अनाहिता रोज की तरह बेटे को स्कूल छोड़कर पार्क मे आकर बैठी ही थी । तभी एक ठंडी हवा का झोंका महसूस तो हुआ पर छू नहीं पाया मन को । विदेशी धरती पर बारिश की बूंद गिरी तो, पर वो अपनी धरती की गीली मिट्टी जैसी सोंधी सोंधी महक नही दे पाई। वो बैठे हुए प्रकृति की सुंदरता को निहारती रही और अंदर ही अंदर अपने मन के खालीपन को बहकाती रही । नौकरी के कारण देश से दूर तो चले आए हैं पर परिवार की चिंता और याद मन को घेरे रहती है । तभी याद आया घर पर बहुत काम है यहां कोई परिवार तो है नही जो संभाल सके हमारी जिम्मेदारियां ,और खुद से प्रश्न करती हुई चल पड़ी घर की तरफ ,क्यों सारी सुख सुविधाएं होते हुए भी नही है खुशी और संतुष्टि की भावना ,क्यों है खालीपन ।
✍️ श्वेता शर्मा, लंदन
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