मंगलवार, 31 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) के फेसबुक पर संचालित समूह सुमन साहित्यिक परी की ओर से रविवार 29 अगस्त2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी


मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) के फेसबुक पर संचालित समूह सुमन साहित्यिक परी की ओर से रविवार 29 अगस्त 2021 को  स्ट्रीम यार्ड पर, गीत और नवगीत विधाओं पर आधारित "रसभरे  व अलबेले गीत-नवगीत" शीर्षक से ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका प्रसारण समूह के पेज दीपिका माहेश्वरी 'सुमन'  पर लाइव किया गया। मुरादाबाद के युवा रचनाकार राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए  कार्यक्रम में विभिन्न रचनाकारों ने अपने गीतों/ नवगीतों के माध्यम से अलबेली छटा बिखेरी। संचालन दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने किया।

काव्य पाठ करते हुए मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य के पैने तीर छोड़ते हुए कहा--- 

"स्वाभिमान भी गिरवीं 

रख नागों के हाथ। 

भेड़ियों के सम्मुख

टिका दिया माथ। 

इस तरह होता रहा 

अपना चीरहरण।" 

मुरादाबाद के युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने पारिवारिक मूल्यों का स्मरण करते हुए कहा - 

"वही पुरानापन आपस का, 

वापस लायें। 

चौके में पहले सी पाटी, 

चलो बिछायें।" 

नजीबाबाद की कवयित्री तथा समूह संस्थापिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' (अहंकारा) ने अपने गीत को विरह का रंग दिया - 

"अश्रुधारा क्यों है भरी,

इन आंखों में बोलो प्यारी। 

पीड़ा कहो कुछ हम से

अब पद्मन के खोलो प्यारी ॥"

लखनऊ के उदय भान पाण्डेय 'भान' की प्रस्तुति इस प्रकार रही -  

"मीत, तुझे  कैसे  समझाऊँ...

मैं हूँ इक आवारा बादल,

तेरे ढिग  कैसे  मैं  आऊँ।। 

मीत, तुझे कैसे समझाऊँ... । 

खण्डवा (म. प्र.) के सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्याम सुंदर तिवारी ने आयोजन की रंगत बढ़ाते हुए कहा  - 

"आँच है अब भी अलावों में। 

रहेंगे कब तक अभावों में।। 

पूस के घर रात ठहरी है। 

रोशनी अंधी है बहरी है।

बन्द हैं सपने तनावों में।।" 

कोलकाता से उपस्थित हुए वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार दुबे ने गीत प्रस्तुत किया-

"प्यार जब से मिला है तुम्हारा प्रिये, 

सूने मन को हमारे सदाएँ मिलीं। 

दो दिलों का परस्पर मिलन हो गया, 

बंध अनुबंधी नूतन कथाएँ मिलीं।" 

जबलपुर से उपस्थित हुए वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने कार्यक्रम को और भी ऊँचाई पर ले जाते हुए नवगीत से कुछ इस प्रकार मंच को सुशोभित किया-

"मानव !क्यों हो जाते, 

जीवन संध्या में एकाकी?" 

कानपुर के रचनाकार विद्याशंकर अवस्थी पथिक ने गीत में देशभक्ति का रंग उड़ेला-

"आज मैं प्यारे भारत की एक गौरव गाथा गाता हूं। अमर शहीद उन वीरों की तुमको कथा सुनाता हूं॥"

जयपुर  से सुप्रसिद्ध साहित्यकार गोप कुमार मिश्र दद्दू ने अपने गीत का रंग कुछ इस प्रकार घोला- 

"अश्रुधार की मुस्कानों में,

बचपन लिखता गजब कहानी। 

जज्ब हुए जज्बात बन गये, 

ढुलक गया वो बहता पानी।।" 

जबलपुर से सुप्रसिद्ध रचनाकार बसंत कुमार शर्मा की सुंदर अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -

"सूरज से की जल की चाहत, 

कैसी हमसे भूल हो गई। 

आशाओं की दूब झुलसकर, 

धरती की पग धूल हो गई." 

जबलपुर से ही उपस्थित साहित्यकार  मिथिलेश बडगैया ने सुंदर गीत से समां बांधा -

"मैं संध्या का वंदन हूंँ , 

मैं प्रत्यूषा का स्वागत हूंँ। 

नदियों के कल-कल निनाद से,  

झंकृत हूंँ, मैं भारत हूंँ।" 

लखनऊ से सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेन्द्र भूषण ने कहा -

 "सुनते नहीं और की बस अपनी ही बात सुनाते लोग।। 

अर्थों के भी अर्थ पुनः उसके भी अर्थ लगाते लोग।।" 

लखनऊ से ही प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कुलदीप नारायण सक्सेना  ने गांव की याद दिलाते हुए गीत मैं गांव की मिट्टी का रंग उड़ेला- 

"खेल रहा था यहीं कहीं पर 

खोजो, मेरा गांव खो गया। " 

लखनऊ से वयोवृद्ध साहित्यकार देवकीनंदन शांत ने सुरमय गीत की छटा कुछ इस प्रकार बिखेरी - 

"फूल अपना जवाब माँगे है! 

अपनी खुशबू गुलाब माँगे है !!" 

समूह संस्थापिका तथा कार्यक्रम-संचालिका दीपिका माहेश्वरी 'सुमन' ने आभार-अभिव्यक्त किया।

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. साहित्यिक muradabad पर सुमन साहित्यिक परी की ओर से आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का समाचार बहुत ही आकर्षक ढंग से प्रकाशित किया गया है इसके लिए आदरणीय मनोज जी का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं