मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी पांच फरवरी 2022 को सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के नवीन नगर स्थित आवास पर "वसंत-राग"(काव्य एवं संगीत-संध्या) का आयोजन किया गया।
वरिष्ठ कवयित्री डा. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने वसंत-गीत प्रस्तुत किया-
"हमसे दुनिया जहान की बातें
क्या हुईं फूल पान की बातें
भूख पत्ते चबा रही है यहाँ
मत करो आसमान की बातें।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विख्यात हास्य-व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कविता प्रस्तुत की-
"आजकल
बड़ी अजीब सी
ज़िन्दगी जी रहे हैं हम
हमने
दोस्तों के आंगन में
गुलाब उगाये
लेकिन उनके कांटे
हमारे ही कपड़े
फाड़ने के काम आये
कुछ करने के नाम पर
उन्हीं को
सी रहे हैं हम।"
मुख्य अतिथि डॉ. चन्द्रभान सिंह यादव ने कहा-"बसंत मौसम की युवावस्था है।यह ऋतु और प्रकृति परिवर्तन का प्रतीक भी है।आज ही महाकवि निराला का जन्मदिन हुआ था।"
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शायर डॉ० कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की-
"है अपने हश्र से वाक़िफ़ हर एक परवाना
किसी चिराग़ की लौ में सिमट के रह जाना
तेरे निज़ाम को समझे, तो किस तरह कोई
यहीं पे रौनक़े-दुनिया, यहीं पे वीराना।"
कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-
"पेड़ों को
नव पल्लवों से
सजाने वाले
मन में होरी-ठुमरी की मिठास
घोलने वाले
ऋतुराज
तुम कहाँ विलय हो गये।"
कवयित्री डा. पूनम बंसल ने रचना प्रस्तुत की-
"लो वसंत है आ गया, लिए प्रेम के हार/
मन-मंदिर में सज गए, अभिलाषा के द्वार/
मौसम की है मादकता, मदन चलाए तीर/
नैनों की भाषा कहे, मनवा प्रेम अधीर।"
साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने कविता प्रस्तुत की-
"रिझाने के दिन आ गए
लुभाने के दिन आ गए
पाँच साल में लगी आग
बुझाने के दिन आ गए।"
कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वासंती दोहे प्रस्तुत किए-
"खुश हो कहा वसंत ने, देख धरा का रूप
ठिठुरन के दिन जा चुके, जिओ गुनगुनी धूप
महकी धरती देखकर, पहने अर्थ तमाम
पीली सरसों ने लिखा, खत वसंत के नाम"
शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"जैसे हर पल तिरा ख़याल आऐ
काश ऐसे शबे-विसाल आऐ
कुछ तो हो रात काटने के लिए
तू न आए तिरा ख़याल आऐ।"
कवि राजीव 'प्रखर' ने दोहे पढ़े-
"छेड़े सम्मुख माघ के, कोकिल मीठी तान
सरसों भी कुछ कम नहीं, फेंक रही मुस्कान
बैर-भाव-विद्वेष का, कर भी डालो अंत
पीली चुनरी ओढ़ कर, कहता यही वसंत"
कवि समीर तिवारी ने मुक्तक प्रस्तुत किया-
"चाँदनी दीवार-सी ढहने लगी है
नींद सपनों की कथा कहने लगी है
एक चिड़िया पंख फैलाये हुए
आँख के भीतर कहीं रहने लगी है।"
कवि श्रेष्ठ वर्मा ने कविता सुनाई-
"बहुत कुछ नया सा है अब मगर
फिर भी सबकुछ वही है
कहानी किस्से नये हैं अब मगर
लोग पुराने सब वही हैं
नया साल तो फिर आ गया मगर
दीवार पर टँगी वो घड़ी वही है।"
कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी ने भी अपनी कई रचनाएं प्रस्तुत कर मन मोह लिया ।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुंदरी तिवारी, मुजफ्फरनगर की संगीतज्ञा सरिता शर्मा, सुप्रसिद्ध तबलावादक राधेश्याम एवं संगीत छात्राओं कृतिका, सिमरन, लिपिका, प्रगति, आदया ने सांगीतिक प्रस्तुतियां दीं।
आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।
::::::::प्रस्तुति:::::::
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक
साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल- 9412805981
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