ॐ नम: शिवाय
जी 9/12, मालवीय नगर,
नई दिल्ली–17
5–6–82
प्रिय बेटे मनोज,
सदा सुखी रहो !
तुम्हारा बहुत प्यारा पत्र मिला। तुम्हें मेरी कविताएं अच्छी लगती हैं इसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूं। मेरी कविता की कुछ पंक्तियां जैसा तुमने लिखा चेतन जी ने अपने नाम से पराग में प्रकाशित करा दी हैं । यह कोई नई बात नहीं है। साहित्य में इस प्रकार की चोरी और हेराफेरी सदा से चलती रही है और चल रही है। कोई भी लेखक अपनी रचनाओं को कहां-कहां देखता फिरेगा । मैंने अभी तक वह अंक नहीं देखा है तुम्हें इतने दिनों के पश्चात भी मेरी कविता का ध्यान रहा इससे तुम्हारी सजग साहित्यिक सुरुचि का परिचय मिलता है। ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि तुम्हें वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तुम्हारी बुद्धि के अनुसार उत्तरोत्तर अग्रसर करे। इस आशय का पत्र तुम पराग के संपादक को लिखकर उन्हें अवगत करा दो। वैसे मैं भी उन्हें एक पत्र लिखे दे रहा हूं। शेष शुभ
तुम्हारा
ओम प्रकाश आदित्य
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