सोमवार, 2 मार्च 2020

हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार 1 मार्च 2020 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

 हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार 1 मार्च 2020 को कवि गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार, मुरादाबाद स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ओंकार सिंह ओंकार ने की ।मुख्य अतिथि श्री के.पी. सिंह सरल और विशिष्ट अतिथि - श्रीमती इन्दु रानी थीं
सरस्वती वन्दना  मनोज वर्मा 'मनु' ने प्रस्तुत की तथा
संचालन  श्री राजीव प्रखर ने किया

  गोष्ठी में जितेंद्र कुमार जौली ने कहा -
 कल तक जो ना कहा,
 वो आज मुख से बसन्ती बोली ।
आओ गब्बर मिलकर खेलें होली ।।

 के० पी० सिंह सरल का कहना था -
दिल्ली में शैतान ने, नग्न किया था नांच ।
मार काट के साथ ही, खूब लगाई आंच ॥

 ओंकार सिंह ओंकार ने कहा -
नफरतों की आग से बस्ती बचाने के लिए,
प्यार की बरसात से ज्वाला शमन करते चलें।

 प्रदीप शर्मा 'विरल' ने कहा -
 दिल के राज बताता क्यूँ है
अपने गीत सुनाता क्यूँ है।

इन्दु रानी ने कहा -
कैसे कहूँ के निगाहों पे पर्दे हैं गिराए गए
चाहत जो भी सियासती वही है दिखाए गए|

विकास मुरादाबादी ने कहा -
हालात-ए-दिल्ली पर गये सब लोग तिलमिला
घरवाले ये अपने ही घर को क्यों रहे जला

राशिद मुरादाबादी ने कहा-
ना जाने मेरा शहर इस क़दर वीरान क्यूँ है
उठ रहा धुआं, जल रहे हर तरफ मकान क्यूँ है

 राजीव प्रखर ने कहा -
मिलजुल कर ऐसे हटें, आपस के संताप।
कुछ उलझन कम हम करे, कुछ सुलझायें आप

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' का कहना था-
चलो फिरकापरस्ती की मिटायें तीरगी मिलकर
उगायें फिर मुहब्बत की सुनहरी रोशनी मिलकर
सियासत की हजारों कोशिशें बेकार जायेंगी
अगर रिश्तों में हम कायम रखेंगे ताजगी मिलकर

 अशोक विद्रोही ने कहा -
जो सैनिक कल बाढ़ में, बचा रहे थे प्रान
उनको पत्थर मारते, वाह रे हिन्दुस्तान

 मनोज वर्मा 'मनु' ने कहा -
फागुन तेरे आ जाने पर ना जाने क्या बात हुई
खुशियों से दिल झूम उठा जब रंगों की बरसात हुई

रामदत्त द्विवेदी का कहना था -
होली की चौपाई में फंस गए दर्शनलाल
लड़कों ने कर दी उन्ही की टोपी लाल
::::::::: प्रस्तुति ::::::::::
**जितेंद्र कुमार जौली
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9358854322












अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद ने किया मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल ,फक्कड़ मुरादाबादी , विवेक निर्मल और मोनिका मासूम को सम्मानित





























अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से रविवार  1 मार्च 2020 को महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकारों श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी', श्री विवेक 'निर्मल', श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल एवं श्रीमती मोनिका 'मासूम' को 'साहित्य मनीषी सम्मान' से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार  यशभारती माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि व्यंग्य कवि डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' एवं विशिष्ट अतिथि  अशोक विश्नोई थे। माँ शारदे की वंदना अशोक 'विद्रोही' ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से राजीव 'प्रखर' एवं आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' ने किया।

सम्मान-समारोह में उपरोक्त चारों सम्मानित साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर, अशोक विश्नोई, राजीव 'प्रखर',आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ'  एवं प्रशांत मिश्रा द्वारा आलेखों का वाचन भी किया ।
इस अवसर पर मोनिका शर्मा 'मासूम' ने अपनी सुंदर ग़ज़ल की सुगंध कुछ इस प्रकार बिखेरी -

"खयाल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई
मिरे वजूद की रंगत बदल गया है कोई
सिहर उठा है बदन, लब ये थरथराए हैं
कि मुझ में ही कहीं शायद मचल गया है कोई"

वरिष्ठ रचनाकार  विवेक 'निर्मल' ने अपने चिर-परिचित रंग में कहा -

"कुछ गर्मी कुछ सर्द समेटे बैठे हैं
सब अपने दुख दर्द समेटे बैठे हैं
एक बूढ़े ने जब से खटिया पकड़ी है
रिश्ते नाते फर्ज समेटे बैठे हैं।"

सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि श्री फक्कड़ 'मुरादाबादी' ने अपने हास्य-व्यंग्य से सभी को गुदगुदाते हुए कहा  -

"विवाह के पश्चात मित्रवर,
जब अपनी ससुराल पधारे।
वहाँ पूछने लगे किसी से,
मनोरंजन का साधन प्यारे।
श्रीकृष्ण शुक्ल ने  रचना-पाठ करते हुए कहा -

"राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।
हो भले दुष्कर सफर पर, हार कर मत बैठ जाना।
पथ की बाधाओं से डरकर, राह से मत लौट आना।।
विजयश्री जिस दिन मिलेगी, इक नयी पहचान होगी।
राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।।"

कार्यक्रम में डॉ मीना कौल, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', विजय शर्मा, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़', अशोक 'विद्रोही', मयंक शर्मा, आवरण अग्रवाल, एमपी 'बादल', राशिद 'मुरादाबादी', मनोज 'मनु', आशुतोष मिश्र, प्रशांत मिश्र, रवि चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।
::::::::प्रस्तुति:::::::
**राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस अनूठे आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपने चित्र सहित रचना साझा करते हैं । रविवार एक मार्च 2020 को हुए आयोजन में सर्वश्री रवि प्रकाश जी , संतोष कुमार शुक्ल जी, नृपेंद्र शर्मा सागर जी, प्रीति हुंकार जी, श्री कृष्ण शुक्ल जी, राजीव प्रखर जी, मनोज मनु जी और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं साझा कीं ..........













अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद की ओर से 29 फरवरी 2020 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

 अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच मुरादाबाद के तत्वावधान में  सभागार जिला बार एसोसिएशन में  युवा और राष्ट्र विषय पर काव्य/ विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार सक्सेना एडवोकेट ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला बार के महासचिव हरप्रसाद एडवोकेट कार्यक्रम रहे । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया।
  कार्यक्रम में वक्ताओं ने वर्तमान परिस्थितियों में युवाओं और विशेष कर युवा अधिवक्ताओं की भूमिका पर चर्चा परिचर्चा की। इस अवसर पर उपस्थित अधिवक्ता साहित्यकारों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से समाज में फैली हुई  कुरीतियों और नफरतों को समाप्त करने का प्रयास किया । कार्यक
 मोहम्मद जावेद आलम ने कहा  -
बादल है बदली है परछाई है
आसमां में देखो धुंध सी छायी है
सड़कों पर देख लो, फैला खून है
कोने  में  चुपचाप खड़ा,देखो कानून है।।
तंज़ीम शास्त्री ने कहा -
भूलकर भी ना कोई तू ऐसी भाषा लिखना ।
 नई नई परंपराओं से लड़ा  रहे है जो समाज को।
 ऐसे तत्वों के विरुद्ध तू  इंकलाब लिखना ।।
 अज़हर अब्बास नकवी ने कहा -
सच बोलते ही सर मेरा हो जाएगा कलम।
 खंजर  मेरे गले के निहायत करीब है।
 अनिरुद्ध उपाध्याय "आज़ाद" ने कहा -
दिल हल्का करने के लिए कोई मिलता ही नहीं यहां ।
 हर किसी ने बसा लिया है अपना अलग जहां ।।
 अरविंद कुमार शर्मा आनंद ने कहा -
 बहाया था दरिया वफाओं का हमने ।
 कि तोड़ा गुमान भी घटाओं का हमने ।
मयस्सर हुआ जो भी उसमें रहा खुश।
न मांगा जखीरा दुआओं का हमने।
 कार्यक्रम का संचालन करते हुए आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ" ने कहा -
 मरा हिंदू , मरा मुसलमान बताएंगे।
 सियासत वाले दंगे में मरा कब इंसान बताएंगे ।।
 कार्यक्रम में जयवीर सिंह एडवोकेट, मोहम्मद मुख्तार वारसी एडवोकेट, विशाल राठौर एडवोकेट, प्रमोद प्रत्येकी एडवोकेट, डॉ राकेश जैसवाल एडवोकेट आदि मौजूद रहे ।
   




::::::प्रस्तुति:::::::
आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
महासचिव
अधिवक्ता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 1 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की काव्य कृति "वीरों का वंदन" की मेजर अवध किशोर शर्मा द्वारा की गई समीक्षा


सर झुके बस उनकी शहादत में ,
जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में ।

समीक्षा का अर्थ है गुणों को प्रोत्साहन और दोषों का निवारण । आश्वासनों के बीच घिसटते जीवन की जगमगाहट को कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने श्रद्धांजलि स्वरूप रचित पुलवामा के शहीदों को समर्पित अपने काव्य संग्रह ' वीरों का वंदन ' में बूंद बूंद सहेजा है । निराशा का ताप भट्टी सा दाहक बन जाता यदि जीवन के आक्रोश को निकलने का रास्ता न मिलता । व्यवस्था के प्रति आक्रोश जनित विद्रोहों को कवयित्री ने रचनात्मक बनाने की पहल की । कवयित्री की मूल चेतना में समर्पित राष्ट्रीयता की अग्नि अपेक्षाकृत ज्यादा है । राजनैतिक स्थितियों के प्रदूषणों को भी कवयित्री ने भरपूर बचाया है । मरघट के अवसन्न भयावहता त्रासदी पथ दीपों की रोशनी में बदलने का प्रयास किया है । कविताओं में प्रसारित राष्ट्रीयता के ध्रुव बिंबों ने उनकी दृष्टि को प्रखरता दी है । राष्ट्रीयता बोध के साथ साथ शहीदों को नमन दीपक से उठती चुपचाप जलती हुई निष्कंप किरण है जिसके जीवन की सार्थकता दूसरों को अंधकार से ज्योति की ओर प्रवृत करने में हैं । कला कला के लिए या अपने पांडित्य प्रदर्शन जैसे भावों की तुष्टि की भावना कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती । कविताएं लयात्मक हैं और गेयता का आकर्षण उत्पन्न करने के लिए अपनी रचना तुकांत छंदों में की है । अपनी समूची रचना यात्रा में आपने किसी का अनुकरण नहीं किया और न ही किसी की अनुगामी बनी । अलंकार स्वतः समाहित हो गए हैं । मानवीकरण का प्रयोग सौंदर्य की अभिवृद्धि करता है । कहीं कहीं वज़्न कम होने के कारण काफिया खटकता है । वर्तनी संबंधी दोष मुक्त रचनाएं उत्सर्जक व प्रेरक हैं । श्रेष्ठ , सामयिक एवं प्रासंगिक ' वीरों का वंदन ' श्लाघनीय हैं इसकी सराहना होनी ही चाहिए ।

कृति - वीरों का वंदन (काव्य संग्रह)
रचनाकार - डॉ. रीता सिंह
प्रकाशक - साहित्यपीडिया पब्लिशिंग
मूल्य - ₹ 150
प्रथम संस्करण - 2020
**समीक्षक - मेजर अवध किशोर शर्मा
चन्दौसी ,जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत