एक आदर्श व सक्षम रचनाकार जब भावों के अथाह महासागर में चहलक़दमी करके बाहर आता है, तो उसकी लेखनी कुछ ऐसा अवश्य समेट कर लाती है, जो एक उत्कृष्ट कृति में ढलकर, सहज ही पाठकों व श्रोताओं से वार्तालाप करने लगती है। डॉ. पूनम बंसल की उत्कृष्ट लेखनी से साकार हुआ गीत-संग्रह 'चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया' ऐसी ही उल्लेखनीय कृति है जो कुल 78 मनमोहक गेय रचनाओं से सुसज्जित होकर यह स्पष्ट करती है कि कवयित्री ने मात्र लिखने के लिये ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के इस अथाह महासागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। चाहे ये अनुभूतियाॅं अध्यात्म से ओत-प्रोत हों अथवा जीवन की विभिन्न चुनौतियों से जूझते संघर्ष की गाथाएं, प्रत्येक रचना में कवयित्री अपने मनोभावों को, उत्कृष्टता से स्पष्ट करने में सफल रही हैं। कृति का आरम्भ पृष्ठ 31 पर उपलब्ध, माॅं शारदे को समर्पित हृदयस्पर्शी रचना से हुआ है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाॅं ही हृदय को भक्ति-भाव से ओत-प्रोत कर जाती हैं, पंक्तियाॅं देखें -
"इन पावन चरणों में कर ले, आज नमन स्वीकार माॅं।
ज्योतिर्मय हों सभी दिशाएं, और मिटे ॲंधियार माॅं।"
कुछ इसी प्रकार की कामना, पृष्ठ-32 पर उपलब्ध रचना में भी दिखाई देती है, पंक्तियाॅं देखें -
"ज्ञान के सूरज उगा, हे धवल वसना शारदे।
हो नया स्वर्णिम सवेरा, वो मधुर झंकार दे।"
आध्यात्मिक रचनाओं से शुभारंभ करने वाली यह कृति आगे बढ़ती हुई, जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों को भी स्पर्श करने लगती है। इसी क्रम में जीवन का दर्द समेटे एक रचना पृष्ठ 36 पर, 'क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब' शीर्षक से आती है। इस मर्मस्पर्शी रचना की कुछ पंक्तियाॅं -
"क़दम-क़दम पर दर्द भरा जब, पीना है विष का प्याला।
फिर कैसे कह दें हम बोलो, जीवन अमृत की हाला।"
इसी प्रकार मातृ-भक्ति को साकार करती, 'माॅं गंगा की धार है' (पृष्ठ 39), जनकल्याण की भावना से अभिप्रेरित, 'दूर हो यह धरा का ॲंधेरा सभी' (पृष्ठ 40), प्रकृति से गलबहियाॅं करती 'ओ सावन के मेघ बरस जा' (पृष्ठ 41), 'पिया मिलन की रुत आई' (पृष्ठ 55), 'झूला झूलें राधा रानी' (पृष्ठ 96) आदि रचनाएं हैं, जिनके माध्यम से कवयित्री ने जीवन के प्रत्येक पहलू को पाठकों के सम्मुख उकेरा है।
व्यक्तिगत रूप से मैं इस निष्कर्ष पर पहुॅंचा हूॅं कि इस उत्कृष्ट गीत-संग्रह के केंद्र में, अंतस में छिपी व आकुल व्यथा एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर से एकाकार हो जाने की उत्कण्ठा ही है, जिसके इर्द-गिर्द, अन्य अनेक अनुभूतियाॅं निरंतर चहलकदमी करती हैं, जिन्हें अभिव्यक्त करने में कवयित्री की लेखनी तनिक भी विलंब नहीं करती। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में रची-बसी एक संघर्षरत परन्तु जीवट की धनी नारी, संघर्षों से जूझते हुए भी आशा का संचार कर जाती है। पृष्ठ 119 पर उपलब्ध रचना इसी आशावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्ति दे रही है। 'बदल रहा कश्मीर है' शीर्षक वाली इस रचना की पंक्तियाॅं देखें -
"महक उठी है केसर-वादी, उड़ा गुलाल अबीर है।
धारा के हटने से देखो, बदल रहा कश्मीर है।"
जीवन के विविध पहलुओं को साकार करती यह गीत-यात्रा पृष्ठ-125 पर उपलब्ध 'जो सलोने सपन' शीर्षक रचना के साथ विश्राम लेती है। निराशा से आशा की ओर बढ़ती इस रचना की कुछ पंक्तियाॅं -
"जो सलोने सपन ऑंसुओं में पले,
आस बन कर सभी जगमगाते रहे।
लालिमा से गगन है अभी बे-ख़बर,
बादलों में छिपा है कहीं भास्कर।
पंछियों की तरह सुरमई साॅंझ में,
प्रीत के गीत हम गुनगुनाते रहे।"
यद्यपि, हिंदी एवं उर्दू दोनों के शब्दों का सुंदर संगम लिये इस कृति में, कहीं-कहीं भाषाई अथवा टंकण सम्बंधी त्रुटियाॅं, कवयित्री के इस सारस्वत अभियान में बाधा डालने का असफल प्रयास करती प्रतीत हुई हैं एवं कुछ आलोचक बंधु भी अपनी अभिव्यक्ति के लिये इसमें पर्याप्त संभावनाएं तलाश सकते हैं परन्तु, यह उत्कृष्ट कृति इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए, पाठकों के अंतस को स्पर्श करने में पूर्णतया सक्षम है, ऐसा मैं मानता हूॅं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि, सरल व सहज भाषा-शैली के साथ, आकर्षक सज्जा एवं सजिल्द स्वरूप में तैयार यह गीत-संग्रह, गीत-काव्य जगत में अपना उल्लेखनीय स्थान बनायेगा।
कृति : चाॅंद लगे कुछ खोया-खोया (गीत संग्रह)
रचनाकार : डॉ पूनम बंसल
प्रकाशन वर्ष : 2022 मूल्य : 200 ₹
प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
समीक्षक : राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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जवाब देंहटाएंपूनम दीदी को पुनः हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। साथ ही हार्दिक आभार साहित्यिक मुरादाबाद का भी।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-08-2022) को "जय-जय गणपतिदेव" (चर्चा अंक 4538) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय। सादर प्रणाम।
हटाएंआपका हृदय से बहुत बहुत आभार ।
हटाएं"चाँद लगे कुछ खोया खोया" - शीर्षक बहुत अच्छा लगा। सुंदर समीक्षा के लिए राजीव 'प्रखर' जी को बहुत-बहुत बधाई। 'चाँद लगे कुछ खोया-खोया' गीत संग्रह के लिए डॉ.पूनम बंसल जी को ढेरों शुभकामनाएँ और बधाईयाँ। सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
हटाएंहार्दिक आभार।
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