किस तरह घर को बनाते हैं बनाने वाले।
क्या समझ पायेंगे ये आग लगाने वाले।।
वे समझते ही नहीं हैं किसी कमज़ोर का दुख,
हैं ग़रीबों को कई लोग सताने वाले।।
काम करने का तो करते हैं दिखावा केवल,
लोकसेवा का बड़ा ढोल बजाने वाले।।
जाति और धर्म की चालों में फंसाते हैं हमें,
अब भी कुछ लोग तो हैं हमको लड़ाने वाले।।
अपने दुर्गुण भी कभी ध्यान लगा कर देखें,
दूसरों के ही सदा दोष गिनाने वाले।।
देश के मान को अपने से तो ऊंचा जानें,
देश की धुंधली-सी तस्वीर दिखाने वाले।।
दिल का जो दर्द समाया है मेरी ग़ज़लों में,
कब समझ पायेंगे अनजान ज़माने वाले।।
हौसला रोज़ वे 'ओंकार' बढ़ा देते हैं,
मेरे भावों को सदा मान दिलाने वाले।।
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी/241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
मेरी रचना को साहित्यिक मुरादाबाद में प्रकाशित करने के लिए डॉ.मनोज रस्तोगी जी का हार्दिक धन्यवाद
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