मुरादाबाद की कला एवं साहित्यिक संस्था कला भारती (साहित्य समागम) की ओर से रविवार 17 सितंबर 2023 को आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार हरिप्रकाश शर्मा को आज हुए एक समारोह में कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था की ओर से उपरोक्त सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में बाबा संजीव आकांक्षी उपस्थित रहे। संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
सम्मानित व्यक्तित्व हरिप्रकाश शर्मा पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर जबकि अर्पित मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। सम्मान स्वरूप श्री शर्मा को अंग-वस्त्र, प्रतीक चिह्न, मानपत्र एवं श्रीफल भेंट किए गये। श्री हरिप्रकाश शर्मा ने पत्रकार एवं रचनाकार दोनों रूपों में उल्लेखनीय कार्य किया है।
सम्मान समारोह के पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए सम्मानित व्यक्तित्व हरिप्रकाश शर्मा ने कहा -
मैं अतीत में
ममता के समुद्र के मध्य
रेत के टीले पर खड़ा
एक सुनहरा महल था।
कुछ स्वार्थ से सनी तूफ़ानी लहरें
उसका भी काट गई थीं किनारा
अफ़सोस अब महल का खण्डहर भी
मेरी मात्र स्मृतियों की
अस्थियों का पिटारा है
रामदत्त द्विवेदी का कहना था -
हिमगिरी की चोटी पर पहुंचा अपना कोई आज है। ईश्वर ने कर कृपा बनाया, ऐसा उत्तम काज है।
ओंकार सिंह ओंकार के उद्गार थे -
हम नई राहें बनाने का जतन करते चलें।
जो भी वीराने मिलें, उनको चमन करते चलें।
रात भर जलकर स्वयं जो रोशनी करते रहे।
उन दियों की साधनाओं को नमन करते चलें।
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए कहा -
धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर।
जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।।
जिनसे बदले रोज़ ही, जीवन का भूगोल।
साँसों से कुछ कम नहीं, संघर्षों का मोल।।
बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा -
बड़े अमीर से अच्छी खासी यारी है।
उसे ये मुगालता बहुत भारी है।
दोस्त दुश्मन में भी फर्क़ करना छोड़ दिया,
ज़हन-ओ-दिल में सियासत इस कदर उतारी है।
राजीव प्रखर ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में कहा -
बहुत है दूर यह माना, तुम्हारी प्रीत की नगरी।
तुम्हारे ध्यान में मोहन, सदा भायी यही डगरी।
उड़ेगा प्राण-पंछी जब, मुझे भव-पार कर दोगे।
इसी विश्वास से मैंने, सजाई शीश पर गगरी।
आवरण अग्रवाल ने आह्वान किया -
हिन्दू न मुसलमान की हिंदी भाषा है हिंदुस्तान की।
नकुल त्यागी ने कहा -
मुख से निकले शीतल वाणी,
जिसको सुन हर्षित हो प्राणी।
आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया।
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