बुधवार, 21 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी के उपन्यास समर्पण की डॉ अनिल शर्मा अनिल द्वारा की गई समीक्षा-

 समर्पण--- परिवार व समाज के विभिन्न पात्रों की जीवन यात्रा के विभिन्न मोड़ों व विभिन्न पड़ावों से गुजरता हुआ एक ऐसा उलझाव भरा, किंतु हृदय के गहरे समुद्र में उतर जाने वाला कथानक...जिसे आप पढ़ते- पढ़ते द्रवीभूत हो उठेंगे...बार -बार आंखें छलछला आएंगी आपकी! लगेगा ... सब कुछ आपकी आंखों के सामने ही घटित हो रहा है।

पात्र भी आपको अपने जाने -पहचाने से ही प्रतीत होंगे। ऐसे ऐसे अकल्पित रहस्योद्घाटन कि आप आश्चर्य चकित हुए बिना न रह सकेंगे। और... एक विश्व विख्यात धर्मोपदेशक, कथावाचक, योगीराज का तो आप ऐसा रुप देखेंगे कि नेत्र विस्फारित रह जाएंगे आपके... दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो जाएंगे आप।
     सुरुचिपूर्ण कथानक,अनुपम शिल्प, विश्लेषणात्मक चिंतन, लालित्य पूर्ण भाषा व रोचक शैली में लिखा गया एक ऐसा उपन्यास, जिसे आपका मन चाहेगा कि एक ही सांस में पढ़ जाएं।
     'समर्पण' में है विविध चरित्रों का विश्लेषण... जैसे--- दिव्यप्रभा ---कथानक की केंद्रबिंदु... धर्मांधता की ओट में छली गई अभागी युवती... कोमलांगी,,करुणहृदयी, संवेदनशील, छुईमुई सी, कोंपल सी वयस वाली, धर्म भीरु...विवशताओं के बंधन हैं जिसमें... उमंगों की हत्या से उपजी वेदनाएं हैं।
    मन के किसी कोने में पारिवारिक चिकित्सक डॉ अनंत श्रीवास्तव कब दबे पांव आ समाया, कोई आहट न हो सकी?
    एक है 'डॉ अनंत श्रीवास्तव'--- ऐसा भावुक प्रवृत्ति का प्रतिभाशाली डॉक्टर,जो दिव्यप्रभा के परिवार का चिकित्सक तो है ही,शुभाकांक्षी भी है। वैदिक विचारधारा का अनुयाई, श्रेष्ठाचरणी, गंभीर प्रवृत्ति का आदर्श युवा चिकित्सक।
    हृदय में दिव्यप्रभा के प्रति प्रेमांकुर प्रस्फुटित होने लगे थे, परंतु कभी अभिव्यक्ति का साहस न संजो सका।
    उपन्यास की धुरी  'योगीराज देवमूर्ति आचार्य'--- असफल डॉ दिवाकर का वह परिवर्तित स्वरुप... जिसने उसे न केवल स्वदेश अपितु विदेशों में भी ऐसी अपार ख्याति दिलाई...कि आसमान की ऊंचाइयों की उड़ान भरने लगा वह...
    प्रत्येक क्रिया फल प्राप्ति की आशा से अनुप्राणित... वर्तमान के सुप्रसिद्ध कथावाचकों अथवा धर्मगुरुओं का प्रतिनिधि।
    सेठ भानुशरण--- कानपुर का उद्योग पति... धर्म प्रेम की ओट में धनार्जन... लोहे को स्वर्ण में परिवर्तित कर देने की कला में सिद्धहस्त... चिकित्सा क्षेत्र में असफल 'डॉ दिवाकर' को 'योगीराज देवमूर्ति' में परिवर्तित इसी शिल्प कार ने किया था।
   और   'दीपेश '--- महत्वाकांक्षी और निर्मल विराट व्यक्तित्व का स्वामी,दिव्यप्रभा का सहोदर, राष्ट्र हितकारी विचारधारा का पक्षधर...
परिस्थितियों के मकड़जाल ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया... मानव धर्म रक्त के बिंदु बिंदु में समाहित... जीवन की विडम्बना ने उसे इतना ऊंचा उठा दिया कि उसके व्यक्तित्व के समक्ष सभी बौने प्रतीत होने लगे।



कृति  :  समर्पण (उपन्यास)
लेखक : डॉ अशोक रस्तोगी,अफजलगढ़,  बिजनौर, उ.प्र.
प्रकाशक :  काव्या पब्लिकेशन दिल्ली
पृष्ठ संख्या : 351   मूल्य : ₹499
 

समीक्षक : डॉ अनिल शर्मा'अनिल', गुजरातियान
धामपुर, जिला-बिजनौर, उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर-9719064630


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