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शनिवार, 18 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ------भूख


स्कूल की छुट्टी के बाद  घर  को जाते समय  अचानक मोबाइल की घंटी बजने लगी। स्नेहा ने पर्स खोलकर मोबाइल निकाला ही था...  एक तेज  झपट्टा  लगा और उसके हाथ से मोबाइल गायब हो गया।...स्नेहा को समझ में नहीं आया... यह क्या हुआ? ....उसने पलट कर देखा दस-ग्यारह  साल का लड़का  मोबाइल लेकर तेजी से भागा जा रहा है।.... रिक्शे वाले को जल्दी से रोका और तेज-तेज शोर मचानें लगी ...पकड़ो.... पकड़ो. ...वो मेरा मोबाइल लेकर भाग रहा है। ...पकड़ो ...पकड़ो...
शोर मचाने पर आसपास के लोगों ने उस लड़के को पकड़ लिया और पिटाई करने लगें....  स्नेहा जल्दी-जल्दी वहाँ  पर पहुँची ...और चीखतें हुए  तेजी से बोली तुझे शर्म नहीं आती ....इतनी छोटी उम्र में चोरी करते हुए... वह लड़का कुछ नहीं बोला ....वह दर्द से कराह  रहा था। उसका दर्द देखकर स्नेहा का दिल पसीज गया ।उसने सब लोगों  को पीटने से रोका और अपना  मोबाइल ले लिया... .. लड़के का हाथ पकड़ कहने लगी चल तुझे पुलिस के हवाले करती हूँ । यह सुनकर लड़का घबरा गया ...पैरों में गिर कर माफी मांगने लगा। ....मुझे माफ कर दो ...आइंदा मैं कभी ऐसा नही करूँगा ...पर अब तूने ऐसा क्यों किया..स्नेहा  ने गुस्से  से चीखते हुए कहा।.. ....मैं दो दिन से भू ...भूखा हूँ ...कुछ नहीं खाया है ...इसे बेचकर रोटी खरीदता... वह लड़का रोते हुए और दर्द से कराहते हुए बोला..... उसके चेहरे पर दर्द साफ दिखाई दे रहा था..... स्नेहा ने जब यह सुना उसे बहुत दुख हुआ  ... उसने  सभी लोगों  से जाने का अनुरोध किया है।.....और उस लड़के को पास ही एक भोजनालय में भरपेट खाना खिलाया।.... बातों -बातों में उस लड़के ने बताया कि उसके तीन छोटे भाई- बहन और है....उसकी माँ को पन्द्रह दिन से बुखार  आ रहा है.. जिसके कारण वह काम पर नहीं जा पा रही हैं...  घर में खाने के लिए कुछ भी नही है। ...उसके पिता की मौत हो चुकी है । उसकी माँ  चौका बर्तन करके घर का खर्च  चलाती है।..... स्नेहा ने उसकी बात सुनकर दो टाइम का खाना पैक कराकर उस लड़के को  दिया और अपने घर को चली गयी।
अगले दिन  स्कूल से आते समय चौराहे पर  वह लड़का खड़ा दिखाई दिया ....स्नेहा ने रिक्शा रुकवाया और लड़के को पास बुलाया और बोली क्या है यहाँ क्यों खड़ा है। .... वो हकलाते हुए बोला.....आप मुझे माफ कर दो ....स्नेहा बोली चल ठीक है......और हाँ कुछ खाया या नहीं.. लड़के ने धीरे से  सिर हिला कर कहा..... नही... स्नेहा ने अपने पर्स से कुछ पैसे निकाल कर उसे पकड़ाते  हुए कहा ...यह लो पैसे इससे खाना और  माँ के लिए दवाई ले जाना। कुछ दिन बाद वह  अपनी माँ के साथ स्नेहा को ढूंढते हुए उसके स्कूल में पहुँचा ।.... वहां पहुँचकर  उस लड़के की माँ  ने रोते हुए स्नेहा के पैर पकड़ लिये  और गिड़गिड़ाने लगी मैडम....  मेरे बेटे को माफ कर दो.....  मेरे बेटे की वजह से आपको बहुत परेशानी हुई है।... स्नेहा बोली एक शर्त पर माफ करूंगी ...बोलो ........ मैडम  ...हमें आपकी  सारी शर्तें मंजूर है । बताओ क्या करना है? ..... स्नेहा  ने कहा तुम्हें अपने बच्चों का  एडमिशन मेरे  स्कूल में कराना होगा। मैडम... हम गरीब लोग अपने बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं ?....हमारे पास पढ़ाने के लिए पैसे  नहीं हैं ....लड़के की माँ हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहने लगी।..... उसकी चिंता तुम  मत करो वो हम पर  छोड़ दो और हमारे स्कूल  में एक आया की जगह भी खाली है ....कल से स्कूल में बच्चों को लेकर प्रवेश कराने और तुम अपने काम पर आ जाना.... यह कहते हुए  स्नेहा किताब लेकर कक्षा में बच्चों को पढ़ाने चली गयी।....

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद