मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 







शिव अवतार रस्तोगी "सरस"
का जन्म 4 जनवरी 1939 को तत्कालीन जनपद मुरादाबाद के नगर संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम रतनलाल एवं माता का नाम द्रौपदी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा सम्भल में पंडित चैतन्य स्वरूप की पाठशाला में हुई। इस प्रारंभिक पाठशाला में कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी कर लेने के उपरांत उन्होंने लगभग 10 वर्ष की अवस्था में संभल के ही शंकर भूषण इंटर कॉलेज में कक्षा 6 में प्रवेश लिया । वर्ष 1954 में हाईस्कूल और वर्ष 1956 में इंटरमीडिएट की परीक्षाएं इंटर कॉलेज संभल से उत्तीर्ण की। इसके पश्चात आपने बेसिक सी टी का द्विवार्षिक प्रशिक्षण प्राप्त किया । इस प्रशिक्षण के पश्चात आपकी 8 जुलाई 1958 को हिंद इंटर कॉलेज संभल में ही शिक्षक के रूप में नियुक्ति हो गई। अध्यापन कार्य के दौरान वर्ष 1960 में आपने वाणिज्य विषय से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1962 में हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य विषयों के साथ स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1964 में हिंदू कॉलेज मुरादाबाद से बी टी (बीएड) और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य रत्न की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आप की नियुक्ति कालागढ़(जिला बिजनौर) स्थित रामगंगा परियोजना उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य पद पर हो गई। यहीं सेवारत रहते हुए आपने वर्ष 1968 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली तथा आदर्श इंटर कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता के रूप में नियुक्त हो गए बाद में उन्होंने यहां से त्यागपत्र देकर सर्वोदय इंटर कॉलेज में प्रवक्ता पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। वर्ष 1970 में उन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में संस्कृत विषय से भी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर ली। यहां से आपने 31 दिसंबर 1972 को त्यागपत्र देकर 2 जनवरी 1973 को महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज मुरादाबाद में हिंदी के प्रवक्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया । यहीं से वर्ष 1997 में उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ग्रहण की।

वर्ष 1959 में 20 जून को स्याना निवासी बालमुकुंद रस्तोगी की सुपुत्री कनक लता से आपका विवाह हुआ। आपके दो सुपुत्रियां रश्मि रस्तोगी एवं ऋचा रस्तोगी तथा एक सुपुत्र पुनीत रस्तोगी हैं ।     साहित्यिक प्रतिभा उन्हें विरासत में प्राप्त हुई। पिता रतनलाल उर्दू के शायर थे और संभल के आसपास के क्षेत्रों में मुशायरे में शिरकत करते थे। हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के लोग उनका सम्मान करते थे । हिंदी पट्टी में वह कवि चच्चा  और उर्दू पट्टी में वह रतन संभली के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा का विकास उस समय हुआ जब वह 1962 में बीए के छात्र थे।  हिंदू कालेज में बी टी के प्रशिक्षण के दौरान उनका संपर्क शिक्षक मुकुट बिहारी लाल रस्तोगी से हुआ। मुकुट बिहारी शिक्षक होने के साथ-साथ एम खुशदिल नाम से साहित्यकार के रूप में भी चर्चित थे। यहीं से उनमें साहित्य लेखन के प्रति रुझान उत्पन्न हुआ। वर्ष 1964 जब वह कालागढ़ में प्रधानाचार्य हुए तो उन्होंने निरंतर 6 वर्षों तक विद्यालय की पत्रिका नव प्रदीप का संपादन करके अपनी साहित्य साधना का बीजारोपण किया तथा अरुण और कक्कड़ उपनाम से काव्य लेखन शुरू कर दिया। वर्ष 1966 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रति अपनी भावनाओं को "गुदड़ी के लाल"  खंड काव्य के रूप में लिखना प्रारंभ किया लेकिन वह किन्हीं परिस्थितियों वश वह उसे पूर्ण नहीं कर सके। इस दौरान उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित होने लगी।
   मुरादाबाद आने पर प्रो महेंद्र प्रताप और डॉ शिवबालक शुक्ल के मार्गदर्शन से उनकी साहित्यिक प्रतिभा को एक नया आयाम मिला। उनकी प्रथम कृति "पंकज पराग" प्रकाशित हुई। दूसरी कृति "हमारे कवि और लेखक" विद्यार्थियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुई। इस कृति में उन्होंने हिंदी साहित्यकारों के विस्तृत जीवन परिचय और साहित्य सेवा को 6 पंक्तियों की कुंडलियां छंद में बांधने का प्रयास किया। इस कृति का दूसरा परिवर्धित संस्करण वर्ष 1983 में  हिंदी साहित्य सदन द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 1985 में आपकी कृति "अभिनव मधुशाला" का प्रकाशन हुआ। डॉ हरिवंश राय बच्चन की कालजयी कृति "मधुशाला" की तर्ज पर रचित यह कृति सर्वाधिक चर्चित रही। इसका परिवर्धित संस्करण वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ। आप का सर्वाधिक साहित्यिक योगदान  बाल साहित्य लेखन में रहा। वर्ष 2003 में प्रकाशित "नोकझोंक", वर्ष 2007 में प्रकाशित "सरस संवादिकाएं ", वर्ष 2013 में प्रकाशित "पर्यावरण पचीसी" और वर्ष 2021 में प्रकाशित "सरस बालबुझ पहेलियां" आपकी उल्लेखनीय काव्य कृतियां हैं।  वर्ष 2014 में आपका ग्रंथ "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (आत्मकथा एवं अभिनंदन ग्रंथ) का प्रकाशन हुआ। इसके अतिरिक्त सिंघल ब्रदर्स मुरादाबाद द्वारा हाईस्कूल स्तर की पाठ्य पुस्तकों का भी प्रकाशन हो चुका है। गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं ।
     आपकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं बाल-वाणी, बाल-भारती, बाल-वाटिका, बाल-प्रहरी, बाल-सेतु, बच्चों का देश, देव-पुत्र, राष्ट्र-धर्म, जान्हवी, वामांगी, सेवाभारती, कलाकुंज-भारती, साहित्य-अमृत, राष्ट्रदेव, जन
प्रवाह, आर्यवृत-केसरी, विश्व-भारती, शोध-दिशा आदि में हो चुका है। इसके अतिरिक्त डा. सुनीता गांधी एवं श्री शरण द्वारा प्रकाशित पाठ्य पुस्तकों में  भी आपकी रचनाओं का समावेश हुआ है।
     हिन्दी साहित्य संदर्भ कोश, सम्मेलन के रत्न, उ.प्र. के हिन्दी साहित्यकार, संकेत, हरिश्चन्द्र वंशीय समाज का इतिहास, हिन्दी का वास्तुपरक इतिहास आदि ग्रंथों में आपका उल्लेख किया गया है।
   आपने साहित्यकार स्मारक समिति की स्थापना करके अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया। आपका विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं हिन्दी साहित्य सदन, अन्तरा, संस्कार-भारती, तरुण शिखा, सेवा-भारती, आर्यसमाज, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, दीनदयाल उपाध्याय सेवा संस्थान, एम.एच. डिग्री कालिज, द्रोपदी रत्न शिक्षा समिति आदि से भी जुड़ाव रहा।
आकाशवाणी के रामपुर केंद्र से वार्ता एवं काव्य-पाठ
का प्रसारण भी समय समय पर होता रहा।
    आपको रंभा ज्योति (चंडीगढ़), हिंदी प्रकाश मंच (सम्भल), 'सागर तरंग प्रकाशन' (मुरादाबाद), संस्कार भारती (मुरादाबाद), (मुज़फ़्फ़रनगर), व हापुड़, भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान' (हरदोई), 'अ० भा० राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन' (गाजियाबाद), 'बाल-प्रहरी' (अल्मोड़ा) 'अभिव्यंजना' (फर्रुखाबाद), 'ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय' (रामपुर), 'डा० मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान' (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) तथा 'अ० भा० साहित्य कला मंच' आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
      कोरोना काल में आपका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।

   


✍️  डॉ मनोज रस्तोगी
    8, जीलाल स्ट्रीट
    मुरादाबाद 244001
    उत्तर प्रदेश, भारत
    मोबाइल फोन नंबर 9456687822

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