मन के मंदिर में रखे, धर्म ग्रंथ से आप।
जब जब भी देखूं तुम्हें,मिटे शाप अभिशाप।। 1।।
त्याग और बलिदान में,आस और विश्वास।
प्रेम समर्पण आपका,पतझड़ में मधुमास।।2।।
जितना आता पास में,जाती उतनी दूर।
फिर जीने को जिंदगी,क्यों करती मजबूर।।3।।
आना जाना बंद है,बोलचाल दी छोड़।
मगर न फिर भी टूटता,संबंधों का जोड़।।4।।
जोड़-तोड़ हर मोड़ की,सब तरकीबें फेल।
मन की पटरी दौड़ती,प्रेम नगर की रेल।।5 ।।
शक्कर से मीठे हुए,जब गुदड़ी के लाल।
जीवन रसमय हो गया,सुलझे सभी सवाल।।6 ।।
सपने जो देखे कभी,हुए सभी साकार।
परछाई को मिल गया,सुंदरतम् आकार।।7 ।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
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