सोमवार, 4 मार्च 2024

मुरादाबाद की संस्था जागृति कला केन्द्र द्वारा स्मृति शेष शिशुपाल 'मधुकर' की स्मृति में तीन मार्च 2024 को सम्मान-समारोह एवं काव्य-वर्षा का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था जागृति कला केन्द्र की ओर से साहित्यकार कीर्तिशेष शिशुपाल मधुकर की स्मृति में एक सम्मान-समारोह एवं काव्य-वर्षा का आयोजन, दयानंद डिग्री कॉलेज मुरादाबाद में किया गया। मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता उमाकांत गुप्ता 'एडवोकेट' ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. महेश 'दिवाकर' तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में  डॉ. पूनम बंसल, सरिता लाल एवं माया राजपूत रहीं। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन अशोक विश्नोई एवं राजीव प्रखर द्वारा किया गया।

 दो चरणों में संपन्न हुए इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए, नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम, कवि मयंक शर्मा, पत्रकार एवं शिक्षक डॉ. माधव शर्मा तथा लघु फिल्म निर्माता-निर्देशक एम. पी. बादल जायसी को शिशुपाल मधुकर स्मृति सम्मान से अलंकृत किया गया। शिशुपाल मधुकर के विषय में विस्तृत आलेख डॉ. मनोज रस्तोगी तथा सम्मानित विभूतियों पर परिचयात्मक आलेख राजीव प्रखर एवं अशोक विश्नोई द्वारा प्रस्तुत किए गए। 

कीर्तिशेष शिशुपाल मधुकर के विषय में विचार व्यक्त करते हुए अध्यक्ष उमाकांत गुप्ता ने कहा -  "साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र में कीर्तिशेष मधुकर जी द्वारा किया गया योगदान न केवल वर्तमान अपितु भावी पीढ़ियों के उत्थान का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। उनकी रचनाएं आम जनमानस से जुड़ी अभिव्यक्ति का साकार चित्र खींचती हैं।"         साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में मधुकर जी के योगदान का स्मरण करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. महेश दिवाकर का कहना था - "स्वर्गीय शिशुपाल मधुकर यथार्थवादी संचेतना के साहित्यकार थे। मुरादाबाद के साहित्य को गति प्रदान करने में वे निरंतर अपनी बहुआयामी भूमिका निभाते रहे। किसानों मजदूरों दलितों और सर्वहारा वर्ग के लोगों के प्रति अपनी संवेदना भी निरंतर प्रकट करते रहे।‌ उनका साहित्य आम जनमानस की आवाज़ है।" 

श्री शिशुपाल 'मधुकर' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ रचनाकार एवं पत्रकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा - कीर्तिशेष मधुकर जी की रचनाएं सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विसंगतियों को न केवल उजागर करती है अपितु असमानता और  व्यवस्थाओं के विरुद्ध आक्रोश भी व्यक्त करती हैं।" 

कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-वर्षा का भी आयोजन किया गया जिसमें राजीव प्रखर, योगेन्द्र वर्मा व्योम, मयंक शर्मा, अभिषेक रोहिला, ज़िया ज़मीर, डॉ. मनोज रस्तोगी, वीरेन्द्र बृजवासी, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ. मोनिका सदफ, काले सिंह , आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, ओंकार सिंह ओंकार, डॉ. पुनीत कुमार, रामदत्त द्विवेदी, रामसिंह निशंक, राशिद हुसैन, फ़रहत अली, श्रीकृष्ण शुक्ल, विवेक निर्मल, रवि चतुर्वेदी, चंद्रहास हर्ष आदि ने विभिन्न सामाजिक विषयों पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति था विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में अनुजा राजपूत, धनसिंह 'धनेंद्र', रघुराज सिंह निश्चल, शिवओम वर्मा, अभय सिंह, राजवीर सिंह आदि भी उपस्थित रहे। उपासना राजपूत और पंकज चौहान ने आभार अभिव्यक्त किया। 































































::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार 3 मार्च 2024 को आयोजित मासिक काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में रविवार तीन मार्च 2024 को मासिक  काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

ओंकार सिंह ओंकार द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया .....

अब बसन्त पर क्या लिक्खूॅं मैं, 

खेत हरे खलिहान हट गये 

उन पर ऊॅंचे भवन पट गये 

दूर-दूर तक यही दीखते 

खेत दृष्टि से दूर कट गये।। 

मुख्य अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार ने सुनाया....

मेरे भोलेपन का उसने कितना प्यारा मोल दिया। 

भेद-भाव की एक तोल में, मेरा सब कुछ तोल दिया। 

हमने जिसको सम्मानित कर, बैठाया अपने सिर पर, 

उसने हमको अपमानित कर, उल्टा सीधा बोल दिया।।

 विशिष्ट अतिथि के रूप में योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सुनाया.....

दोष गिना मत और के, अपने भीतर झाँक। 

रिश्तों में क्यों हो गया, अपनापन दो-फाँक।।

 बुरे स्वप्न-सा भूलकर, पिछला दुखद अतीत। 

चल आजा फिर से रचें, मुस्कानों के गीत।। 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव 'प्रखर' ने सुनाया....

थोड़ी सी हमको हिचक हुई, थोड़ा सा वो भी शर्माये।  

दोनों के तपते अन्तस में, उल्लास भरे घन घिर आये। 

छेड़ी कोयल ने सुर-लहरी, पाया लेखन ने नवजीवन, 

भावों के पुष्पों पर जब से, शब्दों के मधुकर मॅंडराए।। 

 जितेन्द्र कुमार जौली ने सुनाया.....

अपना उल्लू सीधा करते, करवाकर ये दंगे। 

राजनीति के इस हमाम में, सबके सब हैं नंगे।। 

संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।












::::::::प्रस्तुति:::::::::

जितेन्द्र कुमार जौली

 महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर की शनिवार,दो मार्च 2024 को प्रथम पुण्यतिथि थी। प्रस्तुत है उन पर केंद्रित विशेष आलेख जो दो मार्च 2024 को अमरोहा के दैनिक आर्यावर्त केसरी, संभल के दैनिक राष्ट्रीय सिद्धांत, लखनऊ के दैनिक जनसंदेश, तीन मार्च 2024 को मुरादाबाद के दैनिक उत्तर केसरी और चार मार्च को मुरादाबाद के दैनिक परिवर्तन का दौर में प्रकाशित हुआ है ......





 

रविवार, 3 मार्च 2024

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की चार कविताएं .....

 


1. मैं जानता हूँ

अचानक मुझे

एक वाक्य पढ़ने को मिला।

वाक्य क्या था -

मैं कभी अपने खिलाफ़

मुकदमा खड़ा नहीं करता ।'


मैं जानता हूँ, 

मैं कमजोर हो सकता हूँ

मैं जानता हूँ- 

जीवन की कठोर भूमि पर 

सब जगह

हरियाली नहीं उगाई जा सकती

मैं यह भी जानता हूँ

कि बड़ी बड़ी नदियाँ, 

पहाड़ और सागर

मेरे रास्ते में आएंगे।


घने जंगल, काँटेदार पेड़ 

खूँख्वार जानवरों की टोली 

या सर्पीली पगडंडियाँ 

मेरा स्वागत करेंगी 

जाने - अनजाने भटकाएँगी- 

मुझे टुकड़ों में बाँटेंगी 

छांटेगी

मुझे आगे बढ़ने से 

रोकेंगी।


कभी मेरे चारों ओर 

धुंध और गुबार के बादल आएँगे 

छितरा जाएँगे 

मेरे अस्तित्व को छीलने के लिए।

कोशिश में रहेंगे

मुझे लीलने के लिए ।


उनकी रचना का उद्देश्य 

सर्वगत है 

कुछ अविगत नहीं है 

आगत है।


लेकिन जैसे ये सब 

अपने अस्तित्व की रक्षा में संकल्पबद्ध होकर 

प्रहार करते हैं 

सकारात्मक सोच पर

उसी तरह मैं भी 

उतना ही उत्तरदायी हूं

अपने को बचाने के लिए।


मैं बचाऊँगा

 कभी नहीं चाहूंगा 

कि मैं अपने खिलाफ

कोई तर्क दूं।


मेरा अस्तित्व मेरा अपना है 

मेरा चिंतन 

पराया नहीं है।


इसी लिए 

समय के साथ चलते हुए भी

 हारो मत 

स्वयं को ललकारो मत 

दुत्कारो मत।


संकल्प का दीप जलाओ 

और हर विपदा को 

गले लगाओ।


2. मेरी मां

इतनी ऊर्जा 

कहाँ से पाती थी माँ 

जब कभी कुछ सिखाती 

केवल गीत गाती थी माँ ।


वह कभी डाँटती, 

नाराज़ होती 

हमारी भूलों के प्रति 

सचेत करती 

तो 

शब्दों के बाण नहीं चलाती थी 

हमारे जख्मों पर 

प्यार का मलहम लगाती थी माँ।


कभी किल्लाती, किलकिलाती 

कभी दिलासा दिलाती 

कभी अपनी बातों से बहलाती 

पूरी जज्बाती थी माँ।


कभी-कभी हमारी हरकतों पर 

बौखलाती 

हमारी नालायकियों पर चिल्लाती 

मिसमिसाती 

चहचहाती थी माँ।


जीवन की 

चिलचिलाती धूप में 

छलछलाती रहती 

बिल्कुल बरसाती थी मां।


 3. मेरे पिता

एक दिन 

मैंने पूछा अपने पिता से 

आप इतना नाराज़ क्यों होते हैं' 

हमारी भूलों को 

नज़रअंदाज़ नहीं करते हैं!


उस दिन वह नाराज़ नहीं थे 

और मेरे प्रश्न का 

उत्तर देने की स्थिति में थे।


बोले- मैं कहाँ होता हूँ नाराज़ 

कब करता हूं क्रोध

कब करता हूँ ताड़ना 

कब पीटता हूँ 

कब फटकारता हूँ! 

क्या तुम्हें ऐसा लगता है!


मैंने उनकी ओर देखा 

और बिना भय के

उनसे पूछा -


 याद है आपको 

मैं मौसी की शादी में गया था, 

आप भी लगे थे इंतज़ाम में। 

तभी अचानक क्या हुआ

 एक गाय आई 

और उसने 

मेरी छोटी अंगुली को

अपने खुर से रगड़ दिया ।


मैं चीखा, चिल्लाया

डॉक्टर ने पैर की पट्टी की 

तब तक आप आए 

मेरी पीड़ा को समझे बिना 

गाल पर अपने हाथ के चिह्न छाप दिए।


क्या यह आपका 

क्रोध नहीं था, 

कौन सा प्यार था वह 

जो स्वीकार था केवल आपको !


पिता ने मेरी ओर देखा 

और हलके से मुस्कराए। 

बोले 

वह कोध तुम्हारी सुरक्षा के प्रति था

वह क्रोध 

तुम्हारे प्रति प्रेम का 

अतिरेक था 

तुम सुरक्षित थे 

इस बात की आस्वस्ति था। 


तुमने मेरे कोध को तो देखा 

मेरी आँखों में झलकते 

आँसुओं की तरफ 

ध्यान नहीं दिया।


तुम्हारे हित में 

मेरी उत्तेजना 

किस रूप में बरस रही थी 

इसका आभास 

केवल मुझे था, 

तुम बालक थे 

तुमने मेरा क्रोध-भर देखा था।



4.पात्र का गुण

पात्र खाली नहीं रह सकता 

कभी 

पात्र का गुण है भरा रहना 

तुम करो कोशिश 

भरे अमृत।

न गर अमृत भरेगा 

तो भरेगा विष

 हरेगा प्राण 

जीवनसत्त्व सबका।


पात्र का गुण है भरा रहना 

भरो शुभ भाव मन में 

न भर पाए सहित के भाव 

तो हित भी 

अहित बन जाएगा 

अनजान में ही 


पात्र का गुण है भरा रहना 

भरो तुम प्रीत से गागर 

कि सागर 

द्वेष का सूखे।

न भर पाए हृदय को 

प्रेम से तो 

पूर्ण कर लेगी घृणा 

खाली जगह को 


पात्र का गुण है भरा रहना 

भरो हर कण 

धरा का तुम 

मलय की गंध से।


 न कर पाए सुवासित 

गंधमादन मन 

भरे दुर्गंध कण कण में 


पात्र का गुण है भरा रहना 

पात्र खाली रह नहीं सकता 

कभी।

✍️ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल 

ए 402, पार्क व्यू सिटी 2

सोहना रोड, गुरुग्राम 

78380 90732


शुक्रवार, 1 मार्च 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष संत यादव की कृति भारत का रॉबिन हुड : सुलताना। इस कृति के मूल लेखक जिम कारबैट हैं । जिम कारबैट ने अपनी पुस्तक माई इंडिया में सुलताना : इंडियाज रॉबिन हुड शीर्षक से जो विवरण लिखा उसी का अंग्रेजी से संत यादव ने अनुवाद किया है। यह कृति वर्ष 2000 में सूर्य भारती प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुई है। साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय को यह पुस्तक शिव अवतार सरस द्वारा प्रदान की गई ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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:::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024