रविवार, 6 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी पर साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के नवीन नगर स्थित आवास पर "वसंत-राग"(काव्य एवं संगीत-संध्या) का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी  पांच फरवरी 2022 को सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के नवीन नगर स्थित आवास पर "वसंत-राग"(काव्य एवं संगीत-संध्या) का आयोजन किया गया। 

   वरिष्ठ कवयित्री डा. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने वसंत-गीत प्रस्तुत किया-

   "हमसे दुनिया जहान की बातें

   क्या हुईं फूल पान की बातें

   भूख पत्ते चबा रही है यहाँ

   मत करो आसमान की बातें।" 

  कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विख्यात हास्य-व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कविता प्रस्तुत की-

  "आजकल

  बड़ी अजीब सी

  ज़िन्दगी जी रहे हैं हम

  हमने

  दोस्तों के आंगन में

  गुलाब उगाये

  लेकिन उनके कांटे

  हमारे ही कपड़े

  फाड़ने के काम आये

  कुछ करने के नाम पर

  उन्हीं को

सी रहे हैं हम।" 

  मुख्य अतिथि डॉ. चन्द्रभान सिंह यादव ने कहा-"बसंत  मौसम की युवावस्था है।यह ऋतु और प्रकृति परिवर्तन का प्रतीक भी है।आज ही  महाकवि निराला  का जन्मदिन हुआ था।" 

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शायर डॉ० कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की-

    "है अपने हश्र से वाक़िफ़ हर एक परवाना

    किसी चिराग़ की लौ में सिमट के रह जाना

    तेरे निज़ाम को समझे, तो किस तरह कोई

    यहीं पे रौनक़े-दुनिया, यहीं पे वीराना।" 

  कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-

  "पेड़ों को

  नव पल्लवों से

  सजाने वाले

  मन में होरी-ठुमरी की मिठास

  घोलने वाले

  ऋतुराज

  तुम कहाँ विलय हो गये।" 

कवयित्री डा. पूनम बंसल ने रचना प्रस्तुत की-

    "लो वसंत है आ गया, लिए प्रेम के हार/

    मन-मंदिर में सज गए, अभिलाषा के द्वार/

    मौसम की है मादकता, मदन चलाए तीर/

    नैनों की भाषा कहे, मनवा प्रेम अधीर।" 

 साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने कविता प्रस्तुत की-

    "रिझाने के दिन आ गए

    लुभाने के दिन आ गए

    पाँच साल में लगी आग 

    बुझाने के दिन आ गए।" 

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वासंती दोहे प्रस्तुत किए-

  "खुश हो कहा वसंत ने, देख धरा का रूप

  ठिठुरन के दिन जा चुके, जिओ गुनगुनी धूप

  महकी धरती देखकर, पहने अर्थ तमाम

  पीली सरसों ने लिखा, खत वसंत के नाम"

 शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-

   "जैसे हर पल तिरा ख़याल आऐ

   काश ऐसे शबे-विसाल आऐ

   कुछ तो हो रात काटने के लिए

   तू न आए तिरा ख़याल आऐ।"

कवि राजीव 'प्रखर' ने दोहे पढ़े-

    "छेड़े सम्मुख माघ के, कोकिल मीठी तान

    सरसों भी कुछ कम नहीं, फेंक रही मुस्कान

    बैर-भाव-विद्वेष का, कर भी डालो अंत

    पीली चुनरी ओढ़ कर, कहता यही वसंत"

कवि समीर तिवारी ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

    "चाँदनी दीवार-सी ढहने लगी है

    नींद सपनों की कथा कहने लगी है

    एक चिड़िया पंख फैलाये हुए

    आँख के भीतर कहीं रहने लगी है।" 

 कवि श्रेष्ठ वर्मा ने कविता सुनाई-

  "बहुत कुछ नया सा है अब मगर

  फिर भी सबकुछ वही है

  कहानी किस्से नये हैं अब मगर

  लोग पुराने सब वही हैं

  नया साल तो फिर आ गया मगर

  दीवार पर टँगी वो घड़ी वही है।" 

  कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी ने भी अपनी कई रचनाएं प्रस्तुत कर मन मोह लिया ।

  कार्यक्रम के दूसरे चरण में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी, मुजफ्फरनगर की संगीतज्ञा सरिता शर्मा, सुप्रसिद्ध तबलावादक राधेश्याम एवं संगीत छात्राओं कृतिका, सिमरन, लिपिका, प्रगति, आदया ने सांगीतिक प्रस्तुतियां दीं।

  आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी  ने प्रस्तुत की।















::::::::प्रस्तुति:::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ---मतदान करो मतदान करो


 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना -देने अपना वोट चलो तुम अब के चुनावी मौसम में.


 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे -तू-तू, मैं-मैं छोड़कर करें सभी मतदान


 

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार रमेश अधीर की रचना ---लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लें श्रीमान


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --करना है मतदान


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की रचना ---छोड़ कर सारे काम, पहले कीजिये मतदान


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना -- हम वोट डालने जाएंगे ...


 

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर की रचना ---सब मत देने की तैयारी कर लें


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना ---चलो मतदान करें हम


 

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा कर रहे हैं मतदान का आह्वान


 

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना --देने वोट को चलना है ..


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत --वोट डालना जरूर ,आपका यह काम है ...

 क्लिक कीजिए

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ स्वदेश भटनागर की चौदह ग़ज़लें । ये ग़ज़लें हमने ली हैं उनके ग़ज़ल संग्रह 'जिस्म रोटी का नंगा होता है ' से । उनका यह ग़ज़ल संग्रह वर्ष 2016 में अयन प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ है ।


 














✍️ डॉ स्वदेश भटनागर

निकट केल्टन स्कूल, लाइनपार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9760929503, 7983639799

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की बीस ग़ज़लें । ये गजलें हमने ली हैं उनके ग़ज़ल संग्रह 'धूप आती ही नहीं' से । उनकी यह कृति पार्थ प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2009 में प्रकाशित हुई थी ।


 




















:::::::;:प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

सोमवार, 31 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की प्रथम काव्यकृति - 'आंसू' । यह कृति वर्ष 1951 में प्रकाशित हुई थी । इस कृति में उनके 21 गीत हैं जो उन्होंने अपने प्रिय मित्र तुलाराम के असमय काल कवलित हो जाने पर लिखे। कृति की भूमिका उनके गुरु बांके लाल शर्मा ने लिखी है । हमें यह दुर्लभ कृति उनकी पत्नी राजदुलारी गौतम एवं सुपुत्र मनोज गौतम ने उपलब्ध कराई है ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं रंगकर्मी धन सिंह धनेन्द्र का एकांकी --टोपियां


(मंच सज्जा - मंच पर एक मेज लगी है। दो कुर्सियां भी बेतरतीब रखीं हैं उन पर गीले सूखे कपड़े रखें हैं। मेज पर कई रंग के पेंट, ब्रुश, बाल्टी व हैंगर रखे है । रंग-बिरंगी टोपियां रस्सी पर लटकी सूख रहीं हैं)

पीतम- अरी सुन रही है। यह टोपियां आज ही देनी हैं। मौसम का मिज़ाज समझ नहीं आ रहा है। टोपियां कमबख्त सूखने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। जरा प्रेस से गरम करके सुखा दे इनको । मुझे अभी बहुत सारी टोपियां रंगनी है।

कमला - आप भी अजीब बात करते हो । भला प्रेस से मैं कब तक सुखाती रहुंगी, और भी कितने काम पडे़ हैं मुझे।

पीतम - मौसम है कमाने का। दल-बदलुओं का कुछ नहीं पता। रात को एक दल में तो सुबह दूसरे दल में होते हैं। आजकल यह धंधा खूब जोर पकड़ रहा है। (एक छुटभैया नेता हाथ में कुछ सफेद टोपियों के साथ प्रवेश करता है)

नेता- किसके धंधे की बात कर रहे हो पीतम ?

पीतम- नेताजी, चुनाव का मौसम है। सभी के धंधे की बात है। अब देखो न आप भी अब अपने धंधे में कितने ब्यस्त रहते है.

नेता- भई मैं तो मौहल्ले का एक छोटा अदना सा नेता हूं। मेरा धंधा बहुत छोटा है और रिस्की भी, जिस पार्टी ने अच्छा दाना डाला उसी की टोपी ओढ़ ली। अब अगले हफ्ते 20 तारीख में एक पार्टी की रैली में मुझे एक बस भर कर आदमी ले जाने हैं, मगर 200 रु में कोई जाने को तैयार नहीं। लोग 500रु से कम में राजी नहीं। रोटी पूडी़ दारु अलग से।

पीतम- महंगाई भी तो बढ़ गई है अब

नेता- अच्छा यह बताओ, मेरी टोपियां हो गई सब।

पीतम- आपकी नीले रंग वाली 100 टोपियों का आर्डर था, 50 हो चुकी हैं, बाकी 50 अभी सूख रहीं हैं। अगर मौसम सही हो गया तो कल ले जाना।

नेता- अरे अब इन्हें रहने दो, इनकी कोई पूछ नहीं। अब मुझे लाल रंग की 500 टोपियां चाहिए शाम तक, कल पहनानी हैं।

पीतम- पहले इन नीली टोपियों से तो काम चलाओ।

नेता- पीतम दद्दा तुम समझते नहीं। अब इन नीली टोपी का पत्ता साफ हो चुका है। कल लाल टोपियों की सख्त जरुरत है। एक बड़े नेता पार्टी बदल रहें हैं।

पीतम -फिर यह जो टोपियां तैयार हो गई अब इनका क्या होगा?

नेता- इन टोपियों की फिलहाल कोई जरुरत नहीं रही, जो बन गई उनके भी कुछ पैसे दे दूंगा। बाद में कभी काम आयेंगी सम्हाल कर रखना।

पीतम- मौसम कितना बदल गया है। टोपियां सूख नहीं पायेंगी।

नेता- मौसम सभी के लिए बदल चुका पीतम दद्दा। आजकल नेताओं ने भी बे-मौसम चाल बदलनी शुरू कर दी है। अब आदमी से ज्यादा टोपियों की डिमांड बढ़ गई है।

 कमला- (रस्सी पर लाल सफेद टोपिया लटकाते हुए) सही कह रहे है नेता जी, हमारे इलाके में भी अब रंग-बिरंगी टोपियों बदल-बदल कर पहनने का फैशन चल पड़ा है।

पीतम- अरे चुप कर, बहुत बोलती है। यह नीली टोपियां हटा यहां से। यहां लाल टोपियां सुखानी हैं। कल ही नेता जी को देनी है।

कमला- कभी नीली, कभी लाल फालतू काम क्यों फैला रहे हो जी?

पीतम- यह खडे़ हैं नेता जी, इन्हीं से पूछ ले।

नेता- हर आदमी अपने धंधे को पहले देखता है। हमारे नेता भी जहां धंधा मद्दा हुआ तुरंत पार्टी बदल रहें हैं। आखिर उनको भी खाना कमाना है और बिना सत्ता के नेताजी मूंगफली थोडे ही छीलेंगे। सत्ता में रहने वाली पार्टी से दूर होकर नेता आगे कैसे जी पायेंगे? इसीलिए तो कल गांधी मैदान में एक बड़े नेता पार्टी बदलेंगे। गांधीजी की शपथ लेकर पहले टोपी का रंग बदलेगा तभी न पार्टी बदलेगी।

(बाहर शोर शराबे की आवाज जोर-जोर से होती है। तभी तेज आवाज के साथ एक मोटा दरोगा और 4-5 सिपाहियों के साथ घर में प्रवेश करता है )

पीतम- क्या हो गया साहब।

दरोगा - तो यहां हो रहा है यह लाल-पीला काला धंधा। गिरफ्तार कर लो इसे।

(नेता चुपचाप खिसकने लगता है। दरोगा नेता को पकड़ता है और कडक आवाज़ में पूछता है)

दरोगा- क्यों, कौन सी पार्टी के हो नेता जी ?

नेता- सर, हम किसी पार्टी के नेता नहीं हम तो छोटे कार्यकर्ता है।

दरोगा- यहां क्या कर रहे हो। भागो यहां से। (पीतम से) क्यों बे तू यहां टोपियां बदलने का धंधा करता है। जानता नहीं आचार संहिता लगी हुई है। टोपियां का रंग बदल कर दल-बदल को बढ़ावा देता है। पार्टियां बदलने का धंधा फैला रहा है। ले चलो इसे थाने। यह इस शहर की शांति भंग कर रहा है। इसकी सारी लाल, पीली काली नीली टोपियां जब्त कर लो। केवल एक टोपी छोड़ दो।

पीतम- हम गरीब आदमी है सरकार। हमारा धंधा चौपट हो जायेगा।

कमला- हजूर इनका कोई कसूर नहीं हम तो केवल टोपियों का रंग बदलें हैं। इस काम में भी बहुत टाईम लगता है, मेहनत लगती है। लोग तो रातों-रात अपना दल बदल रहें हैं। अपना ईमान- धर्म बदल ले रहें हैं। हम टोपियां सिलाई-रंगाई का काम करके बमुश्किल गुजारा करते हैं।

दरोगा - ऐ । बहुत ज्यादा बोलती है। नेतानी बनती है। जानती नहीं चुनाव आचार संहिता लगी है। अभी मिनटों में बंद कर दूंगा। जमानत भी नहीं होगी।

पीतम- दरोगा जी, इस पागल की बातों पर ध्यान मत दो। मौसम बदलने के साथ इसे भी एलर्जी हो जाती है।

दरोगा- ऐसा है तो इसका ईलाज क्यों नहीं कराता। पुलिस से कैसे बात की जाती है इसे सिखा दे वरना जेल में सडे़गी।

कमला- (हाथ जोड़ कर विनम्रता से कहती है) देखो दरोगा जी, हम अभी मंत्री जी के घर जाकर यह टोपियां फेंक आतें हैं। बोल देंगे- हमें जेल नहीं जाना। अपनी टोपियां जहां चाहे वहां सिलवा लो- रंगवा लो।

दरोगा- (आश्चर्य में) मंत्रीजी से टोपियों का क्या मतलब ?

पीतम - यह सब उन्ही का आर्डर है। दो- एक दिन बाद एक बड़े कद्दावर नेता उनकी पार्टी को ज्वाइन कर रहें हैं। उनके और उनके कार्यकर्ताओं के लिए ही तैयार हो रहीं हैं यह टोपियां उन सबको ही पहनाई जायेंगी।

दरोगा - (तुरंत चेहरे का रंग बदलता है) अरे। यह बात है, तो पहले क्यों नहीं बताया। आप सब तो बड़ा नेक काम कर रहे हो । कड़ी मेहनत से टोपियों के रंग बदलो लेकिन टोपियों पर ज्यादा पक्का रंग मत चढ़ाना। पता नहीं कब कौन सा रंग बदलना पड जाय। हो सकता है पुलिस की नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा करने के लिए मुझे भी यह टोपियां पहननी पडे.. और हां, इस नेक काम में अगर कोई परेशानी हो या अड़चन हो तो तुरंत बताना। चलो सिपाहियों ।

(दरोगा और सिपाही सब मंच से निकल जाते हैं।)


✍️ धन सिंह 'धनेन्द्र'

म.नं. 05 , लेन नं -01

श्रीकृष्ण कालोनी,

चन्द्रनगर , मुरादाबाद-244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०- 9412138808

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य रचना --हम और राजनीति

 


पढ़ाई पूरी करने के बाद

हमने दो तीन साल

रोजगार कार्यालय के

चक्कर लगाए

सैकड़ों परीक्षाएं दीं

लेकिन कहीं से भी

सकारात्मक परिणाम

नहीं आए

किसी ने यह बात समझाई

आजकल राजनीति में है

बहुत अधिक कमाई

उसी में करो भाग्य आजमाई

हमने सोचा

चलो यह भी कर के

देख लिया जाए

इस विचार को अमली

जामा पहनाने के लिए

हमने राजनीतिक दलों के

द्वार खटखटाए,

दल नंबर एक को

अपना पूरा बायो डाटा दिखाया

 बी ए, बी एड , एम ए, पी एचडी

 देख उनका सिर चकराया

 बोले

 आप जरूरत से ज्यादा

 लिखे पढ़े हैं

 खानदानी माहौल में

 पले बढ़े हैं

हमारी पार्टी का अध्यक्ष तक

हाई स्कूल फेल है

इसलिए हमारा तुम्हारा

रिश्ता बेमेल है

दल नंबर दो ने पूछा

अब तक कितनी बार

झूठ बोला है

कितनी बार पहना

मक्कारी का चोला है

हमारी पार्टी बेईमानी के

धरातल पर टिकी है

हमारे सदस्यों की निष्ठा

ना जाने कितनी बार बिकी है

गिरगिट की तरह

रंग बदल पाना

बात बात में

घड़ियाली आंसू बहाना

थूक कर चाटना

एक दूसरे की जड़ काटना

अगर इन सबकी

आपको आदत है

हमारी पार्टी में

आपका स्वागत है

हमने समझ लिया

यहां हमारी दाल

नही गल पाएगी

क्योंकि लाख

कोशिशों के बाद भी

हमारी आदत

नही बदल पाएगी

किसी ने कहा

पढ़े लिखे होने का

फायदा उठाओ

पार्टी नंबर तीन में

भाग्य आजमाओ

ये बुद्धिजीवियों की पार्टी है

बस थोड़ी सी

कट्टरता दर्शानी है

और एक धर्म को

दूसरे से लड़ाना है

अपनी कड़वी जुबान से

नफरत फैलाना है

धार्मिक उन्माद और दंगो को

जितना अधिक भड़काओगे

पार्टी के अंदर उतने

बड़े नेता कहलाओगे

हमने कहा, माफ कीजिए 

हम इतना नही गिर पाएंगे

कहीं से आवाज आई

फिर आप राजनीति में

ऊंचा नहीं उठ पाएंगे

हमने उनसे विदा ली

और एक बिल्कुल

नई पार्टी ढूंढ निकाली

उसने हमको बिना शर्त अपनाया

अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया

हमने भी अपना सबकुछ

दांव पर लगाया

लेकिन फैसला

हमारे विरोध में आया

अगली बार

हमारे भाग्य का कमल खिल गया

एक प्रतिष्ठित पार्टी में

गुटबाजी के चलते

हम जैसे निर्विवाद व्यक्ति को

मौका मिल गया

हम जैसे तैसे 

चुनाव जीत गए

लेकिन धन के सारे कुएं

रीत गए

सिर पर कर्ज का

बोझ बढ़ता गया

हमारी चिंताओं का

ग्राफ चढ़ता गया

अनुभवी नेताओं ने समझाया

ईमानदार बन कर

राजनीति को बदनाम मत करो

छोटा मोटा घोटाला

करने की हिम्मत करो

हमने कोशिश करी

लेकिन पकड़े गए

विपक्ष की राजनीति में

जकड़े गए

हमको समझ आ गया

राजनीति हमारे

खून में नही है

इसलिए इससे

दूर रहना ही सही है

अब मैं

नेता ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट

चलाता हूं

खुद तो बन नही सका

दूसरों को

सफल नेता बनाता हूं।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

M 9837189600

अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से तीस जनवरी 2022 को शहीदों के सम्मान में हुई ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 


अखिल भारतीय साहित्य परिषद ,मुरादाबाद की ओर से देश के अमर शहीदों के सम्मान में गूगल मीट के माध्यम से एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 30 जनवरी 2022 को किया गया। कवि राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवयित्री एवं मुरादाबाद इकाई की अध्यक्ष डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने राष्ट्रप्रेम की अलख जगाते हुए कहा - 

"राष्ट्र की अर्चना, राष्ट्र आराधना, निशि दिवस हम करें ,राष्ट्र वंदन करें ।।

राष्ट्रहित जो मरे ,राष्ट्रहित जो जिये, उनके चरणों मे  शत शत नमन हम करें ।।"

 मुख्य अतिथि वरिष्ठ इतिहासकार तथा साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' ने मुक्तक प्रस्तुत किए- 

"दर्पण की धूल हटाओ, देश हमारा है। 

भीतर का सत्य जगाओ, देश हमारा है।

हर फूल, शूल अपना होता है, क्यारी में मिलकर,

उपवन विकसाओ, देश हमारा है।"

विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वर्तमान परिदृश्य का चित्र खींचते हुए अपने दोहों में कहा -

"राजनीति में देखकर, छलछंदों की रीत।

कुर्सी भी लिखने लगी, अवसरवादी गीत।।

आज़ादी के बाद का, बता रहा इतिहास।

सिर्फ़ चुनावों के समय, वोटर होता ख़ास।।"

 विशिष्ट अतिथि कवयित्री सरिता लाल ने अपनी आस्था कुछ इस प्रकार व्यक्त की- 

"शहीदों की आत्मायें भी शायद 

अब तक मुक्त नहीं हो पायीं हैं, 

बद्दुआ तो नहीं दे सकतीं अपने देश को, 

लेकिन दुआओं के लिए भी हाथ नहीं उठा पायीं हैं।।"

विशिष्ट अतिथि डॉ. संगीता महेश ने मंगलकामना करते हुए 

कहा -

"आकाश से पृथ्वी तक मेरा भारत सूर्य सम चमके, 

रब से दुआ हम दिन रात करते हैं। 

आओ अपने प्यारे भारत की बात करते हैं।" 

 संचालन करते हुए राजीव 'प्रखर' ने अपनी अभिव्यक्ति इस प्रकार की - 

"निराशा ओढ़कर कोई, न वीरों को लजा देना।

नगाड़ा युद्ध का तुम भी, बढ़ाकर पग बजा देना।

तुम्हें सौगन्ध माटी की, अगर मैं काम आ जाऊँ, 

बिना रोये प्रिये मुझको, तिरंगों से सजा देना।

कवि प्रशांत मिश्र ने अपनी आंदोलित करती रचना में कहा- 

"शत्रु ह्रदय प्रति-साँस, भारत माता की जय-जय कार करें, आओ...! सिंहनाद करें।" 

कवयित्री डाॅ. रीता सिंह ने वीरों का वंदन करते हुए सुनाया- 

"वीरों का वंदन, माथे का चंदन।

 आओ करें नमन, इनको करें नमन।"

कवि अशोक 'विद्रोही' ने शहीदों को नमन करते हुए कहा-

"मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे, धूल माथे से तेरी लगाएंगे।

 एक क्या सौ जन्म तुझ पे कुर्बान माँ, भेंट अपने सरों की चढ़ाएंगे।।" 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट के उदगार थे - 

"नेतृत्व चाहिए, नेतृत्व चाहिए। 

हमें बोस भगत से व्यक्तित्व चाहिए। 

नया सवेरा हमें लाना होगा। 

विवेकानंद बन जाना होगा।।"

कवयित्री मोनिका 'मासूम' ने अपनी हृदयस्पर्शी ग़ज़ल में कहा - 

"निहां है दर्द भी हँसती हुई आँखों में पढ़कर देखिए। 

लगा कर मौत सीने से कभी सरहद पे लड़कर देखिए। 

बहुत आसाँ है महलों को खङा करना खयालों में कभी, 

हकीकत की ज़मी पे नींव की दो ईंट गढ़ कर देखिए।" 

शायर व कवि मनोज 'मनु' ने अपने दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा -

"शब्द नहीं एक भाव है, आज़ादी की बात।

स्वाभिमान की राष्ट्र को, मिलने दें सौगात।।

नमन शहीदों आपको, मेरा शत शत बार।

बलिदानों से आपके , हर दिन अब त्यौहार।।" 

कार्यक्रम में वरिष्ठ व्यंग्यकार अशोक विश्नोई एवं कवयित्री डॉ. सुगंधा अग्रवाल ने उपस्थित रहकर सभी का उत्साहवर्धन किया। मोनिका 'मासूम'  द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।


रविवार, 30 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम की व्यंग्य कविता------ सुविधाभोगी गठबंधन वाली सरकार

 


वही पिटा-पटाया ढोल बजाना,

 चुनाव से पहले,

 गठबंधन में बँध जाना, 

इक्के, दुक्के, नहले, दहलों का!

जवान लड़के, 

और लड़कियों की तरह,

 एक दूसरे के गले में बाँहें डालना,

 दुलारना, पुचकारना, रिझाना,पटाना

 साथ जीने,

 और मरने तक की कसमें खाना,

और,

 चुनाव के ठीक बाद, 

शुरू होता है तय करना, 

सुख-सुविधाओं का बराबर प्रयोग,

अर्थात

बिलास भोग,

भोग-विलास की शर्तों पर,

 पुत्र रत्न की तरह,

 प्राप्त तो हो ही जाती है सत्ता! 

आप सभी जानते हैं इसके बगैर, 

हिलता नहीं है, 

कहीं कोई भी पत्ता!

पत्ता खड़कता है,

 धीरे-धीरे, 

बंदा  रड़कता है, 

धीरे-धीरे,

धीरे-धीरे, एक दूसरे के प्रति,

 आकर्षण कम होता है,

 कोई ज्यादा पा लेता है,

 कोई सब कुछ खो देता है,

इस तरह,

 जब एक करने लगता है,

 दूसरे के साथ, बलात्कार!

तो 

नाजायज, पेट की तरह,

समय से पहले ही गिर जाती है, 

सुविधा भोगी गठबंधन वाली सरकार,

मेरा पहले भी था,

 आपसे एक ही निवेदन,

 और आज भी है एक ही दरकार!

इन तथाकथित,

प्रेमियों को,

बलात्कारियों को,

 विलासी भोगियों को,

 ठिकाने से लगा दो,

अबकी बार फिर एक ईमानदार, 

सरकार बनवा दो


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत