कथा साहित्य को भाव-संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम कहा जाता है । इसका इतिहास भी मानव सभ्यता के इतिहास जितना ही पुराना है जिसके प्रमाण हैं अजन्ता और ऐलोरा आदि गुफाओं के वे भित्तीचित्र जो आज भी उस समय की शिकार- गाथाओं का सम्यक संप्रेषण कर रहे हैं। साहित्य की इस सर्वाधिक चर्चित विधा को विश्व की सभी भाषाओं ने उन्मुक्त भाव से अपनाया है। कारण स्पष्ट है क्योंकि समय की दृष्टि से एक कहानी स्वल्प समय में ही सहृदय पाठक के अन्तस्तल को झकझोर कर एक नयी दिशा में सोचने के लिये विवश कर देती है। कहानी में विद्यमान जिज्ञासा का भाव रसग्राही पाठक को आस-पास के वातावरण से दूर ले जाता है। कहानी में प्रयुक्त अन्तर्द्वन्द्व उसे अपने जीवन से जोड़ने का प्रयास करते हैं और पात्रों का मनो- वैज्ञानिक चित्रण उसे अपने निकटस्थ प्रिय एवं अप्रिय लोगों की याद दिलाता है । इस दृष्टि से एक कहानी साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा मानव-मन के अधिक निकट प्रतीत होती है।
'टूटती कड़ियाँ' शीर्षक संकलन के रचनाकार श्री आनन्द स्वरूप मिश्रा स्वातन्त्र्योत्तर कथाकारों में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। जीवन के यथार्थ से सम्पृक्त चरित्र एवं घटनायें लेकर श्री मिश्र ने कथा और उपन्यास साहित्य में जो लेखनी अपने विद्यार्थी जीवन में चलाई थी वह आज ३५-४० वर्षों के उपरान्त भी अवाध गति से चल रही है। इस ग्रंथ में मिश्र जी की उन बारह कहानियों का संकलन है जो विगत ३२ वर्षों के अन्तराल में अरुण, साथी, हरिश्चन्द्र बन्धु एवं विभिन्न वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं आदि में स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। ये सभी कहानियाँ प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त मार्मिक एवं हृदय-ग्राह्य हैं। श्रेष्ठ कहानी के लिये आवश्यक तत्व जिज्ञासा की भावना इन सभी कहानियों में पूर्णरूप से विद्यमान है । कहानी कला के सभी तत्वों का इनमें पूर्णरूपेण निर्वाह हुआ है तथा आदि और अन्त की दृष्टि भी ये सभी कहानियाँ स्वयं में पूर्ण एवं प्रभावोत्पादक हैं। इन सभी कहानियों के सभी पात्र पारिवारिक एवं अपने आस-पास के ही हैं । कहानियों का कथानक सरल, संक्षिप्त, सुगम, मार्मिक एवं प्रभविष्णुता हैं ।
श्री मिश्र जी की प्रायः सभी कहानियाँ समय की धारा के अनुसार प्रेम एवं रोमांस पर आधारित हैं। अध्ययनकाल के चंचल मन का प्रेम जब यथार्थ की कठोर भूमि पर उतरता है तो हथेली से गिरे पारद (पारे) की भाँति क्षणभर में छिन्न-भिन्न हो जाता है। त्रिकोणात्मक संघर्ष पर आधारित इस संकलन की अधिकांश कहानियों में कहीं प्रेमी को तो कहीं प्रेमिका को अपने अमर प्रेम का बलिदान करना पड़ता है। यदि संकलन की प्रथम कहानी 'टूटती कड़ियां' को लें तो ज्ञात होता है कि उद्यमी अध्यवसायी एवं महत्वाकांक्षी डा अविनाश का डा आरती के प्रति अविचल प्रेम, अवसर मिलने पर भी फलीभूत नहीं हो पाता और अन्त में उसी के आंसुओं के मूल्य पर उसे सलिला के साथ विवाह करना पड़ता है। यथार्थ की मरुभूमि पर जब आदशों के स्वप्निल बादल सूख जाते हैं तब अविनाश जैसे प्रेमियों को यही कहना पड़ता है- "आरती तुम सब कुछ खोकर भी रानी हो और मैं सब कुछ पाकर भी आज भिखारी हूँ ।"
संकलन की दूसरी कहानी 'सुख की सीमा' की परिणति भी नारी के त्याग पर आधारित है। पति प्रमोद की बगिया हरी भरी रहे इस ध्येय से अध्ययन-काल की सहपाठिनी और बाद में धर्म-पत्नी के पद पर अभिषिक्त जिस रागिनी से स्वयं उमा को सपत्नी के रूप में चुना था उसी उमा के उपेक्षित व्यवहार एवं एकाधिकार से क्षुब्ध होकर रागिनी को पुनः उसी पैतृक परिवेश में लौट जाना पड़ता है जहाँ उसके इन साहसिक कृत्यों का कदम- कदम पर विरोध हुआ था ।
'त्रिभुज का नया विन्दु' शीर्षक कहानी निश्चय ही एक अप्रत्याशित अन्त लेकर प्रस्फुटित हुई है। कहानी का नायक डा अविरल अपनी चचेरी बहन की शादी में सोलह वर्षीया मानू से मिलता है और उसकी बाल-सुलभ चपलताओं को भुला नहीं पाता है। इधर दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान का प्रोफेसर बनकर वह अन्तिम वर्ष की छात्रा सुवासिनी के चक्कर में फँस जाता है। सुवासिनी होस्टल के वार्डन की पुत्री अनुपमा से मित्रता करके अविरल तक पहुंचने का मार्ग बना लेती है। उधर अविरल के माता-पिता चाहते हैं कि ऊँचे घराने की सुन्दर सुशील कन्या उनके घर वधू के रूप में पदार्पण करे। मगर सीनियर प्राध्यापकों की दृष्टि में सीधा-सादा, पढ़ाकू, दब्बू और लज्जालु अविरल इस त्रिभुज के मध्य एक नया विन्दु खोज लेता है और एम० एस-सी (प्रथम वर्ष) की एक हरिजन छात्रा 'ऋतु राकेश' के साथ प्रेम- विवाह कर सब को हतप्रभ कर देता है ।
इसी संकलन में संकलित 'कोई नहीं समझा' शीर्षक कहानो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है जो इस तथ्य पर चोट करती है कि प्रति वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी ही महापुरुष बन सकता है । नायक शोतल बाबू का अनुज सुरेश हाई स्कूल में लगातार ५ बार फल होकर घर से भाग जाता हैं और फिर एक चुनौती भरा पत्र लिखकर भेजता है कि "मैं हाईस्कूल में पाँच साल फेल होकर भी बड़ा बनकर दिखलाऊँगा ।"
संकलन की एक कहानी 'उम्मीद के सितारे के तीनों पात्र- किशन, प्रमोद और मालती भी एक त्रिभुज के तीन कोण हैं जो भारत सेवक समाज के एक शिविर में एक ही मंच पर उपस्थित होकर परिणाम को एक अप्रत्याशित मोड़ दे देते है । एक पत्रिका के उपसम्पादक के रूप में मध्य प्रदेश चले जाने के कारण प्रेमी किशन और प्रेमिका मालती के मध्य दूरियां बढ़ जाती हैं और मालती हताश होकर समाज सेविका बन जाती है। इधर इसी समाज में प्रमोद नाम का एक भारत सेवक भी है जो स्वयं प्रेम का भूखा है। भावसाम्य के कारण प्रमोद और मालतो में परस्पर मित्रता हो जाती है और प्रमोद उसके साथ शादी कर के भविष्य की योजनायें बनाने लगता है। मगर शिविर की गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिये जब किशन इन दोनों के मध्य आता है तो इस कामना से चुप-चाप भाग जाना चाहता है कि भारत सेवक और समाज सेविका की जोड़ी खूब जंचेगी। मगर वेश बदलने पर भी जब वह मालती की निगाह से बच नहीं पाता है तो उसे मालती का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना पड़ता है ।"
संकलन की अन्य कहानी 'कालिख' में डा० सत्येन्द्र का हृदय परिवर्तन कर कथासार ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही इस कहानी में उन दुर्दान्त प्रबन्धकों के मुख पर लगी उस कालिख को भो उजागर किया गया है जो भोली-भाली कन्याओं की विवशता का लाभ उठाकर उनका देह शोषण करते हैं और फिर समाज में हत्या और आत्म-हत्या जैसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं । इस मार्मिक कहानी का अन्त पूर्णतः अप्रत्याशित है । डा सत्येन्द्र ने यह स्वप्न में भी न सोचा होगा कि जिस मालवी के भाई अभय को गुनाह से बचाने के लिये उन्होंने मालती के एवारशन की व्यवस्था की थी वही मालती उनकी पुत्र वधू बनकर उनके घर आ जायेगी। मगर नई विचार धारा का उनका पुत्र रवि जब मालती को अपनी सहधर्मिणी बना लेता है तो वह चाहते हुए भी उसका विरोध नहीं कर पाते हैं ।
श्री आनन्द स्वरूप मिश्र की सभी कहानियाँ पाठकों के अन्तस्तल को झकझोर देने में पूर्णरूपेण समर्थ है। आशा-निराशा, उत्थान-पतन, आदर्श और यथार्थ के हिण्डोले में झूलते हुए इन कहानियों के सभी पात्र अपने ही निकट और अपने ही बीच के प्रतीत होते हैं। विद्वान कथाकार ने पात्रानुकूल और बोल-चाल की प्रचलित भाषा का प्रयोग करके इन कहानियों को यथार्थ के निकट खड़ा कर दिया है। वाक्य विन्यास इतना सरल और स्पष्ट है कि कहीं भी कोई अवरोध नहीं आ पाता - यथा 'यह सुवासिनी भी बड़ी तोप चीज है। आती है तो मानो तूफान आ जाता है । बोलती है तो जैसे पहाड़ हिल जाते हैं और जाती है तो सोचने को छोड़ जाती है ढेर सारा ।'( त्रिभुज का नया बिन्दु )
वातावरण के निर्माण में भी कथाकार को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । यथा "बाहर दृष्टि दौड़ी-चारों ओर खेत ही खेत दिखाई देते थे । गेहूँ के नवल पत्ते सकुचाते हुए से अपना शरीर इधर उधर हिला रहे थे। कोमल कलियाँ अपनी वय: सन्धि की अवस्था में अँखुड़ियों के वस्त्रों से तन ढकती हुई अपने ही में सिमिट रही थी "...." (उम्मीद के सितारे)
श्री मिश्र ने अपने कथा शिल्प में अन्तर्द्वन्द के साथ फ्लैशबैक का भी पर्याप्त सहारा लिया है। इसी कारण आपकी कहानियों में जिज्ञासा को पर्याप्त स्थान मिला है। शैली की दृष्टि से वर्णनात्मकता के साथ इन कहानियों में संवाद शैली का भी यथेष्ठ उपयोग हुआ है। कुछ संवाद तो इतने सरल, सरस और सटीक है कि सूक्ति वाक्य ही बन गये हैं यथा - "एक आदर्श पति
तो बनाया जा सकता है पर आदर्श प्रेमी नहीं ।"
"नारी बिना सहारे के जीवित नहीं रह सकती ।" "एक नारी क्या कभी पराजित हुई है पुरुष के आगे ?"( शाप का अन्त)
श्री मिश्र एक सिद्ध हस्त लेखक हैं। अलग-अलग राहें, प्रीत की रीत, अंधेरे उजाले , कर्मयोगिनी शीर्षक उपन्यासों के प्रकाशन के उपरान्त आपका यह प्रथम कहानी संग्रह पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । आशा है कि जिस प्रकार हिन्दी जगत ने आपके उपन्यासों को सराहा और सम्मान दिया है उसी प्रकार यह कहानी संग्रह भी समादर और सम्मान प्राप्त करेगा ।
✍️ शिव अवतार 'सरस'
मालती नगर
मुरादाबाद
::::::::प्रस्तुति::::::
, डॉ मनोज रस्तोगी
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