निकल पड़े घर-बार छोड़कर अपनी क्षमता, प्रतिभा को लेकर
राजपथ के आह्वान पर कब किसका तन-मन ठहरा है
आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर जहरीले साँपों का पहरा है।
घूम-फिरकर चंद वे ही लोग सत्ता में आ जाते हैं।
कभी इस दल से, कभी उस दल से, हम दलदल में फँसते जाते हैं
बेटा मुख्यमंत्री, बाप मंत्री, भाई का संसद में आसन है
ये लोकतंत्र नहीं केवल कुछ परिवारों का शासन है।
अरबों-खरबों के घोटाले इनके साए में पलते हैं।
न्याय और धर्म भी इशारों पर इनके चलते हैं।
साज़िशों का ताना-बाना देखो कितना गहरा है
आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर जहरीले साँपों का पहरा है
नोटों के हार पहनकर हैलीकाप्टर में उड़ते
ये उन लोगों के मसीहा हैं
जो भूख से खुदक़शी करते
लंबी-लंबी लाइनें बेरोजगारों की लग जाती हैं।
नौज़वान बेटियाँ अपनी पुलिस के डंडे खाती हैं
झूठे वादे, झूठी कसमें, झूठे इनके भाषण हैं
वोटों के व्यापार के लिए ही करते ये आरक्षण है।
सत्ता के गलियारों में हर चेहरा नकली चेहरा है।
आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर ज़हरीले सौाँपों का पहरा है
पाँच हजार करोड़ का एक उद्योगपति घर बनाता है।
घर की छत पर फिर देखो हैलीपैड बनवाता है
कहने को आज़ाद हैं हम, पर दासता की वही कहानी
लाखों-करोड़ों को नहीं मयस्सर पीने का पानी है।
कितनी ही रैलियाँ निकालो या फिर तुम करो रैला
गंगा का पानी अब सब जगह हो गया मैला
कोई नहीं कुछ सुनने वाला शासन गूँगा-बहरा है।
आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर ज़हरीले साँपों का पहरा है।
✍️ आमोद कुमार, दिल्ली
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