मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य भारती के तत्वावधान में शनिवार आठ मार्च 2025 को होली का स्वागत करते हुए दुष्यंत बाबा के मानसरोवर स्थित आवास में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कवि मनोज मनु द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अशोक विश्नोई ने कहा ....
बच्चे बोले दादा जी चलो खेलने होली,
दादा जी ने फरमाया बच्चों ढूंढो अपनी टोली।
मुख्य अतिथि डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने संदेश दिया ....
होली के रंग में हम, अपना मन रंग लें।
रूठा है अगर कोई, उसे प्रेम से मना लें।
विशिष्ट अतिथि के रूप में वीरेन्द्र ब्रजवासी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही -
होली का हर रंग मुबारक,
इक दूजे के संग मुबारक।
जीवन भर हॅंसने--गाने का,
ऐसा सुंदर ढंग मुबारक।
वरिष्ठ कवि ओंकार सिंह ओंकार ने होली का चित्र खींचा -
खिल उठे हैं फूल अब रिझाने के लिए।
आ गया मौसम सुहाना गुनगुनाने के लिए।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल का कहना था -
फागुन का है मस्त महीना खुशियों का संसार लिए।
रूठों को हम चलो मनाएं रंगों का उपहार लिए।
हुए गुलाबी नयन शराबी मीठी सी तकरार लिए।।
डॉ. मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य के तीर छोड़े -
होली पर कीचड़ लगवाने से
मत कीजिए इनकार
स्वच्छ मुरादाबाद का
कीजिए सपना साकार
सब मिलकर
नालों से कीचड़ निकालिए
एक दूसरे को लगा होली मनाइए।
डॉ. अर्चना गुप्ता के अनुसार -
कैसी मूर्खों की लगी, होली पर चौपाल।
दिखा मूर्खता का रहे , मिलकर सभी कमाल।
संचालन करते हुए कवि विवेक निर्मल ने कहा -
अपने मन को यूं बहलाया जा सकता था,
कुछ कम से भी काम चलाया जा सकता था।
रचना पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा -
नेह-प्रेम-सद्भाव के सीख पुराने ढंग।
गले मिलाकर फिर लगा, वही सुहाने रंग।।
आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।
योगेन्द्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति थी -
उमंगों, मस्तियों, उल्लास की सौगात होली में।
जिधर देखो उधर है रंग की बरसात होली में
चिपटकर चूमते कुछ लोग उसको प्यार से बेहद
गधों की बढ़ गई है आजकल औकात होली में।
मनोज मनु ने रंग बरसाते हुए कहा -
गिले शिकवे मिटा देना सभी इस बार होली पे,
दिलों से दिल मिला लेना सभी इस बार होली पे।
मीनाक्षी ठाकुर की अभिव्यक्ति थी -
हो गयीं स्वर्णिम दिशाएँ टेसू की रंँगत चढ़ी।
धूप के उजले बदन पर भोर ने केसर मढ़ी।
चंपई दिन - बावरा सा, यामिनी पर छा गया।
दुष्यंत बाबा के शब्द थे -
गुजिया खाकर मेंढकी, मले पेट पर हींग।
गधे आंदोलन कर रहे, हम लेकर रहेंगे सींग।।
मयंक शर्मा के भाव इस प्रकार रहे -
रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली।
मुंह से कुछ मीठा सा बोलें भूल के कड़वी बोली।
कार्यक्रम में ताराचंद्र, असित त्यागी, डॉ. अनुज श्रीवास्तव, रजत प्रभाकर, निधी आदि भी उपस्थित रहे। संयोजक दुष्यंत बाबा ने आभार-अभिव्यक्त किया।