत्थई व श्वेत रंग के चमकीले वस्त्र पहने पर्वतराज आते हैं, उनके गले में हरे पत्तों का हार है, साथ ही अत्यंत गौरवर्ण और धवल वेशधारी गंगा देवी आकर धरती माता को शीश झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं)
पर्वतराज और गंगा माता : (समवेत स्वर में) कहिए धरती माता ..! क्या आज्ञा है ? आपने हमें किस लिए याद किया है ?
धरती माता : पुत्र पर्वत राज हिमालय! पुत्री गंगा !! इस मानव का आरोप यह है...कि तुम सबके कारण उसका जीवन खतरे में पड़ गया है..!!
पर्वतराज : (मानव की ओर क्रोध से देखकर गर्जना करते हुए) अरे यह दुष्ट अभी तक जीवित है!! मैं अभी इसे अपने मुष्ठि प्रहार से चकनाचूर कर दूंगा ..! (अपने बांये हाथ की हथेली पर दांये हाथ से घूंसा मारते हुए, आगे बढ़ते हैं)
(तभी धरती माता पर्वतराज के मार्ग में आ जाती हैं और दोनों हाथों को दोनों ओर फैला कर रोकती हैं। )
धरती माता :( लगभग चीखते हुए ) रुक जाओ पर्वतराज!! तुम इस प्रकार प्रकृति के विरुद्ध जाकर मनमानी नहीं कर सकते ..!
पर्वत राज : क्षमा करें माता , मेरी तो प्रवृत्ति ही धीर- गंभीर है, परंतु यह दुष्ट मानव अपनी प्रजनन- दर कीट पतंगों की भाँति बढ़ाते हुए, कुकरमुत्तों की भांति दुर्गम पर्वतों पर भी उग आया है और वहां जाकर अतिक्रमण कर दिया है।
धरती माता : कैसा अतिक्रमण पुत्र ? स्पष्ट कहो!
पर्वतराज : माता यह मानव हजारों - लाखों की संख्या में अब पर्वतों पर पर्यटन के बहाने समूहों में आने लगा है। इस दुष्ट मानव ने अपने स्वार्थवश मेरे शरीर को जगह- जगह से तोड़- फोड़ कर मेरे पैरों को शक्तिहीन बना दिया है, जिस कारण मैं ठीक से अपने स्थान पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ ..माता!
धरती माता : (आश्चर्य से )तुम्हारे पैर कैसे शक्तिहीन हो सकते हैं पुत्र? वह तो हज़ारों मील तक फैले हुए हैं..!
पर्वतराज: पूछिए माता इस दुष्ट से! यह मुझतक पहुँचने के लिए , मार्गों को चौड़ा करने हेतु, प्रतिदिन बड़ी -बड़ी मशीनो की सहायता से मेरी शिलाओं को नीचे से काटता जा रहा है, जिस कारण मैं शक्तिहीन होकर गिर रहा हूँ.. माता!
धरती माता : (चिंतित स्वर में )ओहहहहह!! यह तो वास्तव में बड़ी चिंता का विषय है ..!
धरती माता :(गंगा देवी की ओर उन्मुख होते हुए, स्नेहिल भाव से ) हे महान देवी !आप इस विषय पर मौन क्यों हैं? आप भी अपने विचार रखिए.. !
गंगा देवी : हे वसुंधरा देवी ! इस मानव प्रजाति की मूर्खता के कारण इसे पोषित करने वाला,मेरा पावन जल, मलीन होने लगा है, यह मुझमें और मेरी सहायक नदियों के जल में प्रतिदिन लाखों टन कचरा और प्रदूषित पदार्थ डाल रहा है... मैं जीवनदायिनी गंगा, धीरे- धीरे मर रही हूँ ! यदि मैं ही नहीं रहीं,तब यह मानव भी समाप्त हो जायेगा ! (एक गहरी साँस भरती हैं )
धरती माता : बोलो मानव तुम अपने पक्ष में कुछ कहना चाहते हो ? क्या तुम प्रकृति के इन तत्वों के बिना जीवित रह सकते हो ? क्या तुम्हारे पास जीवित रहने का कोई अन्य विकल्प है? असली अपराधी कौन है? ये प्राकृतिक तत्व या तुम...???
(मानव बिलखता हुआ धरती माता के चरणों में गिर जाता है।)
धरती माता :( उसे उठाती हैं )मुझे तुम्हारे आंसू नहीं उत्तर चाहिए, यदि तुम यही विनाश लीला करते रहे तो एक दिन मैं भी समाप्त हो जाऊंगी और तुम भी ..!
मानव : क्षमा करें माता ..!क्षमा करें ..!मैं ही असली अपराधी हूँ..! मैं स्वयं अपने विनाश का कारण हूँ, परंतु...मैं वचन देता हूँ माता..आज से मैं अपनी धरती माता को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा। अपनी प्रजाति की प्रजनन दर संसाधनो के अनुपात में रखूंगा, जल के अमूल्य खजाने को भी स्वच्छ व सुरक्षित रखूंगा तथा किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं करुंगा ... ! आपका आँचल पुनः हरा -भरा कर दूँगा माता..!
धरती माता: ( प्रसन्नता पूर्वक) उचित है पुत्र..! प्रातः का भूला संध्या को अपने घर आये तो वह भूला नहीं कहलाता...! जाइए आप सब लोग अब अपने -अपने कर्तव्य पालन में फिर से लग जाइए..! (अपना सीधा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाती हैं।)
( मानव, वन देवी, जल देवी, पर्वतराज व गंगा देवी सहित सभी धरती माता को प्रणाम कर समवेत स्वर में :धरती माता की जय ....धरती माता की जय ...! कहते हुए प्रस्थान कर जाते हैं।)
(परदा गिरता है)
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत