फट गया लो मेघ सावन
आ गया लो मेघ आंगन
कह रही चारों दिशाएं
यह कभी टिकता नहीं है
रूपसी तो रूप की है
यह कली तो धूप सी है
आज है पर कल नहीं है
कल भी एक पल नहीं है
पकड़े रहना आशाएं
वक़्त फिर मिलता नहीं है
बरसेगा इक दिन सावन
बोलेगा तुझको साजन
बूँद का इतिहास मन है
सर सर सर बहता तन है
भीगी भीगी अलकाएँ
जल वहाँ रुकता नहीं है।
देख ले तू चाँद यारा
मेघ में भी और प्यारा
यात्रा रुकती नहीं है
मात्रा गिनती नहीं है
तोड़ दे तू वर्जनाएं
मन कभी मरता नहीं है।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ
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