सोमवार, 31 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं रंगकर्मी धन सिंह धनेन्द्र का एकांकी --टोपियां


(मंच सज्जा - मंच पर एक मेज लगी है। दो कुर्सियां भी बेतरतीब रखीं हैं उन पर गीले सूखे कपड़े रखें हैं। मेज पर कई रंग के पेंट, ब्रुश, बाल्टी व हैंगर रखे है । रंग-बिरंगी टोपियां रस्सी पर लटकी सूख रहीं हैं)

पीतम- अरी सुन रही है। यह टोपियां आज ही देनी हैं। मौसम का मिज़ाज समझ नहीं आ रहा है। टोपियां कमबख्त सूखने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। जरा प्रेस से गरम करके सुखा दे इनको । मुझे अभी बहुत सारी टोपियां रंगनी है।

कमला - आप भी अजीब बात करते हो । भला प्रेस से मैं कब तक सुखाती रहुंगी, और भी कितने काम पडे़ हैं मुझे।

पीतम - मौसम है कमाने का। दल-बदलुओं का कुछ नहीं पता। रात को एक दल में तो सुबह दूसरे दल में होते हैं। आजकल यह धंधा खूब जोर पकड़ रहा है। (एक छुटभैया नेता हाथ में कुछ सफेद टोपियों के साथ प्रवेश करता है)

नेता- किसके धंधे की बात कर रहे हो पीतम ?

पीतम- नेताजी, चुनाव का मौसम है। सभी के धंधे की बात है। अब देखो न आप भी अब अपने धंधे में कितने ब्यस्त रहते है.

नेता- भई मैं तो मौहल्ले का एक छोटा अदना सा नेता हूं। मेरा धंधा बहुत छोटा है और रिस्की भी, जिस पार्टी ने अच्छा दाना डाला उसी की टोपी ओढ़ ली। अब अगले हफ्ते 20 तारीख में एक पार्टी की रैली में मुझे एक बस भर कर आदमी ले जाने हैं, मगर 200 रु में कोई जाने को तैयार नहीं। लोग 500रु से कम में राजी नहीं। रोटी पूडी़ दारु अलग से।

पीतम- महंगाई भी तो बढ़ गई है अब

नेता- अच्छा यह बताओ, मेरी टोपियां हो गई सब।

पीतम- आपकी नीले रंग वाली 100 टोपियों का आर्डर था, 50 हो चुकी हैं, बाकी 50 अभी सूख रहीं हैं। अगर मौसम सही हो गया तो कल ले जाना।

नेता- अरे अब इन्हें रहने दो, इनकी कोई पूछ नहीं। अब मुझे लाल रंग की 500 टोपियां चाहिए शाम तक, कल पहनानी हैं।

पीतम- पहले इन नीली टोपियों से तो काम चलाओ।

नेता- पीतम दद्दा तुम समझते नहीं। अब इन नीली टोपी का पत्ता साफ हो चुका है। कल लाल टोपियों की सख्त जरुरत है। एक बड़े नेता पार्टी बदल रहें हैं।

पीतम -फिर यह जो टोपियां तैयार हो गई अब इनका क्या होगा?

नेता- इन टोपियों की फिलहाल कोई जरुरत नहीं रही, जो बन गई उनके भी कुछ पैसे दे दूंगा। बाद में कभी काम आयेंगी सम्हाल कर रखना।

पीतम- मौसम कितना बदल गया है। टोपियां सूख नहीं पायेंगी।

नेता- मौसम सभी के लिए बदल चुका पीतम दद्दा। आजकल नेताओं ने भी बे-मौसम चाल बदलनी शुरू कर दी है। अब आदमी से ज्यादा टोपियों की डिमांड बढ़ गई है।

 कमला- (रस्सी पर लाल सफेद टोपिया लटकाते हुए) सही कह रहे है नेता जी, हमारे इलाके में भी अब रंग-बिरंगी टोपियों बदल-बदल कर पहनने का फैशन चल पड़ा है।

पीतम- अरे चुप कर, बहुत बोलती है। यह नीली टोपियां हटा यहां से। यहां लाल टोपियां सुखानी हैं। कल ही नेता जी को देनी है।

कमला- कभी नीली, कभी लाल फालतू काम क्यों फैला रहे हो जी?

पीतम- यह खडे़ हैं नेता जी, इन्हीं से पूछ ले।

नेता- हर आदमी अपने धंधे को पहले देखता है। हमारे नेता भी जहां धंधा मद्दा हुआ तुरंत पार्टी बदल रहें हैं। आखिर उनको भी खाना कमाना है और बिना सत्ता के नेताजी मूंगफली थोडे ही छीलेंगे। सत्ता में रहने वाली पार्टी से दूर होकर नेता आगे कैसे जी पायेंगे? इसीलिए तो कल गांधी मैदान में एक बड़े नेता पार्टी बदलेंगे। गांधीजी की शपथ लेकर पहले टोपी का रंग बदलेगा तभी न पार्टी बदलेगी।

(बाहर शोर शराबे की आवाज जोर-जोर से होती है। तभी तेज आवाज के साथ एक मोटा दरोगा और 4-5 सिपाहियों के साथ घर में प्रवेश करता है )

पीतम- क्या हो गया साहब।

दरोगा - तो यहां हो रहा है यह लाल-पीला काला धंधा। गिरफ्तार कर लो इसे।

(नेता चुपचाप खिसकने लगता है। दरोगा नेता को पकड़ता है और कडक आवाज़ में पूछता है)

दरोगा- क्यों, कौन सी पार्टी के हो नेता जी ?

नेता- सर, हम किसी पार्टी के नेता नहीं हम तो छोटे कार्यकर्ता है।

दरोगा- यहां क्या कर रहे हो। भागो यहां से। (पीतम से) क्यों बे तू यहां टोपियां बदलने का धंधा करता है। जानता नहीं आचार संहिता लगी हुई है। टोपियां का रंग बदल कर दल-बदल को बढ़ावा देता है। पार्टियां बदलने का धंधा फैला रहा है। ले चलो इसे थाने। यह इस शहर की शांति भंग कर रहा है। इसकी सारी लाल, पीली काली नीली टोपियां जब्त कर लो। केवल एक टोपी छोड़ दो।

पीतम- हम गरीब आदमी है सरकार। हमारा धंधा चौपट हो जायेगा।

कमला- हजूर इनका कोई कसूर नहीं हम तो केवल टोपियों का रंग बदलें हैं। इस काम में भी बहुत टाईम लगता है, मेहनत लगती है। लोग तो रातों-रात अपना दल बदल रहें हैं। अपना ईमान- धर्म बदल ले रहें हैं। हम टोपियां सिलाई-रंगाई का काम करके बमुश्किल गुजारा करते हैं।

दरोगा - ऐ । बहुत ज्यादा बोलती है। नेतानी बनती है। जानती नहीं चुनाव आचार संहिता लगी है। अभी मिनटों में बंद कर दूंगा। जमानत भी नहीं होगी।

पीतम- दरोगा जी, इस पागल की बातों पर ध्यान मत दो। मौसम बदलने के साथ इसे भी एलर्जी हो जाती है।

दरोगा- ऐसा है तो इसका ईलाज क्यों नहीं कराता। पुलिस से कैसे बात की जाती है इसे सिखा दे वरना जेल में सडे़गी।

कमला- (हाथ जोड़ कर विनम्रता से कहती है) देखो दरोगा जी, हम अभी मंत्री जी के घर जाकर यह टोपियां फेंक आतें हैं। बोल देंगे- हमें जेल नहीं जाना। अपनी टोपियां जहां चाहे वहां सिलवा लो- रंगवा लो।

दरोगा- (आश्चर्य में) मंत्रीजी से टोपियों का क्या मतलब ?

पीतम - यह सब उन्ही का आर्डर है। दो- एक दिन बाद एक बड़े कद्दावर नेता उनकी पार्टी को ज्वाइन कर रहें हैं। उनके और उनके कार्यकर्ताओं के लिए ही तैयार हो रहीं हैं यह टोपियां उन सबको ही पहनाई जायेंगी।

दरोगा - (तुरंत चेहरे का रंग बदलता है) अरे। यह बात है, तो पहले क्यों नहीं बताया। आप सब तो बड़ा नेक काम कर रहे हो । कड़ी मेहनत से टोपियों के रंग बदलो लेकिन टोपियों पर ज्यादा पक्का रंग मत चढ़ाना। पता नहीं कब कौन सा रंग बदलना पड जाय। हो सकता है पुलिस की नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा करने के लिए मुझे भी यह टोपियां पहननी पडे.. और हां, इस नेक काम में अगर कोई परेशानी हो या अड़चन हो तो तुरंत बताना। चलो सिपाहियों ।

(दरोगा और सिपाही सब मंच से निकल जाते हैं।)


✍️ धन सिंह 'धनेन्द्र'

म.नं. 05 , लेन नं -01

श्रीकृष्ण कालोनी,

चन्द्रनगर , मुरादाबाद-244001

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