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मंगलवार, 9 जनवरी 2024
वर्ष 1965 में चर्चित बाल पत्रिका पराग में साहित्यकार श्री ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता इतिहास का पर्चा प्रकाशित हुई थी। सत्रह वर्ष पश्चात यही पूरी कविता श्री रामावतार चेतन जी के नाम से पराग में ही वर्ष 1982 में प्रकाशित हुई । इस संदर्भ में मैंने आदरणीय श्री आदित्य जी को पत्र लिखा जिसका उन्होंने 5 जून 1982 को उत्तर दिया । आज पुरानी फाइलों में दबा यह पत्र मिला ।आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है ....…(उस समय मैं इंटर मीडिएट का विद्यार्थी था )
सोमवार, 1 जनवरी 2024
मुरादाबाद जनपद के कुरकावली (जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् की पुस्तक ‘चल मनवा उस पार’ का एल.पी.जी.आई. साहित्या एसोसिएशन (रजि.) द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में विमोचन
बुधवार, 27 दिसंबर 2023
मंगलवार, 26 दिसंबर 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार ज़िया ज़मीर की ग़ज़ल.....मेरे चुप रहने पे सदमा क्यों लगा है उसको
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रविवार, 24 दिसंबर 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 10 । यह कृति वर्ष 2023 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में उनके द्वारा लिए गए 49 साक्षात्कार समाहित हैं...
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::::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
सोमवार, 18 दिसंबर 2023
बुधवार, 13 दिसंबर 2023
मंगलवार, 5 दिसंबर 2023
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य...मल्लिका और क़ब्र के मुर्दे.
मल्लिका शेरावत के कपड़े दो रूमालों से ही तैयार होते हैं। एक रुमाल भी अगर हो तो वह उसे कैमरे के लैंसों पर रखकर काम चला सकती है। इतना बूता बॉलीवुड कि अन्य हेरोइनों में नहीं है। उनको थोड़े बड़े वस्त्र चाहिए। किफायत उनके बस की नहीं। वे सब वैसा नहीं सोचतीं, जैसा कि उन्हें सोचने के 'पॉइंट ऑफ़ व्यू' से सोचना चाहिए कि क्या सोचें ?
जीवन के बावन घटिया बसंत पार कर चुकने के बावजूद, जब कभी हम मल्लिका के अल्प पारदर्शी वस्त्रों की और निगाहें उठाते हैं, तो मन में एक कसक सी होती है और जिसे हम शेरो-शायरी में बयान करने कि बजाय सीधे-साधे बताये दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही होता है। दुनिया बहुत बड़ी है और किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है। यह हर आदमी का निजी अधिकार है और सेंसर बोर्ड का बाप भी इसके इस्तेमाल से किसी को नहीं रोक सकता।
ध्यान से देखा जाये, तो लगेगा कि मल्लिका एक ख़ास क़िस्म की अदा से हमें टी.वी. स्क्रीन के अंदर बुला रही होती है कि "आ जाओ, तो पाइप से चिपकने के बजाये तुम्हारा ही इस्तेमाल कर लें।" कई मर्तबा इस चक्कर में हम टी.वी. से सटकर भी बैठ गए कि शायद कोई तकनीकी चमत्कार ऐसा हो जाये कि हम स्क्रीन में अपने आप घुस जाएं और डांस कर रहे हीरो को चपतिया कर उसकी जगह ले लें। मल्लिका को देखकर मन उसको 'डिजिटल शेप' में देखने को आतुर हो जाता है। हर दिशा से और हर तरह से कब्रों में जाने से पहले दो बुजुर्ग मल्लिका को लेकर चर्चा कर रहे थे।
"देख रहे हो, क्या कशिश है ?" क़ब्र में पहले जाने को तैयार बैठे बुजुर्ग ने अख़बारी फोटो में दर्ज मल्लिका का बदन निहारते हुए यह सिद्ध कर दिया कि हौंसले जब शरीर का साथ छोड़ देते हैं, तो वे दिल में अपना स्थाई मुकाम बना लेते हैं।
"हमारे ज़माने में कुक्कू और सुरैया कि जगह अगर यह होती, तो फिल्मों का अपना अलग ही मज़ा होता। " जूनियर बुजुर्ग ने, जो नहीं हुआ, उसके न होने का अफ़सोस ज़ाहिर किया।
"ख़ासतौर से, जब वह किसी फलौदी पाइप के सहारे अपनी कामनायें व्यक्त करने कि कोशिश करती, तो उस ज़माने में लोग अपनी-अपनी टंकियों के पाइप उखाड़कर उसके पास भिजवाते कि लो, यह ज़्यादा मज़बूत और टिकाऊ
है। डांस में कभी इसे भी इस्तेमाल होने का मौका दें।" सीनियर बुजुर्ग ने डरते हुए एक यथासंभव गहरी साँस यह सोचते हुए छोटी की कि कहीं यह उनकी आखिरी साँस न हो।
"चलो, जवानी में न सही, अब तो हसरतें पूरी कर ही लीं।" हसरतों की व्यापकता पर प्रकाश डाल बिना जूनियर बुजुर्ग ने तसल्ली दी।
किसी स्थानीय अख़बार के हवाले से पता चला कि 'कब्रिस्तान के पास से मल्लिका के गुजरने पर दो मुर्दे ज़िंदा होकर उसके साथ चल दिए।' इस शीर्षक के नीचे समाचार में यह भी विस्तार से बताया गया था कि उसके साथ किस कार्य से, कहाँ और कितने बजे गये थे।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
सोमवार, 4 दिसंबर 2023
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य....सड़कें और कमीशनख़ोरी
"सड़क का ठेका आप ही के पास है ?" बड़े अफसर का छोटा, मगर निहायत महत्वपूर्ण सवाल हवा में उछला।
"जी, मेरे पास ही है।" खुद को गुनहगार न समझते हुए ठेकेदार ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
"कितने दिन में काम पूरा हो जायेगा ?"अफसर ने पूछा।
"साल भर तो लग ही जायेगा, साहब !" ज़्यादा वक्त में ज़्यादा लागत का हिसाब लगाते हुए उत्तर मिला।
"एक महीने में नहीं हो सकता?" जीवन क्षण-भंगुर है और वक्त का कुछ पता नहीं कि कब, क्या हो जाये, इस भावना के तहत अफसर ने सवाल किया।
"हो भी सकता है, साहब लेकिन वो बात नहीं आएगी। आप हुक्म करें, तो महीने भर में करा दें ?" अफसर से आदेश पाकर कृतार्थ होने के अंदाज़ में ठेकेदार ने प्रतिपृश्न किया।
"यही सही रहेगा।" कमीशनखोरी में अल्प वाक्यों का प्रयोग ही सही और 'सेफ' रहता है, यह सिद्ध करते हुए अफसर ने 'एकमाही सड़क-कार्यक्रम' को हरी झंडी दिखा दी।
"सर, एक ही गुज़ारिश है कि बरसात में जब सड़क उखड़ जाये, तो अगली बार का ठेका भी हमारा ही करा दें।" कमीशनखोरी में सहभागिता के हिसाब से ठेकेदार ने आग्रह किया।
"चिंता मत करो। मेरा ट्रांस्फर भी हो गया तो आने वाले अफसर को बता जाऊँगा कि तुम कितने 'टेलेंटेड' हो, जो साल भर का काम एक ही महीने में निपटा देते हो। हर अफसर यही पसंद करता है।" कमीशनखोरी कि सर्वव्यापकता पर अपनी टिप्पणी करते हुए अफसर ने आश्वस्त किया।
"बस सर,आपकी कृपा दृष्टि बनी रही, तो जहाँ-जहाँ आपकी पोस्टिंग होगी, मैं वहाँ-वहाँ भी अपने इस हुनर का इस्तेमाल कर सकूंगा।" ठेकेदार ने अफसर को भावी कमीशनखोरी के अंगूर दिखते हुए एक बड़ा लिफ़ाफ़े उनके सामने रख दिया।
"वैरी गुड। लगे रहो" लिफ़ाफ़े में रखी नोटों की गड्डियों को विश्वास नाम की चीज़ इस दुनिया में अभी भी मौज़ूद होने की वजह से अफसर ने बिना देखे अपने बैग में रखते हुए प्रोत्साहन दिया और कुछ धूल फाँक रहीं मोटी फाइलों में संभावनायें तलाशने लग गया।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल को राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' स्मृति सम्मान से हिन्दी साहित्य संगम ने तीन दिसंबर 2023 को किया सम्मानित
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल को राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के संस्थापक कीर्तिशेष श्रृंग जी की पुण्यतिथि के अवसर पर, संस्था की ओर से यह वार्षिक सम्मान समारोह 3 दिसंबर 2023 रविवार को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रघुराज सिंह निश्चल ने की। मुख्य अतिथि डॉ आर सी शुक्ल एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ महेश दिवाकर एवं ओंकार सिंह ओंकार मंचासीन हुए, जबकि कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया। सम्मान स्वरूप श्री शुक्ल को अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए।
श्री शुक्ल का जीवन परिचय राजीव प्रखर एवं अर्पित मान पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' के विषय में अपने विचार रखते हुए श्री ओंकार सिंह ओंकार ने कहा - "कीर्तिशेष श्रृंग जी मानवीय मूल्यों से जुड़े ऐसे उत्कृष्ट रचनाकार थे जिनकी रचनाएं समाज को निरंतर प्रेरित कर रही हैं।"
सम्मानित साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय में प्रकाश डालते हुए डॉ महेश दिवाकर का कहना था - "साहित्य व समाज के लिए डॉ आर सी शुक्ल का योगदान अनमोल है। उनका सृजन अन्तस की गहराई में उतर कर मानवीय संवेदनाओं को साकार करता है।"
इस अवसर पर श्री शुक्ल ने काव्य-पाठ करते हुए कहा - "सारा जीवन बीत गया अनुमानों में। पर यह रहस्य रह गया, समझ के बाहर ही, किस आशय को लिये जगत् में जीता हूॅं।"
अध्यक्षता कर रहे रघुराज सिंह निश्चल ने कहा - "विपरीत परिस्थितियों में भी डाॅ आर सी शुक्ल निरंतर सृजनरत रहकर सभी के सम्मुख उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। उनकी संचेतना व जीवट उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देते हैं।"
वरिष्ठ रचनाकार रामदत्त द्विवेदी का कहना था - "डॉ आर सी शुक्ल साहित्य में ऊॅंचाई पर होने के बाद भी आम जनमानस के लोकप्रिय बहुमुखी साहित्यकार हैं।"
काव्य पाठ एवं अभिव्यक्ति की श्रृंखला में विभिन्न रचनाकारों योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, कंचन खन्ना, रामसिंह निशंक, नकुल त्यागी, पद्म सिंह, रामदत्त द्विवेदी आदि ने भी अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग एवं डॉ आर सी शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।
रविवार, 3 दिसंबर 2023
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ....भैंसिया गाँव की भैंसें
जिसकी लाठी होती है, उसके पास एक अदद भैंस भी होती है। भैंस होने के लिए लाठी का होना एक अनिवार्यता है। बिना लाठी के आप भैंस के मालिक नहीं हो सकते। भैंस खरीदने से पहले लाठी ख़रीदना ज़रूरी होता है। इसके बिना न तो आप अपनी 'भैंसियत' दिखा सकते हैं और न ही यह दावा कर सकते हैं कि यह जो भैंस आपके घर के बाहर खड़ी है, यह आपकी ही है। इसे पत्नी की तरह मानकर चलें। किसी की पत्नी को अगर यह साबित करना हो कि वह उसी की है, तो उस पत्नी के मुँह से भैंस के स्वर में यह कहलवा दें कि "मैं इन्हीं की हूँ और इन्हीं की रहूँगी।" बात ख़त्म हुई।
यह एक विचित्र बात लगी कि भैंसियां गाँव की भैंसों में लड़ाई हुई और नौबत लाठियों तक आ पहुँची। दोनों पक्षों पर चूँकि भैंसें थीं, इसीलिए एक दूसरे पर लाठियों का होना भी लाज़मी है। लिहाज़ा भैंसों ने अपने सींगों से लड़ाई लड़ी और उनके मालिकों ने सींग न होने की वजह से अपनी लाठियाँ चलाई। जमकर युद्ध हुआ। नौ लोग घायल हुए। भैंसों को कोई हानि नहीं हुई। लड़ने के बाद वे एक तरफ खड़ी होकर आदमी की लाठियों की लड़ाई देखती रहीं। अखबारी संवाददाता ने बताया कि भैंसें आपस में हँस भी रही थीं- इस दौरान।
भैसों के लिए प्रसिद्ध 'भैंसिया गाँव' में भैसों के अलावा लाठियाँ रखने वाले आदमी भी रहते हैं, रहस्य की यह बात एक पुलिस अधिकारी ने बताकर हमारे हमारे ज्ञान में इज़ाफा किया। महंगाई के इस दौर में जब बीवी और बच्चों को पालना मुश्किल होता है, तो ज़रा कल्पना कीजिये कि भैंसें पालना कितना कठिन होगा। जो लोग अपनी भैंस को बीवी से अधिक महत्व देते हैं या उसे वही सम्मान देते है, जो अपनी भैंस को देते चले आये है, तो उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा पैदा होती है और इंशा अल्लाह हमेशा होती रहेगी।
वाकया एक गाँव के परिचित का है। उनसे भेंट हुई, तो घर के हाल चाल पूछे और साथ ही यह भी कि "यार, भाभी को ले आते ?" थोड़ा सोचने के बाद वे बोले,‘’दद्दा, बाऊ को लायैं, तो भैंसियन कोऊ लाये ?"हम समझ गए की उनकी भैंसिया और बीवी में से कोई एक ही आ सकता है। दोनों का एक साथ एक वक़्त में आना बड़ा मुश्किल है।
हमारा देश ग्राम-प्रधान होने के आलावा भैंस-प्रधान भी कहा जा सकता है। इसके लिए यह जरुरी नहीं है कि भैंसें सिर्फ गाँव में ही हों। शहरों और कस्बों में भी भैसों का बाहुल्य होता है। तहज़ीब न होने की वजह से ये भैंसे जहाँ मन होता है, वहीं अपना गोबर छोड़ कर आगे चल देती हैं। आदमियों को लड़ने के 'प्वाइंट ऑफ़ व्यू' से इतना मुद्दा ही काफी होता है कि इन भैसों ने यह जो गोबर छोड़ा है, वह उनके दरवाज़े के सामने ही क्यों छोड़ा ?इस बात पर भी लाठियाँ चल सकती हैं। दूध की तरह खून की नदियाँ बह निकलती हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि इस मुल्क में भैसों का जो योगदान है, वो पत्नियों से भी अधिक 'इम्पोर्टेन्ट'होता है - लोगों के जीवन में।
'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाला मुहावरा यूँ ही नहीं बना है। इसके पीछे हमारे बुजुर्गों के भी बूढ़े-बुजुर्गों की 'रिसर्च' रही होगी। वरना लाठी का भैंस से क्या मतलब ? जहाँ तक लाठियाने वाले तर्क का सवाल है, तो उसके लिए तो आदमी ही काफी होते हैं। भैसों को मुद्दा बनाने कि क्या ज़रुरत है ? लाठियों का अविष्कार भैसों की वजह से नहीं हुआ था। यह एक आदमियाना साजिश है कि उसने लाठियों को भैसों के साथ जोड़ दिया। बिना भैसों के भी आदमी लोग लाठियाँ चलाते हैं। मगर भैसों को लाठिया चलते हुए कभी नहीं देखा होगा आपने। कहीं देखा हो, तो ज़रूर बतायें। किसी भी दफ़ा में उठाकर उन्हें थाने में बंद कर देगी हमारी पुलिस।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
शनिवार, 2 दिसंबर 2023
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य .....सरस्वती-वंदना में दूध
कवि-गोष्ठी की तमाम तैयारियाँ हो चुकी थीं। रामभरोसे लाल के घर की बैठक में समाजवादी परम्परा के अनुसार सभी के बैठने के लिए ज़मींन थी, जिसे विभिन स्थानों से फटी हुई ब्रिटिश कालीन दरी द्वारा सम्मानपूर्वक ढक दिया गया था। दीवार से लगा एक मसनद भी बैठक की शोभा में कई सारे चाँद लगा रहा था। इस मसनद के सहारे बैठने के लिए एक अध्यक्ष भी तलाश लिया गया था और जिसके ज़िम्मे बाहर से आये दो-तीन नवोदित और गुमनाम कवियों के मार्ग-व्यय का भार था। यह भार उठाने में अध्यक्ष भी तलाश लिया गया था और जिसके जिम्मे बाहर से आये दो तीन नवोदित और गुमनाम कवियों के मार्ग-व्यय का भार था। यह भार उठाने में अध्यक्ष इसलिए समर्थ था कि उसका सिंथेटिक दूध का सर्वमान्य कारोबार था।
"अध्यक्ष महोदय बस थोड़ी देर में आने ही वाले हैं। जैसी कि हमारी परम्परा रही है, कवि-गोष्ठी अपने निर्धारित समय पर ही प्रारम्भ कर दी जायेगी।" क़स्बे में बातूनी मास्टर के नाम से विख्यात संचालक ने कवियों में हो रही काव्य-पाठ की बेसब्री को भाँपते हुए उद्घोषणा की।
"तब तक सरस्वती-वंदना शुरू करा दीजिये। अध्यक्ष आते रहेंगे।" कवि-गोष्ठी में अध्यक्ष के होने न होने को बराबर सिद्ध करने के अंदाज़ में सरस्वती-वंदना एक्सपर्ट कवि की व्याकुलता जवाब दे रही थी।
"आ गए भैया, हम भी आ गये।" अचानक अध्यक्ष प्रवेश करते हैं। मसनद से टिकने के बाद अध्यक्ष ने सबके अभिवादन स्वीकार किये और अपने एक कूल्हे को पच्चीस डिग्री के कोण में उठाकर एक ज़ोरदार स्वर में अपनी गैस खारिज की। कवियों ने अध्यक्ष की इस हरकत का मुस्कुराकर स्वागत किया।
"अब शुरू करे ?" रामभरोसे ने अध्यक्ष से अनुमति लेनी चाही। "बिलकुल !" गैस का दूसरा धमाका इस बात का संकेत देने के लिए थोड़ी मुशक़्क़त के बाद हुआ कि अगर गोष्ठी का शुभारम्भ शीघ्र नहीं हुआ, तो आगे ना जाने कैसे हालात पैदा हों ? सरस्वती वंदना गाने वाले ने शुरुआत की-
"सरस्वती मैया वर दे।
कविता रूपी शुद्ध दूध से, जल का तत्व अलग कर दे।
सरस्वती मैया वर दे।"
"वाह-वाह-वाह -वाह ! क्या डिमांड की है सरस्वती मैया से। मज़ा आ गया !" कविता पर वाह-वाह करने से अध्यक्ष की योग्यता पता चलती है, यह सोचकर अध्यक्ष का स्वर इस बार उनके मुँह से निकला।
"आगे आप सबका ध्यान चाहूँगा," सरस्वती-उपासक ने अपनी वंदना जारी रखते हुए सुनाया,
"सरस्वती मैया वर दे।
दूध, जिसे सिंथैटिक कहते,भैंसों के थन में भर दे,
हर कवि का सर साबुत निकले,अगर ओखली में सर दे,
सरस्वती मैया वर दे।"
कवियों की यह गोष्ठी अध्यक्ष महोदय की भावनाओं के मद्देनजर देर रात तक चलती रही। कवियों ने 'दूध की नदियाँ', 'दूध का दूध, पानी का पानी'और दूध का हक़' जैसी अनेक विषयी रचनाओं का पाठ करके यह साबित कर दिया कि लक्ष्मी-पुत्र अगर किसी कवि-गोष्ठी का अध्यक्ष हो, तो सरस्वती-पुत्रों के स्वर अपने आप ही बदल जाते हैं।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत