गुरुवार, 4 जुलाई 2024

मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के आवास पर कीर्तिशेष सुमन लाल जी की स्मृति में 11जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

 समाजसेवी कीर्तिशेष सुमन लाल जी की स्मृति में मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के मधुबनी स्थित आवास पर मंगलवार 11 जून 2024 को  काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।  

राघव सागर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मंसूर उस्मानी ने कहा ...

तंग आकर ग़लत बयानी से, 

हम अलग हो गए कहानी से। 

आदमी आदमी का दुश्मन है, 

अब सियासत की मेहरबानी से। 

 मुख्य अतिथि श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था - 

प्रिय मेरा विश्वास तुम्हीं हो, 

इस जीवन की आस तुम्हीं हो। 

बिना तुम्हारे कट न सकें जो, 

मेरे दिन और रात तुम्हीं हो।

 विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. माधुरी सिंह ने संबंधों की सच्चाई को सामने रखते हुए कहा - 

पुरुषों के जीवन में स्त्रियाँ 

बहुत महत्व रखती हैं, 

किंतु उनकी ग़ुलाम के रूप में। 

न जाने उनके ख़्वाब क्या हैं? 

वही जानें, 

वे तो पूरे होने से रहे। 

अरे, मित्रता कर लो न!

 हिम्मत तो करो। 

मेरे ख़्वाब में भी 

एक सुनहरा भविष्य है।  

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने अपनी पंक्तियों से परिस्थितियों का चित्र खींचा -  

आत्म मुग्धता ने किया, राजा को कमजोर। 

अपनी गलती खोजिए, क्यों करते अब शोर।। 

क्यों करते अब शोर, मिला बल जिनसे तुमको। 

सेहतमंद शरीर, बैठाया, घर में उनको। 

कहे अकिंचन प्रेम, जड़ों में रखें तरलता।

आत्म समीक्षा करें, बढ़े  न आत्म मुग्धता।। 

सरिता लाल की पंक्तियों में मन की वेदना इस प्रकार मुखर हुई - 

हर हॅंसती कली से पूछो तो जरा, 

ओस की बूंदों को 

अपने आंचल में भरा है उसने, 

जो कुछ मिला उसे

 सहजता से स्वीकार किया है उसने। 

कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता की यह मार्मिक प्रस्तुति सभी के हृदय को स्पर्श कर गयीं - 

हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम। 

हज़ार ज़ख्म हैं वो किस तरह दिखाएं हम। 

न जाने कितनी ही बातें सुनानी हैं तुमको, 

ज़रा सा पास कभी बैठो तो सुनाएं हम। 

 डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था -

आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत

भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया

     योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने दोहों में वर्तमान समाज का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा - 

बिना कहे ही पढ़ लिया, भीतर का सब सार। 

मन की भाषा धन्य है, धन्य शब्द-संसार।। 

बेशक सपनों के शहर, हर भटकन की ठाँव। 

पर क्यों सुविधाहीन हैं, उम्मीदों के गाँव।।

 रचना पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा 

 टूटे जब-जब प्रीत में, संवादों के तार। 

तब-तब पायल कर गई, चुप्पी का प्रतिकार।। 

नीम ! तुम्हारी छाॅंव में, आकर बरसों बाद। 

फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।। 

    ज़िया ज़मीर ने अपने अशआर से सभी के हृदय का स्पर्श करते हुए कहा - 

दर्द की ग़म की नुमाइश नहीं करनी आती। 

कैसी आंखें हैं कि बारिश नहीं करनी आती। 

हम कि कोशिश से भुला सकते हैं तुम को 

लेकिन, बात यह है हमें कोशिश नहीं करनी आती। 

डॉ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति थी - 

दुनिया में हम खुशियाँ ढूँढें। 

सखे ! प्रेम की मणियाँ ढूंढें। 

छोड़ उदासी को अब पीछे; 

हँसियों की फुलझड़ियाँ ढूँढें।    

डॉ. सुगंधा अग्रवाल ने अपने भावों को इस प्रकार शब्द दिए - 

किससे कहूँ , कौन सुनेगा, दिल पर मेरे जो गुज़रीं है। 

चारों ओर है सन्नाटा औऱ ग़म की आँधी पसरी है। 

माँ-पिता का  साया  सर से उठ  गया, 

जिन्दा हैं पर लगता है दिल का धड़कना रुक गया।

 दुष्यंत बाबा ने अपने भावों को शब्द दिए - 

जो  दर्शन  बदरी  के  पाते, 

मुक्ति  नर  उदरी   से  पाते। 

     मयंक शर्मा ने गीतों की सुरलहरी छेड़ी -

 मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना, 

दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना। 

     राघव सागर ने कहा - 

मुझे तो मुखौटों से अब डर लगने लगा है। 

सुख की वजाय दुःख अच्छा लगने लगा है। 

सरिता लाल ने आभार-अभिव्यक्त किया।






























































मंगलवार, 2 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के अभिनव गीत-संग्रह “गीतों के भी घर होते हैं” की डॉ काव्य सौरभ जैमिनी द्वारा की गई समीक्षा .... संवेदनशीलता को बचाने की मुहिम में सशक्त आवाज

  आभासी दुनिया के इस युग में गीत की गरिमा को जीवित रखना एक दुष्कर कार्य है। समय की मांग के अनुसार चल कर ही गीत को बचाया जा सकता है। नवगीत की परंपरागत  शैली से कुछ इतर प्रयोग कर डॉ मक्खन मुरादाबादी ने अभिनव गीत के माध्यम से सरलता व कोमलता के साथ यथार्थ को समाविष्ट कर एक अभिनव पहल की है। "गीतों के भी घर होते हैं" में विषय की विविधता एवं संवेदनाओं का विस्तार है। बौ‌द्धिक चेतना से ओतप्रोत इन गीतों में वैचारिक गांभीर्य है। जीवन की विषमताओं एवं कठोरता के चित्रण के साथ लालित्य भी है। संग्रह के गीतों मे आन्तरिक एवं बाह्य संवेदनाओं का एक संतुलित रूप दिखाई देता है। कुछ पंक्तियाँ अनायास ही आनंदित कर देती हैं:

स्वरलिपियों से गति दे दो

ठहरे लगते पानी को

मधुर ताल लय में कर दो

पड़ी बेसुरी बानी को

अस्वीकृत मूल्यों प्रति विद्रोहात्मक रवैया एवं आक्रोश बेहद शांत रूप में प्रदर्शित किया है मक्खन जी ने :

संविधान की आड़ लिए जो

साजिश पहने ढोंग खड़ी है

सिद्ध यही उसको है करना

इस पुस्तक से बहुत बड़ी है

क्योंकि अकेले आज़ादी का

उसका कुनबा युद्ध लड़ा है

समसामयिक और संवेदनशील मु‌द्दों पर बेबाकी से लिखा है:

फंसी धर्म में जो थी गाड़ी

अटकी है अब जाति -पाँति पर

कुटिल सियासत प्रश्न पूछती

अपने घर की बढ़ी ख्याति पर

जग है लट्टू, पर ना खुश है

चुकी हुई धुन का साजिन्दा

मक्खन जी की सत्यान्वेषी दृष्टि मानव को दिशा-बोध करा रही है:

बुरे-भले को ठोंक-बजाकर

उसका सत्व निकालें

अच्छे को तो सभी निभाते

थोड़ा बुरा भी निभा लें

चलकर ही तो सत्यपथ मिलता

जीवन चलते जाना

मक्खन जी के इन गीतों में बाल मन की व्याकुलता भी है। शैली बरबस सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की याद दिलाती है:

तपते दिन हैं बच्चे व्याकुल

गर्मी से उकताए हैं

उन्हें बुलाने ननिहालों से

कई बुलावे आए हैं

उनका मन भी खुश रखना है

गीतों में नानी लिखना

ग्रामीण अंचल में मानवीय संवेदनाओं की मौजूदगी को कुछ इस तरह बयां किया है:

आंखें रूखी-रूखी

घर भी रीता-रीता

खटका जाता कुंडी

आकर रोज फजीता

मान गाँव ने रक्खा

निर्धन की कुटिया का

सरकारी भ्रष्टाचार पर तंज कसने मे मक्खन जी कतई नहीं पिघलेः

बने योजना तो कितने ही 

उसमें पड़ते कूद 

गाय दुखी है हर खूँटे पर 

देना पड़ता दूध 

शिष्टाचारित मन से होती 

भ्रष्टाचारित जीत 

यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये अभिनव गीत हमारी संवेदनशीलता को बचाने की मुहिम में सशक्त आवाज हैं। भाषा डॉ कारेंद्र देव त्यागी के उपनाम मक्खन की भांति सरल, सहज व संप्रेषणीय है। सामाजिक यथार्थ तथा उसमें व्यक्ति की भूमिका को परखने का एक सफल प्रयास किया गया है। कथ्य की व्यापकता और दृष्टि की उन्मुक्तता सिद्ध करती है कि इन अभिनव गीतों में किसी विचारधारा विशेष का दबाव नहीं है। सुधारवादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए कुछ बेहतर के लिए अन्वेषण इस संग्रह में प्रतीत होता है। हालांकि कुछ पंक्तियों को जबरन विस्तार दिया गया है परंतु मक्खन जी ने सम्पूर्ण संग्रह में मन की बात कही है और मन के विस्तार को रोका और मापा नहीं जा सकता। बिंबों और प्रतीकों का अधिक सहारा लिए बिना बात की तरह बात कह देने का हुनर मक्खन जी में ही है। संग्रह की पंक्ति जो 'खत' को लेकर लिखी गई है-'सफल कहाँ गूगल भी उनकी सकल समीक्षा में', खत की जगह इस अप्रतिम संग्रह पर चरितार्थ होती दिखाई देती है। नवगीत के परिष्कृत रूप इन अभिनव गीतों के माध्यम से मक्खन जी ने नव काव्यान्दोलन का बिगुल बजाया है। हास्य व्यंग्य के स्थापित हस्ताक्षर मक्खन जी का गीत में साहसपूर्ण पदार्पण स्तुत्य है। इस अतुलनीय संग्रह से मक्खन जी ने  धर्मवीर भारती, रघुवीर सहाय, शमशेर बहादुर और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना सरीखे स्वनामधन्य रचनाकारों की श्रेणी में स्थापित होने के लिए कदम बढ़ा दिया है। यह अभिनव गीत-संग्रह हिन्दी साहित्य जगत में न केवल अपनी अलग पहचान बनाये वरन् शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो, ऐसी कामना है।


कृतिगीतों के भी घर होते हैं (अभिनव गीत संग्रह)

कवि : डॉ. मक्खन मुरादाबादी

प्रकाशन वर्ष : 2023

मूल्य : 300₹ 

प्रकाशक : गुंजन प्रकाशन, सी 130, हिमगिरि कॉलोनी, कांठ रोड, मुरादाबाद 244001


समीक्षक
:डॉ. काव्य सौरभ जैमिनी

अध्यक्ष-जैमिनी साहित्य फाउंडेशन एवं प्रबंधक-महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत ,मोबाइल फोन नंबर  9837097944

सोमवार, 1 जुलाई 2024

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ. अर्चना गुप्ता की काव्य-कृतियों 'अक्कड़ बक्कड़' तथा 'हुई हैं चाॅंद से बातें हमारी' का 30 जून 2024 को आयोजित समारोह में लोकार्पण

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था साहित्यपीडिया की ओर से रविवार 30 जून 2024 को आयोजित समारोह में मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ. अर्चना गुप्ता की दो काव्य कृतियों 'अक्कड़ बक्कड़' (बाल कविता-संग्रह) तथा 'हुई हैं चांद से बातें हमारी' (ग़ज़ल संग्रह) का भव्य लोकार्पण किया गया।  

एम.आई.टी. सभागार में मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  मंसूर उस्मानी ने कहा -  "कृतियों के प्रकाशन के साथ रचनाकार का दायित्व और भी बढ़ जाता है। कुछ नवीन प्रयोगों के साथ प्रकाशित डॉ. अर्चना गुप्ता की ये कृतियां उन्हें साहित्य जगत में और अधिक ऊॅंचाई पर प्रतिष्ठित करेंगी, ऐसा विश्वास किया जा सकता है।" मुख्य अतिथि एम. एल. सी. गोपाल अंजान ने कहा - आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारा साहित्य समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुॅंचे।" 

विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. काव्य सौरभ जैमिनी ने कहा डॉ अर्चना गुप्ता ने अपनी कृति अक्कड़ बक्कड़ के माध्यम से बाल मन को सरल सहज भाषा में छोटी  छोटी कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। विशिष्ट अतिथि अभिनीत मित्तल ने साहित्यपीडिया प्रकाशन के संदर्भ में जानकारी दी।

   डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ का कहना था - "डॉ. अर्चना गुप्ता की ग़ज़लों में संवेदनाओं का आत्मिक स्वरूप अत्यंत सुंदरता से उभर कर सामने आता है।"

 ज़िया ज़मीर ने अपने समीक्षात्मक आलेख में कहा - "डॉ. अर्चना गुप्ता की ग़ज़लें न केवल मुहब्बत और उसके दर्द को सुंदरता से उभारती हैं बल्कि उनकी लेखनी ज़िन्दगी के दूसरे पहलुओं पर भी बखूबी चली है।"

  राजीव प्रखर ने कहा - "डॉ. अर्चना गुप्ता का बाल कविता-संग्रह 'अक्कड़ बक्कड़' इस बात को स्पष्ट कर रहा है कि कवयित्री ने एक अबोध परन्तु  जिज्ञासु बालक को स्वयं के भीतर जी कर देखा है, जो अपनी बात मुखर होकर समाज के सम्मुख रख सका है।" 

दुष्यंत बाबा का कहना था - " डॉ० अर्चना की कृति 'अक्कड़-बक्कड़' शिशु मन का सम्पूर्ण पोषण है।"  इस अवसर पर डॉ. अर्चना गुप्ता ने अपनी कुछ चुनिंदा रचनाओं का पाठ भी किया।

 मीनाक्षी ठाकुर और प्रो. ममता सिंह द्वारा कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता के सम्मान में रचनाओं का सस्वर पाठ किया गया।

 इस अवसर पर डॉ पुनीत कुमार, डॉ. पूनम बंसल, डॉ. संगीता महेश, बाबा संजीव आकांक्षी, डॉ. मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा व्योम, दुष्यंत बाबा, हेमा तिवारी, डॉ. महेश दिवाकर, राशिद हुसैन, ओंकार सिंह ओंकार, मनोज मनु, विवेक निर्मल, श्रीकृष्ण शुक्ल, अभिनव चौहान, रघुराज सिंह निश्चल, पल्लवी शर्मा, रवि प्रकाश, डॉ. अतुल गुप्ता, अनुराग मेहता आदि उपस्थित रहे। संचालन डॉ. पंकज दर्पण अग्रवाल ने किया।डॉ. अर्चना गुप्ता ने आभार अभिव्यक्त किया ।