मुक्तक
खुद में सारे दर्द समेटे खड़े पिता।
घर की खातिर हर संकट से लड़े पिता।
और भला क्या मांगूँ तुमसे भगवन मैं,
दुनियां भर की दौलत से भी बड़े पिता।
अन्तर्मन पर जब-जब फैला तम का साया।
या कष्टों की आपाधापी ने भरमाया।
तब-तब बाबूजी के अनुभव की आभा ने,
जीवन पथ पर बढ़ते रहना सुगम बनाया।
दुनियां के हर सुख से बढ़कर, मुझको प्यारे तुम पापा।
मेरे असली चंदा-सूरज, और सितारे तुम पापा।
लिपट तिरंगे में लौटे हो,बहुत गर्व से कहता हूँ,
मिटे वतन पर सीना ताने, कभी न हारे तुम पापा।
दोहे
दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास।
मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।।
चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान।
पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।।
दिया हमें भगवान ने, यह सुन्दर उपहार।
जीवन के उत्थान को, पापा की फटकार।।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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