रूप बदलकर क्रूर भेड़िए, घुस आए दरबार,
घात लगाकर बैठ गए कुछ, राजमहल के द्वार ।
राजा जी ने ली अंगड़ाई, हुए भेड़िए मस्त,
शीश झुकाकर राजा जी का, किया बहुत सत्कार।
चाटुकारिता रच देती है, एक नया अध्याय,
औचक ही आ जाता घर में, खुशियों का अंबार ।
गद्दारों की मक्कारी भी, होती बड़ी अचूक,
पलभर में होता पुलवामा, दुख का पारावार ।
दीवाली के दीप जलाकर, रचेंं दुष्ट षडयंत्र,
देशद्रोह की चिंगारी को, सुलगाते गद्दार ।
भ्रष्टाचारी कहां मानते, कोई भी प्रतिबंध,
राजनीति के राक्षस करते, इनका भी उपकार ।
छिड़ा देश में शीत युद्ध है, उमड़ रहा आतंक,
दानवता महिमा मंडित है, पा श्रद्धा उपहार ।
सज्जनता का राजनीति भी, करे कहां सम्मान,
जातिवाद का अवसरवादी, फल पाते मक्कार ।
✍️ डा. महेश 'दिवाकर '
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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