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सोमवार, 29 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह 'चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया' की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा.... अनुभूतियों से वार्तालाप करती कृति - 'चाॅंद लगे कुछ खोया खोया'

एक आदर्श व सक्षम रचनाकार जब भावों के अथाह महासागर में चहलक़दमी करके बाहर आता है, तो उसकी लेखनी कुछ ऐसा अवश्य समेट कर लाती है, जो एक उत्कृष्ट कृति में ढलकर, सहज ही पाठकों व‌ श्रोताओं से वार्तालाप करने लगती है। डॉ. पूनम बंसल की उत्कृष्ट लेखनी से साकार हुआ गीत-संग्रह 'चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया' ऐसी ही उल्लेखनीय कृति है जो कुल 78 मनमोहक गेय रचनाओं से सुसज्जित होकर यह स्पष्ट करती है कि कवयित्री ने मात्र लिखने के लिये ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के इस अथाह महासागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। चाहे ये अनुभूतियाॅं अध्यात्म से ओत-प्रोत हों अथवा जीवन की विभिन्न चुनौतियों से जूझते संघर्ष की गाथाएं, प्रत्येक रचना में कवयित्री अपने मनोभावों को, उत्कृष्टता से स्पष्ट करने में सफल रही हैं। कृति का आरम्भ पृष्ठ 31 पर उपलब्ध, माॅं शारदे को समर्पित हृदयस्पर्शी रचना से हुआ है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाॅं ही हृदय को भक्ति-भाव से ओत-प्रोत कर जाती हैं, पंक्तियाॅं देखें -

"इन पावन चरणों में कर ले, आज नमन स्वीकार माॅं।

ज्योतिर्मय हों सभी दिशाएं, और मिटे ॲंधियार माॅं।"

कुछ इसी प्रकार की कामना, पृष्ठ-32 पर उपलब्ध रचना में भी दिखाई देती है, पंक्तियाॅं देखें -

"ज्ञान के सूरज उगा, हे धवल वसना शारदे।

हो नया स्वर्णिम सवेरा, वो मधुर झंकार दे।"

आध्यात्मिक रचनाओं से शुभारंभ करने वाली यह कृति आगे बढ़ती हुई, जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों को भी स्पर्श करने लगती है। इसी क्रम में जीवन का दर्द समेटे एक रचना पृष्ठ 36 पर, 'क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब' शीर्षक से आती है।‌ इस मर्मस्पर्शी रचना की कुछ पंक्तियाॅं -

"क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब, पीना है विष का प्याला।

फिर कैसे कह दें हम बोलो, जीवन अमृत की हाला।"

इसी प्रकार मातृ-भक्ति को साकार करती, 'माॅं गंगा की धार है' (पृष्ठ 39), जनकल्याण की भावना से अभिप्रेरित, 'दूर हो यह धरा का ॲंधेरा सभी' (पृष्ठ 40), प्रकृति से गलबहियाॅं करती 'ओ सावन के मेघ बरस जा' (पृष्ठ 41), 'पिया मिलन की रुत आई' (पृष्ठ 55), 'झूला झूलें राधा रानी' (पृष्ठ 96) आदि रचनाएं हैं, जिनके माध्यम से कवयित्री ने जीवन के प्रत्येक पहलू को पाठकों के सम्मुख उकेरा है।

व्यक्तिगत रूप से मैं इस निष्कर्ष पर पहुॅंचा हूॅं कि इस उत्कृष्ट गीत-संग्रह के केंद्र में, अंतस में छिपी व आकुल व्यथा एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर से एकाकार हो जाने की उत्कण्ठा ही है, जिसके इर्द-गिर्द, अन्य अनेक अनुभूतियाॅं निरंतर चहलकदमी करती हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करने में कवयित्री की लेखनी तनिक भी विलंब नहीं करती। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में रची-बसी एक संघर्षरत परन्तु जीवट की धनी नारी, संघर्षों से जूझते हुए भी आशा का संचार कर जाती है। पृष्ठ 119 पर उपलब्ध रचना इसी आशावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्ति दे रही है। 'बदल रहा कश्मीर है' शीर्षक वाली इस रचना की पंक्तियाॅं देखें -

"महक उठी है केसर-वादी, उड़ा गुलाल अबीर है।

धारा के हटने से देखो, बदल रहा कश्मीर है।"

जीवन के विविध पहलुओं को साकार करती यह गीत-यात्रा पृष्ठ-125 पर उपलब्ध 'जो सलोने सपन' शीर्षक रचना के साथ विश्राम लेती है। निराशा से आशा की ओर बढ़ती इस रचना की कुछ पंक्तियाॅं -

"जो सलोने सपन ऑंसुओं में पले,

आस बन कर सभी जगमगाते रहे।

लालिमा से गगन है अभी बे-ख़बर,

बादलों में छिपा है कहीं भास्कर।

पंछियों की तरह सुरमई साॅंझ में,

प्रीत के गीत हम गुनगुनाते रहे।"

यद्यपि, हिंदी एवं उर्दू दोनों के शब्दों का सुंदर संगम लिये इस कृति में, कहीं-कहीं भाषाई अथवा टंकण सम्बंधी त्रुटियाॅं, कवयित्री के इस सारस्वत अभियान में बाधा डालने का असफल प्रयास करती प्रतीत हुई हैं एवं कुछ आलोचक बंधु भी अपनी अभिव्यक्ति के लिये इसमें पर्याप्त संभावनाएं तलाश सकते हैं परन्तु, यह उत्कृष्ट कृति इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए, पाठकों के अंतस को स्पर्श करने में पूर्णतया सक्षम है, ऐसा मैं मानता हूॅं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि, सरल व सहज भाषा-शैली के साथ, आकर्षक सज्जा एवं सजिल्द स्वरूप में तैयार यह गीत-संग्रह, गीत-काव्य जगत में अपना उल्लेखनीय स्थान बनायेगा। 



कृति
: चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया (गीत संग्रह)

रचनाकार : डॉ पूनम बंसल 

प्रकाशन वर्ष : 2022 मूल्य : 200 ₹

प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद


समीक्षक
: राजीव 'प्रखर' 

डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

सड़क : चार दृश्य । मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- बगुलाभगत, श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी--ईमानदार का तोड़, राजीव प्रखर की लघुकथा-- दर्द और अखिलेश वर्मा की लघुकथा---वो तो सब बेईमान हैं

 


बगुलाभगत

      इंजीनियर ने ठेकेदार से क्रोध जताते हुए कहा ," क्या ऐसी सड़क बनती है जो एक बरसात में उधड़ गई, तुम्हारा कोई भी बिल पास नहीं होगा।" बड़े साहब मुझ पर गरम हो रहे थे उन्हें क्या जवाब दूंगा ? ठेकेदार बोला ," सर आप मेरी भी सुनेंगे या अपनी ही कहे जाएंगे।" बोलो क्या कहना है।" इंजीनियर ने कहा।

      " सर 40%में ,मैं रबड़  की सड़क तो बना नहीं सकता,ठेकेदार ने कहा ,फिर आपकी भी तो उसमें ---------? अब क्या था इंजीनियर का चेहरा देखने लायक था -------। 

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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ईमानदार का तोड़

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, आवाज सुनते ही सुरेश कुमार ने गरदन उठाकर देखा, दरवाजे पर एक अधेड़ किंतु आकर्षक व्यक्ति खड़े थे,  हाँ हाँ आइए, वह बोले!

सर मेरा नाम श्याम बाबू है, मेरा सड़क के निर्माण की लागत का चैक आपके पास रुका हुआ है!

अच्छा तो वो सड़क आपने बनाई है, लेकिन उसमें तो आपने बहुत घटिया सामग्री लगाई है, मानक के अनुसार काम नहीं किया है, सुरेश कुमार बोले!

कोई बात नहीं साहब, हम कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं, पच्चीस साल से आपके विभाग की ठेकेदारी कर रहे हैं, जो कमी आयेगी दूर कर देंगे, आप हमारा भुगतान पास कर दो, हम सेवा में कोई कमी नहीं रखेंगे!

आप गलत समझ रहे हो श्याम बाबू, पहले काम गुणवत्ता के अनुसार पूरा करो,तभी भुगतान होगा, कहते हुए सुरेश उठ गये और विभाग का चक्कर लगाने निकल गये!

श्याम बाबू चुपचाप वापस आ गये!

पत्नी ने पानी का ग्लास देते हुए पूछा: बड़े सुस्त हो, क्या हो गया तो बोल पड़े एक ईमानदार आदमी ने सारा सिस्टम बिगाड़ दिया है, कोई भी काम हो ही नहीं पा रहा है, सबके भुगतान रुके पड़े हैं, बड़ा अजीब आदमी है!

खैर इसकी भी कोई तोड़ तो निकलेगी!

कुछ ही दिनों बाद लेडीज क्लब का उत्सव था, श्याम बाबू की पत्नी उसकी अध्यक्ष थीं, श्याम बाबू के मन में तुरंत विचार कौंधा और बोले: सुनो इस बार नये अधिकारी सुरेश बाबू की पत्नी सुरेखा को मुख्य अतिथि बना दो और सम्मानित कर दो!

कार्यक्रम के दिन पूर्व योजनानुसार सुरेखा को मुख्य अतिथि बनाया गया, सम्मानित किया गया, उन्हें अत्यंत कीमती शाल ओढ़ाया गया और एक बड़ा सा गिफ्ट पैक भी दिया गया!

कार्यक्रम के बाद श्याम बाबू की पत्नी पूछ बैठी: आप तो बहुत बड़ा गिफ्ट पैक ले आये, क्या था उसमें!

कुछ ज्यादा नहीं, बस एक चार तोले की सोने की चेन,शानदार बनारसी साड़ी और कन्नौज के इत्र की शीशी थी, श्याम बाबू बोले!

इतना सब कुछ क्यों, 

कुछ नहीं, ये ईमानदार लोगों को हैंडिल करने का तरीका है!

कहना न होगा, अगले ही दिन श्यामबाबू का भुगतान हो गया!

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69, रामगंगा विहार,

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दर्द

"साहब ! हमारे इलाके की सड़कें बहुत खराब हैं। रोज़ कोई न कोई चोट खाता रहता है। ठीक करा दो साहब, बड़ी मेहरबानी होगी.......",  पास की झोपड़पट्टी में रहने वाला भीखू नेताजी के सामने गिड़गिड़ाया।

"अरे हटो यहाँ से। आ जाते हैं रोज़ उल्टी-सीधी शिकायतें लेकर। सड़कें ठीक ही होंगी। उनमें अच्छा मेटेरियल लगाया है......."। भीखू को बुरी तरह  डपटने के बाद सड़क पर आगे बढ़ चुके नेताजी को पता ही न चला कब उनका पाँव एक गड्डे में फँसकर उन्हें बुरी तरह चोटिल कर गया।

"उफ़ ! ये कमबख्त सड़कें बहुत जान लेवा हैं......", दर्द से बिलबिलाते हुए नेताजी अब सम्बंधित विभाग को फ़ोन मिलाते हुए हड़का रहे थे।

✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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वो तो सब बेईमान हैं 

" अरे वाह चौधरी ! मुबारक हो आज तो तुम्हारे गाँव की सड़क बन गई है .. अब सरपट गाड़ी दौड़ेगी । " भीखन ने  खूँटा गाड़ते चौधरी को देखते हुए कहा ।

" पर यह क्या कर रहे हो , खूँटा सड़क से सटा कर क्यों लगा रहे हो । " वो फिर बोला ।

" सड़क किनारे की पटरी चौड़ी हो गई है ना .. तो कल से भैंसे यही बाँधूँगा .. अंदर नहलाता हूँ तो बहुत कीच हो जाती है घर में .. I " चौधरी बेफिक्र होकर बोला ।

" पर पानी तो सड़क खराब कर देगा चौधरी " भीखू बोला ।

" मुझे क्या । ठीक कराएँगे विभाग वाले , सब डकार जाते हैं वरना । " हँसकर चौधरी बोला ।

भीखू आगे बढ़ा ही था कि देखा रामदीन ट्रेक्टर से खेत जोत रहा था .. वो असमंजस से बोला , " अरे रामदीन भाई ! यह क्या कर रहे हो . तुमने तो अपने खेत के साथ साथ सड़क के किनारे की पटरी तक जोत डाली .. बिना पटरी के तो सड़क कट जाएगी । "

रामदीन जोर से हँसा और बोला , " अरे बाबा , यह फसल अच्छी हो जाए फिर से मिट्टी लगा दूँगा । और रही बात सड़क कटने की तो फिर से ठीक करेगा ठेकेदार .. उसकी दो साल की गारंटी होती है ... और विभाग वाले .. हा हा हा ! वो तो सब बेईमान हैं ।"

✍️ अखिलेश वर्मा

   मुरादाबाद

   उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 20 सितंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव 'प्रखर' को मेरठ में काव्यसागर हिन्दी दिवस सम्मान से किया गया सम्मानित

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर को मेरठ (उ. प्र.) की प्रतिष्ठित 'काव्यसागर साहित्यिक संस्था' द्वारा रविवार 19 सितंबर 2021 को आयोजित समारोह में काव्यसागर हिन्दी दिवस सम्मान से सम्मानित किया गया। समारोह का आयोजन आर्यसमाज भवन, मेहंदी मुहल्ला, कंकरखेड़ा मेरठ में हुआ। 

 कवि अजीत कुमार अजीत द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता    करते हुए मेरठ के वरिष्ठ रचनाकार जगदीश प्रसाद  ने कहा -"साहित्य जगत में अपनी सतत् साधना व समर्पण के चलते राजीव प्रखर अल्पावधि में ही सभी के लिये एक अनुकरणीय उदाहरण बन चुके हैं।" 

     मुख्य अतिथि डाॅ. सरोजिनी तनहा'  ने अपने उद्बोधन में कहा - "ऐतिहासिक मुरादाबाद की पावन माटी में जन्मे व पले-बढ़े लोकप्रिय रचनाकार राजीव 'प्रखर' का व्यक्तित्व व कृतित्व आज देश के विभिन्न साहित्यिक पटलों को गौरवान्वित कर रहा है जिसके लिये वह अभिनन्दन के पात्र हैं।" 

विशिष्ट अतिथि कवयित्री डाॅ. मीनाक्षी शंकर ने कहा कि राजीव प्रखर ने दोहाकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की है ।

विशिष्ट अतिथि कवयित्री डाॅ. क्षमा गुप्ता ने कहा कि  अपनी रचनाओं के माध्यम से श्री प्रखर हिन्दी की सेवा कर रहे हैं।

विशिष्ट अतिथि कवि बलजोर सिंह चिंतक ने कहा कि राजीव प्रखर हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य कर साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

 इस अवसर पर वरिष्ठ कवि राधेश्याम 'अंजान' के संचालन में काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया ।

विभिन्न साहित्यकारों डॉ मक्खन मुरादाबादी, डाॅ. मनोज रस्तोगी, आनंद गौरव, योगेन्द्र वर्मा व्योम, डाॅ. संगीता महेश, अशोक विश्नोई, जितेन्द्र कमल आनंद, सुभाष राहत बरेलवी, डाॅ. पूनम बंसल. सत्यपाल सत्यम, सूर्यकांत द्विवेदी, ओंकार सिंह विवेक, वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, ओंकार सिंह ओंकार, डाॅ. अर्चना गुप्ता, डाॅ. ममता सिंह,  मीनाक्षी ठाकुर, रामदत्त द्विवेदी, रामसिंह निशंक, रघुराज सिंह निश्चल, हेमा तिवारी भट्ट, जितेन्द्र जौली, मयंक शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, ईशांत शर्मा ईशू , दुष्यंत बाबा, डाॅ. रीता सिंह, प्रीति शर्मा, डाॅ. अंजना दास, अर्चना शर्मा, डाॅ. तुषार अग्रवाल, डाॅ. कंचन सिंह, कंचन खन्ना   आदि ने राजीव 'प्रखर' को मेरठ में सम्मानित किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की है।






मंगलवार, 6 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार की काव्य कृति परिणति की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ----पाठकों से संवाद करता गीत-संग्रह - परिणति

मुरादाबाद का ऊर्जावान एवं उर्वरा साहित्यिक पटल अनगिनत ओजस्वी एवं ऐतिहासिक पड़ावों को स्वयं में समाहित किये हुए है। इन पड़ावों का भरपूर समर्थन करती अनमोल कृतियाँ भी रचनाकारों की उत्कृष्ट लेखनी से होकर समाज के आम जनमानस के हृदय में स्थान बनाती रही हैं। मानवीय संवेदना के कुशल शिल्पी एवं वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय आमोद कुमार जी की साहित्य-साधना का पर्याय उनका परिणति नामक गीत-संग्रह ऐसी ही अनमोल कृतियों में से एक है।सामान्यतः यह कहा जाता है कि अमुक रचनाकार ने कुछ लिखा परन्तु, श्रद्धेय आमोद कुमार जी के गीत-संग्रह परिणति का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका लिखा हुआ मात्र लिखा अथवा प्रकाशित हुआ ही नहीं अपितु इससे भी कहीं अधिक ऊपर उठकर वह एक आम पाठक से हृदयस्पर्शी वार्तालाप भी कर रहा है। कुल 88 काव्य रूपी मनकों से सजी इस माला का प्रत्येक मोती यह दर्शाता है कि रचनाकार ने ज्ञात जगत से भी परे जाकर, अज्ञात के गर्भ में उतरते हुए अपने भावों को शब्द दिये हैं। कृति का प्रारंभ पृष्ठ 11 पर उपलब्ध परिणति शीर्षक गीत से होता है। कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखिये -

"मोह कैसा

किससे राग द्वेष

कोई न बचेगा

अवशेष

शेष

एक सत्य परिवर्तन

बुझता दीपक।"

निश्चित ही यह गीत जीवन के आरम्भ से अंत तक का पूरा चित्र खींच देता है।

इसी क्रम में पृष्ठ 12 पर आत्म-ज्योति शीर्षक से एक अन्य  रचना मिलती है। अंतस में छिपी वेदना को साकार करने वाली इस रचना की निम्न पंक्तियाँ भी देखिये  -

"तृष्णा ऐसी जगी

ज़िन्दगी को पी गया

सौ-सौ बार मरकर भी

फिर-फिर जी गया।"

इसी क्रम में प्रश्न 19 पर सुखद सवेरा फिर आयेगा शीर्षक से एक गीत उपलब्ध है जो विशेष रूप से वर्तमान विश्वव्यापी परिस्थिति में जीवन के प्रति आशा व उल्लास का संचार करता हुआ पाठकों में एक नई ऊर्जा का संचार कर रहा है। इस ह्रदयस्पर्शी व प्रेरक गीत की भी कुछ पंक्तियाँ -

"मत रो साथी मृदु हास से,

अधरों का श्रृंगार करो तुम।

बीत जायेगी पीड़ा रजनी,

सुखद सवेरा फिर आयेगा।

बिना विछोह के सफर अधूरा,

रह जाता है प्यार के पथ में

एक सुख और एक दुःख है,

दो पहिए जीवन के रथ में।"

रचना में  कोई क्लिष्टता नहीं, कोई बाज़ीगरी अथवा लाग-लपेट नहीं, फिर भी सीधी, सरल व मनमोहक भाषा-शैली में जीवन का दर्शन गहराई से निकालकर सामने रख देने में रचनाकार पूर्णतया सफल रहा है।

आत्मा को भीतर तक स्पर्श करती हुई यह अनमोल काव्य-श्रृंखला अनेक मनमोहक सोपानों से होती हुई, पृष्ठ  112 पर यूं आने-जाने का दौर हुआ करता है शीर्षक रचना के साथ विश्राम पर पहुँचती है। जीवन की अनिश्चितता को साकार करती इस अत्यंत उत्कृष्ट रचना की कुछ पंक्तियाँ -

"मत छेड़ो बेवक्त बेसुरा राग तुम, 

गीत सुनाने का एक दौर हुआ करता है,

तन लाख व्याह रचाए मोती से, मानक से,

मन भरमाने का एक दौर हुआ करता है।"

निःसंदेह, इस पूरी कृति के अवलोकन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वास्तव में रचनाकार द्वारा किया गया यह सृजन मात्र सृजन होने तक ही सीमित नहीं है अपितु, कहीं न कहीं उन्होंने इसे स्वयं के भीतर जीते हए अनुभव भी किया है। यही कारण है कि कृति सरल, सुबोध व मनभावन  भाषा-शैली के साथ कालजई बनने के मानकों पर भी पूरी तरह खरी उतरती है।

यद्यपि इस कृति की उत्कृष्टता को चंद शब्दों में समेट पाना मुझ अकिंचन के लिये संभव नहीं, फिर भी इतना अवश्य कहूंगा कि रचनाकार की उत्कृष्ट लेखनी एवं लिटरेचर लैंड जैसे उत्कृष्ट प्रकाशन संस्थान से, आकर्षक सजिल्द स्वरूप में तैयार होकर एक ऐसी अनमोल कृति साहित्य समाज तक पहुँची है, जो पाठकों के हृदय को झंकृत करती हुई जीवन के गहन दर्शन को उनके सम्मुख स्पष्ट कर रही है अतएव इस कारण यह कृति किसी भी स्तरीय पुस्तकालय में स्थान पाने के सर्वथा योग्य भी है। इस सारस्वत अनुष्ठान के लिये रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही बारम्बार अभिनंदन एवं साधुवाद के पात्र हैं। हार्दिक मंगलकामना।


कृति : परिणति ( गीत संग्रह)

रचनाकार : आमोद कुमार

मूल्य : ₹ 295.00, पृष्ठ : 112

प्रकाशन संस्थान : लिटरेचर लैंड ,नई दिल्ली

समीक्षक : राजीव प्रखर, डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत 

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के मुक्तक और दोहे ....

 


मुक्तक 

खुद में सारे दर्द समेटे खड़े पिता।

घर की खातिर हर संकट से लड़े पिता।

और भला क्या मांगूँ तुमसे भगवन मैं,

दुनियां भर की दौलत से भी बड़े पिता।


अन्तर्मन पर जब-जब फैला तम का साया।

या कष्टों की आपाधापी ने भरमाया।

तब-तब बाबूजी के अनुभव की आभा ने,

जीवन पथ पर बढ़ते रहना सुगम बनाया।


दुनियां के हर सुख से बढ़कर, मुझको प्यारे तुम पापा।

मेरे असली चंदा-सूरज, और सितारे तुम पापा।

लिपट तिरंगे में लौटे हो,बहुत गर्व से कहता हूँ,

मिटे वतन पर सीना ताने, कभी न हारे तुम पापा।


दोहे

दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास। 

मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।। 

चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान। 

पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।।

दिया हमें भगवान ने, यह सुन्दर उपहार।

जीवन के उत्थान को, पापा की फटकार।।

✍️  राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' द्वारा पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया। 

संस्था के सह संयोजक कवि राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता  करते हुए सुप्रसिद्ध  व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी  ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की - 

खेत जोत कर जब आते थे, थककर पिता हमारे। कहते! बैलों को लेजाकर पानी जरा दिखाना।

हरा मिलाकर न्यार डालना रातब खूब मिलाना।। बलिहारी थे उस जोड़ी पर हलधर पिता हमारे।।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने अपने भाव कुछ इस प्रकार प्रकट किये - 

हिमकिरीट-से हैं पिता, मां गंगा की धार। 

इनके पुण्य -प्रताप से, जग में बेड़ा पार। 

 विशिष्ट अतिथि के रुप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी - 

घर की बगिया का होता है, पिता मूल आधार। 

बच्चों के सपनों को बुनता, खुशियों का संसार। कर्तव्यों की गठरी थामें, जतन करे दिन रात,

 बरगद है वो हर आँगन का, लिए छाँव उपहार।।

  वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी। पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।। 

वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह विवेक ने अपने शेरों से यह कहते हुए महफ़िल को लूटा -  

 मेरी सभी ख़ुशियों का हैं आधार पिता जी,

 और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी। हालाँकि ज़ियादा नहीं कुछ आय के साधन, 

 फिर भी चला  ही लेते हैं परिवार पिता जी। 

 सप्ताह में हैं सातों दिवस काम पे जाते, 

 जाने नहीं क्या होता है इतवार,पिताजी। 

कवयित्री  डॉ. अर्चना गुप्ता का कहना था - 

 मेरे अंदर जो बहती है उस नदिया की धार पिता। भूल नहीं सकती जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता।उनके आदर्शों पर चलकर मेरा जीवन सुरभित है, बनी इमारत जो मैं ऊँची हैं उसके आधार पिता।।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कुछ इस प्रकार अभिव्यक्ति की - 

बहुत दूर हैं पिता किन्तु फिर भी हैं मन के पास। पथरीले पथ पर चलना मन्ज़िल को पा लेना,

 कैसे मुमकिन होता क़द को ऊँचाई देना।

 याद पिता की जगा रही है सपनों में विश्वास।। 

कार्यक्रम का संचालन  कर रहे राजीव प्रखर ने पिता की महिमा का बखान करते हुए कहा - 

दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास।

 मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।। 

चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान। 

 पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।। 

 कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने पिता की महिमा का वर्णन करते हुए कहा - 

हर बेटी के नायक पापा। 

करते हैं सब लायक पापा। 

कारज अपने सभी निभाते, 

बनें नहीं अधिनायक पापा। 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पारिवारिक मूल्यों को कुछ इस प्रकार को उकेरा - 

"करता है रात दिन, वह सुपोषित मुझे, सूर्य सी ऊर्जा लिए।

 उगता है नित्य वह, और पार करता है, अग्नि पथ मेरे लिए।" 

कवि मनोज मनु के भावाभिव्यक्ति इस प्रकार रही -  सिर पर छाँव पिता की। 

कच्ची दीवारों पर छप्पर। 

आंधी बारिश खुद पर झेले,

 हवा थपेड़े रोके, जर्जर 

 तन भी ढाल बने,

  कितने मौके-बेमौके।।

कवि दुष्यंत बाबा ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की - 

पिता  हैं  पोषक, पिता सहारा।

 ये  संतति  के  हैं  सृजन  हारा। 

 पूरे  कुल  का  जो भार उठाएं, 

 कभी न इनके दिल को दुखाएं।।

योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया । 

::::::: प्रस्तुति:::::::

 राजीव 'प्रखर'

सह संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद

मोबाइल- 8941912642

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद( जनपद बिजनौर) की साहित्यकार रश्मि अग्रवाल की काव्य कृति - 'अरी कलम ! तू कुछ तो लिख' की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ---

एक रचनाकार की साधना व परिश्रम  का कृतियों के रूप में समाज तक पहुँचना उस रचनाकार के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और जब उसकी कृति पाठकों के अंतस को स्पर्श करने की क्षमता भी प्रमाणित कर दे तो निश्चित ही उस रचनाकार द्वारा किया गया सृजन सार्थक हो जाता है।

नजीबाबाद (उ. प्र.) की लोकप्रिय कवयित्री  रश्मि अग्रवाल की उत्कृष्ट लेखनी से साकार होने वाली 'अरी क़लम ! तू कुछ तो लिख' ऐसी ही उल्लेखनीय काव्य-कृतियों में से एक है। संक्षिप्त, परन्तु चिंतन-मनन पर विवश कर देने वाली इस काव्य रूपी सुगंधित माला के सभी 74 पुष्प एक सरलता, तन्मयता तथा सार्थकता लिए पाठक को एक अनोखी सुगंध का अनुभव करा जाते हैं।

कृति की प्रथम रचना 'नववर्ष' से ही कवयित्री का गंभीर चिंतन पाठकों के सम्मुख आ जाता है। सभी के मंगल की कामना करती इस प्रेरक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें - 

'विगत वर्ष के आँचल से,

अनेक उपलब्धियाँ समेटे,

नया वर्ष .....

देशवासियों के दामन में,

नई उमंगें/आशाएँ/ विश्वास जगाएगा...."

    कवयित्री चाहतीं तो सीधी-सरल भाषा के स्थान पर क्लिष्ट/गूढ़ शब्दों का प्रयोग करते हुए भी इस तथ्य को रख सकती थीं परन्तु नहीं,  सरल शब्दों का सार्थक प्रयोग करते हुए वह संदेश को पूरी तरह स्पष्ट करने में सफल रही हैं।

पृष्ठ 14 पर कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा को प्रमाणित करती रचना ' 'अरी क़लम ! तू कुछ तो लिख'  पाठकों के सम्मुख आती है जिसमें आपने एक रचनाकार के मनोभावों को बहुत ही सुंदरता से पिरो दिया है। इस रचना की अन्तिम पंक्तियों में पूरी रचना का निचोड़ सिमट आया है।पंक्तियाँ देखें - 

''मौन व्रत खुलने की

जिसमें छटपटाहट हो,

जिसमें मन को ना चैन

किसी भी करवट हो,

क़लम मेरा सन्देश तू

उस तक पहुँचा देना

और

कवि स्वर शँख बनाकर

यह ब्रह्मण्ड गुँजा देना !

यह ब्रह्मण्ड गुँजा देना !''

     निश्चित ही ये पंक्तियाँ एक रचनाकार को सहज भाव से बेहतर सोचने व लिखने के लिए प्रेरित कर जाती हैं।

इसी क्रम में पृष्ठ 16 पर एक अन्य रचना 'माँ और मैं' शीर्षक से है जिसमें कवयित्री ने माँ एवं बेटी दोनों माध्यमों  से ममता को साकार कर दिखाया है। नेत्रों को नम कर देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ -

".....माँ !

आज तू नहीं है मेरे पास

मगर मैं महसूसती हूँ तुझे,

और स्वयं को अपनी कोख में।

मैं भी तेरी डगर पर चल रही हूँ

देख माँ !

मैं भी तेरी ही तरह माँ बन रही हूँ।"

   उत्कृष्ट रचनाओं के इस क्रम में पृष्ठ 23 पर भी एक अन्य रचना 'पत्थर भी अर्थ ले लेते हैं' मिलती है। जीवन के शाश्वत सत्य को कितनी सुंदरता से कवयित्री ने सामने रख दिया है, इन पंक्तियों में देखें -

"बालक जानना चाहता है जगत को,

और बूढ़ा सिखाना चाहता है जगत को,

एक अनुभव करना चाहता है,

दूसरा अनुभव कराना चाहता है,

मगर जगत

अनुभव नहीं है एहसास है,

खुली किताब का अध्याय है।"

       जिस विषय को स्पष्ट करने में अनगिन  रचनाकार क्लिष्ट भाषा का आवरण प्रयोग में ले आते हैं, उसी गंभीर विषय को इतनी सुंदरता से कवयित्री ने सर्वग्राह्य बना दिया है, यह रचना  इसी का एक उदाहरण है।

    मनोहरी रचनाओं के इस सागर में गोते लगाते हुए पृष्ठ 92 पर एक अन्य रचना 'रोटियाँ' शीर्षक से है जिसमें कवयित्री ने एक आम व्यक्ति की वेदना को जीवंत कर दिखाया है। पंक्तियाँ देखने लायक हैं -

"क्या क्या रंग, दिखाती है रोटियाँ,

आदमी को रुलाती है रोटियाँ।

चिपके पेट याद, आती है रोटियाँ।

किस तरह नाच नचाती हैं रोटियाँ। "

हृदयस्पर्शी, सरल व सार्थक रचनाओं से सजी यह काव्य-माला पृष्ठ 108 पर उपलब्ध 'अन्त में' शीर्षक रचना के साथ विश्राम लेती है। मात्र 5 पंक्तियों में बहुत कुछ समेट लेने वाली यह अद्भुत रचना भी देखिये -

"अन्त में बस यही समझा है, अन्त कभी नहीं होता।

जिस पे उसकी इनायत उसे, रन्ज कभी नहीं होता।

ज़रूरी है जीवन के लिए, कुछ तो बातें जान लेना,

सिखाने वाला कोई भी शब्द, तन्ज़ कभी नहीं होता।"

       यद्यपि कुछ भाषा विज्ञानी हिंदी एवं उर्दू शब्दावली के संयुक्त प्रयोग की बात भी इस कृति के संदर्भ में कर सकते हैं परन्तु, कृति अपने उद्देश्य में सफल है इसमें संदेह नहीं होना चाहिये। कॄति की भाषा-शैली इतनी सरल व मनोहारी है कि इस स्थिति से पार पाते हुए प्रत्येक रचना अपने उद्देश्य को स्पष्ट करने में सफल रही है।

       कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रश्मि अग्रवाल जी की उत्कृष्ट लेखनी एवं परिलेख प्रकाशन  नजीबाबाद व न्यू शिवा प्रिन्टिंग प्रेस के सुंदर संगम के चलते, आकर्षक त्रि-आयामी कवर एवं आकर्षक छपाई से सजी एक ऐसी कृति साहित्य समाज तक पहुँची है, जिसमें  जीवन के विभिन्न आयाम सफ़लता के साथ जीवंत हुए हैं। इस सारस्वत अभियान के लिए कवयित्री, प्रकाशन एवं मुद्रण संस्थान तीनों ही बहुत-बहुत साधुवाद के पात्र हैं।




कृति : अरी कलम ! तू कुछ तो लिख

कवयित्री  : श्रीमती रश्मि अग्रवाल

प्रथम संस्करण : 2019

मूल्य : ₹ 150/-

प्रकाशक : परिलेख प्रकाशन ,नजीबाबाद ,जिला बिजनौर (उ. प्र.) 

मुद्रक: न्यू शिवा प्रिन्टिंग प्रैस, (मेरठ)


समीक्षक
: राजीव 'प्रखर',डिप्टी गंज, मुरादाबाद244001, उ. प्र.



शुक्रवार, 22 जनवरी 2021