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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी "सरस" के अप्रकाशित खंडकाव्य "गुदड़ी के लाल" का प्रथम सर्ग - "शैशव"


शिशु-सा रख कर रूप, अवतरित हुआ 'तथागत' । 

बना हुआ था केन्द्र, क्रान्ति का सारा भारत ।। 

किन्तु नहीं वह किसी, 'राजकुल' से आया था । 

निर्धन के घर दया, प्रेम, श्रम, बल लाया था ।। 1 ।।


'दो - अक्तूबर' जन्म लिया, बन छोटा 'बापू' 

आजादी के लिये हुआ, भारत, बे-काबू ।। 

सन् उन्निस सौ चार क्रान्ति, की फैली ज्वाला । 

देश-प्रेम के लिये बना, जन-जन मतवाला ।। 2 ।।


'मुगलों' का था नगर नहीं, मुगलों-सा मानी 

हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख सभी थे, ज्ञानी-ध्यानी ।।

 उसी नगर में एक वंश कायस्थों का था । 

 पूर्ण निरामिष और धर्म-चर्चा में लय था ।। 3 ।।


उसी वंश में श्री शारदा जी शिक्षक थे ।

नीति रीति पद परम्परा के संरक्षक थे ।।

कायस्थों में सदा कहा यह ही है जाता ।

'पढ़ा भला या मरा भला', जग में कहलाता ।। 4 ।। 


उसी वंश का अंश हमारा लाल बहादुर ।

रख कर 'बौना' रूप बजाता आया नूपुर ।।

देख 'लाल' को मुदित हुई माँ रामदुलारी ।

महक उठी थी पूज्य शारदा की फुलवारी ।। 5 ।। 


नन्हा सा था लाल, अतः 'ननकू' कहलाया ।

बाल- 'कृष्ण' सम प्यार, नगर घर भर से पाया ।। 

गंगा तट के निकट लाल की कुटिया न्यारी ।

बनी 'देवकी' और 'यशोदा' स्वयं दुलारी ।। 6 ।।


कल-कल करता गंगा का जल था अति उज्ज्वल ।

जल का कर स्पर्श गंधवह, बहती शीतल ।।

गंगा-यमुना एक रूप हो गई वहाँ पर ।

श्वेत-श्याम जल हुआ एक था, आलिंगन कर ।। 7 ।।


मीन-मकर जल ब्याल, 'लाल' का मन हरते थे। 

खग कपोत कारण्डव, मनरंजन करते थे । 

चहक चहक कर चटक उड़ा करते थे चंचल | 

पकड़ 'चंग' की डोर, शोर करता था युव-दल ।। 8 ।। 


दिन थे स्वर्णिम और निशाएं थीं रत्नारी ।

कलियों के कल-कुंज, कुमुदनी की थीं क्यारी ।।

गंगा तट गुंजायमान था गुंजा रव से

सभी ओर थे 'अर्क' और 'गुंजा' के पौधे ।। 9 ।। 


'अर्क' उगा था एक, पूर्व में ले उजियाला । 

इधर 'अर्क' के पौधों ने थी की ज्वाला ।।

 प्रबल ताप में निर्जल रहकर जो लहलहाता ।

 वही 'अर्क' सम विषम क्षेत्र में शोभा पाता ।। 10 ।।


अर्क क्षेत्र में उसी उगा हो जैसे 'शतदल' ।

हाथ-पैर थे लाल, लाल ही था मुख-मंडल ||

देख 'लाल' को 'लाल' 'लाल' था गया पुकारा ।

'लालबहादुर' लगा नाम तब सबको प्यारा ॥ 11 ॥


संग, मात के, गंग नहाने अक्सर जाता ।

करने को कल्लोल, उछल कर आगे आता ।। 

चंचल था अत्यधिक गोद से निकला पड़ता 

न्हाते न्हाते ही अक्सर, गंगा में गिरता ।। 12 ।। 


एक बार की बात मकर संक्रान्ति पर्व था ।

'माघ मास था गंगा तट पर बड़ा हर्ष था ।। 

साथ 'नाथ' के रामदुलारी तट पर आयी ।

भीड़ अत्यधिक, बच्चा छोटा, थी पबरायी ।। 13 ।। 


घूँघट में थी वधू, गोद में, शिशु था प्यारा । 

चिकनी मिट्टी, फिसलन भारी, घिरा किनारा || 

दुविधा में थी वधू, 'हाय मैं किसे सम्हालूँ । 

'लाल' 'लाज' में टनी, आज मैं किसको पालू ? ।। 14 ।।


कन्धे से था लगा हुआ जो छोटा 'छोना' । 

छिटका गंगा बीच, टोकरी बनी बिछौना ।। 

लेकर सूनी गोद, लौट कर तट तक आयी । 

हिरनी-सी गिर पड़ी, मूर्च्छा उसने खायी ।। 15 ।।


इसी बीच में वहां भीड़ का 'रेला' आया । 

'भागो भागो' तभी भीड़ ने शोर मचाया || 

गंगा तट पर रामदुलारी, बिना 'लाल' के ।

देख रही थी दृश्य अनोखे, महाकाल के ।। 16


उधर छिपा कर 'लाल', टोकरी वाला धाया ।

सोचा, मैंने 'लाल', आज गंगा से पाया ।।

 था वह निःसंतान, दूध का व्यवसायी था । 

 परम भक्त था और धर्म का अनुयायी था ।। 17


सर्दी थी अत्यधिक, कंपकंपी भी थी भारी । 

वात्सल्य -वश विवश, मिर्जई तुरत उतारी ।। 

ढका 'लाल' को फिर, फाहे से दूध पिलाया । 

सोच रहा था, आज पर्व का, 'फल' है पाया ।। 18 ।।


कभी कृष्ण को छिपा 'छाज' में लाये नृपवर । 

बड़ा किया था पाल-पोस, अपना सुत कहकर ।।

पार पहुँच कर सोच रहा था, मन में ग्वाला 

इसी इरादे से उसने था शिशु को पाला ।। 19 ।।


इधर 'दुलारी' बिना लाल के, बुरे हाल थी ।

रो-रोकर निन्दा करती, उस बुरे काल की ।। 

हुई पुलिस में रपट, झपट दौड़े भगदड़ में ।।

मिला 'लाल' था छिपा, एक ग्वाले के घर में ।। 20 


कुछ मुद्रायें देकर, शिशु को वापिस पाया । 

लेकर सुख की साँस, मुदित थी सबकी काया ।। 

पाकर शिशु को हुआ प्रफुल्लित, सारा घर था । 

पहुँचूँ 'गंगा-पार' लक्ष्य था, जीवन भर का ।। 21 ।।


रहे वर्ष भर ठीक, मगर कब तक रह पाते । 

क्रूर-काल कब देख सका सबको मुदमाते ।।

रखा गया था 'लाल', डाल पलकों की छाया । 

टाल सका पर कौन ? भाग्य, जो जिसने पाया ।। 22 ।।


इसी बीच 'दुष्काल' 'लाल' के घर तक आया । 

रखकर भैरव-रूप, भीम आतंक मचाया ।। 

खींच प्राण ले गया, 'काल' था, साथ पिता को । 

डेढ़ साल का 'लाल', देखता रहा चिता को ।। 23 ।।


हुआ 'लाल' यूँ शैशव में ही, हाय! अभागा । 

पड़ीं मुसीबत बहुत, आयीं बाधा पर बाधा ।। 

दो पुत्री के साथ पुत्र था एक अकेला । 

रखकर उर पर वज्र, कष्ट माता ने झेला ।। 24 ।।


घर-भर में सर्वत्र शोक - विक्षोभ मचा था । 

हा । धिक् धिक् दुर्भाग्य, खेल क्यों गया रचा था ।। 

किसलय पर गिर पड़ी गाज, कलियों पर पाला । 

'यौवन में वैधव्य 'दुलारी' को दे डाला ।। 25 ।।


वज्रपात-सा हुआ, मूर्च्छित हुई 'दुलारी' । 

असमय में ही उजड़ गयी उसकी फुलवारी ।। 

कुल इक्किस की उम्र, जुड़ा 'नेहर' से नाता । 

डेढ़ साल का 'लाल', हाय दुर्भाग्य विधाता ।। 26 ।। 


इस प्रकार यह 'लाल' पढ़ा फिर, नाना के घर । 

नाना ने भी प्यार किया था इसको भुज-भर ।।

'पूज्य हजारी लाल' नियम पालन के पक्के । 

अनुशासन प्रिय और बहुत ही कट्टर मति के ।। 27 ।।


एक बार की बात, बाढ़ गंगा में आयी ।

डूब रहे शिशु की, 'ननकू' ने जान बचायी ।।

'जय हो ननकू', 'जय ननकू' का था नारा ।

मेरा 'लाल' बहादुर है, तब गया पुकारा ।। 28 ।।


उसी दिवस से लाल बना था, 'लाल बहादुर' । 

सब करते थे प्रेम, ब्राह्मण, बनिये, ठाकुर || 

'गंगा का वरदान' मानते थे सब इसको ।

'तैराकी' था, खेल नहीं थे 'डिस्थ्रो डिस्को' ।। 29 ।। 


शैशव के दस वर्ष बिताकर, नाना के घर । 

भला-बुरा सब जान चुका था 'ननकू' सत्वर ।। 

'छठवीं' कर उत्तीर्ण समस्या आगे आई । 

कैसे होवे पूर्ण गाँव में अब शेष पढ़ाई ।। 30 ।।


तभी आ गया पत्र, भाग्य से, मौसा जी का । 

नगर 'बनारस' केन्द्र ज्ञानदा सरस्वती का ।। 

मीसा श्री 'रघुनाथ' पालिका में मुंशी थे । 

विस्तृत था परिवार, मगर वे संतुष्टी थे ।। 31 ।।


✍️ शिव अवतार रस्तोगी "सरस"

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की काव्य कृति ' सरस संवादिकाएँ ' । इस कृति का प्रथम संस्करण वर्ष 2007 में पुनीत प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ । इस कृति को तीन खंडों "शिशु सौरभ", "बाल वीथिका" और "किशोर कुंज" में विभाजित किया गया है । तीनों खंडों में 22-22 कविताएं (कुल 66) हैं । इन खंडों की भूमिका क्रमशः डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा " अरुण", डॉ चक्रधर "नलिन",और डॉ विनोद चंद्र पांडेय "विनोद" ने लिखी है। अंत में कवि की पूर्व प्रकाशित काव्य कृति " नोक झोंक" के संदर्भ में देश के साहित्यकारों की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित हैं ।


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डॉ मनोज रस्तोगी 

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मुरादाबाद 244001

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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की काव्य कृति 'अभिनव मधुशाला' । इस कृति का तृतीय परिवर्धित संस्करण वर्ष 2013 में पुनीत प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ । इस कृति की भूमिका आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई ने लिखी है।


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शनिवार, 17 दिसंबर 2022

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की कृति "हमारे कवि और लेखक एवं रस छंद अलंकार" । इस कृति के द्वितीय संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण का प्रकाशन हिंदी साहित्य सदन मुरादाबाद द्वारा संभवत: वर्ष 1991में किया गया । काव्य और सूत्रात्मक शैली में लिखी गई यह कृति कक्षा 9 से 12 तक के हिंदी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। इस कृति में 55 साहित्यकारों के विस्तृत जीवन परिचय और साहित्य सेवा को 6 पंक्तियों के कुंडलिया छंद में बांधने का प्रयास किया गया है। इस 'छक्के' के नीचे अंकित 'उल्लेखनीय बिंदु', 'दृष्टिकोण' 'साहित्य सेवा' एवं 'सूक्ति' आदि का सहारा लेकर साहित्यकार का विस्तृत जीवन परिचय तैयार किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त रस, छंद, अलंकारों की काव्यबद्ध परिभाषाएं भी दी गई है ।


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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की काव्य कृति ....पर्यावरण पचीसी। यह कृति पुनीत प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई थी ।


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बुधवार, 14 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की दो बाल कविताएं : जाड़ा


 
(एक)

सूरज दादा सिहर सिहर कर

 अकड़े ऐंठे बैठें हैं।

लगता सिकुड़ रहे सर्दी से, 

इससे   सचमुच  ऐंठे हैं ।।


जगते समय ,देर से उठते

जल्दी ही ,सो जाते हैं ।

खुद भी ठिठुर रहे  सर्दी से

हमको भी ठिठुराते हैं ।।


इस सर्दी के  कारण ही तो

रात बड़ी, दिन छोटा है।

इससे बहुत देर बिस्तर पर

सोना अपना होता है ।।

     

अगर देर तक दिन रहता तो

शीत सताती  हमें इधर ।

उछल कूद करने के कारण

हम सर्दी खाते   दिन भर ।।


कभी सिकुड़ कर, कभी फैलकर

कुदरत करती अपना काम।

यों मौसम परिवर्तन होता

गर्मी सर्दी पाते  नाम ।।

   

 अत: सिकुड़ना और फैलना

 हुआ ताप का असली काम।

 इसे ताप सिद्धांत समझ लो

मिलते विंटर समर नाम ।।


(दो)

जाड़ा जाड़ा जाड़ा जाड़ा

इस जाडे़ ने किया कबाड़ा ।

कट कट कट कट दॉत कटकते

मानो हम पढ़ रहे पहाड़ा ।।

   

दिन छोटा, पर रात बड़ी है

सर्दी हण्टर  लिये खड़ी है ।

सूरज भी सहमा- सहमा सा

लगता इस पर पडा कुहाड़ा ।।


दिन में धूप सुहानी लगती

छाया ,दैत्य- सरीखी खलती ।

लम्बी रातें ,लगें भयानक

छाता अँधकार है गाढ़ा ।।

  

 पशु -पक्षी भी महा- दुखी हैं

 जो समर्थ हैं ,वही सुखी हैं ।

 कॉप रहे  हैं  सब सर्दी से 

बछिया -बछड़े,पड़िया -पाड़ा ।।


क्षण क्षण में घिर आते बादल

छाता अँधियारा, ज्यों काजल

झम झम झम झम वर्षा होती

धन गरजें, ज्यों सिंह दहाड़ा ।।

    

 सबको भाती गरम  रजाई

 हलवा- पूड़ी, दूध -मलाई ।

 सुड़ड़ सुड़ड़ सुड़ नाक बोलती

 पीना पड़ता कड़वा काढ़ा ।।


आलू ,शकरकंद सब खाते 

धूप भरे दिन, सदा सुहाते ।

गजक रेबड़ी ,अच्छी लगतीं

गुड़ से खाते  गर्म सिंघाड़ा ।।


✍️ शिव अवतार रस्तोगी 'सरस'


मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 







शिव अवतार रस्तोगी "सरस"
का जन्म 4 जनवरी 1939 को तत्कालीन जनपद मुरादाबाद के नगर संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम रतनलाल एवं माता का नाम द्रौपदी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा सम्भल में पंडित चैतन्य स्वरूप की पाठशाला में हुई। इस प्रारंभिक पाठशाला में कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी कर लेने के उपरांत उन्होंने लगभग 10 वर्ष की अवस्था में संभल के ही शंकर भूषण इंटर कॉलेज में कक्षा 6 में प्रवेश लिया । वर्ष 1954 में हाईस्कूल और वर्ष 1956 में इंटरमीडिएट की परीक्षाएं इंटर कॉलेज संभल से उत्तीर्ण की। इसके पश्चात आपने बेसिक सी टी का द्विवार्षिक प्रशिक्षण प्राप्त किया । इस प्रशिक्षण के पश्चात आपकी 8 जुलाई 1958 को हिंद इंटर कॉलेज संभल में ही शिक्षक के रूप में नियुक्ति हो गई। अध्यापन कार्य के दौरान वर्ष 1960 में आपने वाणिज्य विषय से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1962 में हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य विषयों के साथ स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1964 में हिंदू कॉलेज मुरादाबाद से बी टी (बीएड) और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य रत्न की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आप की नियुक्ति कालागढ़(जिला बिजनौर) स्थित रामगंगा परियोजना उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य पद पर हो गई। यहीं सेवारत रहते हुए आपने वर्ष 1968 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली तथा आदर्श इंटर कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता के रूप में नियुक्त हो गए बाद में उन्होंने यहां से त्यागपत्र देकर सर्वोदय इंटर कॉलेज में प्रवक्ता पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। वर्ष 1970 में उन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में संस्कृत विषय से भी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर ली। यहां से आपने 31 दिसंबर 1972 को त्यागपत्र देकर 2 जनवरी 1973 को महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज मुरादाबाद में हिंदी के प्रवक्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया । यहीं से वर्ष 1997 में उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ग्रहण की।

वर्ष 1959 में 20 जून को स्याना निवासी बालमुकुंद रस्तोगी की सुपुत्री कनक लता से आपका विवाह हुआ। आपके दो सुपुत्रियां रश्मि रस्तोगी एवं ऋचा रस्तोगी तथा एक सुपुत्र पुनीत रस्तोगी हैं ।     साहित्यिक प्रतिभा उन्हें विरासत में प्राप्त हुई। पिता रतनलाल उर्दू के शायर थे और संभल के आसपास के क्षेत्रों में मुशायरे में शिरकत करते थे। हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के लोग उनका सम्मान करते थे । हिंदी पट्टी में वह कवि चच्चा  और उर्दू पट्टी में वह रतन संभली के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा का विकास उस समय हुआ जब वह 1962 में बीए के छात्र थे।  हिंदू कालेज में बी टी के प्रशिक्षण के दौरान उनका संपर्क शिक्षक मुकुट बिहारी लाल रस्तोगी से हुआ। मुकुट बिहारी शिक्षक होने के साथ-साथ एम खुशदिल नाम से साहित्यकार के रूप में भी चर्चित थे। यहीं से उनमें साहित्य लेखन के प्रति रुझान उत्पन्न हुआ। वर्ष 1964 जब वह कालागढ़ में प्रधानाचार्य हुए तो उन्होंने निरंतर 6 वर्षों तक विद्यालय की पत्रिका नव प्रदीप का संपादन करके अपनी साहित्य साधना का बीजारोपण किया तथा अरुण और कक्कड़ उपनाम से काव्य लेखन शुरू कर दिया। वर्ष 1966 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रति अपनी भावनाओं को "गुदड़ी के लाल"  खंड काव्य के रूप में लिखना प्रारंभ किया लेकिन वह किन्हीं परिस्थितियों वश वह उसे पूर्ण नहीं कर सके। इस दौरान उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित होने लगी।
   मुरादाबाद आने पर प्रो महेंद्र प्रताप और डॉ शिवबालक शुक्ल के मार्गदर्शन से उनकी साहित्यिक प्रतिभा को एक नया आयाम मिला। उनकी प्रथम कृति "पंकज पराग" प्रकाशित हुई। दूसरी कृति "हमारे कवि और लेखक" विद्यार्थियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुई। इस कृति में उन्होंने हिंदी साहित्यकारों के विस्तृत जीवन परिचय और साहित्य सेवा को 6 पंक्तियों की कुंडलियां छंद में बांधने का प्रयास किया। इस कृति का दूसरा परिवर्धित संस्करण वर्ष 1983 में  हिंदी साहित्य सदन द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 1985 में आपकी कृति "अभिनव मधुशाला" का प्रकाशन हुआ। डॉ हरिवंश राय बच्चन की कालजयी कृति "मधुशाला" की तर्ज पर रचित यह कृति सर्वाधिक चर्चित रही। इसका परिवर्धित संस्करण वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ। आप का सर्वाधिक साहित्यिक योगदान  बाल साहित्य लेखन में रहा। वर्ष 2003 में प्रकाशित "नोकझोंक", वर्ष 2007 में प्रकाशित "सरस संवादिकाएं ", वर्ष 2013 में प्रकाशित "पर्यावरण पचीसी" और वर्ष 2021 में प्रकाशित "सरस बालबुझ पहेलियां" आपकी उल्लेखनीय काव्य कृतियां हैं।  वर्ष 2014 में आपका ग्रंथ "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (आत्मकथा एवं अभिनंदन ग्रंथ) का प्रकाशन हुआ। इसके अतिरिक्त सिंघल ब्रदर्स मुरादाबाद द्वारा हाईस्कूल स्तर की पाठ्य पुस्तकों का भी प्रकाशन हो चुका है। गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं ।
     आपकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं बाल-वाणी, बाल-भारती, बाल-वाटिका, बाल-प्रहरी, बाल-सेतु, बच्चों का देश, देव-पुत्र, राष्ट्र-धर्म, जान्हवी, वामांगी, सेवाभारती, कलाकुंज-भारती, साहित्य-अमृत, राष्ट्रदेव, जन
प्रवाह, आर्यवृत-केसरी, विश्व-भारती, शोध-दिशा आदि में हो चुका है। इसके अतिरिक्त डा. सुनीता गांधी एवं श्री शरण द्वारा प्रकाशित पाठ्य पुस्तकों में  भी आपकी रचनाओं का समावेश हुआ है।
     हिन्दी साहित्य संदर्भ कोश, सम्मेलन के रत्न, उ.प्र. के हिन्दी साहित्यकार, संकेत, हरिश्चन्द्र वंशीय समाज का इतिहास, हिन्दी का वास्तुपरक इतिहास आदि ग्रंथों में आपका उल्लेख किया गया है।
   आपने साहित्यकार स्मारक समिति की स्थापना करके अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया। आपका विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं हिन्दी साहित्य सदन, अन्तरा, संस्कार-भारती, तरुण शिखा, सेवा-भारती, आर्यसमाज, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, दीनदयाल उपाध्याय सेवा संस्थान, एम.एच. डिग्री कालिज, द्रोपदी रत्न शिक्षा समिति आदि से भी जुड़ाव रहा।
आकाशवाणी के रामपुर केंद्र से वार्ता एवं काव्य-पाठ
का प्रसारण भी समय समय पर होता रहा।
    आपको रंभा ज्योति (चंडीगढ़), हिंदी प्रकाश मंच (सम्भल), 'सागर तरंग प्रकाशन' (मुरादाबाद), संस्कार भारती (मुरादाबाद), (मुज़फ़्फ़रनगर), व हापुड़, भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान' (हरदोई), 'अ० भा० राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन' (गाजियाबाद), 'बाल-प्रहरी' (अल्मोड़ा) 'अभिव्यंजना' (फर्रुखाबाद), 'ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय' (रामपुर), 'डा० मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान' (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) तथा 'अ० भा० साहित्य कला मंच' आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
      कोरोना काल में आपका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।

   


✍️  डॉ मनोज रस्तोगी
    8, जीलाल स्ट्रीट
    मुरादाबाद 244001
    उत्तर प्रदेश, भारत
    मोबाइल फोन नंबर 9456687822

रविवार, 10 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की कृति ''सरस बाल बूझ पहेलियों" का महाराजा हरिश्चन्द्र कालेज में लोकार्पण

विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार 9 जनवरी 2020 को महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुरादाबाद में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के वयोवृद्ध बाल साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की कृति 'सरस बाल  बूझ पहेलियों" का लोकार्पण किया गया ।

          दीप प्रज्ज्वलन एवं डॉ कामिनी शर्मा द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना के उपरांत डॉ मुकेश गुप्ता के संचालन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि श्री सरस जी ने सूक्ष्मतर विषयों को अपनाकर अपनी पैनी दृष्टि से उनके गुणों, कर्म एवं धर्म के आधार पर ऐसी दुर्गम किंतु सहज बोधकारी पहेलियों की रचना की है जिन्हें सुनकर कभी आह और कभी वाह की अभिव्यक्ति स्वतः होने लगती है।                 

      मुख्य अतिथि के रुप में हिंदू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानंद शर्मा ने कहा कि श्री सरस जी की पहेलियों में बाल मनोविज्ञान के दर्शन होते हैं। मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार डॉ राकेश चक्र ने कहा कि कृति में प्रकाशित पहेलियां बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानार्जन में भी सहायक हैं। संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने हिंदी बाल साहित्य में मुरादाबाद के साहित्यकारों के योगदान एवं परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला। साहित्यकार अशोक विश्नोई ने श्री सरस के कृतित्व के संदर्भ    में जानकारी दी। युवा साहित्यकार राजीव प्रखर और गोविंद नोन्याल ने श्री सरस के व्यक्तित्व को अनुकरणीय बताया। अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्रबंधक  डॉ  काव्य सौरभ रस्तोगी ने किया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य के क्षेत्र में श्री सरस ने जो उल्लेखनीय योगदान दिया है उसे विस्मृत नहीं किया जा सकता।

   लोकार्पित कृति का परिचय प्रस्तुत करते हुए रचनाकार  शिव अवतार रस्तोगी सरस  ने कहा कि इस कृति में 185 पहेलियां हैं जिसमें 'शिक्षण शास्त्र' की मान्यता के अनुरूप भाषा की दृष्टि से ' सरल से कठिन' की ओर बढ़ने का प्रयास किया गया है । 

   आभार व्यक्त करते हुए महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने कहा कि  बाल साहित्य लेखन  अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसके लिए बाल मनोविज्ञान में पारंगत होना अति आवश्यक है। 

 समारोह में डॉ प्रियंका गुप्ता, मनीष भट्ट, डॉ अय्यूब, अर्जुन सिंह, डॉ अजीत कुमार , डॉ दुर्गा प्रसाद पांडेय, जितेंद्र सिंह, डॉ मुकेश मोहन आदि उपस्थित रहे ।































शुक्रवार, 8 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की रचना --------लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला। कोरोना से पीड़ित रोगी पी सकता है मधु प्याला।



मधुशाला खुलने के कारण देख देख गड़बड़झाला
मचल रही है आज लेखनी करने को कागज काला।
देख रही है जैसा जग को वैसा ही यह लिखती है। तत्पर है फिर से लिखने को,सरस सुहावना मधुशाला।

लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला।
कोरोना से पीड़ित रोगी  पी सकता है मधु प्याला।
उसको तो वैसे भी मरना, पर संतोष  रहेगा यह ।
मरने से पहले मैं  फिर से ,देख सका था मधुशाला।

सुधा शहद मकरंद मुलैठी, माखन मिश्री मधु बाला।
छंद राग ऋतुराज दूध घृत, यह थी अर्थों की माला ।
इतने सारे अर्थ भूल  कर, एक अर्थ बस याद रहा
उस अनर्थ को आज सार्थक, फिर से करती मधुशाला।

एक आबकारी विभाग ही, सरकारी इनकम वाला ।आ जाती है आब आप  ही, खुले खजाने का ताला ।
एक हाथ है मद्य- विरोधी  और एक है विस्तारक  ।
इससे   दुगुनी और चौगुनी खुल जाती हैं मधुशाला।

✍️ शिव अवतार रस्तोगी 'सरस'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

  

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी सरस की रचना --घातक रोग महा कोरोना ऐसा रोग किसी को हो ना।....



घातक रोग महा कोरोना
ऐसा रोग किसी को हो ना।
आंख नाक मुंह रखें बचाकर
नजला, खांसी कभी न होना।1.

इक्किस दिन घर अंदर रहना।
गली सड़क पर पैर न धरना।
लक्ष्मण रेखा खिंची हुई है,
अंदर ही सुख दुख सब सहना।2.

रखें परस्पर हम सब दूरी।
बस, कुछ दिन की है मजबूरी।
स्वयं  वायरस,  मर जाएंगे
मगर   सुरक्षा   रक्खें पूरी।3.

रोग भयानक घिर कर आया
अखिल विश्व में यह मंडराया।
अभी नहीं उपचार मिला है
हर कोई इससे घबराया ।।4.

मिले न संयम बिना सुरक्षा।
आत्म- नियंत्रण सबसे अच्छा।
अलग -थलग हम रहें स्वयं ही
तब ही संभव सबकी रक्षा ।5.

कदम तीसरा पड़े कभी ना।
वरना ,मुश्किल होगा जीना ।
महाप्रलय का दृश्य  उपस्थित
सोच- सोच आ रहा पसीना।6.,

 *** शिव अवतार रस्तोगी सरस
        मुरादाबाद 244001
        उत्तर प्रदेश, भारत