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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 8 । यह कृति वर्ष 2022 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में उनकी पूर्व प्रकाशित यात्रा वृत्त कृतियां संभावना के देश में ( दुबई– आबूधाबी), तीन कदम और (फ्रांस, स्विटजरलैंड, इटली), कैप्टन जेम्स कुक के देश में( आस्ट्रेलिया), मुस्कानों के देश में (थाईलैंड कंबोडिया वियतनाम), के देश में(नेपाल), पर्यावरण के देश में(ऑस्ट्रेलिया जर्मनी बेल्जियम नीदरलैंड) और सुमनों के देश में(भूटान) समाहित हैं...



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::::::::प्रस्तुति::::;::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन  नंबर 9456687822

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 7 । यह कृति वर्ष 2022 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में उनकी पूर्व प्रकाशित यात्रा वृत्त कृतियां सौन्दर्य के देश में ( नार्वे– स्वीडन), कर्मवीरों के देश में (ट्रिनिडाड–टुबैगो), श्रमजीवी के देश में( ताशकंद–समरकंद), संवेदना के देश में (मॉरिशस), सदाचार के देश में(नेपाल), दशानन के देश में(श्री लंका) और अनुशासन के देश में(सिंगापुर) समाहित हैं...



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डॉ मनोज रस्तोगी

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मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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शनिवार, 12 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल...


पग-पग पर पीडा़यें  भोगी, 

सपने  चकनाचूर  हुए  हैं! 

कैसे  अपना  दर्द  छुपाएँ, 

क्यों अपनों से दूर हुए हैं? 


साथ-साथ आंगन में खेले, 

प्रातराश-भोजन भी पाया! 

तारे गिनते - गिनते सोये, 

कभी नहीं मजबूर हुए हैं!! 


खेल-खेल में गिरे अचानक, 

चोट लगी कितना मन रोया! 

हाथ पकड़ कर सहलाते थे, 

कितने दिन काफ़ूर हुए हैं!! 


बड़े  हुए  घर  गया  छूटता, 

शिक्षा-परहित रहे अकेले! 

लेकिन,घर को भूल न पाये, 

मिलन दिवस अति क्रूर हुए हैं!! 


समय बदलते देर न लगती, 

मात-पिता भी स्वर्ग सिधारें! 

अपनों का संकट हरने को, 

अनचाहे  ज्यों  घूर  हुए  हैं!! 


तन-मन कब नीलाम हो गया, 

वैभव - साहुकार  के  द्वारा! 

यौवन उसका दास बन गया, 

मित्र  कहें  मशहूर  हुए  हैं!! 


श्रम ने भाग्य बदल डाला है, 

बदला घर का मानचित्र भी! 

अपने  भूले  अहंकार  में, 

हम  खट्टे  अंगूर  हुए  हैं!! 


अपना कौन पराया जग में,

इसका बोध नहीं हो पाता ? 

महाकष्ट में साथ खड़े जो, 

वे  ही  सच्चे  शूर  हुए  हैं!! 

✍️ डॉ. महेश 'दिवाकर' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर के निर्देशन में जय प्रकाश सिंह का शोध प्रबंध .... साहित्यकार डॉ पुष्पेंद्र वर्णवाल : जीवन और साहित्य : एक आलोचनात्मक अध्ययन


                          


क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरा शोध प्रबंध 

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:::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822





शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल --राजा जी ने ली अंगड़ाई, हुए भेड़िए मस्त, शीश झुकाकर राजा जी का, किया बहुत सत्कार


रूप बदलकर क्रूर भेड़िए, घुस आए दरबार,

घात लगाकर बैठ गए कुछ, राजमहल के द्वार ।


राजा जी ने ली अंगड़ाई,  हुए भेड़िए मस्त,

शीश झुकाकर राजा जी का, किया बहुत सत्कार।


चाटुकारिता रच देती है, एक नया अध्याय,

औचक ही आ जाता घर में, खुशियों का अंबार ।


गद्दारों की मक्कारी भी, होती बड़ी अचूक, 

पलभर में होता पुलवामा, दुख का पारावार ।


दीवाली के दीप जलाकर, रचेंं दुष्ट षडयंत्र, 

देशद्रोह की चिंगारी को, सुलगाते गद्दार ।


भ्रष्टाचारी कहां मानते, कोई भी प्रतिबंध, 

राजनीति के राक्षस करते, इनका भी उपकार ।


छिड़ा देश में शीत युद्ध है, उमड़ रहा आतंक, 

दानवता महिमा मंडित है, पा श्रद्धा उपहार ।


सज्जनता का राजनीति भी, करे कहां सम्मान, 

जातिवाद का अवसरवादी, फल पाते मक्कार ।

  ✍️ डा. महेश 'दिवाकर '

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 22 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल ---सब गिरगिट राजनीति के, खेलेंगे हर दांव, जनता ही मारे पटकी, पदघात चुनाव में


नेता करने वाले हैं, आघात चुनाव में!

धन की होने वाली है, बरसात चुनाव में!


बात करेंगे बड़ी-बड़ी, मनहर व्यवहार में;

दिखला देंगे वोटर की, औकात चुनाव में!


मार कुंडली बैठे ज्यों, अजगर बाजार में;

मुखिया जी त्यों कर देंगे, प्रतिघात चुनाव में!


जादू नटवरलाल करें, अदभुत ही मंच पर;

भोली जनता पा जाती, सौगात चुनाव में!


रस्सी को सांप बनाकर, करें भेड़िए स्वांग;

भड़काते देशद्रोह हैं, बदजात चुनाव में!


बरसाती मेंढक बनकर, निकले हैं हर बार;

उछल - कूद से कर देते, दुर्घात चुनाव में!


गद्दारों की फौज करे, अनुशासन गांव में;

मक्कारों का हो जाता, उत्पात चुनाव में!


सब गिरगिट राजनीति के, खेलेंगे हर दांव;

जनता ही मारे पटकी, पदघात चुनाव में!


✍️डा. महेश ' दिवाकर '

'सरस्वती भवन'
12-मिलन विहार, दिल्ली रोड
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर  9927383777,  9837263411, 9319696216



सोमवार, 10 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल --महाशक्ति करती अगवानी; हिंदी - गौरव - रथ आया है!



हिंदी विश्व दिवस आया है।

मनो बसंत विश्व छाया है!


देश-देश में बजी दुन्दुभी;

हिंदी - केतन लहराया है!


महाशक्ति करती अगवानी;

हिंदी - गौरव - रथ आया है!


नभ में इंद्रधनुष शोभित हैं;

तोरण द्वार क्षितिज लाया है!


चमके सूरज, चांद, सितारे;

सिंधु धरा पर लहराया है!


नदियां, झीलें, पर्वत गाते;

स्वर्ग उतर वसुधा आया है!


खिली हुई है मधुर चांदनी;

विश्व पटल अति हर्षाया है!


उपवन-कानन सुमन खिले हैं;

हिंदी की अद्भुत माया है!


✍️डा. महेश 'दिवाकर '

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 13 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 13 सितंबर 2021 को साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' को किया गया "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या सोमवार 13 सितंबर 2021 को सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' को "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल एवं प्रतीक चिह्न भेंट किये गये। सम्मान-समारोह मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में आयोजित किया गया। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि  बृजेश कुमार तिवारी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री अशोक विश्नोई एवं बदायूं के रचनाकार राम कृपाल तिवारी मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से राजीव प्रखर एवं जितेन्द्र कुमार जौली द्वारा किया गया।

डाॅ. महेश 'दिवाकर'  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण सम्मान सम्मानित डॉ. महेश ‘दिवाकर’  हिन्दी के उन्नयन एवं संवर्द्धन के लिए पूर्णतया समर्पित हैं।  उनकी कृतियों में दो शोध ग्रन्थ, दस समीक्षा-शोधपरक ग्रन्थ, दो साक्षात्कार ग्रंथ,दो नयी कविता संग्रह, दो गीत संग्रह,आठ मुक्तक एवं गीति-संग्रह, सात खण्ड काव्य, तेरह यात्रा-वृत्त, दो संस्मरण एवं रेखाचित्र संग्रह उल्लेखनीय हैं। आपका साहित्य लोकधारा नाम से ग्यारह खंडों में प्रकाशित हो रहा है इसके प्रथम पांच खंड प्रकाशित हो चुके हैं, शेष प्रकाशन प्रक्रिया में हैं । सम्मान-पत्र का वाचन जितेन्द्र कुमार जौली ने किया। 

 कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए सम्मानित साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' ने कहा-– 

"हिन्दी भाषा राष्ट्र की, करती युग सम्मान ।

सकल विश्व का भूल से, करें नहीं अपमान।।

मुख्य अतिथि  बृजेश कुमार तिवारी ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है| अतः हमें इसका सम्मान उसी भांति करना चाहिए जिस तरह हम अपनी मां का सम्मान करते हैं|

योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा कि अपनी मातृभाषा का सम्मान करके हमें प्रसन्नता तथा स्वाभिमान का अनुभव होना चाहिए|

अशोक विश्नोई ने कहा कि हिन्दी की गाथा गाते हैं परंतु हिन्दी के विषय में केवल 14 सितम्बर को ही हम अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हम हिन्दी में कार्य करें| हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमें इसके प्रति समर्पित रहना चाहिए|

कार्यक्रम में योगेन्द्र वर्मा व्योम, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, राम सिंह नि:शंक, राम कृपाल तिवारी, मनोज रस्तोगी, रामदत्त द्विवेदी, ओंकार सिंह ओंकार आदि उपस्थित रहे। संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।















::::::प्रस्तुति::::::

 जितेन्द्र कुमार जौली

महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम, मुरादाबाद

मोबाइल-9358854322

रविवार, 1 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 4 । यह कृति वर्ष 2021 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी पूर्व प्रकाशित प्रबंध काव्य 'बीरवाला कुंवरि अजबदे पंवार', 'महासाध्वी अपाला', 'वीरांगना चेन्नम्मा', 'जय गुरुजी : जय शिवजी', 'त्यागमूर्ति रमाबाई' और 'वीरव्रता गजना बाल्मीकि' समाहित है।



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::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 3 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी नई कविताएं हैं जो उनके पूर्व प्रकाशित काव्य संग्रहों अन्याय के विरुद्ध, काल भेद और भावना का मंदिर में प्रकाशित हो चुकी हैं ।



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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 2 । यह कृति वर्ष 2019 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी गीति,दोहा और मुक्तक काव्य रचनाएं हैं



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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 1 । यह कृति वर्ष 2018 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियों 'भाव सुमन' (1996), 'पथ की अनुभूतियाँ (1997), 'विविधा (1999), युवकों सोचो !' (2003), 'सूत्रधार है मौन' (2007), 'रंग-रंग के दृश्य' (2009), 'नया भारत' (2012), 'हिन्दी की मुस्कान' (2018), 'फिर खिलेंगे फूल (2018) में प्रकाशित समग्र दोहों को सँजोया गया है। इसमें लगभग 6480 दोहे समाहित हैं।



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सोमवार, 22 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की काव्य कृति "आस्था के फूल" की जितेंद्र कमल आनंद द्वारा की गई समीक्षा

    "आस्था के फूल" मातृभूमि के प्रति आस्थावान पूर्वजों के प्रति श्रद्धावान देश-प्रेमी और निरन्तर सृजनधर्मी डा महेश दिवाकर द्वारा रचित  53 उत्कृष्ट रचनाओं का पठनीय संग्रह है , जिसमें कवि के ही शब्दों में देखें-
 "शब्द-अर्थ के साथ पगे हैं
यहाँ-वहाँ जो पड़े मिले हैं--
मैंने उनको अपनाया है
डुबा आस्था गंगा-जल में
भाव सुवासित फूल बने हैं"(पृष्ठ-2)

     काव्याचार्यों ने काव्य के दो पक्ष माने हैं--भाव पक्ष और कला पक्ष अर्थात् अनुभूति और अभिव्यक्ति। अनुभूति काव्य का आन्तरिक स्वरूप है, जिसे हम काव्य की आत्मा कह सकते हैं , जब कि अभिव्यक्ति उसका  वाह्य स्वरूप,  जिसे उसका कलेवर कहा जा सकता है । कवि हंस अपने दोनों पंखों पर संतुलित होकर उड़ान भरता हुआ "आस्था के फूल" काव्य-संग्रह का मनोहर प्रणयन करता है,  फलस्वरूप पाठकों के लिये प्रशंसनीय बन गया है।
      जाति -वर्गवाद-आधार  पर आरक्षण नीति के विरोध में कवि का ओजस्वी स्वर---
     जाति-पाँति के खेल खिलाकर
नेता मन में फूल रहा ।
उसे न चिंता आज देश की,
घोटालों में झूल रहा ।
आरक्षण का गरल पिलाकर,
रोज उड़े नभयान में ।
देश-धर्म सब इसने बाँटे,
फूँको इसे मकान में  ।
चुभो रहे हैं आज कील जो,
प्यार भरे जलयान में ;
उठो ! लगा दो आग , देश के--
आरक्षण अभियान में।।पृष्ठ 12।।

     मानवीय संवेदना शून्य सत्ता, कुर्सी लौलुप राजनेताओं पर करारा व्यंग्यात्मक प्रहार--
      "बाघ-भेड़िये ,अजगर- नेता
भेड़ सरीखी जनता है ।
जिंदा माँस चबाया करते
कुर्सी लोक-- नियंता हैं ।।पृष्ठ वही-12।।

     प्रेम रूपी दीपक प्रज्वलित करने की कवि-अभिलाषा---
     " दीपक प्यार के प्रतीक
      देते विश्व को संगीत ।
      प्यार तप कर सदा पले
      दीपक सबके लिये जले।।पृष्ठ-19।।

     दर्शनाभिलाषी कवि की प्रभु के प्रति सहज अनुराग की कामना--
     "चंदन- वंदन, भक्ति न जानूँ
     मीत ! सहज अनुरक्ति मानूँ
     प्रीति अनूठी तुमसे मोहन ।
     तेरी आदि शक्ति पहचानूँ।।
     हर पल तेरी राह देखते   ,
     नैन तुझे खोजा करता हैं।।पृष्ठ-20।।

     देश-प्रेमी और देश-भक्त कवि के लिए कश्मीर ही ताज, साज,श्रंगार और भारत का स्वर्ग है जिसकी आन-बान, मान- शान में कमी न आने देने के लिये उसका संकल्प दृष्टव्य है --
     " भारत माँ की शान है यह
पूर्वजों का मान है यह
गौरव गाथा है वीरों की
शोणित की पहचान है यह
कैसे हम पहिचान मिटा दें?
कैसे अपना मान लुटा दे  ?
काश्मीर है साज हमारा,
इसे नहीं हम लुटने देंगे ।
काश्मीर श्रंगार  हमारा ,
उसे नहीं हम मिटने देंगे ।।पृष्ठ-23
     देश के दुश्मनों से भारत की अखण्डता,  सम्प्रभुता और उसके स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए कवि वीर जवानों का आह्वान करता है--
     " मातृभूमि के स्वाभिमान ने
      आज हमें ललकारा है ।
      उठो ! देश के वीर बाँकुरों!
माँ ने हमें पुकारा है ।
      आज देश की सीमाओं पर
       भीषण संकट छाया है ।
       शांति लूटने इधर लुटेरा
दूर देश से आया है ।।" पृ 54।।

      देश और मानवता की व्यथा का यथार्थ चित्रण --
     " आज देश को लूट रहे हैं , रक्षक बन हत्यारे।
       त्राहि- त्राहि करती मानवता, सत्य-अंहिसा हारे।
      रोम-रोम रो रहा देश का, कैसा कलियुग आया ।
        आज तिरंगा आसमान में, सिसक-सिसक लहराया।।पृष्ठ-44।।

        "देश को अपने बचा लो" शीर्षक कविता से कवि का देश के प्रति प्रेम व्यक्त होता है---
        " देश कहीं है श्रेष्ठ धरा पर तो मेरा भारत है ।
         देश कहीं है स्वर्ग धरा पर, तो मेरा भारत है।।पृष्ठ-56।।

     इसका कारण भारत के मुनियों, तपस्वियों की तपोभूमि होना और मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम द्वारा सत्य, अहिंसा, न्याय,  मर्यादा जैसे शाश्वत मूल्यों की स्थापना कर युग --आदर्श प्रदान करना बताते हुए कवि कहता है---
       भारत के कण-कण में बसता, सत्य-अहिंसा दान ।
       यह मुनियों की तपोभूमि है, रही धर्म की खान ।।
        हुआ राम का जन्म यहाँ पर, दुनिया सारी जाने ।
         धर्म,  न्याय औ' सदाचार का ईश्वर उनको माने।
        कितने कष्ट सहे जीवन में, लेकिन व्रत क्या तोड़ा?
       युग की मानवता को जैसे मर्यादा से जोड़ा ।।" पृष्ठ-56

     इसी प्रकार से यदि "यह वतन की  धूल है" , ' वतन को तोड़ने वालों,' ' हम पुजारी शांति के हैं,' इत्यादि रचनाओं में  नवीनता की महक है, तो ' देश को अपने बचा लो,' नामक 8 पृष्ठीय कविता में देश को बचाने के लिये कवि की वेदना उर- स्पर्शी बन पड़ी है ।

        उक्त उत्तम रचनाओं के अतिरिक्त उत्तरार्द्ध में भारतीय पर्वों से सम्बंधित ' होली' और "बसंत" शीर्षक रचनाएँ हैं । " मामा जी की पाती ", , ' बहाना,' 'गुड़िया रानी,' ' बंदर की कथा,' ' किस्मत की कथा,' जैसे आठ बाल गीत बालकों के लिए शिक्षाप्रद बन पड़े हैं । यदि कवि उन्हें आत्मीयता के साथ अपने परिजनों के लिए सुंदर- सुंदर  पातियाँ लिखने की प्रेरणा देता है तो 'अति सर्वत्र वर्जयेत,' की सीख भी बच्चों को दी गई  है, यथा--
      ' बच्चों, वर्षा ही जोवन है
        जल बसुधा पर संजीवन है
        किंतु अधिकता किसी चीज की
        देखो! बन जाती दुखदायी ।'(पृष्ठ 84)

      इसी प्रकार ' दादी माँ के नाम,' और 'आस्था के फूल,' पूर्वजों का स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि है, सादर प्रणाम है। अंत में अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा,  निष्ठा और प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति ' यह वतन की धूल है' , सच्ची सुमनांजलि है--
       ' यह वतन की धूल है
        आस्था का फूल है
        प्राण देकर भी इसे हम
        भाल पर धारण करेंगे।।पृष्ठ-64।।
     कला पक्ष : साहित्यिक-सांस्कृतिक  संचेतना  के रचनाकार  डा दिवाकर द्वारा सम्पूर्ण काव्य- संग्रह खड़ी बोली हिंदी में रचा गया है । सर्वत्र ही सरल, सुबोध और सम्बंधित विषयानुकूल भाषा होने के कारण भाषाभिव्यक्ति सहज है, जो प्रसाद , ओज एवं माधुर्य गुणों से परिपूर्ण है, तो भावों की सम्प्रेषणीयता   भी इसकी विशेषता है --
   " यदि एक आदमी ने बढ़कर
     यदि एक आदमी बचा लिया
     तो समझो ,सारा राष्टृ बचा ,
     दीपक से  दीपक जला दिया।"पृष्ठ-40।।

    यद्यपि डा दिवाकर जी की काव्य-भाषा में उर्दू के शब्द-- औकात, कीमत, इंसान, क़फ़न, आज़ादी, कूच, वासिन्दों, दुश्मन, कुर्बानी,  ख़ाक,  आगाज जैसे शब्द हैं, परन्तु सामान्य बोलचाल की भाषा में सम्मिलित हो चुके ये शब्द अखरती नहीं हैं। वास्तव में भाषा सहज , सुबोध और सरस है, कहीं- कहीं यथोचित मुहावरों से युक्त है , तो कहावतों से समृद्ध और उपालम्भ -   उक्तियों से सुसज्जित भी , यथा--
    ' पर उपदेश कुशल बहुतेरे '
    'अपने- अपने भाग्य को ही कोसते हैं लोग ' ( पृष्ठ-26)
    ' चूड़ियाँ पहनों करों में ' ( पृष्ठ 33)
    ' आँचलों में मुछ छिपाओं '( पृष्ठ 33)
    ' जम गया लोहू रगों में ' ( पृष्ठ-32)
     ' प्राण पर तुम आज खेलो ' ( पृष्ठ 34)
     ' दीपक से दीपक जला दिया'( पृष्ठ 40) इत्यादि

     यद्यपि डा महेश दिवाकर जी का ध्यान सहज भावाभिव्यक्ति पर रहा है, तथापि स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त अलंकार आदि कवि के काव्य- शिल्प के  परिचायक और उनके भावों को निकालने में सहायक ही बन पड़े हैं, यथा---
ध्वन्यात्मक अलंकार:
     " छनन-छनन चूड़ी बजती थी"( पृष्ठ:15)
      "खुल्ल-खुल्ल करती है गुड़िया"( पृष्ठ-86)
अन्त्यानुप्रास---
        " बाल-मराल नहीं अब रोते"( पृष्ठ: 18)
       " भय से तन-मन रूँध रहा है"(पृ  18)
        " चंदन-वंदन भक्ति जानूं "( पृष्ठ  20)
पुनरुक्ति प्रकाश:
        " नर्म-नर्म दादी की बाँहें"( पृष्ठ:17)
       " बड़ी-बड़ी बातें करते हैं"( पृष्ठ-24)
       " बहकी-बहकी चलती धारा "( पृष्ठ-35)
       " उसकी तुतली-तुतली बातें"( पृष्ठ- 87)
      इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि कवि ने अलंकारों ,उपमानों और प्रतीकों, को महत्त्व नहीं दिया है , जो कुछ भी है, वह उनकी सहज ही भावाभिव्यक्ति बन पड़ी है।
      यदि " होली," "बसंत" जैसी रचनाएं श्रंगार रस की अनुभूति- सी कराती हैं, तो "कुँअर साहब का कुत्ता", हास्य-रस से भरपूर है, ओज और करुण रस प्रधान रचनायें अधिक हैं तो कहीं -कहीं शांत रस की रचनाएं भी देखने को मिलतीं हैं । "दादी माँ के नाम", " मामा जी की पाती",  "बहिना गुड़िया रानी" जैसी रचनाएँ कहीं-कहीं  वात्सल्य रस की अनुभूतियाँ कराती हुयी सद् मूल्यों का संचार करतीं हैं । कुछ रचनाओं को छोड़कर सभी गेय हैं ।
      डा महेश दिवाकर जी द्वारा रचित  98 पृष्ठीय काव्य-संग्रह -"आस्था के फूल" एक श्रेष्ठ काव्य-,कृति है, जिसका हिंदी संसार में समुचित सम्मान होगा । इस सृजनात्मक सत्कर्म के लिए डा दिवाकर जी को हृदय से बधाई।




*कृति  : " आस्था के फूल" ( काव्य)
*रचयिता : डॉ महेश दिवाकर
*प्रकाशन :  चंद्रा प्रकाशन, मुरादाबाद
* प्रथम संस्करण : 1999
*मूल्य : ₹100
* समीक्षक : जितेन्द्र कमल आनंद
राष्ट्रीय महासचिव
आध्यात्मिक ,साहित्यिक संस्था काव्यधारा
रामपुर
उ प्र , भारत
मोबाइल फोन नंबर 7300635812

गुरुवार, 18 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की रचना


चीन द्वारा धोखा देकर किए गए हमले में
हुए वीर शहीदों के नाम अश्रूपूर्ण श्रद्धांजलि!

रक्षा करते देश की,
            आहत हुए जवान!
बलिवेदी पर चढ़ गए,
            भारत पुत्र महान !!

सीने पर खा गोलियां,
            भू पर गिरे निढाल!
भारत मां ने गोद में,
        लेकर किया निहाल!!

पुत्रों के शव देखकर,
           सुमनों सजे किशोर!
नैन छलक कर रह गए,
           माता भाव विभोर!!

हाथ तिरंगा थामकर,
              लड़े देश के लाल!
प्राण किए उत्सर्ग पर,
       झुका न उनका भाल!!

 स्वागत वीर शहीद का,
           किया घटा ने मौन !
वीरों के प्रयाण को
           रोक सका है कौन!!

 धन्य देश की आत्मा!
            भारत मां के भाल !
अश्रू पूर्ण श्रद्धांजली!
            युद्धवीर हे लाल!!

 नमन! नमन!शत शत नमन!
       नमन त्याग! बलिदान!
याद रहेगा देश को,
         अमर! महा प्रस्थान!!

✍️ डॉ महेश दिवाकर
'सरस्वती भवन'
12-मिलन विहार, दिल्ली रोड
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर  9927383777,  9837263411, 9319696216