मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया।
संस्था के सह संयोजक कवि राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की -
खेत जोत कर जब आते थे, थककर पिता हमारे। कहते! बैलों को लेजाकर पानी जरा दिखाना।
हरा मिलाकर न्यार डालना रातब खूब मिलाना।। बलिहारी थे उस जोड़ी पर हलधर पिता हमारे।।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने अपने भाव कुछ इस प्रकार प्रकट किये -
हिमकिरीट-से हैं पिता, मां गंगा की धार।
इनके पुण्य -प्रताप से, जग में बेड़ा पार।
विशिष्ट अतिथि के रुप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी -
घर की बगिया का होता है, पिता मूल आधार।
बच्चों के सपनों को बुनता, खुशियों का संसार। कर्तव्यों की गठरी थामें, जतन करे दिन रात,
बरगद है वो हर आँगन का, लिए छाँव उपहार।।
वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी -
पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी। पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।।
वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह विवेक ने अपने शेरों से यह कहते हुए महफ़िल को लूटा -
मेरी सभी ख़ुशियों का हैं आधार पिता जी,
और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी। हालाँकि ज़ियादा नहीं कुछ आय के साधन,
फिर भी चला ही लेते हैं परिवार पिता जी।
सप्ताह में हैं सातों दिवस काम पे जाते,
जाने नहीं क्या होता है इतवार,पिताजी।
कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता का कहना था -
मेरे अंदर जो बहती है उस नदिया की धार पिता। भूल नहीं सकती जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता।उनके आदर्शों पर चलकर मेरा जीवन सुरभित है, बनी इमारत जो मैं ऊँची हैं उसके आधार पिता।।
नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कुछ इस प्रकार अभिव्यक्ति की -
बहुत दूर हैं पिता किन्तु फिर भी हैं मन के पास। पथरीले पथ पर चलना मन्ज़िल को पा लेना,
कैसे मुमकिन होता क़द को ऊँचाई देना।
याद पिता की जगा रही है सपनों में विश्वास।।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे राजीव प्रखर ने पिता की महिमा का बखान करते हुए कहा -
दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास।
मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।।
चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान।
पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।।
कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने पिता की महिमा का वर्णन करते हुए कहा -
हर बेटी के नायक पापा।
करते हैं सब लायक पापा।
कारज अपने सभी निभाते,
बनें नहीं अधिनायक पापा।
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पारिवारिक मूल्यों को कुछ इस प्रकार को उकेरा -
"करता है रात दिन, वह सुपोषित मुझे, सूर्य सी ऊर्जा लिए।
उगता है नित्य वह, और पार करता है, अग्नि पथ मेरे लिए।"
कवि मनोज मनु के भावाभिव्यक्ति इस प्रकार रही - सिर पर छाँव पिता की।
कच्ची दीवारों पर छप्पर।
आंधी बारिश खुद पर झेले,
हवा थपेड़े रोके, जर्जर
तन भी ढाल बने,
कितने मौके-बेमौके।।
कवि दुष्यंत बाबा ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की -
पिता हैं पोषक, पिता सहारा।
ये संतति के हैं सृजन हारा।
पूरे कुल का जो भार उठाएं,
कभी न इनके दिल को दुखाएं।।
योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया ।
::::::: प्रस्तुति:::::::
राजीव 'प्रखर'
सह संयोजक- हस्ताक्षर
मुरादाबाद
मोबाइल- 8941912642
हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन।
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