बुधवार, 21 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता की कविता---बुढ़ापे को नजदीक आने न दें , जवानी आसानी से जाने न दें


थोड़ी शोख़ियाँ 

थोड़ी मस्तियाँ 

थोड़ी तालियाँ 

थोड़ी गालियाँ 

थोड़ी शरारतें

थोड़ी शिकायतें 

थोड़ी अदावतें 

थोड़ी हरारतें 

बुढ़ापे को नजदीक आने न दें 

जवानी आसानी से जाने न दें 

सोलह शृंगार

नए से विचार 

थोड़ा नक़द 

थोड़ा उधार 

थोड़ा क़ायदा 

थोड़ा फ़ायदा 

थोड़ा वायदा

फैला रायता 

बुढ़ापे को हरदम कहें अलविदा 

जवानी की मस्ती रहेगी सदा 

थोड़ी आशिक़ी 

थोड़ी बेवफ़ाई 

थोड़ी दिलजोई

थोड़ी लड़ाई 

कभी घूमना 

कभी तान सोना 

कभी गपबाज़ी

कभी आँखें भिगोना 

करो ग़र बुढ़ापा फटकेगा नहीं 

सफ़र खूबसूरत अटकेगा नहीं 

कभी पेग अंग्रेज़ी 

कभी मीठी लस्सी 

कभी मस्त चखना 

कभी दारू कच्ची 

कभी खुल ठहाके 

कभी थोड़ी तन्हाई 

कभी महफ़िलें 

कभी प्रिय से जुदाई 

नकारात्मक सोच कभी आने न दें

दिल अपना किसी को दुखाने न दें 

कभी जंगलों में 

तो सागर किनारे 

कभी दोस्तों में 

कभी अपने सहारे 

कभी दोस्ती भी 

कभी दुश्मनी भी 

कभी आशनाई 

कभी दिल्लगी भी 

यह जज़्बा कभी कम होने न दें 

बुढ़ापे को हावी होने न दें

✍️ प्रदीप गुप्ता                                                    B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज के दो गीत - 'रूप तुम्हारा कोमल-कोमल' और 'दुनियाभर का खेल-तमाशा'

 


1- रूप तुम्हारा कोमल-कोमल


            रूप तुम्हारा कोमल-कोमल, 

            प्रीत तुम्हारी निर्मल-निर्मल

            अधरों पर मुस्कान मनोरम, 

            लगती है पावन गंगाजल


पुलकित कर देता है मुझको, 

संग तुम्हारे बातें करना 

शब्दों में ढलकर वाणी से, 

बहता है फूलों का झरना 

            सारी सृष्टि तुम्हारी ही छवि 

            और तुम्हारी ही अनुगामी 

             तुम पुरवाई-सी सुखदायी, 

             वर्षा की बूँदों-सी चंचल


अपना भाग्य सराहे पल-पल, 

उर-आँगन का कोना-कोना 

लगता है जग-भर पर तुमने, 

कर डाला है जादू टोना 

            तुम आकर्षण की मूरत हो, 

            तुम देवी हो सम्मोहन की

             सागर-सी भी मर्यादित हो, 

             नदिया-सी भी हो उच्छृंखल


भावों ने सीखा है तुमसे, 

उत्सुक होकर पेंग बढ़ाना 

चिंतन के उन्मुक्त गगन में, 

इंद्रधनुष बनकर मुस्काना

            मगर तुम्हारे स्वप्न हठीले, 

            यूँ भी करते हैं बरजोरी 

            खटकाते रहते हैं अक्सर, 

            मन के दरवाज़े की साँकल


2  - दुनियाभर का खेल-तमाशा 


             दर्शक बनकर देख रहा हूँ 

             दुनियाभर का खेल-तमाशा 

             आस कहीं पाई चुटकीभर 

             और कहीं पर घोर निराशा 


जिस क्षण मुश्किल हो जाता है 

अपनों से सम्मान बचाना 

मन को बोझिल कर देता है 

संबंधों का ताना-बाना 

               कैसे आख़िर पहचानूँ मैं 

               चेहरों से ऐसे लोगों को 

               भेष बदलकर हो जाते जो 

                पल में तोला, पल में माशा 


सब चेहरों पर सजे मुखौटे 

सबने चढ़ा रखे दस्ताने 

भ्रम का ओवरकोट पहनकर 

बरबस लगते हाथ मिलाने 

                भाषा की मर्यादा तजकर

                अनुशासन का पाठ पढ़ाते

                बोली में विष घोल रहे हैं 

                रख दाँतों के बीच बताशा 


सज्जनता का करें प्रदर्शन 

साधारण क्या, नामचीन भी 

किंतु निकलते हैं भीतर से

निपट खोखले, सारहीन भी 

                 शिष्टाचार छपा है इनके 

                 रँगे-पुते चेहरों पर, लेकिन-

                 गाढ़े मेकप के पीछे से

                  झाँक रही है घनी हताशा


✍️डा. कृष्ण कुमार ' नाज़'

सी-130, हिमगिरि कालोनी

कांठ रोड, मुरादाबाद-244 001.

मोबाइल नंबर  99273 76877


मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी के उपन्यास समर्पण की डॉ अनिल शर्मा अनिल द्वारा की गई समीक्षा-

 समर्पण--- परिवार व समाज के विभिन्न पात्रों की जीवन यात्रा के विभिन्न मोड़ों व विभिन्न पड़ावों से गुजरता हुआ एक ऐसा उलझाव भरा, किंतु हृदय के गहरे समुद्र में उतर जाने वाला कथानक...जिसे आप पढ़ते- पढ़ते द्रवीभूत हो उठेंगे...बार -बार आंखें छलछला आएंगी आपकी! लगेगा ... सब कुछ आपकी आंखों के सामने ही घटित हो रहा है।

पात्र भी आपको अपने जाने -पहचाने से ही प्रतीत होंगे। ऐसे ऐसे अकल्पित रहस्योद्घाटन कि आप आश्चर्य चकित हुए बिना न रह सकेंगे। और... एक विश्व विख्यात धर्मोपदेशक, कथावाचक, योगीराज का तो आप ऐसा रुप देखेंगे कि नेत्र विस्फारित रह जाएंगे आपके... दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो जाएंगे आप।
     सुरुचिपूर्ण कथानक,अनुपम शिल्प, विश्लेषणात्मक चिंतन, लालित्य पूर्ण भाषा व रोचक शैली में लिखा गया एक ऐसा उपन्यास, जिसे आपका मन चाहेगा कि एक ही सांस में पढ़ जाएं।
     'समर्पण' में है विविध चरित्रों का विश्लेषण... जैसे--- दिव्यप्रभा ---कथानक की केंद्रबिंदु... धर्मांधता की ओट में छली गई अभागी युवती... कोमलांगी,,करुणहृदयी, संवेदनशील, छुईमुई सी, कोंपल सी वयस वाली, धर्म भीरु...विवशताओं के बंधन हैं जिसमें... उमंगों की हत्या से उपजी वेदनाएं हैं।
    मन के किसी कोने में पारिवारिक चिकित्सक डॉ अनंत श्रीवास्तव कब दबे पांव आ समाया, कोई आहट न हो सकी?
    एक है 'डॉ अनंत श्रीवास्तव'--- ऐसा भावुक प्रवृत्ति का प्रतिभाशाली डॉक्टर,जो दिव्यप्रभा के परिवार का चिकित्सक तो है ही,शुभाकांक्षी भी है। वैदिक विचारधारा का अनुयाई, श्रेष्ठाचरणी, गंभीर प्रवृत्ति का आदर्श युवा चिकित्सक।
    हृदय में दिव्यप्रभा के प्रति प्रेमांकुर प्रस्फुटित होने लगे थे, परंतु कभी अभिव्यक्ति का साहस न संजो सका।
    उपन्यास की धुरी  'योगीराज देवमूर्ति आचार्य'--- असफल डॉ दिवाकर का वह परिवर्तित स्वरुप... जिसने उसे न केवल स्वदेश अपितु विदेशों में भी ऐसी अपार ख्याति दिलाई...कि आसमान की ऊंचाइयों की उड़ान भरने लगा वह...
    प्रत्येक क्रिया फल प्राप्ति की आशा से अनुप्राणित... वर्तमान के सुप्रसिद्ध कथावाचकों अथवा धर्मगुरुओं का प्रतिनिधि।
    सेठ भानुशरण--- कानपुर का उद्योग पति... धर्म प्रेम की ओट में धनार्जन... लोहे को स्वर्ण में परिवर्तित कर देने की कला में सिद्धहस्त... चिकित्सा क्षेत्र में असफल 'डॉ दिवाकर' को 'योगीराज देवमूर्ति' में परिवर्तित इसी शिल्प कार ने किया था।
   और   'दीपेश '--- महत्वाकांक्षी और निर्मल विराट व्यक्तित्व का स्वामी,दिव्यप्रभा का सहोदर, राष्ट्र हितकारी विचारधारा का पक्षधर...
परिस्थितियों के मकड़जाल ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया... मानव धर्म रक्त के बिंदु बिंदु में समाहित... जीवन की विडम्बना ने उसे इतना ऊंचा उठा दिया कि उसके व्यक्तित्व के समक्ष सभी बौने प्रतीत होने लगे।



कृति  :  समर्पण (उपन्यास)
लेखक : डॉ अशोक रस्तोगी,अफजलगढ़,  बिजनौर, उ.प्र.
प्रकाशक :  काव्या पब्लिकेशन दिल्ली
पृष्ठ संख्या : 351   मूल्य : ₹499
 

समीक्षक : डॉ अनिल शर्मा'अनिल', गुजरातियान
धामपुर, जिला-बिजनौर, उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर-9719064630


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---भूत बंगला


शहर से दूर एक विशाल बंगला जो सदियों साल पुराना हो चुका था।जिसके चारों ओर तमाम कटीली झाड़ियां और घनी घास- फूस उग आने के कारण वह साफ- साफ नजर भी नहीं आता था।

 वैसे तो वह सरकारी डाक बंगला था।

     कुछ समय से उसमें ठहरने वाले कई अफसरों की अनायास मृत्यु हो जाने के कारण उसमें रुकने को कोई भी तैयार नहीं होता।होते-होते उसका नाम भूत बंगला पड़ गया।

      एक बार एक दिलेर फौजी अफसर ने उसमें ठहरने की इच्छा जताते हुए जिलाधिकारी से आज्ञा लेने का मन बनाया।जिलाधिकारी ने उस फौजी अफसर को उसके बारे में विस्तार से बताकर वहां न ठहरने की सलाह दी।परंतु फौजी ने उस बंगले के रहस्य को जानने का प्रण करते हुए अपना मंतव्य उजागर कर दिया।

     जिला अधिकारी ने कुछ मजदूर लगाकर उसकी सफाई करा दी।फौजी अफसर एक कमरे में बिस्तर लगाकर लेट गया।लेटते ही उसे नींद आ गई।रात्रि के ठीक बारह बजे कमरे के दरवाजे पर ठक,ठक की आवाज़ हुई।फौजी की आंख खुल गई।उसने आवाज़ लगाई कौन है,कौन है।कोई उत्तर न मिलने पर दिल में थोड़ी घबराहट लिए वह सो गया।थोड़ी सी आँख लगने पर वही ठक-ठक की दस्तक फिर हुई।फौजी उठा और दरवाजा खोकर देखा परंतु वहां कोई नज़र न आया मगर दूर किसी कोने से एक खौफनाक हंसी उसके कानों में अवश्य पड़ी।

    फौजी दिल पक्का करके हनुमान चालीसा पढ़ते हुए कमरे में आकर बैठ गया। पुनः हिम्मत बटोरते हुए वह ऊपर छत के एक कोने में छुपकर बैठ गया।और फिर से उसी दस्तस्क का इंतज़ार करने लगा।

    तभी उसने देखा एक सफेद सी आकृति दरवाज़े के समीप आकर रुकी और चारों ओर देखते हुए दरवाज़ा बजाने का प्रयास किया।जैसे ही उसका हाथ दरवाज़े तक पहुंचता,फौजी अफसर ने ऊपर से छलांग लगा दी।और उस सफेद पोश बुरी आत्मा को दबोचते हुए पूछा, बता तू कौन है और क्या चाहता है। फौजी ने उसके ऊपर पड़ी चादर को हटाया तो वह वहां का पुराना चौकीदार कल्लू निकला।

       फौजी अफसर ने उसे कमरे में लेजाकर पहले तो उसकी जमकर धुलाई की। फिर उसके मुंह से वह सत्य उगलवा लिया,जिसके बल पर कल्लू दहशत से मरने वाले अधिकारी का सारा सामान लेकर रफूचक्कर हो जाता।इसके पहले भी वह नौ लोगों को अपना शिकार बना चुका था। जिसके कारण ही उस बंगले को भूत बंगला कहा जाने लगा।

       फौजी अफसर ने कल्लू को साथ लेजाकर जिला अधिकारी के सम्मुख पेश करके उसके काले कारनामों का खुलासा  किया। जिलाधिकारी महोदय ने फौजी अफसर की बहादुरी को सलाम करते हुए प्रशासन से उक्त बंगला उन्हीं के नाम करने की शफारिश करते हुए,अपराधी कल्लू को जेल भिजवा दिया।

       इस प्रकार वह भूत बंगला सदा-सदा के लिए इस पैशाचिक नाम से मुक्त हुआ। फौजी अफसर ने यह प्रमाणित कर दिया कि हौसले में ही जीत छुपी होती है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र,

                 

                  

                       

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - मैं दिल्ली हूं । इस कृति में दिल्ली के इतिहास को पद्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है । इसका प्रकाशन अक्टूबर 1959 में रघुवीर शरण बंसल, संचालक साहित्य संस्थान दिल्ली द्वारा किया गया था ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िये पूरी कृति

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::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल की कविता ----तब और अब


 



मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में लंदन निवासी) श्वेता शर्मा की लघुकथा --खालीपन


अनाहिता रोज की तरह बेटे को स्कूल छोड़कर पार्क मे आकर बैठी ही थी । तभी एक ठंडी हवा का झोंका महसूस तो हुआ पर छू नहीं पाया मन को ।  विदेशी धरती पर बारिश की बूंद गिरी तो, पर वो अपनी धरती की गीली मिट्टी जैसी सोंधी सोंधी महक नही दे पाई। वो बैठे हुए प्रकृति की सुंदरता को निहारती रही और अंदर ही अंदर अपने मन के खालीपन को बहकाती रही । नौकरी के कारण देश से दूर तो चले आए हैं पर परिवार की चिंता और याद मन को घेरे रहती है । तभी याद आया घर पर बहुत काम है यहां कोई परिवार तो है नही जो संभाल सके हमारी जिम्मेदारियां ,और खुद से प्रश्न करती हुई चल पड़ी घर की तरफ ,क्यों सारी सुख सुविधाएं होते हुए भी  नही है खुशी और संतुष्टि की भावना ,क्यों है खालीपन ।

✍️ श्वेता शर्मा, लंदन


मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ---हॉट फोटो


"रीनू ,देखो अब तो हमारी मंगनी हो गई है अब जल्द ही हम शादी के बंधन में बंध जाएंगे मुझे उन पलों का बेसब्री से इंतज़ार है जब तुम दुल्हन बनकर मेरे घर आओगी" अमन मोबाइल पर रीनू से बातें करते - करते आज ज्यादा ही रोमांटिक हुए जा रहा था रीनू को भी अमन से बातें करते हुए मज़ा आ रहा था आखिर साल भर से एक दूसरे के प्यार में डूबे रीनू और अमन के प्यार को मंजिल जो मिल गई थी दोनो कालेज टाइम से एक दूसरे को जानते थे लेकिन दोनों के दिल मे प्यार के अंकुर अमन के कज़िन की शादी में मिलने के बाद फूटे थे और अब दोनों के घर वालो की सहमति से मंगनी भी हो गई थी दोनो बहुत खुश  थे दोनो मोबाइल पर काफी- काफी देर तक बातें किया करते अमन बातों में काफी रोमांटिक हो जाता उसने कई बार रीनू से आग्रह किया कि वह उससे अकेले में मिले लेकिन रीनू उसे बड़े प्यार से समझाकर बहाना बना देती आखिर उसकी बड़ी बहन ने उसे समझा दिया था कि शादी से पहले अकेले में कभी किसी लड़के से नही मिलना चाहिये लेकिन मंगनी के बाद अमन की ज़िद बढ़ गई थी कि वह उससे अकेले में मिलना चाहता है उससे उसके बिना नही रहा जाता  लेकिन हर बार की तरह रीनू  बहाना बना देती लेकिन आज अमन ज्यादा ही रोमांटिक हुए जा रहा था  उसने रीनू से उसके हॉट फोटो की फरमाईश कर दी ' रीनू, तुम मुझसे मिल नही सकती तो कम से कम अपने ऐसे फोटो ही भेज दो जिसके सहारे मै समय बिता सकूँ।' रीनू ने उसे अपने नवीन फोटो भेज दिये लेकिन अमन उससे सन्तुष्ट नही हुआ उसने रीनू से हॉट फोटो की मांग की रीनू ने काफी न नुकर की लेकिन अंत मे रीनू को अमन की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और उसने यह कहते हुए उसे अपने हॉट फोटो भेज दिये कि 'वह उन्हें देखकर डिलीट कर दे।'अमन ने उसे भरोसा दिलाया कि वह फोटो देखकर डिलीट कर देगा अमन अपने कमरे में रीनू के हॉट फोटो देखकर और रोमांटिक हो रहा था उससे रहा नही गया तो दिल बहलाने को वह कॉफी शॉप की ओर चल दिया कॉफी पीते हुए भी वह रीनू के ख्यालो में डूबा रहा कॉफी पीकर वह वापस घर आ गया इजी चेयर पर बैठकर उसने रीनू को फोन करने के लिये जेब मे हाथ डाला तो जैसे उसे करंट लग गया उसकी जेब से मोबाइल ग़ायब था उसे याद आया कि कॉफी पीते हुए उसने मोबाइल अपने पास टेबल पर रखा था और रीनू की याद में ऐसा खोया की मोबाइल उठाये बिना घर लौट आया अमन उलटे पावँ कॉफी शॉप की ओर चल दिया और हड़बड़ाता उस टेबिल पर पहुँचा जहाँ वह बैठकर कॉफी पी रहा था टेबिल खाली थी उसने कॉफी शॉप के मालिक से पूछा कि उसका मोबाइल यहाँ टेबिल पर छूट गया था शॉप मालिक ने अनभिज्ञता जता दी अमन ने शॉप पर काम करने वाले लड़कों से भी पूछा लेकिन सबने मना कर दिया अमन निराश घर लौट आया उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी वह सोच रहा था कि उससे कितनी बड़ी गलती हो गई उसने रीनू की हॉट फोटो देखकर डिलीट नही की थी अमन रात भर सही से सो नही सका सुबह उठा तो घर मे कोहराम मचा था उसका मोबाइल जिसने उठाया था उसने इंटरनेट पर रीनू के अर्धनग्न फोटो अपलोड कर दिए थे जो उसकी बहन ने उसकी मम्मी  को दिखा दिए थे और मम्मी घोषणा कर रही थी कि वह ऐसी लड़की को अपने घर की बहू नही बनाएंगी जो इतनी मार्डन हो कि जिसके अर्धनग्न फोटो इंटरनेट पर हो उन्होंने फोन उठाकर रीनू के घर वालो को अपना फैसला सुना दिया कि वह अपने बेटे से रीनू की शादी नही करेंगी कारण सुनते ही रीनू के घर भी कोहराम मच गया रीनू की स्थिति तो काटो तो खून नही जैसी थी वह लगातार रोये जा रही थी उधर उसकी मम्मी उसे खानदान की नाक कटवाने की बात कहते हुए कटाक्ष पर कटाक्ष कर रही थी बड़ी बहन के काफी देर तक पूछने के बाद उसने सारी बात बताते हुए अमन को फोटो भेजने की बात बताई बड़ी बहन मीनू ने अमन के घर फोन करके अमन से बात कराने की रिक्वेस्ट की लेकिन अमन की मम्मी ने मीनू की बात सुनकर भी रिश्ते से यह कहते हुए इनकार कर दिया चलो मान लो कि रीनू ने अमन को ही फोटो भेजे थे लेकिन वह ऐसी लड़की को अपनी बहू नही बनाएंगी जो शादी से पहले किसी को अपने अर्धनग्न फोटो भेजे क्योंकि निकाह से पहले लड़के लड़की एक दूसरे के लिये गैर ही होते है लड़के लड़कियों के कई कई रिश्ते आते जाते है क्या पता रीनू ने पहले भी------ कहते हुए अमन की मम्मी ने फोन काट दिया। 

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (सम्भल)


मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी का गीत ----इसने वेद पुराण बखाने, उसने पढ़ा कुरान को.....


 

सोमवार, 19 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश के पांच गीत । ये गीत साझा काव्य संकलन उपासना से लिये गए हैं । यह संकलन अशोक विश्नोई के सम्पादन अप्रैल 1991 में सागर तरंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था ।











:::::प्रस्तुति :::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
 

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 18 जुलाई 2021 को आयोजित 261 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों सूर्यकांत द्विवेदी, डॉ अशोक रस्तोगी, डॉ शोभना कौशिक, शिवकुमार चंदन, कमाल जैदी वफ़ा,डॉ पुनीत कुमार, कंचन खन्ना, सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त, रेखा रानी, अशोक विद्रोही, श्रीकृष्ण शुक्ल, राजीव प्रखर और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में ....













 

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से रविवार 18 जुलाई 2021 को आयोजित काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं


साधना ही सतत साथ चलती रही

भावना तो भृमित नित्य करती रही

मौन का मंत्र देती रही वेदना
छाँव बनकर सदा संग रहती रही

देव चरणों में चढ़ कर स्वयं धन्य हो 
एक कलिका ह्रदय भाव भरती रही

चाँद के दर्श हित सज गई है निशा
रात जोगिन बनी और ढलती रही

वायु के पँख ले उड़ चली कल्पना
नील नभ में अकेली विचरती रही

✍️  डॉ प्रेमवती उपाध्याय, मुरादाबाद
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ओ सावन के मेघ बरस जा
प्यासा जन मन सारा है
सूरज कि गर्मी के आगे
शोख़ पवन भी हारा है

कल तक जिससे बगिया महकी
फूल वही मुरझाया है
पीड़ा का सागर भीतर तक
तन मन मैं गहराया है
यह जीवन तो क्षण भंगुर है
ज्यों बिखरा सा पारा है

आस लिये बूंदों की चातक
आसमान को ताक रहा
साथ समय के क्या कुछ बदला
यह सच्चाई आंक रहा
आँसू का भी मोल नहीं अब
पानी बस ये खारा है

इच्छाएं सिर उठा रही हैं
नये नये आकारों में
जीवन मूल्य बिके हैं अब तो
आयातित बाज़ारों में
झूठ कपट से घिरा हुआ ये
अभिमन्यु बेचारा है
              
✍️ डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद
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खुशहालपुर गाँव के
उस छोर पर
झोपड़ी नुमा मकान में
एक दीप जल रहा था।
दरिद्रता का प्रकोप
झिलमिलाते दीप की
रोशनी में
स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।
काम करती बुढ़िया की
थकी - झुकी कमर
जाड़ों की रात में
ठंड से कांपती हुई
मेरे मस्तिष्क में
एक सिरहन की भांति
कौंध गई, तभी
मैनें सुना
एक बच्चा कह रहा था
माँ-माँ
लोकतंत्र क्या होता है ?
माँ ने यह सुन
बच्चे को कलेजे से
लगाकर,पुचकार कर
एक लम्बी सांस ली
और
अपने उंगलियों के पोरवे                                 दीपक की
लौ पर रख दिये
तब
छा गया अंधकार
शेष रह गया,
उनके जीवन की भांति,
शून्य में तैरता
दीपक का धुआं ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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जिन्दगी से दर्द ये जाता नहीं
और अपना चैन से नाता नहीं।

आस की कोई किरण दिखती नहीं।
बेबसी में कुछ कहा जाता नहीं।।

जिन्दगी मजदूर की देखो जरा
दो घड़ी भी चैन वो पाता नहीं।।

रात दिन खटता है रोटी के लिये।
माल फोकट का कभी खाता नहीं।।

सत्य की जो राह पर चलने लगा,
साजिशों के भय से घबराता नहीं।।

काम आयेगी न ये दौलत तेरी,
मौत का धन से तनिक नाता नहीं।।

वो कहाँ किस हाल में है क्या पता,
यार की कोई खबर लाता नहीं।।

कृष्ण जय जयकार के इस शोर से
झुग्गियों का शोर टकराता नहीं।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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तिरंगा शान से यूं ही,
         सदा सरहद पे लहराए ।
वतन के वास्ते जी लें,
       वतन पर ही ये जां जाये।

मिटी झांसी की रानी ,
     लक्ष्मीबाई आन की खातिर।
किया सर्वस्व न्योछावर,
          न राणा ने झुकाया सर।।
काफिले उन शहीदों के,
       हैं कितने काम में आये।।
तिरंगा शान से यूं ही,
        सदा  सरहद पे  लहराये ।।

कि मन चित्तौड़ में अग्नि ,
          अभी यूं ही धधकती है।
हजारों पद्मिनियों की चीख,
            क्रंदन बन  सुलगती हैं ।
सजग प्रहरी बनें हम सब,
           न मां पर आंच फिर आये ।।
तिरंगा शान से यूं  ही,
        सदा  सरहद पे  लहराये ।।

हुए  घर में  ही  परदेसी,
         यहां  वादी  के  वाशिंदे ।
था गूंगा बहरा शासन और,
        थे    सारे  भ्रष्ट   कारिंदे।।
मगर दृढ़ता पराक्रम ने,
        सभी  वे  प्रश्न सुलझाये।
तिरंगा शान से यूं ही ,
        सदा  सरहद पे  लहराए ।

नहीं कश्मीर और बंगाल में,
            फिर  खून  खच्चर  हो।
न हों बेशर्म आंखें और,
           छुपे दामन में खंजर हों।।
न खा कर अन्न जल हम,
           राष्ट्र का मक्कार हो जायें।।
तिरंगा शान से यूं ही ,
         सदा  सरहद पे  लहराए।।

विविध धर्मों का,पंथों का,
     ये प्यारा देश है भारत ।।
भले हों धर्म नाना पर ,
    सभी को इसकी है चाहत।
नहीं गद्दार हरगिज अब,
       कहीं कोई नज़र आये।
तिरंगा शान सेयूं ही ,
       सदा सरहद पे लहराए ।
वतन के बास्ते जी लें,
       वतन पर ही ये जां जाये।

✍️ अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
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सावन भादो तुम जरा , बरसो दिल के गाँव
तपन जरा इसकी हरो , बादल की दो छाँव
अश्कों ने बहकर हरे, थोड़े दिल के दर्द
तुम भी आ खेलो जरा , खुशियों के कुछ दाँव।।

है धरा प्यासी बुझा दे तू जरा सी प्यास।
सींच दे आकर फसल हलधर लगाये आस।
भीग जायें सुन हमारे गीत के भी बोल,
ऐ घटा ऐसे बरस,दिल में रचा दे रास।।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद
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नफ़रतों के हमको फिर मंज़र नज़र आने लगे ।
रंजो गम के फिर नए मौसम नज़र आने लगे ।
दाग़ दामन के छुपाकर सामने वो आ गए ।
कल के रहज़न अब हमें रहबर नज़र आने लगे ।।
का़तिलों और जा़लिमों की सफ़ में था जिनका शुमार ।
इस नए मौसम में वो रहबर नज़र आने लगे ।।
फिर से लहजे में मोहब्बत की कमी होने लगी ।
फिर से रंजो ग़म के वो मौसम नज़र आने लगे ।।
हर कोई अपनी ही धुन में मस्त है अब दोस्तों ।‌
अब तो दिन में ही हमें मैकश नज़र आने लगे ।।महफिलें सजने लगीं शामो सहर हर गांव में ।
अब गरीबी मिटने के अवसर नज़र आने लगे ।।
सांप सारे बंद थे अपने बिलों में खौ़फ़ से ।
बीन की आवाज़ पर बाहर नज़र आने लगे ।।
दोस्तों को जो समझते थे फ़क़त़ अपना जहां ।
उनको अपने दोस्त अब दुश्मन नज़र आने लगे ।।
अब मुजाहिद तंग दिल दुनिया से ही उकता गया ।
ख़ून के रिश्ते उसे रसमी नज़र आने लगे ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर, अमरोहा
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(1)
सुन  रहे यह साल  आदमखोर है
हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है
मत कहो वायरस जहरीला बहुत
इंसान ही आजकल कमजोर है

(2)
मौतों   का  सिलसिला  जारी है
व्यवस्था की कैसी ये लाचारी है
आप  शोक संदेश  पढ़ते  रहिये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी , 8,जीलाल स्ट्रीट,  मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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अनसुलझे हैं रोज़गार के
बेबस प्रश्न तमाम

लुभा रहा है बेशक कब से
सपनों का बाज़ार
कामयाब हो लेकिन कैसे
कर्ज़े से व्यापार
इसी गणित को हल करने में
हुई सुबह से शाम

नौकरियों के आकर्षण का
अपना अलग तिलिस्म
जिसके सम्मुख नतमस्तक है
दिल-दिमाग़ सँग जिस्म
निष्कलंक ही बचे कहाँ अब
कम्प्टीशन एक्ज़ाम

यह है कोई खेल समय का
या फिर यह प्रारब्ध
खेतों में सपने बो कर भी
हुआ न कुछ उपलब्ध
मंडी में भी उम्मीदों का
मिला न एक छदाम

✍️  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
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दंतकथा से लग रहे, झूले-गीत बहार।
बहुत अकेली हो गयी, सावन की बौछार।।

मेघयान पर प्रेम से, होकर पुनः सवार।
भू माता से भेंट को, आये सलिल कुमार।।

सम्मुख मेरे आज भी, संकट खड़े अनेक।
लेकिन दुनियां देख ले, मैं भारत हूँ एक।।

क्या संवेदनशीलता, कैसा शिष्टाचार।
लाश-सियासत-रोटियाँ, तिकड़ी सदाबहार।।

मैं भी पनघट से चली, लेकर तेरा नाम।
मटकी मेरी फोड़ दे, तब जानूँ हे श्याम।।

भूख-प्यास में घुल गये, जिस काया के रोग।
उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग।।

बेबस भीखू को मिली, कैसी यह सौग़ात।
दीवारों से कर रहा, अपने मन की बात।।

जन्म-मरण के खेल में, बैठा बिल्कुल मौन।
पासे दोनों ओर से, फेंक रहा है कौन।।

प्यारी कजरी साथ में, यह रिमझिम बौछार।
दोनों मिलकर कर रहीं, सावन का शृंगार।।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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अायी आयी मोर नगरिया
झूठ बोलती एक बदरिया
गड़ गड़ कहती थी बरसूँगी
नहीं बरसी वो इह डगरिया ।

छायी बनकर घुँघराली सी
लगती कितनी मतवाली सी
कजरारे से नयन दिखाकर
सज घजकर वह चली सँवरिया ।

जन जन में है आस जगायी
पानी अंजुली भर न लायी
सभी को मानो मुँह चिड़ाकर
संग मेघ के उड़ी बदरिया ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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सारी कर लीं कोशिशें हैं घर चलाने के लिए।
कर लिया हर टोटका उसको मनाने के लिए।

जिद्द से अपनी पर ना इक पग भी वो हिल पायगा,
हरकतें सारी हैं उसकी घर जलाने के लिए।

बन्धनों में हाथ जकड़े,सिल दिया है मुँह को,
घुट रहा है दम यूँ मेरा, कुछ बचाने के लिए।

कैद मन-लाचार उलझा, माँगता आजादी है
मन का पंछी फडफ़ड़ाता,पर फैलाने  के लिए।

जख्म पर मलते नमक,मरहम कहां मिलता कभी,
वैसे तो दुनिया भरी बातें बनाने के लिए।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद
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विश्व गुरु फिर से बन जाये अपना भारत देश।
मिलजुल कर प्रयास करें हम चाहे रहें विदेश।।
सारे जग को ज्ञान दीप भारत ने दिखलाया।
होकर सभ्य सामाजिक बनना सबको सिखलाया।।
सँस्कृत से उपजी हैं जग की सारी भाषाएँ।
बोली उप बोली सारी हैं इसकी ही  शाखाएँ।।
भारत के भोजन से जग में नहीं कहीं भी स्वाद।
भारत के परिधानों का भी नहीं कहीं भी भेद।।
भारत भूमि में देवों ने लिए कई अवतार।
भारत के वेदों में ही है जीवन का सब सार।।
भारत भूमि के चरणों की रज सागर लेता है।
मस्तक पर हिमशिखर हिमालय मुकुट सजा देता है।।
भारत भूमि को करते हैं नमन सभी ज्ञानी।
विश्व गुरु भारत भूमि का नहीं कोई सानी।।
आओ नमन करें हम इसको ये भारत माता है।
गर्व हमें है अपना इस पावन भूमि से नाता है।।
सदा ज्ञान गङ्गा बहती है होते सत्संग भोज।
ज्ञान की इस भारत भूमि को नमन करें हर रोज।।
आओ फिर से विश्व गुरु भारत को  बनाएं हम।
भेद-भाव आपस के भुलाकर साथ निभाएं हम।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा, ठाकुरद्वारा मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश 244601, मोबाइल 9045548008
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क्यों धर्म और मज़हब की राजनीति भाईचारा तार-तार करती है,
क्यों गीता और कुरान की राजनीति ज्ञान पर प्रहार करती है,
आंखों से देखा तो लहू का रंग एक था,
रूप रंग बनावट में कोई न भेद था,
फिर न जाने क्यों ज्ञान पर प्रहार करती है,
क्यों धर्म और मज़हब की राजनीति मित्रता में शत्रुता का निर्माण करती है,

✍️ प्रशान्त मिश्र, राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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भीगी आँखो की कतारे तुम्हारे लिए..
बजे दिल के इकतारे तुम्हारे लिए,

प्रेम तुझसे हुआ है मेरी प्रियतमा,
बजे ह्रदय की वीणा तुम्हारे लिए..

प्रीति की ज्योति को ह्रदय मेँ जला,
गीत लिखने लगा मैँ तुम्हारे लिए..

सूरज निकलने से पहले सांझ ढलने से पहले,
मैं तुम्हारे लिए हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए,

✍️ इशांत शर्मा, मुरादाबाद
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बोझ जीवन का हंस कर उठाते रहो
गर्दीशों से निगाहें मिलाते रहो

मंजिले तुमको देती रहेंगी दुआ
राह से पत्थरों को हटाते रहो

चाहतों के दिलों में खिलेंगे सुमन
प्यार का पाठ सबको पढ़ाते रहो
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सवालों की नुमाइश हो जिसका चेहरा
सांसों पर हो समाज का पहरा
लिपिस्टिक का रंग पल में हो फीका
कोई न समझे उसके जी का
इंद्रधनुषी कपड़ो में सब अधूरा है
सीमा रेखाओं में केवल मन पूरा है
अजीब है पैसे से दुआएं बेचता है
तालियों की गूंज में खुद को सहेजता है
चुप्पियां जब,किताबें भी ओहपोह में हो
ये स्त्रीलिंग या पुलिंग किस श्रेणी में हो
रात की चादर भी सिलवटो में तन से
ना चिपकती है ना छूती है मन से
घुंघुरू बिछुवा साड़ी....कोई नहीं इनका
अपनों से भी रिश्ता नहीं हो जिनका
अलग अलग नजरों से ताक झांक होता  है
बिन हल हुए ये सवालों में रोता है
पौरुष भी है इनमें ममता भी है
तेज है, शौर्य है,इनमें क्षमता भी है
पुरुष केवल पुरुष है
स्त्री केवल स्त्री है
एक यही है जो दोनों में विद्दमान है
इनका ये गुण ही सबसे महान है
ये ना होकर भी हममें साथ रहते हैं
अलग होकर भी हमारे अंदर बसते हैं...

✍🏻 प्रवीण राही, संपर्क सूत्र 8860213526
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बाहर से जिंदा हूँ, अंदर से मर रहा हूँ,
फ़र्ज़ दोस्ती का अदा कर रहा हूँ।
गम मिल रहे हैं मिलते ही रहेंगे,
खुशियों को खुद से जुदा कर रहा हूँ।।

✍️ संजीव आकांक्षी, मुरादाबाद

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822