1- रूप तुम्हारा कोमल-कोमल
रूप तुम्हारा कोमल-कोमल,
प्रीत तुम्हारी निर्मल-निर्मल
अधरों पर मुस्कान मनोरम,
लगती है पावन गंगाजल
पुलकित कर देता है मुझको,
संग तुम्हारे बातें करना
शब्दों में ढलकर वाणी से,
बहता है फूलों का झरना
सारी सृष्टि तुम्हारी ही छवि
और तुम्हारी ही अनुगामी
तुम पुरवाई-सी सुखदायी,
वर्षा की बूँदों-सी चंचल
अपना भाग्य सराहे पल-पल,
उर-आँगन का कोना-कोना
लगता है जग-भर पर तुमने,
कर डाला है जादू टोना
तुम आकर्षण की मूरत हो,
तुम देवी हो सम्मोहन की
सागर-सी भी मर्यादित हो,
नदिया-सी भी हो उच्छृंखल
भावों ने सीखा है तुमसे,
उत्सुक होकर पेंग बढ़ाना
चिंतन के उन्मुक्त गगन में,
इंद्रधनुष बनकर मुस्काना
मगर तुम्हारे स्वप्न हठीले,
यूँ भी करते हैं बरजोरी
खटकाते रहते हैं अक्सर,
मन के दरवाज़े की साँकल
2 - दुनियाभर का खेल-तमाशा
दर्शक बनकर देख रहा हूँ
दुनियाभर का खेल-तमाशा
आस कहीं पाई चुटकीभर
और कहीं पर घोर निराशा
जिस क्षण मुश्किल हो जाता है
अपनों से सम्मान बचाना
मन को बोझिल कर देता है
संबंधों का ताना-बाना
कैसे आख़िर पहचानूँ मैं
चेहरों से ऐसे लोगों को
भेष बदलकर हो जाते जो
पल में तोला, पल में माशा
सब चेहरों पर सजे मुखौटे
सबने चढ़ा रखे दस्ताने
भ्रम का ओवरकोट पहनकर
बरबस लगते हाथ मिलाने
भाषा की मर्यादा तजकर
अनुशासन का पाठ पढ़ाते
बोली में विष घोल रहे हैं
रख दाँतों के बीच बताशा
सज्जनता का करें प्रदर्शन
साधारण क्या, नामचीन भी
किंतु निकलते हैं भीतर से
निपट खोखले, सारहीन भी
शिष्टाचार छपा है इनके
रँगे-पुते चेहरों पर, लेकिन-
गाढ़े मेकप के पीछे से
झाँक रही है घनी हताशा
✍️डा. कृष्ण कुमार ' नाज़'
सी-130, हिमगिरि कालोनी
कांठ रोड, मुरादाबाद-244 001.
मोबाइल नंबर 99273 76877
बहुत-बहुत उत्तम।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ,भाई साहब ।
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