रविवार, 1 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 1 अक्टूबर 2023 को आयोजित काव्य गोष्ठी .....

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य-गोष्ठी रविवार 1 अक्टूबर 2023 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने गीत प्रस्तुत करके सभी के हृदय को जीता - 

बांट रहीं दिनकर की किरणें,

 उल्लासित उजियारे।

ऊषा रानी भर लायी है, 

आंचल में सुख सारे। 

 मुख्य अतिथि रामसिंह निशंक की अभिव्यक्ति थी -

अपनी जननी को माॅं कहना किसे नहीं अच्छा लगता। 

सुत का आज्ञाकारी दिखना, किसे नहीं अच्छा लगता। 

विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. महेश 'दिवाकर' की इन पंक्तियों ने सभी के हृदय को छुआ - 

देने को दो शब्द नहीं हैं, भैया पास तुम्हारे। 

कैसे तुमको जगत कहेगा, अपना प्रियतम प्यारे।

 विशिष्ट अतिथि नकुल त्यागी ने कहा - 

लाल बहादुर शास्त्री जी का नारा 

जय जवान जय किसान, 

भारत राष्ट्र बने महान। 

रामदत्त द्विवेदी का दर्द कुछ इस प्रकार झलका - 

समझो, वृद्धों के महत्व को, उनकी कर लो चरण वन्दना। 

दर्जा उनका देवतुल्य है, इसको याद उन्हें है रखना।। 

रामेश्वर प्रसाद 'वशिष्ठ' ने संदेश दिया - 

मानव बन तू दीप सामान,

दीपक सा तू जल जल करके

 कर कर्तव्य महान।

पद्म सिंह बेचैन ने कहा - 

प्यार के इस गीत को मैं गुनगुनाऊॅं किस तरह, 

अपने दिल के दर्द को तुमको बताऊॅं किस तरह। 

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचा - 

आये दिन यदि हो नहीं, आपस में तकरार। 

मन के आँगन में कभी, उठे न फिर दीवार ।। 

मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। 

अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। 

संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने बालमन की अभिलाषा को व्यक्त किया - 

मनभावन यह प्रीत तुम्हारी, किन शब्दों में तोलूं। 

चिड़िया रानी मन है मेरा, साथ तुम्हारे डोलूं। 

 रचना-पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा - 

एक साफ मैदान में, पत्ते, फूल गिराय। 

झाडू हाथों में उठा, फोटो लिया खिंचाय।। 

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने उपस्थित रहकर सभी का उत्साहवर्धन किया।‌ राजीव प्रखर ने आभार-अभिव्यक्त किया ।












मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत .....चिड़िया रानी मन है मेरा साथ तुम्हारे डोलूं ...

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शनिवार, 30 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल ..... अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले


किस तरह घर को बनाते हैं बनाने वाले।

क्या समझ पायेंगे ये आग लगाने वाले।।


वे समझते ही नहीं हैं किसी कमज़ोर का दुख,

हैं  ग़रीबों    को  कई  लोग   सताने  वाले।।


काम करने का तो करते हैं दिखावा केवल,

लोकसेवा  का  बड़ा  ढोल बजाने  वाले।।


जाति और धर्म की चालों में फंसाते हैं हमें,

अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले।।


अपने दुर्गुण भी कभी ध्यान लगा कर देखें,

दूसरों  के  ही  सदा  दोष   गिनाने  वाले।।


देश के मान को अपने से तो ऊंचा जानें,

देश की धुंधली-सी तस्वीर दिखाने वाले।।


 दिल का जो दर्द समाया है मेरी ग़ज़लों में,

कब समझ पायेंगे अनजान ज़माने वाले।।


हौसला रोज़  वे  'ओंकार' बढ़ा देते हैं, 

मेरे भावों को  सदा  मान दिलाने वाले।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला, 

मुरादाबाद 244103

 उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....अपराधी कौन



पात्र परिचय

धरती माता

वन देवी

जल देवी

पर्वत राज

गंगा देवी

मानव

प्रथम अंक

(प्रथम दृश्य) 

(खुले आसमान के नीचे,  एक बड़ी सी  पत्थर की शिला पर ,एक अति सुंदर स्त्री धरती माता, सर पर सुंदर मुकुट सजाए, सोच विचार की मुद्रा में बैठी है, उनके वस्त्र हरे  व नीले रंग के  हैं ।तभी   एक मानव दौड़ता हुआ उस ओर आता है,और उनके चरणों में  गिर पड़ता है।) 

मानव  ( रुंँआसा होकर) मुझे बचाओ!! मुझे बचाओ! हे धरती माता !मुझे बचा लो, मेरी रक्षा करो...!माँ रक्षा करो..! 

धरती माता : (चौंक कर सर ऊपर उठाती हैं, और खड़े होकर उस मानव को उठाती हैं) उठो पुत्र! उठो! तुम क्यों रो रहे हो? 

मानव : (हाथ जोड़कर बिलखते हुए) माँ . .!मेरा और मेरी समस्त प्रजाति का अस्तित्व बहुत  बड़े संकट में है ,मुझे आपकी सहायता चाहिए (अपना गला दोनों हाथों से पकड़ते हुए) मेरा दम घुटा जा रहा है माता, मुझे बचा लो !! 

धरती माता : ओह!! शांत हो जाओ पुत्र, सब ठीक होगा.

मानव: शीघ्रता करिये माता!! मैं मर रहा हूँ (खांसता है) न मेरे पास प्राणदायक आक्सीजन है और न ही शुद्ध जल बचा है.आपकी नदियाँ अपनी मर्यादा लांघकर  मेरे घर में घुसकर तबाही ला रही हैं माता...   और... और!! (खाँसता है)!!! 

धरती माता : और... और क्या वत्स?? (उसे एक पत्थर की शिला पर बैठाती हैं ) संभालो खुद को!! 

मानव : (तनिक संयत होते हुए, खड़ा हो जाता है, और हाथ जोड़कर कहता है ) और माता... आपके शक्तिशाली पुत्र महान पर्वतराज हमारे घरों को क्षति पहुँचा  रहे हैं, हमारे रास्ते रोक लिए हैं माता, और.....चारों ओर विनाश लीला कर रहे हैं ! 

धरती माता : (तनिक क्रोध में भरकर) अच्छा, मैं अभी सबको बारी बारी से बुलाकर पूछती हूँ (तीन बार ताली बजाकर)  वन देवी, जल देवी प्रकट हों!

(तभी हरे रंग के सुंदर वस्त्र व गले में फूलों का हार पहने, वन देवी और नीले रंग के वस्त्र  पहने, गले में मोतियों का हार पहने, जल देवी प्रकट हो जाती हैं, दोनों देवियां शीश झुकाकर धरती माता को समवेत स्वर में प्रणाम करती हैं।) 

जल देवी और वन देवी (समवेत स्वर में) : कहिए धरती माता , क्या आज्ञा है ? हमें आपने किसलिए याद किया है ? 

धरती माता : (क्रोधित होकर मानव की ओर तर्जनी से संकेत करते हुए) हे वन देवी ! यह मानव   प्राणशक्ति वायु न मिल पाने से अत्यधिक कष्ट में है. क्या तुमने इसे अपने वनों द्वारा प्रवाहित होने वाली शुद्ध वायु देना बंद कर दिया है?? यदि तुमने ऐसा किया है तो तुम्हे इसका दण्ड अवश्य मिलेगा!! 

वन देवी : क्षमा करें  धरती माता!  परंतु मैंने ऐसा कदापि नहीं किया है । अपितु  मेरे शरीर में जब तक एक भी हरा पत्ता जीवित है, मैं तब तक समस्त प्राणियों में शुद्ध वायु का संचार करती रहूँगी। 

धरती माता :  तब यह मानव कष्ट में क्यों है पुत्री? कारण स्पष्ट करो? इसका आरोप है कि तुमने इसे मरने के लिए छोड़ दिया है! 

वन देवी : (क्रोध में भरकर,, मानव की ओर लाल- लाल नेत्रों से देखते हुए)  इसका आरोप मिथ्या है  माता!..(क्रोध में काँपती है) इस दुष्ट ने स्वयं मेरे वनों को उजाड़ कर तथाकथित विकास नाम के पर्यावरण भक्षी जीव को जन्म दिया है!!  

धरती माता : (आश्चर्य से) अच्छा..! 

 वन देवी : इससे पूछिए माता... क्या इसने मेरी हरियाली को उजाड़ कर कंक्रीट का जंगल नहीं तैयार किया है ? क्या इसने वनों में रहने वाले लाखों जंगली जीवों को बेघर करके उन्हें मृत्यु के घाट नहीं उतारा है? क्या इसके द्वारा वनों के उजड़ने से वर्षा चक्र नहीं बिगड़ा!!! यह दुष्ट अपने दुष्कर्मों के कारण ही इस दुर्गति को प्राप्त हुआ है माता... ! 

धरती माता (क्रोध में भरकर मानव की ओर देखते हुए) ओहहह तो यह बात है..! 

( कुछ सोचते हुए जल देवी की ओर उन्मुख होती हैं, जो अब तक हाथ जोड़े शांत मुद्रा में सब वार्तालाप ध्यान पूर्वक सुन रही थीं ) 

धरती माता : और तुम जल देवी !! क्या तुमने अपने कर्तव्य से विमुख होकर धरती के जीवों को शुद्ध जल देना  बंद कर दिया है.. ..... ! और यह मैं क्या सुन रही हूँ !! तुम्हारी नदियाँ अपनी सीमा -रेखा लांँघकर मानवों के घरों में घुसकर विनाश लीला कर रही हैं... क्या यही व्यवस्था है तुम्हारी ? कदाचित तुम्हें हमारे दण्ड का भी भय नहीं..!(क्रोध से काँपती है)

जल देवी : नहीं ..नहीं माता ! ऐसा कदापि नहीं है मेरी नदियों ने कोई अतिक्रमण नहीं किया है.. !  अपितु इस स्वार्थी मनुष्य ने ही मेरी नदियों के आंँगन में अपने अवैध घर बना लिए हैं और अब यह दुष्ट उन नदियों पर ही बाढ़ का आरोप लगाकर  उन्हें कलंकित करने का प्रयास कर रहा  है. अब आप ही बताइये माता, मेरी असंख्य नदियाँ कहाँ जाएँ?? उनके रास्ते और आंँगन  इस मानव ने बंद कर दिए हैं.... 

धरती माता : ( बीच में ही रोककर ) अच्छा तो क्या तुम यह कहना चाहती हो जल देवी, कि मानव विकास न करे..... ! अपने घर न बनाये...!!! 

जल देवी :जी नहीं, धरती माता ! मेरा ऐसा तात्पर्य कदापि नहीं है, परंतु विकास का अर्थ यह तो नहीं कि मानव उस पर्यावरण को ही क्षति पहुचाएँ, जिसके कारण वह जीवित है...! 

धरती  माता :अर्थात...!! स्पष्ट कहो पुत्री... ! क्या कहना चाहती हो..! 

जल देवी  : माता इस मानव की दुष्टता  महान  पर्वत राज से अधिक और कौन जान सकता है? और जहाँ तक शुद्ध जल की बात है माता ...,तो पर्वतराज की बड़ी पुत्री और हम सबकी लाडली पतित- पावनी ,गंगा देवी  इस तथ्य पर और अधिक स्पष्टता से प्रकाश डाल सकती हैं . माता ! (दोनों हाथ जोड़कर, विनय पूर्वक)आप उन्हें बुलाकर स्वयं ही पूछ लीजिये! 

धरती माता : उचित है जल देवी..!हम अभी पर्वतराज और गंगा देवी को भी यहाँ बुला लेते हैं (तीन बार ताली बजाकर) पर्वत राज  और पावन गंगा देवी शीघ्र ही प्रकट हों ...! 

(तभी पर्दे के पीछे से कत्थई  व श्वेत रंग के चमकीले वस्त्र पहने पर्वतराज आते हैं, उनके गले में हरे पत्तों का हार है,  साथ ही अत्यंत गौरवर्ण और धवल वेशधारी गंगा देवी आकर धरती माता को शीश झुकाकर, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं) 

पर्वतराज और गंगा माता : (समवेत स्वर में) कहिए धरती माता ..! क्या आज्ञा है ?  आपने हमें किस लिए याद किया है ?

 धरती माता : पुत्र पर्वत राज हिमालय! पुत्री गंगा !!  इस मानव का आरोप यह है...कि तुम सबके कारण उसका जीवन खतरे में पड़ गया है..!! 

पर्वतराज : (मानव की ओर क्रोध से देखकर गर्जना करते हुए) अरे यह दुष्ट अभी तक जीवित है!! मैं अभी इसे अपने मुष्ठि प्रहार से चकनाचूर कर दूंगा ..! (अपने बांये हाथ  की हथेली पर दांये हाथ से घूंसा मारते हुए, आगे बढ़ते हैं) 

(तभी धरती माता पर्वतराज के मार्ग में आ जाती हैं और दोनों हाथों को दोनों ओर फैला कर रोकती हैं। ) 

धरती माता :( लगभग चीखते हुए ) रुक जाओ पर्वतराज!! तुम इस प्रकार प्रकृति के विरुद्ध जाकर मनमानी नहीं कर सकते ..! 

पर्वत राज : क्षमा करें माता , मेरी तो प्रवृत्ति ही धीर- गंभीर है, परंतु यह दुष्ट मानव अपनी प्रजनन- दर कीट पतंगों की भाँति  बढ़ाते हुए, कुकरमुत्तों की भांति दुर्गम पर्वतों पर भी उग आया है और वहां जाकर अतिक्रमण कर दिया है। 

धरती माता : कैसा अतिक्रमण पुत्र ? स्पष्ट कहो! 

पर्वतराज : माता यह मानव हजारों - लाखों की संख्या में अब पर्वतों पर पर्यटन के बहाने समूहों में  आने लगा है। इस दुष्ट मानव ने अपने स्वार्थवश मेरे शरीर को जगह- जगह से तोड़- फोड़ कर मेरे पैरों को शक्तिहीन बना दिया है, जिस कारण मैं ठीक से अपने स्थान पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ ..माता! 

धरती माता : (आश्चर्य से )तुम्हारे पैर कैसे शक्तिहीन हो सकते हैं पुत्र? वह तो हज़ारों मील तक फैले हुए हैं..! 

पर्वतराज:  पूछिए माता इस दुष्ट से! यह मुझतक पहुँचने के लिए , मार्गों को चौड़ा करने हेतु, प्रतिदिन बड़ी -बड़ी मशीनो की सहायता से मेरी शिलाओं को नीचे से काटता जा रहा है, जिस कारण मैं शक्तिहीन होकर गिर रहा हूँ.. माता! 

धरती माता (चिंतित स्वर में )ओहहहहह!! यह तो वास्तव में बड़ी चिंता का विषय है ..! 

धरती माता :(गंगा देवी की ओर उन्मुख होते हुए, स्नेहिल भाव से ) हे महान देवी !आप इस विषय पर मौन क्यों हैं? आप भी अपने विचार रखिए.. ! 

गंगा देवी : हे वसुंधरा देवी ! इस मानव प्रजाति की मूर्खता के कारण इसे पोषित करने वाला,मेरा पावन जल, मलीन होने लगा है, यह मुझमें और मेरी सहायक  नदियों के जल में प्रतिदिन लाखों टन कचरा और प्रदूषित पदार्थ डाल रहा है... मैं जीवनदायिनी गंगा, धीरे- धीरे मर रही हूँ ! यदि मैं ही नहीं रहीं,तब यह मानव भी समाप्त हो जायेगा ! (एक गहरी साँस भरती हैं ) 

धरती माता : बोलो मानव तुम अपने पक्ष में कुछ कहना चाहते हो ? क्या तुम प्रकृति के इन तत्वों के बिना जीवित रह सकते हो ? क्या तुम्हारे पास जीवित रहने का कोई अन्य विकल्प है? असली अपराधी कौन है? ये प्राकृतिक तत्व या तुम...??? 

(मानव बिलखता हुआ धरती माता के चरणों में गिर जाता है।) 

धरती माता :( उसे उठाती हैं )मुझे तुम्हारे आंसू नहीं उत्तर चाहिए, यदि तुम यही विनाश लीला करते रहे तो एक दिन मैं भी समाप्त हो जाऊंगी और तुम भी ..! 

मानव : क्षमा करें माता ..!क्षमा करें ..!मैं ही असली अपराधी हूँ..! मैं स्वयं अपने विनाश  का कारण हूँ, परंतु...मैं वचन देता हूँ माता..आज से मैं अपनी धरती माता को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा। अपनी प्रजाति की प्रजनन दर संसाधनो के अनुपात में रखूंगा, जल के अमूल्य खजाने को भी स्वच्छ व सुरक्षित रखूंगा तथा किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं करुंगा ... ! आपका आँचल पुनः हरा -भरा कर दूँगा माता..! 

धरती माता: ( प्रसन्नता पूर्वक) उचित है पुत्र..! प्रातः का भूला संध्या को अपने घर आये तो वह भूला नहीं कहलाता...! जाइए आप सब लोग अब अपने -अपने कर्तव्य पालन में फिर से लग जाइए..! (अपना सीधा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठाती हैं।) 

( मानव, वन देवी, जल देवी, पर्वतराज  व गंगा देवी सहित सभी धरती माता को प्रणाम कर समवेत स्वर में  :धरती माता की जय ....धरती माता की जय ...! कहते हुए प्रस्थान कर जाते हैं।) 

(परदा गिरता है) 

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार पूजा राणा की रचना ....हमारी मुठ्ठी में

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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत ... गूंजी घर में जब बिटिया की मीठी सी किलकारी

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वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में सात साल पहले 25 सितंबर 2016 को आयोजित 12 वां हस्तलिपि कवि सम्मेलन और मुशायरा

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में वर्ष 2016 से प्रत्येक रविवार को हस्त लिपि वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन निरंतर चल रहा है। इस आयोजन में रचनाकार कागज पर अपनी हस्तलिपि  में रचना लिखते हैं, अपने हस्ताक्षर करते हैं, नाम , पता और मोबाइल फोन नंबर  लिखकर एक कोने में अपना चित्र चिपकाकर उसका चित्र समूह में साझा करते हैं । रविवार 25 सितम्बर 2016 को हमने 12 वां आयोजन किया था ।  इस आयोजन में 19 साहित्यकारों   सर्वश्री राजीव प्रखर जी, योगेन्द्र वर्मा व्योम जी,  डॉ मीना नकवी जी, जिया जमीर जी, डॉ रीता सिंह जी , मनीषा चड्डा जी, मनोज मनु जी, अनवर कैफ़ी जी, मंगलेश लता यादव जी, डॉ एस पी सागर जी वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी, डॉ ममता सिंह जी, प्रदीप शर्मा जी,  डॉ अर्चना गुप्ता जी,हेमा तिवारी भट्ट जी, संयम वत्स जी, डॉ वंदना पाण्डेय जी, मृडीक व्रतेश जी और मैंने डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा की थीं ।प्रस्तुत हैं साझा की गईं रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ..... । 





















:::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822 


सोमवार, 25 सितंबर 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में दिल्ली निवासी) की साहित्यकार विमला रस्तोगी " हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित

 





पंडित हरप्रसाद पाठक साहित्य पुरस्कार समिति के रजत जयंती समारोह तथा तुलसी साहित्य अकादमी मथुरा के संयुक्त तत्वावधान में हुए  एक भव्य साहित्यिक कार्यक्रम में लखनऊ से पधारी लेखिका एवं कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि माननीय स्नेह लता जी ने विमला रस्तोगी को " हिन्दी रत्न " सम्मान से सम्मानित किया ।

मूल रूप से संभल निवासी विमला रस्तोगी की बाल साहित्य की बारह पुस्तकें आई है। अनेकानेक बाल कहानियां और नाटक संग्रहों मे संग्रहित है। आकाशवाणी दिल्लीसे अनेकानेक कहानियां व नाटक प्रसारित हुए है। उ. प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ, से सुभद्रा कुमारी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित विमला रस्तोगी अन्य अनेक सम्मानों से सम्मानित है। 

मथुरा के इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. अनिल वाजपेयी ( प्रधानाचार्य, अमरनाथ डिग्री कालेज, मथुरा ) मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. रवीन्द्र कुमार, मेरठ, विशिष्ट अतिथि  भगवती प्रसाद द्विवेदी, पटना, स्नेह लता जी, लखनऊ थे। 

 समिति के सचिव डॉ. दिनेश पाठक शशि "  तथा अकादमी के अध्यक्ष आचार्य नीरज शास्त्री ने आभार व्यक्त किया।

बुधवार, 20 सितंबर 2023

मुरादाबाद के भारतेंदु युगीन साहित्यकारों पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख



 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष आनंद स्वरूप मिश्रा का कहानी संग्रह ..."टूटती कड़ियां" वर्ष 1993 में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ था। प्रस्तुत है मुरादाबाद के बाल साहित्यकार शिव अवतार सरस जी द्वारा लिखी गई इस संग्रह की भूमिका

कथा साहित्य को भाव-संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम कहा जाता है । इसका इतिहास भी मानव सभ्यता के इतिहास जितना ही पुराना है जिसके प्रमाण हैं अजन्ता और ऐलोरा आदि गुफाओं के वे भित्तीचित्र जो आज भी उस समय की शिकार- गाथाओं का सम्यक संप्रेषण कर रहे हैं। साहित्य की इस सर्वाधिक चर्चित विधा को विश्व की सभी भाषाओं ने उन्मुक्त भाव से अपनाया है। कारण स्पष्ट है क्योंकि समय की दृष्टि से एक कहानी स्वल्प समय में ही सहृदय पाठक के अन्तस्तल को झकझोर कर एक नयी दिशा में सोचने के लिये विवश कर देती है। कहानी में विद्यमान जिज्ञासा का भाव रसग्राही पाठक को आस-पास के वातावरण से दूर ले जाता है। कहानी में प्रयुक्त अन्तर्द्वन्द्व उसे अपने जीवन से जोड़ने का प्रयास करते हैं और पात्रों का मनो- वैज्ञानिक चित्रण उसे अपने निकटस्थ प्रिय एवं अप्रिय लोगों की याद दिलाता है । इस दृष्टि से एक कहानी साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा मानव-मन के अधिक निकट प्रतीत होती है।

'टूटती कड़ियाँ' शीर्षक संकलन के रचनाकार श्री आनन्द स्वरूप मिश्रा स्वातन्त्र्योत्तर कथाकारों में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। जीवन के यथार्थ से सम्पृक्त चरित्र एवं घटनायें लेकर श्री मिश्र ने कथा और उपन्यास साहित्य में जो लेखनी अपने विद्यार्थी जीवन में चलाई थी वह आज ३५-४० वर्षों के उपरान्त भी अवाध गति से चल रही है। इस ग्रंथ में मिश्र जी की उन बारह कहानियों का संकलन है जो विगत ३२ वर्षों के अन्तराल में अरुण, साथी, हरिश्चन्द्र बन्धु एवं विभिन्न वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं आदि में स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। ये सभी कहानियाँ प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त मार्मिक एवं हृदय-ग्राह्य हैं। श्रेष्ठ कहानी के लिये आवश्यक तत्व जिज्ञासा की भावना इन सभी कहानियों में पूर्णरूप से विद्यमान है । कहानी कला के सभी तत्वों का इनमें पूर्णरूपेण निर्वाह हुआ है तथा आदि और अन्त की दृष्टि भी ये सभी कहानियाँ स्वयं में पूर्ण एवं प्रभावोत्पादक हैं। इन सभी कहानियों के सभी पात्र पारिवारिक एवं अपने आस-पास के ही हैं । कहानियों का कथानक सरल, संक्षिप्त, सुगम, मार्मिक एवं प्रभविष्णुता हैं ।

    श्री मिश्र जी की प्रायः सभी कहानियाँ समय की धारा के अनुसार प्रेम एवं रोमांस पर आधारित हैं। अध्ययनकाल के चंचल मन का प्रेम जब यथार्थ की कठोर भूमि पर उतरता है तो हथेली से गिरे पारद (पारे) की भाँति क्षणभर में छिन्न-भिन्न हो जाता है। त्रिकोणात्मक संघर्ष पर आधारित इस संकलन की अधिकांश कहानियों में कहीं प्रेमी को तो कहीं प्रेमिका को अपने अमर प्रेम का बलिदान करना पड़ता है। यदि संकलन की प्रथम कहानी 'टूटती कड़ियां' को लें तो ज्ञात होता है कि उद्यमी अध्यवसायी एवं महत्वाकांक्षी डा अविनाश का डा आरती के प्रति अविचल प्रेम, अवसर मिलने पर भी फलीभूत नहीं हो पाता और अन्त में उसी के आंसुओं के मूल्य पर उसे सलिला के साथ विवाह करना पड़ता है। यथार्थ की मरुभूमि पर जब आदशों के स्वप्निल बादल सूख जाते हैं तब अविनाश जैसे प्रेमियों को यही कहना पड़ता है- "आरती तुम सब कुछ खोकर भी रानी हो और मैं सब कुछ पाकर भी आज भिखारी हूँ ।"

    संकलन की दूसरी कहानी 'सुख की सीमा' की परिणति भी नारी के त्याग पर आधारित है। पति प्रमोद की बगिया हरी भरी रहे इस ध्येय से अध्ययन-काल की सहपाठिनी और बाद में धर्म-पत्नी के पद पर अभिषिक्त जिस रागिनी से स्वयं उमा को सपत्नी के रूप में चुना था उसी उमा के उपेक्षित व्यवहार एवं  एकाधिकार से क्षुब्ध होकर रागिनी को पुनः उसी पैतृक परिवेश  में लौट जाना पड़ता है जहाँ उसके इन साहसिक कृत्यों का कदम- कदम पर विरोध हुआ था ।

    'त्रिभुज का नया विन्दु' शीर्षक कहानी निश्चय ही एक  अप्रत्याशित अन्त लेकर प्रस्फुटित हुई है। कहानी का नायक डा अविरल अपनी चचेरी बहन की शादी में सोलह वर्षीया मानू से मिलता है और उसकी बाल-सुलभ चपलताओं को भुला नहीं पाता है। इधर दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान का प्रोफेसर बनकर वह अन्तिम वर्ष की छात्रा सुवासिनी के चक्कर में फँस जाता है। सुवासिनी होस्टल के वार्डन की पुत्री अनुपमा से मित्रता करके अविरल तक पहुंचने का मार्ग बना लेती है। उधर अविरल के माता-पिता चाहते हैं कि ऊँचे घराने की सुन्दर सुशील कन्या उनके घर वधू के रूप में पदार्पण करे। मगर सीनियर प्राध्यापकों की दृष्टि में सीधा-सादा, पढ़ाकू, दब्बू और लज्जालु अविरल इस त्रिभुज के मध्य एक नया विन्दु खोज लेता है और एम० एस-सी (प्रथम वर्ष) की एक हरिजन छात्रा 'ऋतु राकेश' के साथ प्रेम- विवाह कर सब को हतप्रभ कर देता है ।

    इसी संकलन में संकलित 'कोई नहीं समझा' शीर्षक कहानो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जो इस तथ्य पर चोट करती है कि प्रति वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी ही महापुरुष बन सकता है । नायक शोतल बाबू का अनुज सुरेश हाई स्कूल में लगातार ५ बार फल होकर घर से भाग जाता हैं और फिर एक चुनौती भरा पत्र लिखकर भेजता है कि "मैं हाईस्कूल में पाँच साल फेल होकर भी बड़ा बनकर दिखलाऊँगा ।"

संकलन की एक कहानी 'उम्मीद के सितारे के तीनों पात्र- किशन, प्रमोद और मालती भी एक त्रिभुज के तीन कोण हैं जो भारत सेवक समाज के एक शिविर में एक ही मंच पर उपस्थित होकर परिणाम को एक अप्रत्याशित मोड़ दे देते है । एक पत्रिका के उपसम्पादक के रूप में मध्य प्रदेश चले जाने के कारण प्रेमी किशन और प्रेमिका मालती के मध्य दूरियां बढ़ जाती हैं और मालती हताश होकर समाज सेविका बन जाती है। इधर इसी समाज में प्रमोद नाम का एक भारत सेवक भी है जो स्वयं प्रेम का भूखा है। भावसाम्य के कारण प्रमोद और मालतो में परस्पर मित्रता हो जाती है और प्रमोद उसके साथ शादी कर के भविष्य की योजनायें बनाने लगता है। मगर शिविर की गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिये जब किशन इन दोनों के मध्य आता है तो इस कामना से चुप-चाप भाग जाना चाहता है कि भारत सेवक और समाज सेविका की जोड़ी खूब जंचेगी। मगर वेश बदलने पर भी जब वह मालती की निगाह से बच नहीं पाता है तो उसे मालती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना पड़ता है ।"

संकलन की अन्य कहानी 'कालिख' में डा० सत्येन्द्र का हृदय परिवर्तन कर कथासार ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही इस कहानी में उन दुर्दान्त प्रबन्धकों के मुख पर लगी उस कालिख को भो उजागर किया गया है जो भोली-भाली कन्याओं की विवशता का लाभ उठाकर उनका देह शोषण करते हैं और फिर समाज में हत्या और आत्म-हत्या जैसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं । इस मार्मिक कहानी का अन्त पूर्णतः अप्रत्याशित है । डा सत्येन्द्र ने यह स्वप्न में भी न सोचा होगा कि जिस मालवी के भाई अभय को गुनाह से बचाने के लिये उन्होंने मालती के एवारशन की व्यवस्था की थी वही मालती उनकी पुत्र वधू बनकर उनके घर आ जायेगी। मगर नई विचार धारा का उनका पुत्र रवि जब मालती को अपनी सहधर्मिणी बना लेता है तो वह चाहते हुए भी उसका विरोध नहीं कर पाते हैं ।

   श्री आनन्द स्वरूप मिश्र की सभी कहानियाँ पाठकों के अन्तस्तल को झकझोर देने में पूर्णरूपेण समर्थ है। आशा-निराशा, उत्थान-पतन, आदर्श और यथार्थ के हिण्डोले में झूलते हुए इन कहानियों के सभी पात्र अपने ही निकट और अपने ही बीच के प्रतीत होते हैं। विद्वान कथाकार ने पात्रानुकूल और बोल-चाल की प्रचलित भाषा का प्रयोग करके इन कहानियों को यथार्थ के निकट खड़ा कर दिया है। वाक्य विन्यास इतना सरल और स्पष्ट है कि कहीं भी कोई अवरोध नहीं आ पाता - यथा 'यह सुवासिनी भी बड़ी तोप चीज है। आती है तो मानो तूफान आ जाता है । बोलती है तो जैसे पहाड़ हिल जाते हैं और जाती है तो सोचने को छोड़ जाती है ढेर सारा ।'( त्रिभुज का नया बिन्दु ) 

वातावरण के निर्माण में भी कथाकार को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । यथा "बाहर दृष्टि दौड़ी-चारों ओर खेत ही खेत दिखाई देते थे । गेहूँ के नवल पत्ते सकुचाते हुए से अपना शरीर इधर उधर हिला रहे थे। कोमल कलियाँ अपनी वय: सन्धि की अवस्था में अँखुड़ियों के वस्त्रों से तन ढकती हुई अपने ही में सिमिट रही थी "...." (उम्मीद के सितारे)


श्री मिश्र ने अपने कथा शिल्प में अन्तर्द्वन्द के साथ फ्लैशबैक का भी पर्याप्त सहारा लिया है। इसी कारण आपकी कहानियों में जिज्ञासा को पर्याप्त स्थान मिला है। शैली की दृष्टि से वर्णनात्मकता के साथ इन कहानियों में संवाद शैली का भी यथेष्ठ उपयोग हुआ है। कुछ संवाद तो इतने सरल, सरस और सटीक है कि सूक्ति वाक्य ही बन गये हैं यथा - "एक आदर्श पति

तो बनाया जा सकता है पर आदर्श प्रेमी नहीं ।"

"नारी बिना सहारे के जीवित नहीं रह सकती ।" "एक नारी क्या कभी पराजित हुई है पुरुष के आगे ?"( शाप का अन्त)


श्री मिश्र एक सिद्ध हस्त लेखक हैं। अलग-अलग राहें, प्रीत की रीत, अंधेरे उजाले , कर्मयोगिनी शीर्षक उपन्यासों के प्रकाशन के उपरान्त आपका यह प्रथम कहानी संग्रह पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । आशा है कि जिस प्रकार हिन्दी जगत ने आपके उपन्यासों को सराहा और सम्मान दिया है उसी प्रकार यह कहानी संग्रह भी समादर और सम्मान प्राप्त करेगा ।



✍️ शिव अवतार 'सरस' 

मालती नगर

मुरादाबाद


::::::::प्रस्तुति::::::

, डॉ मनोज रस्तोगी

सोमवार, 18 सितंबर 2023

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 17 सितंबर2023 को आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं रचनाकार हरिप्रकाश शर्मा को कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद की कला एवं साहित्यिक संस्था कला भारती (साहित्य समागम) की ओर से रविवार 17 सितंबर 2023 को आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार हरिप्रकाश शर्मा को आज हुए एक समारोह में कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था की ओर से उपरोक्त सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में बाबा संजीव आकांक्षी उपस्थित रहे।  संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। 

सम्मानित व्यक्तित्व हरिप्रकाश शर्मा पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर जबकि अर्पित मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। सम्मान स्वरूप श्री शर्मा को अंग-वस्त्र, प्रतीक चिह्न, मानपत्र एवं श्रीफल भेंट किए गये। श्री हरिप्रकाश शर्मा ने पत्रकार एवं रचनाकार दोनों रूपों में उल्लेखनीय कार्य किया है। 

   सम्मान समारोह के पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए सम्मानित व्यक्तित्व  हरिप्रकाश शर्मा ने कहा -  

मैं अतीत में 

ममता के समुद्र के मध्य 

रेत के टीले पर खड़ा 

एक सुनहरा महल था।

 कुछ स्वार्थ से सनी तूफ़ानी लहरें 

उसका भी काट गई थीं किनारा

अफ़सोस अब महल का खण्डहर भी 

मेरी मात्र स्मृतियों की 

अस्थियों का पिटारा है

रामदत्त द्विवेदी का कहना था - 

हिमगिरी की चोटी पर पहुंचा अपना कोई आज है। ईश्वर ने कर कृपा बनाया, ऐसा उत्तम काज है।

ओंकार सिंह ओंकार के उद्गार थे - 

हम नई राहें बनाने का जतन करते चलें। 

जो भी वीराने मिलें, उनको चमन करते चलें। 

रात भर जलकर स्वयं जो रोशनी करते रहे। 

उन दियों की साधनाओं को नमन करते चलें।  

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए कहा - 

धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर। 

जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।। 

जिनसे बदले रोज़ ही, जीवन का भूगोल। 

साँसों से कुछ कम नहीं, संघर्षों का मोल।।

बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा -

 बड़े  अमीर से अच्छी खासी यारी है। 

उसे ये मुगालता  बहुत भारी है। 

दोस्त दुश्मन में भी फर्क़ करना छोड़ दिया,

 ज़हन-ओ-दिल में सियासत इस कदर उतारी है।

राजीव प्रखर ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में कहा - 

बहुत है दूर यह माना, तुम्हारी प्रीत की नगरी। 

तुम्हारे ध्यान में मोहन, सदा भायी यही डगरी। 

उड़ेगा प्राण-पंछी जब, मुझे भव-पार कर दोगे। 

इसी विश्वास से मैंने, सजाई शीश पर गगरी। 

आवरण अग्रवाल ने आह्वान किया -

 हिन्दू न मुसलमान की हिंदी भाषा है हिंदुस्तान की। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

मुख से निकले शीतल वाणी, 

जिसको सुन हर्षित हो प्राणी।  

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया।