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सोमवार, 7 मार्च 2022
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 6 मार्च 2022 को आयोजित 294 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों अनुराग रोहिला, रेखा रानी, रामकिशोर वर्मा , मोनिका शर्मा मासूम, राजीव प्रखर, मीनाक्षी ठाकुर, विवेक आहूजा, दुष्यन्त बाबा, डॉ शोभना कौशिक, सीमा रानी, इंदु रानी, डॉ पुनीत कुमार, अखिलेश वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल ,और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में तथा कंचन खन्ना की टाइप्ड रचना
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार 6 मार्च 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में रविवार 6 मार्च 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कवि राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरम्भ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा ---
रात दिवस ढूंढा तुम्हें पर ना पाया पार हे प्रभु जी
मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ---
ओंकार नफरत को मुहब्बत में बदलले नहीं देते हैं
कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते।
लोगों ने बिछाए हैं हर इक राह में कांटे
बेखोघ्फ मुसाफिर को जो चलने नहीं देते।
विशिष्ट अतिथि के रुप में केपी सिंह सरल ने कहा कि
नहीं जवानी रहे सर्वदा, यह तो ढलती जाती है।
जैसे बहती बर्फ नदी में तिल तिल घुलती जाती है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ---
गोलों के बीच,
तोपों के बीच
घुटता है दम,
अब बारूदी झौंकों के बीच।
चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा --
राजनीति में देखकर, छलछंदों की रीत।
कुर्सी भी लिखने लगी अवसरवादी गीत ||
सजा हुआ है आजकल, वादों का बाजार
सौदागर करने लगे, सपनों का व्यापार ।।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा ---
फांसे बैठा है मुझे यह माया का जाल
चावल मुझसे छीन लो, आकर अब गोपाल।
दफ्तर अपना धूप ने, पुन: दिया जब खोल ।
चण्ट कुहासा हो गया, आंख बचाकर गोल ॥
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा ---
लगे बदलने केंचुली फिर जहरीले नाग
चमचों ने सिलवा लिए सब रंगों के सूट
चढ़ती हांडी देखकर दावत लेंगे लूट
युवा कवि जितेन्द्र कुमार जौली ने कहा ---
चाहे एक खरीदिये, चाहें लीजै डिग्री
अब यूँ बिक रही, ज्यों सब्जी बाजार ॥
युवा कवि प्रशान्त मिश्र का कहना था ---
जिन्दगी एक शाम बन जाती हैं
जो सवेरा होने के इन्तजार में ढलती जाती हैं।
कवि नकुल त्यागी ने कहा ---
अतीत कितना भी सुन्दर हो वर्तमान बन नहीं सकता
मधुर कितना भी स्वप्न हो यथार्थ बन नहीं सकता।
कवयित्री इन्दु रानी का कहना था ----
गौरा पलकें खोलती, बोली भरकर शान ।
शिव जी की बारात में ही मेरा सम्मान ।
संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने आभार व्यक्त किया।
शनिवार, 5 मार्च 2022
गुरुवार, 3 मार्च 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज का मुक्तक संग्रह- प्रतिबिम्ब । वर्ष 1977 में प्रभायन प्रकाशन 41 ए, गांधी नगर, मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनके 200 मुक्तक हैं। कृति की भूमिका प्रो. महेंद्र प्रताप द्वारा लिखी गई ।
क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति
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डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
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उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
बुधवार, 2 मार्च 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की कृति ....लोकधारा 5 । यह कृति वर्ष 2021 में विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। इस काव्यकृति में उनकी सजल रचनाएं ,दोहा, मुक्तक और गीत समाहित हैं...
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मंगलवार, 1 मार्च 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के नवम्बर- दिसम्बर 1973 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के अक्टूबर 1973 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के सितंबर 1973 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के अगस्त1973 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के जुलाई 1973 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
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मुरादाबाद के साहित्यकार श्याम सुंदर भाटिया का संस्मरण - बाबा का बच्चों के प्रति काव्य प्रेम और जिगर के शहर में आखिरी पड़ाव । उनका यह संस्मरणात्मक आलेख प्रकाशित हुआ था मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक जागरण के 9 नवम्बर 1998 के अंक में विविधा पृष्ठ पर ....
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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित भारद्वाज की रचना ... उनकी यह रचना उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका 'प्रभायन' के जनवरी 1974 के अंक में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हुई है ।
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शनिवार, 26 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिव नारायण भटनागर साकी की कविता ---दीप शिखा जलती रहती है ....।उनकी यह रचना प्रकाशित हुई है साप्ताहिक मुरादाबाद वाणी के मंगलवार 4 नवम्बर 1969 के अंक में।मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले इस पत्र के प्रधान संपादक धर्मात्मा सरन और सम्पादक वैद्य विष्णुकांत जैन थे ।-
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरी लाल शर्मा की कविता ---अरुणिम आभा लेकर उतर रहा भू पर गांधी....।उनकी यह रचना प्रकाशित हुई है साप्ताहिक मुरादाबाद वाणी के मंगलवार 7 अक्टूबर 1969 के अंक में।मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले इस पत्र के प्रधान संपादक धर्मात्मा सरन और सम्पादक वैद्य विष्णुकांत जैन थे ।-
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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ज्वाला प्रसाद मिश्र ने रुद्राष्टाध्यायी का हिन्दी अनुवाद किया था जिसे वैंकटेश्वर प्रेस मुम्बई ने प्रकाशित किया । प्रस्तुत है इस संदर्भ में मुरादाबाद के पत्रकार डॉ माधव शर्मा का आलेख जो दैनिक हिंदुस्तान के 15 फरवरी 2018 के अंक में प्रकाशित हुआ था साथ में प्रस्तुत है पूरी कृति----–
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बुधवार, 23 फ़रवरी 2022
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत --मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
क्या होगा लिखने से भैया, क्या होगा छपने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
रखते थे किताब में हम, मोरपंख भी यादों में
रहे चूमते विद्या रानी, खाते कस्में बातों में
दही बताशा खा-खा कर, देते रहे परीक्षा जी
जाने कैसा स्वाद था वो, अम्मा की उस दीक्षा में
भूल गए हैं सब परम्परा, क्या होगा रटने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से
बंद-बंद हैं सभी किताबें, खुली नहीं बरसों से
यूं रखने का चाव सभी को, पैशन है अरसों से
नहीं पता है हमको साथी, क्या लिखना क्या गाना
हम तो ठहरे उस पीढ़ी के, जिसका मधुर तराना
कह रहा है सूरज अब तो, क्या होगा रोने से
मौन पड़े जब शब्द यहां तो, क्या होगा कहने से।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी
मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत