समाजसेवी कीर्तिशेष सुमन लाल जी की स्मृति में मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के मधुबनी स्थित आवास पर मंगलवार 11 जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।
राघव सागर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मंसूर उस्मानी ने कहा ...
तंग आकर ग़लत बयानी से,
हम अलग हो गए कहानी से।
आदमी आदमी का दुश्मन है,
अब सियासत की मेहरबानी से।
मुख्य अतिथि श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था -
प्रिय मेरा विश्वास तुम्हीं हो,
इस जीवन की आस तुम्हीं हो।
बिना तुम्हारे कट न सकें जो,
मेरे दिन और रात तुम्हीं हो।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. माधुरी सिंह ने संबंधों की सच्चाई को सामने रखते हुए कहा -
पुरुषों के जीवन में स्त्रियाँ
बहुत महत्व रखती हैं,
किंतु उनकी ग़ुलाम के रूप में।
न जाने उनके ख़्वाब क्या हैं?
वही जानें,
वे तो पूरे होने से रहे।
अरे, मित्रता कर लो न!
हिम्मत तो करो।
मेरे ख़्वाब में भी
एक सुनहरा भविष्य है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने अपनी पंक्तियों से परिस्थितियों का चित्र खींचा -
आत्म मुग्धता ने किया, राजा को कमजोर।
अपनी गलती खोजिए, क्यों करते अब शोर।।
क्यों करते अब शोर, मिला बल जिनसे तुमको।
सेहतमंद शरीर, बैठाया, घर में उनको।
कहे अकिंचन प्रेम, जड़ों में रखें तरलता।
आत्म समीक्षा करें, बढ़े न आत्म मुग्धता।।
सरिता लाल की पंक्तियों में मन की वेदना इस प्रकार मुखर हुई -
हर हॅंसती कली से पूछो तो जरा,
ओस की बूंदों को
अपने आंचल में भरा है उसने,
जो कुछ मिला उसे
सहजता से स्वीकार किया है उसने।
कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता की यह मार्मिक प्रस्तुति सभी के हृदय को स्पर्श कर गयीं -
हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम।
हज़ार ज़ख्म हैं वो किस तरह दिखाएं हम।
न जाने कितनी ही बातें सुनानी हैं तुमको,
ज़रा सा पास कभी बैठो तो सुनाएं हम।
डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था -
आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत
भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने दोहों में वर्तमान समाज का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा -
बिना कहे ही पढ़ लिया, भीतर का सब सार।
मन की भाषा धन्य है, धन्य शब्द-संसार।।
बेशक सपनों के शहर, हर भटकन की ठाँव।
पर क्यों सुविधाहीन हैं, उम्मीदों के गाँव।।
रचना पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा
टूटे जब-जब प्रीत में, संवादों के तार।
तब-तब पायल कर गई, चुप्पी का प्रतिकार।।
नीम ! तुम्हारी छाॅंव में, आकर बरसों बाद।
फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।।
ज़िया ज़मीर ने अपने अशआर से सभी के हृदय का स्पर्श करते हुए कहा -
दर्द की ग़म की नुमाइश नहीं करनी आती।
कैसी आंखें हैं कि बारिश नहीं करनी आती।
हम कि कोशिश से भुला सकते हैं तुम को
लेकिन, बात यह है हमें कोशिश नहीं करनी आती।
डॉ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति थी -
दुनिया में हम खुशियाँ ढूँढें।
सखे ! प्रेम की मणियाँ ढूंढें।
छोड़ उदासी को अब पीछे;
हँसियों की फुलझड़ियाँ ढूँढें।
डॉ. सुगंधा अग्रवाल ने अपने भावों को इस प्रकार शब्द दिए -
किससे कहूँ , कौन सुनेगा, दिल पर मेरे जो गुज़रीं है।
चारों ओर है सन्नाटा औऱ ग़म की आँधी पसरी है।
माँ-पिता का साया सर से उठ गया,
जिन्दा हैं पर लगता है दिल का धड़कना रुक गया।
दुष्यंत बाबा ने अपने भावों को शब्द दिए -
जो दर्शन बदरी के पाते,
मुक्ति नर उदरी से पाते।
मयंक शर्मा ने गीतों की सुरलहरी छेड़ी -
मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना,
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।
राघव सागर ने कहा -
मुझे तो मुखौटों से अब डर लगने लगा है।
सुख की वजाय दुःख अच्छा लगने लगा है।
सरिता लाल ने आभार-अभिव्यक्त किया।
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