ऊंची ऊंची फेंकना, दो अब माधव छोड़।
तुमने मटकी प्रेम की,दी कंकर से फोड़।। 1।।
तोड़फोड़ या जोड़ की,बातें कर लो लाख।
हठ जिसने की प्रेम में,मिली उसे बस राख।। 2।।
मैं तुमसे रो-रो कहूं,पांव पकड़कर नाथ।
बरजोरी जमकर करो, किंतु न छोड़ो हाथ।। 3।।
नाथ-साथ,की बात का,क्या जानोगे मर्म।
पग-पग गोपी छेड़ना,रहा तुम्हारा धर्म।। 4।।
होठों से छू कर मुझे, बढ़ा दीजिए मान।
बंशी बन करती रहूं, जीवन भर गुणगान ।। 5।।
माधव मेरी अंत में,मन की सुनो पुकार।
निर्मोही जो तुम हुए, डूबोगे मझधार।। 6।।
माधव अब राधा बनो,जानो मेरी पीर।
आते हो जब स्वप्न में,होती बहुत अधीर।। 7।।
मनमंदिर मोहन बसे,ऊंची सबसे साख।
रूठे जो मुझसे कभी,जली मिलूंगी राख।। 8।।
अज्ञानी बनकर रहो,चाहूं मैं मन मीत।
ज्ञानी बन मत तोड़ना,मुझ से बांधी प्रीत।। 9।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
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