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गुरुवार, 24 अगस्त 2023
शनिवार, 1 जुलाई 2023
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के 52 दोहे .....
बिन सोचे समझे सदा, लिक्खे मन के भाव।
यश-अपयश से मुक्त हो, रहे सदा समभाव।।1।।
और सुनो जी अनकही, एक अनोखी बात।
शुभ प्रभात है आपसे, श्रेष्ठ आपसे रात।।2।।
पागल बनकर सुन सखी, पागल पन की बात।
तुझ बिन तपते जेठ सी, सावन की बरसात।।3।।
हमनें रिश्तों में कभी, किया नहीं व्यापार।
रहे उसूलों पर अडिग, जीत मिली या हार।।4।।
बोल बड़े अनमोल हैं, सोच-समझ कर बोल।
भटके तो कृष्णम् जहर, दें रिश्तों में घोल।।5।।
उखड़ी-उखड़ी साँस है, सपने चकनाचूर।
भारी बोझा पीठ पर, लाद चला मजदूर।। 6।।
भूख प्यास के गाँव में, देख रहा मधुमास।
मजदूरों की पीर का, है किसको आभास।।7।।
तपती-जलती रेत में, रखे जमाकर पाँव।
मेहनतकश की आंख में, उम्मीदों का गाँव।।8।।
मालिक की दुत्कार को, लिखा भाग्य में मान।
धारण की मजदूर ने, होठों पर मुस्कान।।9।।
मन नयनों पर घिर गिरा,बोतल भरी शराब।
निष्ठुर मधुशाला हुई,गड़बड़ हुए हिसाब।। 10।।
नयन कटोरे मधु भरे,अधर पी गए प्यास।
मधुशाला बहकी पड़ी,थी सागर के पास।।11।।
तन मदिरा मन होठ हैं,सदा रहेंगे पास।
जग झूठा झगड़े सभी,प्रेम अटल विश्वास।।12।।
हम क्या जाने धर्म को,क्या मजहब की शान।
प्रेम भरी डलिया पकड़,रही तड़पती जान।।13।।
मीठी सी मुस्कान को,कौन सका है तोल।
हीरे मोती लुट गए,बिन बोले अनमोल।।14।।
सासोसेसांसो से जब भी कहा,मेरी तुम में जान।सांसो से जब भी कहा,मेरी तुम में जान।
तब सांसो ने फेंक दी,तीखी सी मुस्कान।।15।।
बगुले जैसी सोच में,कोयल के व्यवहार।
मन पर डाका डालते,चापलूस मक्कार।।16।।
गर्लफ्रैंड हर बॉय का, मूल मंत्र एंजॉय।
थोड़े दिन की हाय है, फिर हो जाती बाय।।17।।
देखी भाली है नहीं, लगती जैसे फ्रेंड।
रोज धड़ाधड़ कर रही,देखो मैसेज सैंड।। 18।।
मैं गुड़िया जापान की, गूची जैसी सैंट।
पल्ले देखो पड़ गया, एंड बैंड हसबैंड।।19।।
जीजा जी होते सभी, स्वीटहार्ट नमकीन।
साली होती चाय सी,जीजी सब गमगीन।।20।।
देख-देखकर हो गयीं, जीजी जी गमगीन।
जीजा साली ढूंढते, बिस्किट में नमकीन।।21।।
पाजी के मुँह को लगा, जब अंग्रेजी प्यार।
कॉकटेल जैसा हुआ, उठा-पटक व्यवहार।।22।।
डाली पके अनार हम,भीतर बाहर रैड।
मनिया मन भर देख ले,फीके वाई जैड।।23।।
गर्मी में लगती बड़ी,अच्छी थमसप कोक।
जल्दी से लाओ सनम, छोड़ो सारे जोक।।24।।
सौतन मोबाइल बनी,मेरी सुन भरतार।
ब्रांड नई में घूमते,छोड़ पुरानी कार।।25।।
मुँह से लगी अफीम सी,अंग-अंग में भंग।
सो क्यूटी ब्यूटी भरी, अजब-गजब हर ढंग।।26।।
और बताऊँ मैं तुम्हें, एक कीमती बात।
मैं ठहरा गुड मॉर्निंग, बाकी काली रात।।27।।
डाँट प्यार फटकार है,माँ का लाड़-दुलार।
आँचल माँ की गंध का,बालक का संसार।।28।।
पाया है मां बाप से,जिसने सच्चा प्यार।
जीवन भर उसको मिला,खुशियों का भंडार।।29।।
जीवन जीना माँ बिना,चलना बोझ समेत।
दूर दूर तक जल नहीं,उड़ती तपती रेत।।30।।
चली गईं आकाश तुम, इच्छा जैसी ईश।
रखो पीठ पर हाथ माँ,देना सर आशीष।।31।।
जिसको भी माँ से मिला,पूरा सच्चा प्यार।
मुट्ठी में उसकी रहा,खुशियों का संसार।।32।।
भगवन मुझको थाम लो,मन नहि थमता आज।
मैं बालक अब क्या करूं,रोते-रोते साज।।33।।
मैया तेरी याद में,रोता मैं दिन रैन।
सत्य जानकर भी नहीं,आता मन को चैन।।34।।
मन को आता ही नहीं,कृष्णम् यह विश्वास।
माता जी अब कर रहीं,परमधाम में वास।।35।।
माँ हम सब को छोड़कर,चली गईं किस लोक।
पूछ रहा है शोक में,डूबा हुआ अशोक।।36।।
पिंडदान के हो गए,सारे पूर्ण विधान।
मां को चरणों में जगह,दे देना भगवान।।37।।
वर्तमान भटका हुआ,उलझा हुआ अतीत।
कृष्णम मां बिन जिंदगी,बिना साज का गीत।।38।।
मातृ दिवस पर राम सब,घर-घर श्रवण कुमार।
दिन में उल्लू से छिपे,मजनू के अवतार।।39।।
गाली मां को रात दिन,देने वाले लोग।
मातृ दिवस पर दे रहे,माता जी को भोग।।40।।
पत्नी एसी रूम में,मां को टूटी खाट।
देर रात तक जोहती,मां बेटों की बाट।।41।।
कही सुनी मन की नहीं,कभी न बैठे पास।
मां की महिमा का हमें,क्या होगा आभास।।42।।
कारण में वातावरण,का होता है हाथ।
वैसी बनती वृत्तियां,जैसा मिलता साथ।।43।।
सुख के कारण आप हैं, दुख के अपने आप।
किया धरा कुछ भी नहीं,मन का अपने ताप।।44।।
फैलाए जब भी कभी,कहीं किसी ने हाथ।
अपने सब सपने हुए,छोड़ गए सब साथ।।45।।
बंद बंद थी लाख की,खुली मिली बस राख।
मुट्ठी तू समझी नहीं,क्या होती है साख।।46।।
आन बान की शान का,अपनी रखते मान।
ऐसे राणा का करें,राष्ट्रभक्त गुणगान।।47।।
छोटी मोटी बात पर,रोना धोना छोड़।
चेतक बन कर युद्ध में,सर दुश्मन के फोड़।।48।।
बात बात पर रात दिन,रोने वाले लोग।
मामूली होते नहीं,कोरोना से रोग।।49।।
बैसाखी के हाथ जो,मांगें अपनी खैर।
वो मेरे हैं ही नहीं,काटो ऐसे पैर।।50।।
बीच धार में नांव है,हाथ नहीं पतवार।
बेबस मन नाविक बहुत,तारो पालनहार।।51।।
चलते-चलते घिस गए,पांव हमारे राम।
हम शबरी के बेर से,दे दो पूर्ण विराम।।52।।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 30 अप्रैल 2023
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के सात दोहे
मन के मंदिर में रखे, धर्म ग्रंथ से आप।
जब जब भी देखूं तुम्हें,मिटे शाप अभिशाप।। 1।।
त्याग और बलिदान में,आस और विश्वास।
प्रेम समर्पण आपका,पतझड़ में मधुमास।।2।।
जितना आता पास में,जाती उतनी दूर।
फिर जीने को जिंदगी,क्यों करती मजबूर।।3।।
आना जाना बंद है,बोलचाल दी छोड़।
मगर न फिर भी टूटता,संबंधों का जोड़।।4।।
जोड़-तोड़ हर मोड़ की,सब तरकीबें फेल।
मन की पटरी दौड़ती,प्रेम नगर की रेल।।5 ।।
शक्कर से मीठे हुए,जब गुदड़ी के लाल।
जीवन रसमय हो गया,सुलझे सभी सवाल।।6 ।।
सपने जो देखे कभी,हुए सभी साकार।
परछाई को मिल गया,सुंदरतम् आकार।।7 ।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 26 मार्च 2023
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल )निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के नौ दोहे
माता के हर रूप में, ममता का भंडार।
कृष्णम् बच्चों को सदा, करती लाड़ दुलार।।1।।
मातृशक्ति का जो करें, जन, मन से गुणगान।
चाकर बन उनके रहें, सुख के सब सामान।।2।।
भक्तों को जगदंबिका, होती कोमल फूल।
दुष्टों को चुभती मगर, जैसे घातक शूल।।3।।
पूछ रहा माँ आपसे, मैं बालक निष्पाप।
किन कर्मों के भोगता, जन्म-जन्म अभिशाप।।4।।
दया करो माँ शारदे, फटी बिवाई पाँव।
उखड़ी-उखड़ी साँस है, दूर बहुत है गाँव।।5।।
माँ तुमने सब कुछ दिया, किए बहुत उपकार।
नमन आपको मैं लिखूँ, अगणित बारम्बार।।6।।
क्योंकर माँ के सामने, करनी ऊँची बात।
माता को सब कुछ पता, कैसी किस की जात।।7।।
आँसू मेरे कर रहे, आज मुझे बदनाम।
आँचल में देकर शरण, हर लो कष्ट तमाम।।8।।
प्राणों तक की भी कभी, माँग न पाए भीख।
कृष्णम् को दे दीजिए, माँ इतनी सी सीख।।9।।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 19 मार्च 2023
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के नौ दोहे ......
ऊंची ऊंची फेंकना, दो अब माधव छोड़।
तुमने मटकी प्रेम की,दी कंकर से फोड़।। 1।।
तोड़फोड़ या जोड़ की,बातें कर लो लाख।
हठ जिसने की प्रेम में,मिली उसे बस राख।। 2।।
मैं तुमसे रो-रो कहूं,पांव पकड़कर नाथ।
बरजोरी जमकर करो, किंतु न छोड़ो हाथ।। 3।।
नाथ-साथ,की बात का,क्या जानोगे मर्म।
पग-पग गोपी छेड़ना,रहा तुम्हारा धर्म।। 4।।
होठों से छू कर मुझे, बढ़ा दीजिए मान।
बंशी बन करती रहूं, जीवन भर गुणगान ।। 5।।
माधव मेरी अंत में,मन की सुनो पुकार।
निर्मोही जो तुम हुए, डूबोगे मझधार।। 6।।
माधव अब राधा बनो,जानो मेरी पीर।
आते हो जब स्वप्न में,होती बहुत अधीर।। 7।।
मनमंदिर मोहन बसे,ऊंची सबसे साख।
रूठे जो मुझसे कभी,जली मिलूंगी राख।। 8।।
अज्ञानी बनकर रहो,चाहूं मैं मन मीत।
ज्ञानी बन मत तोड़ना,मुझ से बांधी प्रीत।। 9।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
शुक्रवार, 17 मार्च 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की तीन काव्य कृतियों मेरे चारों धाम (दोहा संग्रह), करती खुद को मैं नमन (कविता संग्रह), तथा शुभ-प्रभात (हाइकु संग्रह) का जनपद संभल की साहित्यिक संस्था परिवर्तन ट्रस्ट(पंजी) के तत्वावधान में आयोजित भव्य समारोह में किया गया लोकार्पण
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल की साहित्यिक संस्था परिवर्तन ट्रस्ट(पंजी) के तत्वावधान में जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी की तीन काव्य कृतियों मेरे चारों धाम (दोहा संग्रह), करती खुद को मैं नमन (कविता संग्रह), तथा शुभ-प्रभात (हाइकु संग्रह) का लोकार्पण पर्व एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन गुरुवार 16 मार्च 2023 को व्हाइट हाउस, बुद्धि विहार दिल्ली रोड मुरादाबाद में किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्पण करके किया गया। परिवर्तन ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष प्रदीप कुमार "दीप" ने माँ सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की तदोपरांत वैशाली रस्तोगी की तीनों पुस्तकों का लोकार्पण कार्यक्रम अध्यक्ष हास्य व्यंग्य के प्रख्यात साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी, विशिष्ट अतिथि चर्चित साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल, डॉ अर्चना गुप्ता, संचालक त्यागी अशोका कृष्णम् तथा अश्विनी रस्तोगी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ।
समारोह में मयंक शर्मा, प्रदीप कुमार "दीप" दीक्षा सिंह, मोहनी रस्तोगी, साक्षी रस्तोगी, अणिमा रस्तोगी , अश्वनी रस्तोगी एवं त्यागी अशोका कृष्णम् ने वैशाली रस्तोगी की कविताओं का सुमधुर काव्यपाठ किया।
प्रख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने वैशाली रस्तोगी को एक होनहार कवयित्री बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएं, विदेशी मिट्टी पर अपनी मिट्टी के भाव की उपज हैं। इनमें अपने सांस्कृतिक और संस्कारी प्रवाह के साथ साथ सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों की न उधड़ने वाली बुनावट के ताने बाने की प्रगाढ़ झलक अपना रंग भर कर गौरवान्वित हुई है। वैशाली का रहना सहना भले विदेश का है पर उसके भीतर रची बसी धुकर पुकर अपने भारतीय परिवेश की ही है, जिसे उसका संवेदनात्मक मन एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता।
व्यंग्य कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि वैशाली रस्तोगी ने अपने दोहों के माध्यम से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का सरलता के साथ सटीक वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त अपनी रचनाओं के माध्यम से वह नारी सशक्तिकरण पर बल देती हैं तो वर्तमान भौतिकतावादी युग में खत्म होती जा रही मानवीय संवेदनाओं और आपसी रिश्ते नातों में बिखराव पर चिंता जताती हैं । शृंगार रस से परिपूर्ण रचनाओं के माध्यम से जहां वह शाश्वत प्रेम और विरह वेदना को अभिव्यक्त करती हैं वहीं सामाजिक विसंगतियों और कुरीतियों पर पैने प्रहार भी करती हैं ।
साहित्यपीडिया की संस्थापक डॉ अर्चना गुप्ता ने वैशाली रस्तोगी की लेखनी को अपने देश की संस्कृति की खुशबू से लबरेज बताते हुए कहा वह एक लंबे समय से विदेश में रहते हुए भी देश की माटी से जुड़ी हुई हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी जगत में उनकी एक विशिष्ट पहचान है, उनकी रचनाएं आम जनजीवन से जुड़ी हुई हैं।
अमरोहा की साहित्यकार शशि त्यागी ने वैशाली रस्तोगी के हाइकु भोले नंदन/ शुभगुणकानन/ शुभागमन का उदाहरण देते हुए उनके आध्यात्मिक सृजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल ने कहा "वैशाली रस्तोगी हिदुस्तान के बाहर रहकर भी अपने दिल में हिंदी और हिंदुस्तान के लिए प्रेम एवं समर्पण का सागर भरे हुए हैं।" वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि वैशाली रस्तोगी के दोहों के केंद्र में भक्ति एवं आध्यात्म है।
युवा कवि एवं समीक्षक दुष्यंत बाबा ने वैशाली रस्तोगी के सृजन को अध्यात्म, दर्शन, और प्रकृति के साथ साधारणीकरण करते हुए मानवीय संवेदनाओं का स्पर्श करने वाला बताया।
इस अवसर पर साहित्य, समाज, एवं संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों, युवाओं एवं नारी शक्ति को सम्मानित किया गया। डॉ. पंकज दर्पण अग्रवाल ने मुरादाबाद सांस्कृतिक समाज संस्था की ओर से वैशाली रस्तोगी का सम्मान करते हुए उन्हें शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।
कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से प्रदीप कुमार दीप एवं त्यागी अशोका कृष्णम् के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के समापन पर वैशाली रस्तोगी ने मधुर कंठ से अपनी रचनाओं का पाठ करते हुए कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों, व साहित्यकारों, का आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, धवल दीक्षित, अशोक विद्रोही, नकुल त्यागी, वीरेंद्र रस्तोगी, शिखा रस्तोगी, संजय शंखधार आदि मौजूद रहे।
::::::::::प्रस्तुति:::::::::
त्यागी अशोका कृष्णम्
संस्थापक अध्यक्ष
परिवर्तन ट्रस्ट (पंजी)
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत