मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद( जनपद बिजनौर) की साहित्यकार रश्मि अग्रवाल की काव्य कृति - 'अरी कलम ! तू कुछ तो लिख' की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ---

एक रचनाकार की साधना व परिश्रम  का कृतियों के रूप में समाज तक पहुँचना उस रचनाकार के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और जब उसकी कृति पाठकों के अंतस को स्पर्श करने की क्षमता भी प्रमाणित कर दे तो निश्चित ही उस रचनाकार द्वारा किया गया सृजन सार्थक हो जाता है।

नजीबाबाद (उ. प्र.) की लोकप्रिय कवयित्री  रश्मि अग्रवाल की उत्कृष्ट लेखनी से साकार होने वाली 'अरी क़लम ! तू कुछ तो लिख' ऐसी ही उल्लेखनीय काव्य-कृतियों में से एक है। संक्षिप्त, परन्तु चिंतन-मनन पर विवश कर देने वाली इस काव्य रूपी सुगंधित माला के सभी 74 पुष्प एक सरलता, तन्मयता तथा सार्थकता लिए पाठक को एक अनोखी सुगंध का अनुभव करा जाते हैं।

कृति की प्रथम रचना 'नववर्ष' से ही कवयित्री का गंभीर चिंतन पाठकों के सम्मुख आ जाता है। सभी के मंगल की कामना करती इस प्रेरक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें - 

'विगत वर्ष के आँचल से,

अनेक उपलब्धियाँ समेटे,

नया वर्ष .....

देशवासियों के दामन में,

नई उमंगें/आशाएँ/ विश्वास जगाएगा...."

    कवयित्री चाहतीं तो सीधी-सरल भाषा के स्थान पर क्लिष्ट/गूढ़ शब्दों का प्रयोग करते हुए भी इस तथ्य को रख सकती थीं परन्तु नहीं,  सरल शब्दों का सार्थक प्रयोग करते हुए वह संदेश को पूरी तरह स्पष्ट करने में सफल रही हैं।

पृष्ठ 14 पर कवयित्री की बहुमुखी प्रतिभा को प्रमाणित करती रचना ' 'अरी क़लम ! तू कुछ तो लिख'  पाठकों के सम्मुख आती है जिसमें आपने एक रचनाकार के मनोभावों को बहुत ही सुंदरता से पिरो दिया है। इस रचना की अन्तिम पंक्तियों में पूरी रचना का निचोड़ सिमट आया है।पंक्तियाँ देखें - 

''मौन व्रत खुलने की

जिसमें छटपटाहट हो,

जिसमें मन को ना चैन

किसी भी करवट हो,

क़लम मेरा सन्देश तू

उस तक पहुँचा देना

और

कवि स्वर शँख बनाकर

यह ब्रह्मण्ड गुँजा देना !

यह ब्रह्मण्ड गुँजा देना !''

     निश्चित ही ये पंक्तियाँ एक रचनाकार को सहज भाव से बेहतर सोचने व लिखने के लिए प्रेरित कर जाती हैं।

इसी क्रम में पृष्ठ 16 पर एक अन्य रचना 'माँ और मैं' शीर्षक से है जिसमें कवयित्री ने माँ एवं बेटी दोनों माध्यमों  से ममता को साकार कर दिखाया है। नेत्रों को नम कर देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ -

".....माँ !

आज तू नहीं है मेरे पास

मगर मैं महसूसती हूँ तुझे,

और स्वयं को अपनी कोख में।

मैं भी तेरी डगर पर चल रही हूँ

देख माँ !

मैं भी तेरी ही तरह माँ बन रही हूँ।"

   उत्कृष्ट रचनाओं के इस क्रम में पृष्ठ 23 पर भी एक अन्य रचना 'पत्थर भी अर्थ ले लेते हैं' मिलती है। जीवन के शाश्वत सत्य को कितनी सुंदरता से कवयित्री ने सामने रख दिया है, इन पंक्तियों में देखें -

"बालक जानना चाहता है जगत को,

और बूढ़ा सिखाना चाहता है जगत को,

एक अनुभव करना चाहता है,

दूसरा अनुभव कराना चाहता है,

मगर जगत

अनुभव नहीं है एहसास है,

खुली किताब का अध्याय है।"

       जिस विषय को स्पष्ट करने में अनगिन  रचनाकार क्लिष्ट भाषा का आवरण प्रयोग में ले आते हैं, उसी गंभीर विषय को इतनी सुंदरता से कवयित्री ने सर्वग्राह्य बना दिया है, यह रचना  इसी का एक उदाहरण है।

    मनोहरी रचनाओं के इस सागर में गोते लगाते हुए पृष्ठ 92 पर एक अन्य रचना 'रोटियाँ' शीर्षक से है जिसमें कवयित्री ने एक आम व्यक्ति की वेदना को जीवंत कर दिखाया है। पंक्तियाँ देखने लायक हैं -

"क्या क्या रंग, दिखाती है रोटियाँ,

आदमी को रुलाती है रोटियाँ।

चिपके पेट याद, आती है रोटियाँ।

किस तरह नाच नचाती हैं रोटियाँ। "

हृदयस्पर्शी, सरल व सार्थक रचनाओं से सजी यह काव्य-माला पृष्ठ 108 पर उपलब्ध 'अन्त में' शीर्षक रचना के साथ विश्राम लेती है। मात्र 5 पंक्तियों में बहुत कुछ समेट लेने वाली यह अद्भुत रचना भी देखिये -

"अन्त में बस यही समझा है, अन्त कभी नहीं होता।

जिस पे उसकी इनायत उसे, रन्ज कभी नहीं होता।

ज़रूरी है जीवन के लिए, कुछ तो बातें जान लेना,

सिखाने वाला कोई भी शब्द, तन्ज़ कभी नहीं होता।"

       यद्यपि कुछ भाषा विज्ञानी हिंदी एवं उर्दू शब्दावली के संयुक्त प्रयोग की बात भी इस कृति के संदर्भ में कर सकते हैं परन्तु, कृति अपने उद्देश्य में सफल है इसमें संदेह नहीं होना चाहिये। कॄति की भाषा-शैली इतनी सरल व मनोहारी है कि इस स्थिति से पार पाते हुए प्रत्येक रचना अपने उद्देश्य को स्पष्ट करने में सफल रही है।

       कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रश्मि अग्रवाल जी की उत्कृष्ट लेखनी एवं परिलेख प्रकाशन  नजीबाबाद व न्यू शिवा प्रिन्टिंग प्रेस के सुंदर संगम के चलते, आकर्षक त्रि-आयामी कवर एवं आकर्षक छपाई से सजी एक ऐसी कृति साहित्य समाज तक पहुँची है, जिसमें  जीवन के विभिन्न आयाम सफ़लता के साथ जीवंत हुए हैं। इस सारस्वत अभियान के लिए कवयित्री, प्रकाशन एवं मुद्रण संस्थान तीनों ही बहुत-बहुत साधुवाद के पात्र हैं।




कृति : अरी कलम ! तू कुछ तो लिख

कवयित्री  : श्रीमती रश्मि अग्रवाल

प्रथम संस्करण : 2019

मूल्य : ₹ 150/-

प्रकाशक : परिलेख प्रकाशन ,नजीबाबाद ,जिला बिजनौर (उ. प्र.) 

मुद्रक: न्यू शिवा प्रिन्टिंग प्रैस, (मेरठ)


समीक्षक
: राजीव 'प्रखर',डिप्टी गंज, मुरादाबाद244001, उ. प्र.



2 टिप्‍पणियां: