डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल बहुआयामी व्यक्तित्त्व के धनी हैं। उनके द्वारा संपादित लिखित एवं प्रकाशित पुस्तकों की संख्या शताधिक है। उन्होंने बड़ों के लिए जहाँ कविताएँ, कहानियाँ शोध आलेख तथा व्यंग्य रचनाओं का सृजन किया है, वहीं बच्चों के लिए भी मनोहरी रचनाएँ लिखी हैं। विशेष रूप से बाल नाटकों, बाल कहानियों के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ प्रशंसनीय हैं।उन्होंने डॉ. अग्रवाल जहाँ बच्चों को मानव सभ्यता का इतिहास बताते हुए उन्हें अतीत में ले चलते हैं, वहीं महापुरुषों के विचारों को वर्तमान से जोड़ते हुए इनसे प्रेरणा लें नामक पूरी श्रृंखला ही भावी पीढ़ी को सौंप देते हैं।
हिन्दी के वरिष्ठ प्राध्यापक, शोध अध्येता, सैकड़ों पुस्तकों के लेखक, संपादक, प्रकाशक और कुल मिलाकर एक सहज व्यक्तित्त्व के धनी डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल से मिलना हर बार नई ऊर्जा से भर देता है। यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग तीन दशकों से मैं उनका स्नेहभाजन रहा हूँ। हिन्दी बालसाहित्य शोध का इतिहास पुस्तक लिखते समय मैंने उनके सुदीर्घ अनुभव का बराबर लाभ उठाया है। बार-बार मोबाइल से उनसे संदर्भ पूछता रहता था। उनके संपादन में प्रकाशित शोध संदर्भ के मोटे-मोटे कई खंड मेरे पास हैं।
मेरे बालसाहित्य सृजन पर हुए पहले शोध प्रबंध को उन्होंने ही अपने प्रकाशन से पुस्तकाकार प्रकाशित करके पूरे देश में पहुँचाया है। उसकी प्रतियाँ विभिन्न पुस्तकालयों में आज भी उपलब्ध हैं। कई शोधकर्ताओं ने अपने -अपने शोध प्रबंधों में उसे उद्धृत किया है।
साहित्य की हर विधा में अपनी मजबूत पकड़ बनाना इतना आसान नहीं होता है। एक को पकड़ो तो दूसरा छूटने का खतरा बराबर बना रहता है।, लेकिन माँ वीणापाणि सरस्वती की जिसके ऊपर कृपा हो, उसके लिए सब आसान हो जाता है। डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल अपने विपुल लेखन के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बराबर रुचि लेते रहे हैं। रोटरी क्लब में भी उनकी सक्रिय साझेदारी रही है। एक सफल रोटेरियन के रूप में आज भी उनकी पहचान बनी हुई है।
इतनी सक्रियता के बावजूद फोन पर लंबी साहित्यिक चर्चा करते हैं और अपने सुझावों से हमारा मार्गदर्शन करते हैं। इन तीन दशकों में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि उन्होंने मेरा फोन नहीं उठाया। कभी अगर नहीं लगा तो पलटकर देखते ही फोन किया। पिछले दिनों नई दिल्ली की एक बैठक में पुस्तक प्रकाशन की चर्चा आते ही उन्होंने उसके प्रकाशन का जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए कहा था कि मैं हिन्दी साहित्य निकेतन से उसे प्रकाशित कर दूँगा। दुर्भाग्यवश वह योजना ही फ्लॉप हो गई।
इधर बच्चों की कविताओं को लेकर उन्होंने बड़े अद्भुत प्रयोग किए हैं। उनकी पुस्तक सपनों को उड़ान दो में कुल 40 बालगीतों को संकलित किया गया है।
गाँव और शहर के अंतर को स्पष्ट करता हुआ उनका यह बालगीत संवेदना के धरातल पर सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। गाँव से बड़े-बड़े सपने लेकर चला हुआ व्यक्ति शहर की भागमभाग में ऐसा उलझता है कि उसे अपना ही ख्याल नहीं रहता है। निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए -----
जब से यहाँ गाँव से आया
नहीं किसी से मैं मिल पाया।
जब भी मिले पड़ोसी अंकल
बाय-बाय कर पिंड छुड़ाया।
संबंधों में खाना पूरी
दीदी ऐसी क्या मजबूरी?
अपना गाँव याद है आता
जहाँ सभी से अपना नाता।
खेल-खेल में सब दुख भूलें
सब हैं दोस्त सभी हैं भ्राता।
शहरों में क्यों होती दूरी
दीदी ऐसी क्या मजबूरी।
नदियों से मानव जीवन जुड़ा हुआ है। सच्चाई तो यह है कि बिना नदियों के स्वस्थ और सार्थक समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इसलिए हमारा दायित्त्व है कि नदियाँ स्वच्छ रहें, उनमें कूड़ा -करकट इकट्ठा न होने पाए। कभी-कभी नदियों का उद्गमस्थल हमें पता नहीं चलता कि इनकी यात्रा कहाँ से शुरू होकर कहाँ पर समाप्त होती है। एक ऐसा ही प्रेरणादायक बालगीत इस पुस्तक में दिया गया है -----
नदी कहाँ से तुम आती हो
नदी कहाँ तक तुम जाती हो।
तुम्हें देख लगता है ऐसा
जीवन क्या है बतलाती हो।
ऊँचे पर्वत की चोटी से
तुम बनाकर धारा आती हो।
सूखी धरती को संचित कर
सागर में तुम मिल जाती हो।
नदियाँ जल का अगम स्रोत हैं।
सबकी प्यास बुझतीँ पल-पल।
लेकिन हम लालच में आकर
दूषित कर देते निर्मल जल।
नदियों के तट पर ऋषियों ने
पाया अद्भुत ज्ञान जगत का।
तीर्थ बने नदियों के तट पर
पाया हमने ज्ञान विगत का।
प्रकृति -पर्यावरण, मौसम, पेड़ -पौधे सब मानव के लिए जरूरी हैं, लेकिन हम इनके प्रति कितना जागरुक हैं, यह प्रश्न विचारणीय है। पेड़ों को लगाना तो आवश्यक है ही, उनका संरक्षण और समय-समय पर कटाई-छटाई भी बहुत जरूरी है। पेड़ रहेंगे तो पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा-----
हम सब पेड़ लगाएँ मिलकर
पर्यावरण बचाएँ मिलकर।
इमली, जामुन, नीम लगाएँ
पक्षी मिल घोसले बनाएँ।
पेड़ लगाकर भूल न जाएँ
गफलत में ये सुख न जाएँ।
प्राणवायु मिलती पेड़ों से
खुशहाली बढ़ती पेड़ों से।
पेड़ हमारे जीवनदाता
इनसे हर प्राणी का नाता।
जहाँ पेड़ हैं, वन- जंगल हैं
वर्षा वहीं, वहीं पर जल है।
हमें आए दिन भूकंप आने की खबरें मिलती रहती हैं। कुछ भूकंप की तीव्रता इतनी अधिक होती है है, उससे अपार धन-जन की हानि हो जाती है। हमें भूकंप के बारे में विस्तार से जानकारी इसलिए भी आवश्यक है ताकि हम अपने को उससे सुरक्षित रखने का उपाय कर सकें। प्रस्तुत संग्रह की भूकंप कविता सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट करती है ---
क्यों आता भूकंप बताया
पापा जी ने मुझको।
धरती के नीचे चट्टानें, आपस में टकरातीं।
इसी केन्द्र से शक्ति तरंगें, कंपन को फैलातीं।
बिल्कुल जैसे शांत सरोवर, में तुम पत्थर फेंको
और उसी क्षण पानी के, ऊपर लहरें उठ आतीं।
धरती भी तो बँधी हुई है , इन परतों की डोर से।
आता जब भूकंप हिला, करती है धरती सारी।
बड़े-बड़े भवनों को उस, क्षण होती है क्षति भारी।
आग कहीं लगती है तो फिर आती कहीं सुनामी।
टूटे बाँध और पुल टूटे, मानव की लाचारी।
टूटी-फूटी दीवारों को देख रहे हम भोर से।
कृति : सपनों को उड़ान दो (बाल गीत संग्रह )
रचनाकार : डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
संस्करण :2023
मूल्य : 250₹
प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशंस, दिल्ली
सी 1245, एम आई जी
राजाजीपुरम
लखनऊ 226017
उत्तर प्रदेश, भारत
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