मंगलवार, 6 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार की काव्य कृति परिणति की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ----पाठकों से संवाद करता गीत-संग्रह - परिणति

मुरादाबाद का ऊर्जावान एवं उर्वरा साहित्यिक पटल अनगिनत ओजस्वी एवं ऐतिहासिक पड़ावों को स्वयं में समाहित किये हुए है। इन पड़ावों का भरपूर समर्थन करती अनमोल कृतियाँ भी रचनाकारों की उत्कृष्ट लेखनी से होकर समाज के आम जनमानस के हृदय में स्थान बनाती रही हैं। मानवीय संवेदना के कुशल शिल्पी एवं वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय आमोद कुमार जी की साहित्य-साधना का पर्याय उनका परिणति नामक गीत-संग्रह ऐसी ही अनमोल कृतियों में से एक है।सामान्यतः यह कहा जाता है कि अमुक रचनाकार ने कुछ लिखा परन्तु, श्रद्धेय आमोद कुमार जी के गीत-संग्रह परिणति का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका लिखा हुआ मात्र लिखा अथवा प्रकाशित हुआ ही नहीं अपितु इससे भी कहीं अधिक ऊपर उठकर वह एक आम पाठक से हृदयस्पर्शी वार्तालाप भी कर रहा है। कुल 88 काव्य रूपी मनकों से सजी इस माला का प्रत्येक मोती यह दर्शाता है कि रचनाकार ने ज्ञात जगत से भी परे जाकर, अज्ञात के गर्भ में उतरते हुए अपने भावों को शब्द दिये हैं। कृति का प्रारंभ पृष्ठ 11 पर उपलब्ध परिणति शीर्षक गीत से होता है। कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखिये -

"मोह कैसा

किससे राग द्वेष

कोई न बचेगा

अवशेष

शेष

एक सत्य परिवर्तन

बुझता दीपक।"

निश्चित ही यह गीत जीवन के आरम्भ से अंत तक का पूरा चित्र खींच देता है।

इसी क्रम में पृष्ठ 12 पर आत्म-ज्योति शीर्षक से एक अन्य  रचना मिलती है। अंतस में छिपी वेदना को साकार करने वाली इस रचना की निम्न पंक्तियाँ भी देखिये  -

"तृष्णा ऐसी जगी

ज़िन्दगी को पी गया

सौ-सौ बार मरकर भी

फिर-फिर जी गया।"

इसी क्रम में प्रश्न 19 पर सुखद सवेरा फिर आयेगा शीर्षक से एक गीत उपलब्ध है जो विशेष रूप से वर्तमान विश्वव्यापी परिस्थिति में जीवन के प्रति आशा व उल्लास का संचार करता हुआ पाठकों में एक नई ऊर्जा का संचार कर रहा है। इस ह्रदयस्पर्शी व प्रेरक गीत की भी कुछ पंक्तियाँ -

"मत रो साथी मृदु हास से,

अधरों का श्रृंगार करो तुम।

बीत जायेगी पीड़ा रजनी,

सुखद सवेरा फिर आयेगा।

बिना विछोह के सफर अधूरा,

रह जाता है प्यार के पथ में

एक सुख और एक दुःख है,

दो पहिए जीवन के रथ में।"

रचना में  कोई क्लिष्टता नहीं, कोई बाज़ीगरी अथवा लाग-लपेट नहीं, फिर भी सीधी, सरल व मनमोहक भाषा-शैली में जीवन का दर्शन गहराई से निकालकर सामने रख देने में रचनाकार पूर्णतया सफल रहा है।

आत्मा को भीतर तक स्पर्श करती हुई यह अनमोल काव्य-श्रृंखला अनेक मनमोहक सोपानों से होती हुई, पृष्ठ  112 पर यूं आने-जाने का दौर हुआ करता है शीर्षक रचना के साथ विश्राम पर पहुँचती है। जीवन की अनिश्चितता को साकार करती इस अत्यंत उत्कृष्ट रचना की कुछ पंक्तियाँ -

"मत छेड़ो बेवक्त बेसुरा राग तुम, 

गीत सुनाने का एक दौर हुआ करता है,

तन लाख व्याह रचाए मोती से, मानक से,

मन भरमाने का एक दौर हुआ करता है।"

निःसंदेह, इस पूरी कृति के अवलोकन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वास्तव में रचनाकार द्वारा किया गया यह सृजन मात्र सृजन होने तक ही सीमित नहीं है अपितु, कहीं न कहीं उन्होंने इसे स्वयं के भीतर जीते हए अनुभव भी किया है। यही कारण है कि कृति सरल, सुबोध व मनभावन  भाषा-शैली के साथ कालजई बनने के मानकों पर भी पूरी तरह खरी उतरती है।

यद्यपि इस कृति की उत्कृष्टता को चंद शब्दों में समेट पाना मुझ अकिंचन के लिये संभव नहीं, फिर भी इतना अवश्य कहूंगा कि रचनाकार की उत्कृष्ट लेखनी एवं लिटरेचर लैंड जैसे उत्कृष्ट प्रकाशन संस्थान से, आकर्षक सजिल्द स्वरूप में तैयार होकर एक ऐसी अनमोल कृति साहित्य समाज तक पहुँची है, जो पाठकों के हृदय को झंकृत करती हुई जीवन के गहन दर्शन को उनके सम्मुख स्पष्ट कर रही है अतएव इस कारण यह कृति किसी भी स्तरीय पुस्तकालय में स्थान पाने के सर्वथा योग्य भी है। इस सारस्वत अनुष्ठान के लिये रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही बारम्बार अभिनंदन एवं साधुवाद के पात्र हैं। हार्दिक मंगलकामना।


कृति : परिणति ( गीत संग्रह)

रचनाकार : आमोद कुमार

मूल्य : ₹ 295.00, पृष्ठ : 112

प्रकाशन संस्थान : लिटरेचर लैंड ,नई दिल्ली

समीक्षक : राजीव प्रखर, डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत 

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