बुधवार, 16 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'संकेत' एवं धामपुर की संस्था 'अनिल अभिव्यक्ति' द्वारा रविवार 13 अगस्त 2023 को साहित्यिक सम्मान-समारोह का आयोजन

साहित्यिक संस्थाओं 'संकेत' (मुरादाबाद) एवं 'अनिल अभिव्यक्ति' (धामपुर) की ओर से  कीर्तिशेष आशा विश्नोई की स्मृति में रविवार 13 अगस्त 2023 को साहित्यिक सम्मान-समारोह, दयानंद डिग्री कॉलेज मुरादाबाद में आयोजित किया गया जिसमें महानगर एवं अन्य क्षेत्रों के विभिन्न प्रतिभाशाली रचनाकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने की। मुख्य अतिथि सरिता लाल एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अर्चना गुप्ता एवं प्रमोद शर्मा प्रेम मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर, अशोक विश्नोई एवं दुष्यंत बाबा द्वारा किया गया। संयोजन अशोक विद्रोही का रहा। 

     तीन चरणों में संपन्न हुए इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में 'संकेत' की ओर से कीर्तिशेष आशा विश्नोई जी की स्मृति में डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम, मीनाक्षी ठाकुर, प्रो. ममता सिंह एवं मयंक शर्मा को अंग-वस्त्र एवं मानपत्र से अलंकृत किया गया।         द्वितीय चरण में 'संकेत' की ओर से 'गीत रत्न सम्मान -2023'  के प्रतिभागियों को अंग-वस्त्र एवं मान-पत्र अर्पित किए गए। इस वर्ग के सम्मानित रचनाकारों में डॉ. पूनम चौहान, नृपेन्द्र शर्मा सागर, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, चेतन विश्नोई, डॉ. प्रीति हुंकार, कंचन खन्ना, डॉ. अनिल शर्मा अनिल, डॉ. अर्चना गुप्ता, प्रीति सौरभ अग्रवाल, इंजी. राशिद हुसैन, डॉ. रीता सिंह, दुष्यंत बाबा एवं सत्येंद्र शर्मा तरंग को सम्मानित किया गया। तत्पश्चात् 'लघुकथा रत्न सम्मान 2023' वर्ग  में मीनाक्षी ठाकुर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ. पुनीत रस्तोगी एवं 'लघुकथा शिल्पी सम्मान-2023' वर्ग से धनसिंह धनेन्द्र, सरिता लाल अशोक विद्रोही, नृपेन्द्र शर्मा सागर, प्रियंका गहलौत, इन्दु रानी, रश्मि अग्रवाल एवं डॉ. अर्चना गुप्ता को सम्मानित किया गया। 

     साहित्यिक संस्था 'संकेत' की यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ रचनाकार  अशोक विश्नोई ने कहा कि संस्था का लक्ष्य सदैव ही उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना रहा है। भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन समय-समय पर किये जाते रहेंगे। 

   कार्यक्रम के तृतीय चरण में एक संक्षिप्त  काव्य संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें मीनाक्षी ठाकुर, प्रो. ममता सिंह, मयंक शर्मा, डॉ. प्रमोद कुमार प्रेम, डॉ. अनिल शर्मा अनिल, सत्येंद्र शर्मा तरंग, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, पूजा राणा, चेतन विश्नोई ,चक्षिमा भारद्वाज, सरिता लाल, डॉ अर्चना गुप्ता ने रचना पाठ किया। कार्यक्रम में योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ मनोज रस्तोगी, श्रीकृष्ण शुक्ल, संजय सक्सेना, आवरण अग्रवाल, फक्कड़ मुरादाबादी, नकुल त्यागी, राम दत्त द्विवेदी, काले सिंह साल्टा आदि  साहित्यकारों सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। अशोक विद्रोही द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।

















































सोमवार, 14 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अगस्त 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 अगस्त 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । सरस्वती वंदना राम सिंह निशंक एवं संचालन अशोक विद्रोही ने किया । 

अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा ....

आज प्रातः की मधुबेला में सकल मन हरषाया।  

एक बरस के बाद यह शुभ 15 अगस्त आया। 

मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ....

दुनिया भर में घूम लो सारा जग लो छान । 

सबसे अच्छा देश है अपना हिंदुस्तान। 

विशिष्ठ अतिथि के पी सिंह सरल ने कहा ....

गिद्ध सर्प अरु नेवले करें अनोखा मेल। 

खेल रहे मिल बैठकर तरह-तरह के खेल।।

 योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा ......

हम तुलसी कबीर के जाये सिया राम मय सब जग जानी,

ढाई आखर में ही पढ़ली हमने सारी राम कहानी। 

अशोक विद्रोही ने कहा- 

वो जान देके भी हमें जीना सिखा गए। 

रंग दे बसंती चोला अमर गीत गा गए।

 सुखदेव भगत राजगुरु चूम के फंदे 

मां भारती की आरती में सिर चढा गए ।

राम सिंह निशंक ने कहा 

स्वर्ग से बढ़कर धरती अपनी 

छवि इसकी अभिराम है । 

सष्य श्यामला धरती इसकी 

कण-कण में भगवान है । 

डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ....

हम देश के हर फैसले पर 

ऐतराज जताते हैं 

और तो और 

अपनी ही हार पर  

जश्न मनाते हैं । 

वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने पढा .....

ज्ञानी तुम हो,ज्ञाता तुम हो अपने भाग्य विधाता तुम हो।

 जिसकी पूजा करते हो तुम उसके भी निर्माता तुम हो। 

राजीव प्रखर ने कहा......

अम्मा ऑंसू भूलकर, करती है ऐलान।

तारा मेरी ऑंख का, माटी पर क़ुर्बान।

ओंकार सिंह ओंकार ने कहा....

तीन रंगों से है बना, दिया तिरंगा नाम । 

झंडा हिंदुस्तान का अद्भुत इसके काम। 

 विवेक निर्मल ने कहा....

शहरों की आपाधापी से मन ऊबा तब यह सोचा काश हमारा भी एक छोटा सा घर होता गांव में।  

कृपाल सिंह धीमान ने कहा .... 

सूखे में जवां होंगे लू में मुस्कुराएंगे 

हम देश के गुलशन में वह फूल खिलाएंगे 

 नकुल त्यागी का कहना था .....

 मेरा भारत महान देश जो बंटना था बंट चुका 

अब और नहीं बंटेगा। 





























::::::प्रस्तुति:::::

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष 

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति

गुरुवार, 10 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का व्यंग्य .... लाल टमाटर


रसोई घर में खड़े -खड़े मैं अचानक ही अच्छे दिन के ख्यालों में खो गयीं, जब मेरे किचन में टमाटर सड़ते ..म...म..... मेरा मतलब है कि रखे रहते थे.

बीस रुपये किलो टमाटर खरीद -खरीद कर न जाने कितनी बार टमाटर की चटनी, साॅस थोक में बनाकर रखी है. रोज नये -नये व्यंजनों की खुश्बू से महकती रसोई को न जाने महँगाई डायन की कैसी नज़र लगी कि नालायक  टमाटरों को लेकर ऐसी  उड़ान  छल्ली बनी  कि नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रही है.

टमाटर की  चढ़ती रंगत और यौवन देखकर, घमंडी सेब -अनार तो पहले ही हीनभावना की झुर्रियों से ग्रसित होकर वृद्ध आश्रम की ओर रवाना हो चुके हैं.

उधर  रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन भोजन खा- खाकर बच्चों के मुँह उतरे हुए हैं, जिन्हें देख -देखकर कलेजा मुंँह को आ रहा है, कह रहे हैं कि हे माता जी !!आपने सावन के नाम पर सब्जी में प्याज तो पहले ही डालनी बंद कर दी थी, जीरा आठ सौ रुपये किलो बताकर सब्जी में जीरा भी नहीं डाल रहीं थीं . अब टमाटर भी बंद करके सब्जी की जीरो फिगर बना दी है.

 बार- बार ,चीख -चीखकर सवाल पूछ रहे हैं मुझसे, क्या है सब्जी  में ? लप्पू  सी सब्जी की झींगुर सी शक्ल है,इसे खायेगें हम !ऐसी सब्जी खिला-  खिलाकर हमें हीरो से जीरो  बना दिया है

उफ्फ़ ये मजबूरी !! एक एकअब इन्हें कौन समझाए  कि बेटा टमाटर के चक्कर में बजट ,कब से  घर के बाहर गेट पर ही  जीभ निकाले औंधे मुंँह पड़ा हुआ है.  हे सब्जियों के शंहशाह!, रंगबिरंगी चटनियों के  सम्राट , हे रक्ताभ ! हे !रक्त को बढ़ाने वाले.!...काहे... ?काहे गरीब का रक्त सुखाते हो? हे पिज़्ज़ा-  वर्गर की शान बढ़ाने वाले! हे !मोमोज  की नारंगी चटनी के स्वाद! !   देखिएगा !!..आपके बिना दम आलू  कैसे  बेदम होकर ज़मीन पर पड़ा अपनी अंतिम सांसे ले  रहा है, काजू -कोफ्ता आपके अभाव में अपने अस्तित्व  की रक्षा करते- करते,कब का वीरगति को   प्राप्त हो  चुका है.शाही -पनीर का शाही तख्त आपके सहारे के बिना अपने चारो पाये तुड़वाकर धड़ाम हो चुका है, गोभी- आलू को तो मानो लकवा ही मार गया और मुल्तानी छोले - चावल तो  आपके  वियोग मे  संभवतः मुल्तान को ही निकल लिये, काफी दिन से दिखाई  ही नहीं दिये.वैसे भी आजकल एक देश से दूसरे देश चोरी छिपे निकलने का नया  मौसम शुरू हो चुका है. हे सुंदर मुखड़े और खट्टे स्वाद वाले क्या  आपको ज्ञात नहीं कि दाल -मखनी  आपके  बिना वेंटिलेटर पर है और आलू- टमाटर की सदाबहार सब्जी तो मुझसे रूठकर ऐसी गयी है कि शायद अब  किसी भंडारे में ही जी भर कर मिलेगी वो भी अगर  बाँटने वाले ने पूड़ी पर रखकर  न दी तो....! वरना सारी सब्जी तो पूड़ी ही सोख लेंगीं.... !अरे जब भंडारा कर ही रहे हो तो क्यों दो चार थैली भर कर नहीं  देते लोगों को.! 

हे !सबसे बड़े महंगाई सम्मान से विभूषित, कमल के समान कांतिमान!!लाल टमाटर..!!.आपके बिना दाल -फ्राई का तड़का  लड़खड़ाते हुए अपनी अंतिम सांस तक आपको पुकारता रहा,परंतु  आपका कठोर हृदय फिर भी  नहीं पसीजा.  क्या तहरी के चावल, आलू,मटर -गोभी,   की चीखें भी आपको विचलित  नहीं कर सकीं ? आपके बिना वे किस प्रकार  दुर्गति को प्राप्त हुए ,  यह भी ज्ञात नहीं आपको?उन्हें क्या मालूम था कि आप जैसे सस्ते,हर मौसम में उपलब्ध  होने वाले ,अपनी औकात भूलकर सातवें आसमान पर जाकर ऐसा बैठ जायेगें  कि नीचे ही नहीं उतरेगें.    

टमाटरों की भारी किल्लत देखते हुए, कल  मैने अपनी दो चार पुरानी- धुरानी  कविताएँ, हिम्मत करके घर के बाहर बने  चबूतरे पर खड़े होकर  आते- जाते लोगों को सुनाने का   प्रयास भी किया ,मगर मजाल क्या ...!!किसी ने मेरी तरफ टमाटर उछालना तो दूर  ठीक से सुना भी नहीं मुझे ..., मूर्ख !!गैर साहित्यिक कहीं के...!! और तो और अपने हाथ की सब्जी का थैला दुबकाते हुए , नजरें नीची  किये चुपचाप मेरे सामने से ही निकल गये.. . !! अरे टमाटर  थैले में होते ,तभी  तो उछालते न  मेरी तरफ.....!!. कंगले कहीं के...!! हुँहहह... "

 हे सब्जियों की पवित्र आत्मा !!क्यों त्योहारों पर नाटक कर रहे हो, बात को समझो न टमाटर जी, अगर नीचे नहीं उतरे तो मेहमानों के सामने बहुत ज्यादा नाक कट जायेगी. अपनी दूर की बहनों लौकी- तोरई को देखो ज़रा... !!बेचारी कितनी सज्जन हैं, ज़रा भी भाव नहीं खातीं  कभी..!!और आज तक कभी नखरे भी नही किये उन्होंने ,..!!बेचारी हर परिस्थिति में शांत ही रहती हैं.और  बाज़ार में बैंगन के भुर्ते की आत्महत्या के बाद  तो आपके बिना बची -खुची सारी सब्जियांँ भी अज्ञात वास को चली गयीं हैं, तबसे यही लौकी तोरई रसोई घर में डटी हुई हैं.अभी टमाटर जी के चित्र के समक्ष यह  विनती चल ही रही थी कि  थी कि तभी बाहर से सब्जी वाले की आवाज आयी, 

टमाटर लाल, टमाटर लाल

ले लो जिसकी जेब में माल

मैं दौड़कर गेट पर गयीं और  गेट की झिर्रियों में  टमाटरों के दिव्य दर्शन हेतु अपनी आँखें टिकायीं  ही थीं कि सब्जी वाले की पैनी निगाहें झिर्रियों को भेदते हुए, मेरी आंखों पर पड़ गयीं. उसने  कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए और ज़ोर से आवाज़ लगानी शुरू कर दी.. 

टमाटर लाल, टमाटर लाल

कहाँ छुपे सारे कंगाल

मैं सकपकाकर पीछे हट गयीं.पता नहीं सब्जी वाला सब्जी बेच रहा था या जले पर नमक छिड़क रहा था,  खैर...!मैं बड़ी मुश्किल से रुलाई रोकते हुए अंदर की ओर भागी और गुस्से में अपनी कविताओं की डायरी को  आग के हवाले कर दिया... "जाओ! दफ़ा हो जाओ!जब तुम टमाटर तक न ला सकीं तो पुरस्कार क्या खाक़ लाओगी*! और टमाटर वाले की आवाज़ दूर होती जा रही थी... टमाटर लाल, टमाटर लाल, कहाँ छुपे सारे कंगाल... ले लो जिसकी जेब में माल

✍️मीनाक्षी ठाकुर

मिलन विहार

मुरादाबाद

बुधवार, 9 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में 9 अगस्त 2013 को रायबरेली निवासी नवगीतकार डॉ. शिवबहादुर सिंह भदौरिया के निधन पर श्रद्धांजलि सभा

 


साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में दीनदयाल नगर, मुरादाबाद स्थित साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ के आवास पर 9 अगस्त 2013 को एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई जिसमें रायबरेली निवासी वरिष्ठ नवगीतकार डॉ. शिवबहादुर सिंह भदौरिया के आकस्मिक निधन पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकारों ने भदौरिया जी के निधन को हिन्दी साहित्य-जगत की अपूर्णनीय क्षति बताते हुए कहा कि भदौरिया जी की गीत-कृति ‘पुरवा जो डोल गई’ हिन्दी साहित्य जगत में अत्यधिक चर्चित रही और उनकी अन्य गीत-कृतियों-‘शिंजनी’, ‘नदी का बहना मुझमें हो’, ‘लो इतना जो गाया’, ‘दर्द लौट आया’, ‘माध्यम और भी हैं’ तथा ‘गहरे पानी पैठ’ की साहित्य जगत द्वारा पर्याप्त सराहना की गई। गीत-नवगीत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों नवगीत दशक-दो तथा नवगीत अर्द्धशती में सम्मलित भदौरिया जी के गीत वास्तविकता के धरातल पर बड़ी ही सहजता से बतियाते हैं, उनके गीतों में विम्ब-विधान और शिल्प इतने प्रभावशाली ढंग से समाविष्ट हैं कि मिटटी की खुशबू से पाठक और श्रोता दोनों ही सराबोर हो जाते हैं।

इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकारों सर्वश्री माहेश्वर तिवारी, ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, आनन्द कुमार ‘गौरव’, डॉ. अजय ‘अनुपम’, डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’, मनोज ‘मनु’, डॉ. अवनीश सिंह चौहान, अंकित गुप्ता ‘अंक’, ओमकार सिंह ‘ओंकार’, सतीश ‘सार्थक’ आदि ने दो मिनट का मौन रखकर श्री भदौरिया को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।


रविवार, 6 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 6 अगस्त 2023 को आयोजित काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कालेज में रविवार 6 अगस्त 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। राम सिंह निःशंक जी द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरम्भ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा .... 

चाहता मैं हूॅं मुझे पास में आने दीजै। 

एक हो जाउॅंगा बस साथ में रहने दीजै।

 मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने सुनाया- 

अमन चैन का मैं हूॅं अब भी पुजारी,

 किसी आग का मैं शरारा नहीं हूॅं।

बहुत से तजुर्बे किए जिंदगी में,

मैं बेकार जीवन गुजारा नहीं हूॅं। 

 विशिष्ट अतिथि के रुप में राजीव सक्सेना ने सुनाया- 

सड़कों पर 

चौराहे पर‌ 

जीवन के दौराहे पर

 पल-पल बिकते 

हर जगह दिखते

काठ के लोग 

रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा -

देशवासियों देशभक्ति चाहिए, 

देश पर मर मिटने वाला व्यक्ति चाहिए।

के०पी० सिंह 'सरल' ने सुनाया- 

ज्यों-ज्यों कद युवा बढ़ा, गये बदलते नाम। 

पल्लू से पल्टा हुए, अब हैं पल्टूराम।।

राम सिंह निःशंक ने सुनाया- 

गर्मी बड़ा बबाल है, जी का है जंजाल।

घर में ए.सी. है नहीं, इसका बहुत मलाल।

  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे सुनाए-

 सही-ग़लत के पार है, सहनशक्ति का भाव। 

भूख सभी से पूछती, कब हैं आम चुनाव।। 

शहरों के हर स्वप्न पर, कैसे करें यक़ीन। 

उम्मीदों के गाँव हैं, जब तक सुविधाहीन।। 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने सुनाया- 

मेरी मीठे बेर से, इतनी ही फ़रियाद।

दे दे मुझको ढूंढ कर, शबरी युग सा स्वाद।।

जलते-जलते आस के, देकर रंग अनेक।

दीपक-माला कर गई, रजनी का अभिषेक।।

युवा कवि जितेन्द्र कुमार जौली ने सुनाया-

 देख मुसीबत घबराते हैं।

 वे पीछे ही रह जाते हैं।। 

जिसने मन में ठान लिया है;

 वे ही कुछ कर दिखलाते हैं। 

प्रशांत मिश्र ने सुनाया-

अपनों का आना सिर्फ हवा का झौंका है, 

चिता पर छोड़ आते समय कितनों ने रोका है।

 पदम बेचैन ने सुनाया- 

कब ऐसा होगा मेरा देश।

 न ही माफिया, न हत्यारे। 

प्यार परस्पर करेंगे सारे 

यही बुजुर्गों का सन्देश। 

 राशिद हुसैन ने सुनाया- 

जिंदा रहने को बहाना चाहिए,

 फिर वही मौसम पुराना चाहिए, 

गम को उसके भूल जाना चाहिए,

 दर्द हो तो मुस्कुराना चाहिए।