(1)
सच बोलता हूँ अपनी सफाई नहीं देता
मैं अपने हक़ में अपनी गवाही नहीं देता
इस रास्ते से ऊब चुके हैं तमाम लोग
ये रास्ता अब आबलापाई नहीं देता
संसद में बार बार बताना पड़ा मुझे
अंधे हैं हम अंधों को दिखाई नहीं देता
जिस झील ने निगले थे कई तपते हुए दिन
उस झील में अब चाँद दिखाई नहीं देता
कोई भी मेरे जख्म पे मरहम नहीं रखता
इस दर्द की कोई भी दवाई नहीं देता
हर शहर हरेक गांव बहुत चीख़ रहा है
दिल्ली को लखनऊ को सुनाई नहीं देता
कुछ बात तो हुई जरूर है कि इन दिनों
आँखों को तेरा ख्वाब तराई नहीं देता
(2)
तमाशा बन गए हैं हम तमाशा देखिये क्या हो
पराये लोग हैं इनमे शनाशा देखिये क्या हो
वही क़ातिल वही मुंसिफ भी है उसके हवाले से
हमारे क़त्ल का पूरा खुलासा देखिये क्या हो
हमारी प्यास को नीलाम करने की मुनादी पर
बजा तो है कहीं पर झुनझुना सा देखिये क्या हो
चराग़े आखिरे शब और थोड़ी देर भड़केगा
उजाला फूटते ही मर्सिया सा देखिये क्या हो
कोई टहनी तो क्या अब एक भी पत्ता नही हिलता
शज़र के वास्ते कुछ अब बुरा सा देखिये क्या हो
(3)
पत्थर के शहर में हैं पथराई हुई ऑंखें
ख्वाबों से परीशां हैं मुरझाई हुई ऑंखें
तहज़ीब के हलके में बे अदबी से वाकिफ़ हैं
घबराए हुए चेहरे घबराई हुई ऑंखें
ये सनअते हक़ है तो इसमें क्या बुराई है
लहराई हुई ज़ुल्फ़ें इतराई हुई ऑंखें
बेगाने हों अपने हों या लोग हों अनजाने
इस भीड़ में रहकर भी तन्हाई हुई ऑंखें
मुंसिफ की ज़रूरत की बेकार की बाते हैं
तहरीर सी पढ़िए तो घबराई हुई आँखें
एक अर्ज़े वफ़ा की थी हमने भी रक़ीबों से
उस दिन से बहुत ज़्यादा रुसवाई हुई ऑंखें
(4)
हमारे बाद रहेगी ये रहगुज़र तन्हा
नदी के सूखते ही हो गया सागर तन्हा
खला में ढूंढने वालों ज़मीन पे देखो
सड़क पे दौड़ रहा है ये अब शहर तन्हा
किसी जगह पे ठहरना तो ध्यान में रखना
किनारे हो गयी आती हुई लहर तन्हा
चराग रखके हथेली पे चल रहा हूँ मैं
किसी सवेरे की कोशिश में रात भर तन्हा
(5)
बिछड़ते वक़्त बड़ी बेबसी से तकती रही
फिर उसके बाद फ़िज़ा देर तक दहकती रही
कोई चराग़ था न जुगनू न चाँद न तारा
अकेली रात सवेरे तलक सिसकती रही
न चूड़ी खनकी न पाज़ेब न कोई पायल
बड़ी मलूल हवा बादलों को तकती रही
खुद अपनी प्यास ने बेचैन कर दिया इतना
नदी किनारों पे अपना ही सिर पटकती रही
हमारे बाद भी जारी है खुशबुओं का सफर
हमारे बाद भी हर्फ़े वफ़ा महकती रही
(6)
सुबह होने तक खुद अपनी मौत मर जायेगी रात
जैसे गुज़री है उसी तरह गुज़र जायेगी रात
चाँद की ठंडी सुलगती आंच से झुलसी हुई
मेरी तरह सिर्फ आँखों में उतर जायेगी रात
ओस की चादर में लिपटीं दुल्हनों सी घास की
सुब्ह की पहली किरन से मांग भर जायेगी रात
तुम अगर चाहो तो सदियों तक सवेरा ही न हो
मैं अगर चाहूँ तो पल भर में गुज़र जायेगी रात
हाथ में सूरज को बस पत्थर उठाने दीजिये
किरचा किरचा आईने जैसी बिखर जायेगी रात
हम चराग़े शब् चराग़े शब् की किस्मत है यही
हम उधर ही जायेंगे जब भी जिधर जायेगी रात
(7)
जिस्म से बैर तो साये से वफ़ादारी क्यूं
भले चंगे हो अगरचे तो ये बीमारी क्यूं
बिखर गए है ख़लाओं में हम धुआं जैसे
तो बरख़िलाफ़ हवाओं की तरफदारी क्यूं
बहुत से ख्वाब लड़कपन के साथ छूट गए
बहुत से ख्वाबों की बाक़ी है देनदारी क्यूं
गई रुतें कभी अपनी न हो सकीं तो फिर
नई रुतों की वही शक्ल इतनी प्यारी क्यूं
वो नज़र जो कभी पत्थर बना गयी थी मुझे
उसी नज़र का नशा आज तक भी तारी क्यूं
(8)
सूखे पेड़ों में हौंसले रक्खे
हम परिंदों ने घौंसले रक्खे
चश्मे शबनम ने सब्जाज़ारों पे
कितने रंगीन सिलसिले रक्खे
कोई ग़ैरत सवार थी सिर पर
हमने पानी गले गले रक्खे
उम्र भर हमने तो परस्तिश की
उम्र भर तुमने फासले रक्खे
अपनी यादों के तपते सहरा में
तेरी यादों के ज़लज़ले रक्खे
सनअते हक़ भी एक मुसीबत है
आजु बाजू में मनचले रक्खे
(9)
मेरे होने में पोशीदा है न होने का मतलब
कैसे समझाऊं मैं तुझको खोने का मतलब
धरती डोली कांपा सूरज उजड़ गयी दुनिया
रोने वाले ही समझेंगे सबके रोने का मतलब
कुछ मांगे से नहीं मिलेगा दुनिया के रखवाले से
पत्थर है भगवान नहीं इस औने पौने का मतलब
ध्यान साधना जप तप पूजा सब विभ्रम हैं निष्फल हैं
समझ सको तो समझो बंजर धरती बोने का मतलब
मन्दिर मस्ज़िद गुरुद्वारे में रहने वाला क्या जाने
क्या होता है खोने का ग़म क्या है खोने का मतलब
बहुत सुना प्रकाश पुंज है तू ही उजाला देता है
बुझा दिया क्यूं, भूल गया क्यूं दीपक होने का मतलब
(10)
सिर्फ़ मैं और तू नहीं बीमार था परमात्मा
बेबसों पर कितना अत्याचार था परमात्मा
हर तरफ़ रोती बिलखती भीड़ थी कोहराम था
आदमी की तरह ही लाचार था परमात्मा
जल रहीं थी हर तरफ सौ सौ चिताएं एक साथ
सब अंधेरे में थे और गुलज़ार था परमात्मा
एन मौके पर ज़रुरत पड़ गयी तो सच खुला
उर्वशी और रम्भा का दरबार था परमात्मा
एक ही झौंके में दीपक को बुझाकर ले गया
पीठ पर पीछे से करता वार था परमात्मा
आस्तिक हूं इसलिए ही अपने मन के खेत से
काट डाला सिर्फ़ खरपतवार था परमात्मा
बंद कमरे में किसी लाचार पर हंसता हुआ
बाल विधवा से छिना श्रृंगार था परमात्मा
उफ़ हमारी बेकसी ये बेहिसी ये बेबसी
कुछ नहीं इन सबका उपसंहार था परमात्मा
मुझमें उसमें फ़र्क़ कोई भी नहीं है इन दिनों
मैं भी था बेज़ार तो बेकार था परमात्मा
हम बुज़ुर्गों से सुना करते थे उनके दौर में
सबकी सुनता था तो इज़्ज़तदार था परमात्मा
(11)
अपना हत्यारा हूं मैं
वक़्त का मारा हूं मैं
मोच से लाचार पांव
मन से बंजारा हूँ मैं
क्या न खोया इस बरस
ज़िन्दगी हारा हूं मैं
रौशनी खोता हुआ
डूबता तारा हूं मैं
हाय क़ुदरत का निज़ाम
क्या क्या न हारा हूं मैं
पानियों के बीचो बीच
सूखती धारा हूं मैं
(12)
क़ातिल कहने वाले मेरा अंतर्मन भी देख
बिन बादल बरसात बरसता ये सावन भी देख
दावानल ने तहस नहस कर डाला है सब कुछ
सिर्फ़ राख के ढेर बचे हैं अब ये वन भी देख
आर्तनाद है चीत्कार है कोहराम भी है
चिंताओं की चिता में जलते अंतर्मन भी देख
रेत के दरिया में डूबा हूं उबर नहीं सकता
कश्ती मांझी तिनका सबका मनरंजन भी देख
मेरी नाकामी पर ताना देने वाले सुन
कितना सूना सूना है घर आंगन में भी देख
कालिख़ का टीका जैसा है माथे पर ये घाव
फांसी के फंदे सा हाथों में कंगन भी देख
(13)
तुम्हारी वन्दना का फल मिला है
मुझे उजड़ा हुआ जंगल मिला है
सियासत में तुम्हारी साज़िशों से
बिछौना ओढ़ना कंबल मिला है
मुझे रस्ते में हमसाया मेरा ही
बहुत बेकल बहुत घायल मिला है
मेरी आँखों में दीपक जल रहा है
बड़ी मुश्किल से ये एक पल मिला है
हमारे पूण्य में भी पाप हावी
हमें सूखा हुआ बादल मिला है
हलक में डाल दो तेज़ाब जैसा
बवक़्ते मर्ग गंगाजल मिला है
(14)
बंट गए है रिश्ते नाते सारे मां के सामने
दूर तक बंज़र जमीनें आस्मां के सामने
उस जहां में कौन कैसा है कहां है क्या पता
इस जहां में लपटें ठंडी हैं धुआं के सामने
आप अपनी फ़िक्र अपने ज़िक़्र की चर्चा करें
कोई तो तसवीर उभरे कारवां के सामने
बदगुमानी बदमिजाजी के बहुत इल्ज़ाम हैं
मुन्सिफों इनको भी लाओ दास्तां के सामने
बंट गए है रिश्ते नाते सारे मां के सामने
दूर तक बंज़र जमीनें आस्मां के सामने
उस जहां में कौन कैसा है कहां है क्या पता
इस जहां में लपटें ठंडी हैं धुआं के सामने
आप अपनी फ़िक्र अपने ज़िक़्र की चर्चा करें
कोई तो तसवीर उभरे कारवां के सामने
बदगुमानी बदमिजाजी के बहुत इल्ज़ाम हैं
मुन्सिफों इनको भी लाओ दास्तां के सामने
(15)
धूप के इस तपते सहरा में धूल और धुआं बरसते हैं
मौसम मौसम आग लगी है बादल कहां बरसते हैं
यहां यास है यहां प्यास है साया है न हमसाया
जहां प्यास का मोल नहीं है बादल वहां बरसते हैं
दहकानों से दूर चलो अब बस्ती छोड़ो बंजारो
आओ मिलजुलकर खोजेंगे बादल कहां बरसते हैं
फसले गुल हो दौरे खिंज़ा हो मौसम यकसां रहता है
जिनको सब आंखें कहते हैं बादल यहां बरसते हैं
धूंपें सनकी पागलपन में झुलसाती दहकाती हैं
इधर खुशकसाली रहती है बादल वहां बरसते हैं
(16)
जो हार जाओ तो खुद को ज़लील मत करना
सबूत लाख हों लेकिन अपील मत करना
अदालतों का तशककुर वजा सही लेकिन
जो सच को सच कहे ऐसा वक़ील मत करना
तमाम ज़ुल्मों तशद्दुद के बावजूद ए दोस्त
हम इन दिनों भी सलामत हैं फील मत करना
अभी बुजुर्गों की अज़मत के निशां बाक़ी हैं
विरासतों को अभी खील खील मत करना
दयारे गैर की तन्हाई मार डालेगी
तालुकात की राहों को सील मत करना
जो चाहते हो की इज़्ज़त करें बड़े छोटे
ज़मीर बेच कर कोई भी डील मत करना
(17)
माना कि है हराम तबीयत उदास है
लाना इधर भी जाम तबीयत उदास है
बरसे बिना इधर से घटा भी गुज़र गयी
ऐसे में तिशनाकाम तबीयत उदास है
क्या राम क्या रहीम जो दे उसका शुक्रिया
कोई हो इंतज़ाम तबीयत उदास है
जाहिद हमारी शाम की तौहीन तो न कर
तौबा भी है हराम तबीयत उदास है
क़तरा ही संमन्दर से मिले प्यास तो बुझे
छलके नज़र का जाम तबियत उदास है
(18)
मुझे ज़रा सी हयात दे दो मुझे ज़रा सी शराब दे दो
ज़िन्हें मैं कांटे सा चुभ रहा हूँ उन्हें महकता ग़ुलाब दे दो
मैं एक पत्थर था रास्ते का तुम्हीं ने मंदिर में लाके रक्खा
कभी मुझे भी ख़िताब दे दो कभी मुझे भी ग़ुलाब दे दो
ये आंखें हैं संगलाख धरती नमी बची है न कोई क़तरा
ये एक मुद्दत से जागती हैं इन्हे भी कोई तो ख़्वाब दे दो
तुम्हारे मंदिर तुम्हारी मस्ज़िद हमारे हिस्से में मैक़दे हैं
सबाब चाहो तो लब भिगो दो अज़ाब चाहो अज़ाब दे दो
मैं एक पहेली सा हो गया हूँ वज़ह मुझे भी पता नहीं है
जवाब में भी सवाल दे दो सवाल में भी जवाब दे दो
(19)
शराब रौनके गुल है शराब मौसम है
कोई ऐसे में करे क्या ख़राब मौसम है
कभी हमारी नज़र से भी देख दुनिया को
सवाल जो भी हो सबका जवाब मौसम है
बरस रही है घटाओं के संग प्यास मेरी
शबे फिराक़ में कितना ख़राब मौसम है
लचकती टहनी की अंगड़ाइयों के पसमंज़र
अज़ाब है यही मौसम सबाब मौसम है
हमारे ज़िस्म पर बेचैनियों की कौंपल हैं
और इनके फूटने का इज़तीराब मौसम है
(20)
मुट्ठी में है आसमान तो बाहों को फैलाएं क्या
कदमों में है धरती तो फिर जोड़ें और घटाएं क्या
सबके सब मशगूल बहस में मुद्दा क्या है पता नहीं
ऐसे लोगों की बस्ती में जागें और जगाएं क्या
चाँद रख दिया चौराहे पर तारे टांके जुगनू में
रातों के अनचाहे मंज़र रोएं और रुलाएं क्या
ऐसे रिश्ते भाड़ में जाएं अपनों में बेगानापन
घर होकर भी जो घर न हो उसमें आएं जाएं क्या
रिश्तों की सरसब्ज़ ज़मीनें बंज़र में तब्दील हुईं
बादल इन पर क्यूँ कर बरसें बरसें तो बरसायें क्या
(21)
बाजुओं को तौलेंगे कश्तियाँ जला देंगे
नाखुदाओं की सारी बस्तियां जला देंगे
जलते हुए सूरज को बर्फ़ में दबा देंगे
गुनगुनी सी धूपों से सर्दियां जला देंगे
अब हवा से कह भी दो रेत से नहीं खेले
अब दरख़्त धूलों की ज़रसियां जला देंगे
बाड़ किसको खाएगी बाढ़ क्या डुबोएगी
फ़स्ले गुल में यादों की बस्तियां जला देंगे
(22)
करवटें गिन रहा हूँ अभी
सलवटें गिन रहा हूँ अभी
आँख में आँख मत डालना
मैं लटें गिन रहा हूँ अभी
तेरे कूँचे में भटका हुआ
चौखंटें गिन रहा हूँ अभी
पास आती हैं नज़दीकियां
आहटें गिन रहा हूँ अभी
कितनी आसां हुई आज तक
झंझटें गिन रहा हूँ अभी
तेरे माथे पे हों या मेरे
सलवटें गिन रहा हूँ अभी
कितने तारे मेरे साथ थे
पौ फटे गिन रहा हूँ अभी
(23)
कोई तो था जो बहुत देर से अंदर निकला
मैं जिसे झील समझता था समन्दर निकला
ज़रा सी गर्द हटाई थी आईने से अभी
तो रौशनी का सफर कितना तेज़तर निकला
रूह में भर गयी है ताज़गी गुलाबों की
आज मैं अपने आप को ज़रा छूकर निकला
फज़ा में तैर गयी दूर तलक खुशबु सी
हमारी सोच का जंगल बहुत बेहतर निकला
बदल दिया है कि मौसम को खुशमिज़ाज़ी ने
आज सूरज भी चाँद तारों से मिलकर निकला
ना कोई पत्थर है न कंकड़ ना कोई कांटा
दूर तक देर तक रस्ता बड़ा बेहतर निकला
(24)
पहचान अँधेरे में रक्खी हुई बोतल है
आँखों का नशा है और आँखों से ही ओझल है
खवाबों के पुलिंदों का एक बोझ लिए जागा
मन तेरा हो या मेरा ये मन बड़ा चंचल है
खुलते ही नहीं अक्सर सोचों की कलाई से
कंगन हो या चूड़ी हो दोनों में ही हलचल है
शहरों में है बेअदबी गांवों में बदमिज़ाज़ी
थोडा सा बचा है जो तहज़ीब का जंगल है
हसंते हुए रो देना रोते हुए हंस देना
दुनिया ने कहा छोडो ये शख्स तो पागल है
बह जाये तो छू लेना रुक जाये तो चुप रहना
आँखों में तेरी मेरे अरमानों का काज़ल है
(25)
खिड़की है बंद ताज़ा हवा कौन लाएगा
सब लोग ख़ुदा हैं तो ख़ुदा कौन लाएगा
तपते हुए सहरा पे पांव तंज़ कसे हैं
बारिश के लिए दस्ते दुआ कौन लाएगा
उठ्ठी तो है छोटी सी घटा करवटें लेकर
पर इसमें बरसने की हया कौन लाएगा
छांव की तलब धूप के अफ़साने लिए है
इस दर्दे मुजस्सम की दवा कौन लाएगा
धूपों से भर दिए सभी अख़बार के पन्ने
ऐसे में छांव बादे सबा कौन लाएगा
हर सुब्ह नया आफ़ताब ले तो आये हम
अब देखना है बादे सबा कौन लाएगा
✍️देवेश त्यागी
A ब्लॉक, फ्लैट नंबर 24,
सोमदत्त सिटी, जाग्रति विहार,
मेरठ, 250004
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8630722128